सूक्ष्म वेद सच्चिदानंदघनब्रह्म की अमृतवाणी है अर्थात सृष्टि रचयिता परमेश्वर कबीर साहेब की अमरवाणी है। अपने बच्चों (आत्माओं) को कसाई/शैतान/ ब्रह्म-काल के जाल से छुड़ाने के लिए, भगवान स्वयं इस नश्वर संसार में प्रत्येक युग में अवतरित होते हैं और पुण्य आत्माओं को मिलते हैं। वे अपनी पुण्य आत्माओं को सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान और सच्चा मोक्ष मंत्र (सतनाम और सारनाम) प्रदान करते हैं जिसका प्रमाण पवित्र ग्रंथों में वर्णित है। कबीर सागर जिसे पांचवा वेद या सूक्ष्मवेद भी कहते हैं इस पवित्र वेद की रचना भक्त धर्मदास साहेब जी द्वारा की गई थी, जो सर्व जगत रचनहार कबीर साहेब जी के सबसे प्रिय शिष्य थे। धर्मदास साहेब जी बांधवगढ़, मध्य प्रदेश के रहने वाले थे।
परमेश्वर कबीर साहेब ने चारों वेदों को प्रारंभ में ब्रह्म-काल में प्रवेश किया तथा जो निश्चित समय पर उसके शरीर से बाहर निकल आए। काल ने जब वेदों को पढ़ा तो जाना की वेद परम अक्षर पुरुष यानी कबीर साहेब की महिमा बता रहे हैं और भगवान को प्राप्त करने के लिए पूजा की सच्ची विधि के बारे में जानकारी प्रदान कर रहे हैं, इसलिए काल ने वेदों के प्रासंगिक हिस्सों को नष्ट कर दिया जिसमें भगवान के बारे में जानकारी थी और बाद में बाकी के हिस्से को समुद्र में छिपा दिया इसलिए सूक्ष्मवेद के निर्माण की आवश्यकता पड़ी जिसमें परम ईश्वर और उसे प्राप्त करने की विधि के बारे में संपूर्ण जानकारी लिखित है। वर्तमान में उपलब्ध सूक्ष्मवेद में कुल 40 अध्याय हैं। पवित्र कबीर सागर में परमेश्वर कबीर साहेब की अमृतवाणी शामिल है जो सच्चे मोक्ष मंत्र सतनाम के बारे में जानकारी प्रदान करती है। यह ज्ञान कबीर साहेब जी द्वारा कुछेक पुण्य आत्माओं को प्रदान किया गया था जो परमेश्वर कबीर साहेब के प्रत्यक्षदर्शी थे।
धर्मदास जी ईश्वर-प्रेमी धर्मात्मा थे और भगवान विष्णु के उपासक थे। कबीर साहेब जी मथुरा में धर्म दास जी को मिले और उन्हें सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान समझाया। कबीर साहेब जी और धर्म दास जी की वार्ता और कबीर जी द्वारा उच्चारित पवित्र वाणियों का उल्लेख सूक्ष्मवेद में किया गया है। यहां यह बताना जरूरी है कि ईश्वर प्राप्ति के लिए साधक के पास सतनाम मंत्र होना बेहद जरूरी है।
एक तत्वदर्शी संत तीन चरणों में सच्चा मोक्ष मंत्र प्रदान करता है। पहला मंत्र, दूसरा सतनाम (ओम-तत्) और तीसरा सारनाम। पवित्र श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में कहा गया है कि 'ओम्-तत्-सत्' (सांकेतिक गुप्त मंत्र) मुक्ति की प्राप्ति के लिए है। सूक्ष्मवेद में परमेश्वर कबीर साहेब की पवित्र वाणी है जहां उन्होंने भक्त धर्मदास जी को बताया है कि उन्होंने पूरे ब्रह्मांड की रचना कैसे की? आत्माएं कसाई ब्रह्म-काल के जाल में कैसे फंसी? सतनाम और सारनाम का जाप करके सभी आत्माएं काल के जाल से कैसे मुक्त हो सकती हैं?
आइये अब जानते हैं की किन किन पुण्यात्माओं को कबीर साहेब जी ने तत्वदर्शी संत के रूप में धरती पर प्रकट होकर सतनाम प्रदान किया तथा जिसका विवरण और प्रमाण हमारे सभी धार्मिक ग्रंथों में विद्यमान है।
- संत गरीबदास जी महाराज
- संत दादू दास जी
- संत घीसा दास साहेब जी
- स्वामी रामानंद जी
- राजा वीर सिंह बघेल
- धर्मदास जी
इस लेख में मुख्य रूप से आप जानेंगे :-
- सतनाम क्या है?
- परमेश्वर कबीर साहेब की पवित्र वाणी में सतनाम का प्रमाण
- परमेश्वर कबीर साहेब ने स्वामी रामानंद जी को सतनाम समझाया
- परमेश्वर कबीर साहेब ने तांत्रिक गोरखनाथ को सतनाम समझाया
- संत गरीब दास जी महाराज की वाणी में सतनाम का प्रमाण
- संत दादू दास जी की पवित्र वाणी में सतनाम का प्रमाण
- संत घीसा दास साहिब जी की पवित्र वाणी में सतनाम का प्रमाण
- राजा वीर सिंह बघेल को कबीर साहेब जी से सतनाम प्राप्त हुआ
- धर्मदास जी को कबीर साहेब जी से सतनाम प्राप्त हुआ
- सतनाम के संबंध में कबीर साहेब और ब्रह्म-काल के बीच संवाद
- श्री गुरु नानक देव जी को परमेश्वर कबीर जी से सतनाम प्राप्त हुआ
सतनाम क्या है?
सतनाम दो शब्दों का मंत्र है जैसा कि पवित्र श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में वर्णित है जो 'ओम्-तत्-सत्' है। पहले दो शब्द 'ओम-तत्' सतनाम है। यह अक्षर पुरुष/परब्रह्म का मंत्र है, जो ॐ-तत्-सत् में 'तत्' (सूचक) है। वह दूसरे परमेश्वर हैं जिनका प्रमाण ऋग्वेद मण्डल नं. 10 सूक्त 90 मंत्र 2 व 3 तथा अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक नं.1 मंत्र नं.1, 3, व 4 में है।
आइए अब कुछ महापुरुषों की पवित्र वाणियों व परमेश्वर कबीर देव जी की अमृतवाणी से सूक्ष्मवेद में सतनाम के प्रमाण के बारे में जानें।
परमेश्वर कबीर साहेब की पवित्र वाणी में सतनाम का प्रमाण
सर्व सृष्टि रचनहार कबीर साहेब जी स्वयं इस धरती पर अवतरित होते हैं और तत्वदर्शी संत का वेश धारण करके मोक्ष मंत्र "सतनाम" प्रदान करते हैं जिसके माध्यम से आत्माएं ब्रह्म-काल (क्षर पुरुष) के लोक से अक्षर पुरुष (परब्रह्म) के लोक में पहुंचती हैं और फिर अंत में सतलोक (शाश्वत स्थान) पहुंचती हैं। परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अपनी अमृतमयी वाणी में कहा है:-
कह कबीर अक्षर दुय भाख । होयगा खसम त लेयगा राख ।।
अर्थ: कबीर साहिब जी कहते हैं कि भगवान को प्राप्त करने के लिए दो शब्दों वाले मंत्र (सतनाम) का जाप करें।
सूक्ष्म वेद (पांचवें वेद) में वर्णित एक अन्य वाणी में - कबीर सागर अध्याय 35 "स्वांस गुंजार (शब्द गुंजार)" में परमेश्वर कबीर साहेब बताते हैं कि श्वांस-उश्वांस के माध्यम से सतनाम का जाप करने की एक विशेष विधि है। ईश्वर द्वारा मनुष्यों को सीमित साँसें दी गई हैं। मृत्यु किसी भी समय आ सकती है, इसलिए व्यक्ति को अपनी हर सांस का उपयोग सतभक्ति करके मोक्ष प्राप्त करने में करना चाहिए।
कबीर, श्वांस उश्वांस में नाम जपो, व्यर्था श्वांस ना खोय ।
ना बेरा इस श्वांस का, आवन होके ना होय ।।
श्वासा पारस भेद हमारा, जो खोजै सो उतरे पारा ।
श्वासा पारस आदि निशानी, जो खोजे तो होय दरबानी ।।
हरदम नाम सोहं सोई। आवागवन बहोर न होई ।।
सतनाम का एक और प्रमाण सच्चिदानंदघन ब्रह्म कबीर साहेब की अमृतवाणी कबीर सागर के अध्याय "श्वांस गुंजार" पृष्ठ 94 (1672) पर वर्णित है।
श्वासा सार गहै सहिदानी । शशि के घर महं सूर्य उगानै ।।
श्वासा सार गहै गुंजारा । जाप जपै सतनाम पियारा ।।
अजपा जाप जपै सुखदाई । आवै न जावै रह ठहराई ।।
नोट: सतनाम का उच्चारण सांस छोड़ते और लेते समय किया जाता है। सतनाम जाप करते समय कोई ध्वनि उत्पन्न नहीं होती इसलिए इसे 'अजपा जाप' भी कहा जाता है। यह तत्वदर्शी संत द्वारा प्रदान किये जाने पर ही कार्य करता है।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 37 सुमिरन बोध (सारांश) पृष्ठ संख्या 1, “सुमिरन आदि गायत्री”
आदि गायत्री सुमिरन सारा। सुमिरन हंस उतारे पारा ।।
कोटि अठासी घाट हैं। यम बैठे तहं रोक। आदि गायत्री सुमिरिके। हंसा होय निशोक ।।
घाटि घाटिन नाखी आगे तब जाई। सकल दूत रहे पछताई ।।
आगे मकर तार है डोरी। जहां यम रहे मुख मोरी ।।
ओहं सोहं नाम के आगे करे पियान। अजर लोक बासा करे, जग मग द्वीप स्थान ।।
आदि गायत्री सुमिरिके। आवा गमन नशाया। सत्यलोक बासा करे। कह कबीर समझाय ।।
भावार्थ: ज्ञानहीन कबीर पंथियों ने कबीर परमेश्वर के यथार्थ ज्ञान को अज्ञान बना अड़ंगा करके लिखा है। यथार्थ ज्ञान परमेश्वर कबीर जी ने अपनी प्यारी आत्मा अपने नाद के सपूत यानि शिष्य गरीबदास जी द्वारा यथार्थ ज्ञान उजागर करवाया है। संत गरीबदास जी ने गायत्री मंत्र जो बताया है, वह शरीर में बने कमलों में विराजमान देवताओं की साधना का है जो जीव के घाट (मार्ग) को रोके बैठे हैं। इन देवताओं द्वारा रोके गए मार्ग गायत्री मंत्र से खुल जाते हैं। इन मंत्रों का नाम संत गरीबदास जी ने ब्रह्म गायत्री मंत्र कहा है। इनके द्वारा मार्ग छोड़ देने के पश्चात् सर्व देव अपने आप रास्ता छोड़ते चले जाते हैं। फिर यम के दूत भी उस साधक को बाधा नहीं करते।
कबीर सागर, सुमिरण बोध (छोटा) पृष्ठ 2 पर :-
ओहं सोहं नाम से आगे करे पयान।
अजर लोक वासा करे जगमग द्वीप स्थान।।
अर्थ: यहां दो शब्दों वाले मन्त्र की ओर संकेत है; सतनाम जिसे श्वांस-उश्वांस (श्वांस छोड़ना और लेना) के माध्यम से करना होता है। इसके स्मरण मात्र से ही आत्मा सहस्त्र कमल की ओर अग्रसर हो जाती है।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 37 सुमिरन (सुमिरण) बोध पृष्ठ 15 व 16 में सतनाम का उल्लेख
सुमिरन बोध पृष्ठ 15:-
पुहुप दीप मण्डप गुरू सांचा। हंस सोहंग नाम बीच राजा।।
सोहं शब्द नाम है सारा। सत्य बचन बोले कड़िहारा।।
एकोतर (101) नाम जानै विस्तारा। सो जानों साचा कड़िहारा।।
पांच नाम इन्हीं में भाषा। सहज पक्ष पालन है साषा।।
सुमिरण बोध पष्ठ 16 पर :-
सुरति सोहं शब्द है गगन ध्यान लौलीन।
एकटक सुमरो संतों जम होय बलहीन।।
सोहं शब्द निज साच है जपो अजपा जाप।
कहै कबीर धर्मदास सों सारशब्द गरगाप।।
सोहं शब्द निज साच है गहि राखो तुम पास।
सोहं शब्द में मुक्ति है सत्य मानो धर्मदास ।।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 37 सुमिरन बोध पृष्ठ 22, "स्मरण दीक्षा मंत्र"
सत्य सुकृत की रहनी रहे, अजर अमर गहै सत्यनाम।
कहै कबीर मूल दीक्षा सत्य (सार) शब्द प्रवान।।
भावार्थ: इसमें सत्यनाम तथा सार शब्द की महिमा बताई है। कहा है कि मर्यादा में रहकर शुभ कर्म करे और मोक्ष करने के मंत्र अजर-अमर करते हैं। वे सत्यनाम तथा सार शब्द मूल दीक्षा यानि मुख्य दीक्षा है।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 32 स्वसमवेद बोध पृष्ठ नं. 91, वाणी 8-13
जाते ओहं (ओम्) पुरुष में अंशा, ओहं सोहं मे है अंशा ।।8।।
मूल सुरति अरू पुरूष पुराना। रचना बाहर कीनो थाना ।।9।।
ओहं सोहं अंडन रहेऊ। सकल सृष्टि के कर्ता भयऊ ।।10।।
ओहं सोहं कीन प्रमानी। आठ अंश मे तिनते उतपानी ।।11।।
आठ अंश में एक निधाना। करता सृष्टि भये परमाना ।।12।।
सात अंश के नाम बखानो। जिनते सकल सृष्टि बँधानो ।।13।।
अर्थ: कबीर परमेश्वर बताते हैं कि उन्होंने सृष्टि की रचना कैसे की? और बाद में उन्होंने क्षर पुरुष और अक्षर पुरुष का ओहं-सोहं मंत्र बनाया।
परमेश्वर कबीर साहेब कहते हैं;
सुमिरन करे सतनाम का और अर्पण करे शरीर |
आठ पहर रक्षा करे, समरथ सत कबीर ||
भावार्थ: सतनाम का जाप करने वाले तथा पक्के भक्त साधक के तारणहार कबीर परमेश्वर हैं।
गुरु सोई सतनाम बतावे, और गुरु कोई काम न आवे ||
अर्थ: सच्चा गुरु वह है जो सतनाम प्रदान करता है। नकली गुरु बेकार हैं जो सतनाम नहीं जानते।
सोरठा-सतनाम गुन गाये, गही साधु सेवा करे |
सहज परम पद पाय, सो सतगुरु पद विश्वास धारी ||
अर्थ: जो लोग सतनाम का जाप करते हैं और संत की सेवा करते हैं, उन्हें सहज ही शाश्वत लोक प्राप्त हो जाता है।
सतनाम है सार अनूपा, प्रेम प्रीति गुरु दरस स्वरूपा ||
अर्थ: मोक्ष प्राप्ति के लिए सतनाम एक महत्वपूर्ण मंत्र है।
भूत भविष्य जपे नर लोई, सतनाम बिन मुक्ति न होई ||
अर्थ: सतनाम के जाप करने से ही मुक्ति मिल सकती है।
सच्चे मंत्र (नाम) और सतगुरू की महिमा
संदर्भ: कबीर सागर के अध्याय सुमिरन बोध के पृष्ठ 35-50, इसमें सतनाम और सारनाम प्रदान करने वाले सतगुरु की महिमा का वर्णन किया गया है।
गेही भक्ति सतगुरु की करहीं। आदि नाम निज हृदय धरहीं।।
गुरु चरणन से ध्यान लगावै। अंत कपट गुरु से ना लावै।।
अर्थ: गृहस्थी व्यक्ति को गुरु धारण करके गुरुजी के बताए अनुसार भक्ति करनी चाहिए तथा आदि नाम जो वास्तविक तथा सनातन साधना के नाम मन्त्र हैं, उनको हृदय से स्मरण करना चाहिए। गुरुजी के चरणों में ध्यान रखें अर्थात् गुरु जी को किसी समय भी दिल से दूर न करें तथा अंत = अर्थात् अन्तः करण में कभी भी गुरु से छल-कपट नहीं रखना चाहिए।
इसका उल्लेख सच्चिदानंदघन ब्रह्म की अमृतवाणी (सूक्ष्म वेद) में किया गया है।
गुरु बिन वेद पढ़े जो प्राणी। समझे ना सार रहे अज्ञानी।।
अर्थ: सतगुरु पवित्र ग्रंथों में छिपे आध्यात्मिक तथ्यों को सुलझाते हैं। तभी उन्हें समझा जा सकता है, अन्यथा भक्त अज्ञानी बने रहते हैं।
जब ही सत्य नाम हृदय धरो, भयो पाप को नाश।
जैसे चिंगारी अग्नि की, पड़ी पुराने घास।।
अर्थ: जैसे आग की चिंगारी टनों सूखी घास को जला देती है उसी प्रकार सतनाम एक ऐसा प्रभावशाली मंत्र है जो भगवान की कृपा से आत्मा के गंभीर पापों को भी नष्ट कर देता है।
कबीर कहता हूं कहि जात हूँ, कहूं बजा कर ढोल।
स्वांस जो खाली जात है, तीन लोक का मोल।।
अर्थ: जब साधक सतगुरु से प्राप्त करके सच्चा मंत्र जपता है तो उसके एक श्वांस-उश्वांस जाप (सतनाम) का मूल्य तीनों लोकों (पृथ्वी, पाताल और स्वर्ग) से भी अधिक होता है।
गुरु से शिष्य जब दीच्छा मांगे। मन कर्म वचन धरै धन आगे।।
ऐसी प्रीति देखि गुरु जबहीं। गुप्त मंत्र कहै गुरु तबहीं।।
“सुमिरन (स्मरण) के अंग से”
कबीर, सुमिरन मारग सहज का, सतगुरू दिया बताय।
श्वांस उश्वांस जो सुमिरता, एक दिन मिल सी आय ।।
कबीर, माला श्वांस उश्वांस की, फेरैंगे निजदास।
चौरासी भरमै नहीं, कटै कर्म की फाँस।।
उपरोक्त वाणी में कबीर परमात्मा ने सतनाम जपने की विधि का संकेत किया है, जिसे सतगुरु ही सही सही बताता है।
कबीर, सत्यनाम सुमरले, प्राण जाहिंगे छूट।
घर के प्यार आदमी, चलते लेंगे लूट।।
भावार्थ: कबीर परमेश्वर ने जीव को सतनाम जपने के लिए सचेत किया है। मौत कब आ जाये ये कोई नहीं जानता। मरने के बाद सभी प्रियजन पैसे, आभूषण आदि निकाल लेंगे। प्राणी के साथ कुछ भी नहीं जाएगा। इसका मतलब है कि मनुष्य अज्ञानता के कारण मोह-माया में बंधे हुए हैं और अनमोल मानव जन्म को बर्बाद कर रहे हैं। सतनाम के जाप द्वारा की गई भक्ति की कमाई को स्वीकार करने से कोई भी पीछे नहीं हटेगा। इसलिए सच्चे मंत्र का जाप करें। आपका कल्याण निश्चित है।
कबीर, ऐसे मँहगे मोल का, एक श्वांस जो जाय।
चौदह लोक न पटतरे, काहे धूर मिलाय।।
भावार्थ: कबीर परमेश्वर ने बताया है कि सतनाम इतना मूल्यवान है कि 14 लोक भी सतनाम के एक जाप से कम कीमती हैं।
आइये आगे बढ़ें और परमात्मा कबीर साहेब की वाणी का अध्ययन करें जहां कबीर जी स्वामी रामानंद जी को सतनाम के बारे में बता रहे हैं।
परमेश्वर कबीर साहेब जी ने स्वामी रामानंद जी को सतनाम समझाया
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 36 अगम निगम बोध, पेज नं. 34 से विवरण: परमेश्वर कबीर साहेब जी ने स्वामी रामानंद जी को अपनी शरण में लिया और उन्हें सतनाम के महत्व से अवगत कराया।
राम-राम और ओम् नाम यह सब काल कमाई।
सतनाम दो मोरे सतगुरू तब काल जाल छुटाई।।
सतनाम बिन जन्में मरें परम शान्ति नाहीं।
सनातन धाम मिले न कबहु, भावें कोटि समाधि लाई।।
सार शब्द सरजीवन कहिए, सब मन्त्रन का सरदारा।
कह कबीर सुनो गुरु जी या विधि उतरें पारा।।
आइए अब परमेश्वर कबीर साहेब जी की उस वाणी का अध्ययन करें जिसमें तांत्रिक गोरखनाथ को सतनाम मिला है।
परमेश्वर कबीर साहेब ने तांत्रिक गोरखनाथ को सतनाम समझाया
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 36 अगम निगम बोध, पेज नं. 41 से विवरण: परमेश्वर कबीर साहेब जी का तांत्रिक गोरखनाथ से संवाद। तांत्रिक गोरखनाथ ब्रह्म-काल के उपासक थे जिन्हें वे अलख निरंजन कहते हैं। अज्ञानी गोरखनाथ ने कबीर साहेब से पूछा कि आपकी उम्र क्या है? तुम कहाँ से आये हो? कबीर साहेब ने उत्तर दिया:-
अधरदीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा।
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म), भी धरता ध्यान हमारा।।
हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कबीर अविनाशी।।
भावार्थ: सतपुरुष कबीर साहेब बताते हैं कि मैं परम धाम सतलोक में रहता हूँ। अलख निरंजन (काल) जो तुम्हारा ईष्ट देवता है, वह भी मुझे याद करता है। मेरा शरीर पांच तत्वों से बना नहीं है। जो साधक सतनाम का जाप करता है, वह मुझे प्राप्त कर लेता है और बाद में उसे 'सारनाम' प्रदान किया जाता है, जिससे वह जन्म और पुनर्जन्म के दुष्चक्र से स्थायी रूप से मुक्त हो जाता है। यह 'तारन तरण अभै पद' (भक्ति का वास्तविक तरीका) मैं अविनाशी परमेश्वर कबीर जी ने बताया है। यह अन्य कोई नहीं जानता।
संत गरीबदास जी महाराज की पवित्र वाणी में सतनाम का प्रमाण
आदरणीय संत गरीबदास जी (गांव छुड़ानी, जिला झज्जर, हरियाणा) को परमेश्वर कबीर साहेब जी ने सतनाम प्रदान किया। जिसके विषय में आदरणीय संत गरीबदास जी ने कहा है :-
सोहं शुभान मन्त्र अगम अनुराग मन्त्र, निर्भय अडोल मन्त्र,
निर्गुण निर्बन्ध मन्त्र, निश्चय मन्त्र नेक है।।
संत गरीबदास जी ने गुरुदेव के अंग में कहा है :-
गरीब, ऐसा सतगुरु हम मिल्या, सुन्न विदेशी आप।
रोम-रोम प्रकाश है, दीन्हा अजपा जाप ।।4।।
गरीब, सतगुरु सोहं नाम दे, गुज बीरज विस्तार।
बिन सोहं सीझे नहीं, मूल मन्त्र निज सार।।85।।
गरीब, सोहं सोहं धुन लगै, दर्द बन्द दिल माहीं।
सतगुरु परदा खोल हीं, परालोक ले जाही।।86।।
गरीब, सोहं जाप अजाप है, बिन रसना होए धुन्न
चढ़े महल सुख सेज पर, जहाँ पाप नहीं पुण्य।।87।।
गरीब, सोहं जाप अजाप है, बिन रसना होए धुन्न।
सतगुरु दीप समीप है, नहीं बस्ती नहीं सुन्न ।।88।।
संत गरीबदास जी ने सुमरण के अंग में कहा है :-
सोहं ऊपर और है, सत्य सुकृत एक नाम।
सब हंसों का बंस है, नई बस्ती नई ठाम।।
संत गरीबदास जी ने राग होरी में कहा है :-
गरीब, सत्यनाम पालड़ै रंग होरी हो, चौदह भवन चढावै राम रंग होरी हो।
तीन लोक पासंग धरै रंग होरी हो, तो न तुलै तुलाया राम रंग होरी हो।।
भावार्थ:- सतनाम मंत्र पूर्ण संत से जिस भक्त आत्मा को मिल गया उसके एक जाप की कीमत इतनी है कि एक स्वांस-उस्वांस से सतनाम मंत्र का जाप तराजू के एक पलड़े में, दूसरे पलड़े में चौदह भुवनों को रख दें तथा तीनों लोकों को तुला की त्रुटि ठीक करने के लिए रख दें तो भी एक सतनाम मंत्र की कीमत ज्यादा है।
संत गरीबदास जी की "ब्रह्म बेदी" की वाणी में सतनाम का प्रमाण मिलता है :-
घुरै निसान अखण्ड धुन सुन, सोहं वेदी गाईये।
बाजे नाद अगाध अग है, जहां ले मन ठहराइये।।13।।
अर्थ :- सतलोक में निशान (झण्डे=पताका) फहरा रहे हैं तथा वहाँ पर अखण्ड (निरंतर) धुन बज रही है। हे साधक ! उसको सुनकर सोहं मन्त्र की स्तुति करना। भावार्थ है कि 'सोहं' मंत्र पृथ्वी के किसी ग्रन्थ में नहीं है। यह शब्द परमात्मा कबीर जी ने पृथ्वी पर प्रकट किया है। परमेश्वर कबीर जी ने कहा भी है कि :-
सोहं शब्द हम जग में लाए। सार शब्द हमने गुप्त छिपाए।।
ऋग्वेद मंडल नंबर 9 सूक्त 95 मंत्र नंबर 2 में कहा गया है कि भगवान पृथ्वी पर आते हैं और कहावतों, दोहों, कविताओं के माध्यम से सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं और अपनी आत्माओं को सच्ची पूजा करने के लिए प्रेरित करते हैं। परमात्मा स्वयं सच्चे मोक्ष मंत्र को प्रकट करते हैं। इसलिए कहा गया है कि सोहम् मंत्र के बिना भक्ति अधूरी है। जो भी साधक सोहम् मंत्र को प्राप्त कर लेता है उसे ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है और सतलोक पहुँच जाता है। इसलिए, इस मंत्र पर विश्वास करके ध्यान केंद्रित करें यदि यह सतगुरु द्वारा प्रदान नहीं किया गया होता तो मुक्ति प्राप्त करना असंभव होता। ऐसी अनेकानेक मधुर ध्वनियाँ उस अनन्त लोक अर्थात् सतलोक में गूँजती हैं।
सोहं जाप अजाप थरपो, त्रिकुटी संयम धुनि लगै। मानसरोवर न्हान हंसा, गंग् सहंसमुख जित बगै।।18।।
अर्थ :- कमलों को छेदकर अर्थात् प्रथम दीक्षा मंत्र के जाप से कमलों का अवरोध साफ करके सत्यनाम के मंत्र का जाप करके उससे प्राप्त भक्ति शक्ति से साधक त्रिकुटी पर पहुँच जाता है। त्रिकुटी के पश्चात् ब्रह्मरंद्र को खोलना होगा जो त्रिवेणी (जो त्रिकुटी के आगे तीन मार्ग वाला स्थान है) के मध्यम भाग में है। ब्रह्मरंद्र केवल सतनाम के स्मरण से खुलता है। इसलिए कहा है कि सोहं नाम का जाप विशेष कसक के साथ जाप करने से (थरपने) ब्रह्मरंद्र खुलता है। सोहं जाप की शक्ति त्रिकुटी तथा त्रिवेणी के संजम (संगम) पर बने ब्रह्मरंद्र को खोलने की धुन अर्थात् विशेष लगन लगे तो वह द्वार खुल जाता है। हे हंस अर्थात् सच्चे भक्त! उसके पश्चात् ब्रह्म लोक में बने मानसरोवर पर स्नान करना, वहाँ से गंगा हजारों भागों में बहती है, निकलती है, अन्य लोकों में जाती है।
स्वांस उस्वांस पवन कुं पलटै, नाग फुनी कुं भूंच है। सुरति निरति का बांध बेड़ा, गगन मण्डल कुं कूंच है।।28।।
अर्थ: श्वांस जो बाहर छोड़ते हैं तथा उश्वांस जो अन्दर लेते हैं, इस विधि से जो नाम के जाप को करके वायु को अर्थात् श्वांस को सूक्ष्म करके नागफनी अर्थात् सर्पनुमा नाड़ी जो नाभि के चारों ओर 2½ लपेटे लगाए है, उसको ढ़ीला (Loose) करना है। तब ऊपर चलने का मार्ग मिलता है। फिर सतनाम का श्वांस से स्मरण करता है, आकाश में बने सतलोक की ओर प्रस्थान करना होता है। सुरति निरति का बेड़ा बाँधने का अभिप्राय है कि सतनाम का जाप श्वांस से मन तथा सुरति निरति का समूह बनाकर करने को बेड़ा बाँधना कहा है। पुराने समय में दरिया को पार करने के लिए सुखी लकड़ियों को इकट्ठा करके लगभग 200 फुट लंबा तथा 10 फुट चौड़ा बेड़ा बनाते थे, दरिया में डालकर उसके ऊपर बैठकर नदी को पार करते थे। उसी का प्रमाण देकर कहा है कि आत्मा भव सागर से पार होने के लिए सुरति-निरति, मन तथा पवन (श्वांस) को इकट्ठा करके बेड़ा बाँध ले।
श्वांसा पारस भेद हमारा, जो खोजे सो उतरे पारा।।5।।
अर्थ: श्वांस के माध्यम से जाप किया जाने वाला सतनाम और सारनाम पारस पत्थर के समान है जो लोहे को सोने में बदल देता है। इसी प्रकार आत्मा को लोहा और सतनाम को पारस कहा गया है। श्वांस के सुमिरन से आत्मा अनमोल हो जाती है। उसे आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। साधक ऐसे संत की खोज करता है जिसके पास यह श्वांस रूप पारस पत्थर हो अर्थात गुप्त मोक्ष मंत्र सतनाम और सारनाम हो। जो साधक सच्चे मोक्ष मंत्र को प्राप्त कर लेता है उसे मुक्ति मिल जाती है।
संत गरीबदास जी की वाणी में अन्य स्थानों पर दो अक्षर के सतनाम का स्पष्ट रूप से प्रमाण :-
ॐ सोहं मंतर जपिये, योगयुगति धूनी तपिये।।
राम नाम जप कर थिर होई। ओहं सोहं मंत्र दोई।।
भावार्थ: राम नाम जपकर पूर्ण मोक्ष प्राप्त करो, वह राम नाम दो अक्षर का सतनाम है।
गरीब, नामा छीपा ओ३म् तारी, पीछे सोहं भेद विचारी।
सार शब्द पाया जद् लोई, आवागवन बहुर न होई।।
अर्थ: सतनाम एक अनमोल मंत्र है जो आत्माओं को जन्म और पुनर्जन्म से हमेशा के लिए मुक्ति दिला देता है।
आइए अब एक अन्य महापुरुष संत दादू दास साहेब जी, जिन्हें भगवान मिले थे, उनकी पवित्र वाणी में सतनाम के प्रमाण का अध्ययन करें।
संत दादू दास जी की पवित्र वाणी में सतनाम का प्रमाण
ब्रह्मांड के निर्माता यानी अकाल पुरुष कबीर जी, पूज्य श्री दादू दास साहिब जी से भी मिले। उन्होंने अपनी पवित्र वाणी में यह भी उल्लेख किया है कि जिसने मुझे 'निज नाम' (असली मंत्र-सतनाम) जपने के लिए दिया, वह मेरा गुरु था। उस मोक्ष मंत्र का जाप स्वांस -उस्वांस (श्वांस) के माध्यम से किया जाता है। मेरे गुरु ही संपूर्ण ब्रह्मांड के पालनहार हैं, अन्य कोई नहीं। वह कबीर हैं।
जिन मोकूं निज नाम दिया, सोई सतगुरू हमार।
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सिरजनहार ।।
अब हो तेरी सब मिटे, जन्म-मरण की पीर।
श्वांस उश्वांस सुमरले, दादू नाम कबीर ।।
एक अन्य महापुरुष संत घीसा दास साहिब जी जिन्हें कबीर साहेब जी मिले थे, उनकी पवित्र वाणी में भी सतनाम का प्रमाण बताया गया है।
संत घीसा दास साहिब जी की पवित्र वाणी में सतनाम का प्रमाण
परमात्मा कबीर साहेब जी, घीसा दास साहिब जी से मिले और उन्हें सतनाम प्रदान किया जो उनकी वाणी से स्पष्ट होता है। वह वाणी में कहते हैंः
"ओम् सोहं जपले भाई, रामनाम की यही कमाई।"
इससे सिद्ध होता है कि आत्मा के जन्म-मरण रूपी दीर्घ रोग को दूर करने के लिए सतनाम ही एकमात्र उपाय है।
काशी वाराणसी के राजा बीर सिंह बघेल ने भी सूक्ष्मवेद में निर्दिष्ट ज्ञानानुसार परमेश्वर कबीर साहेब जी से सतनाम प्राप्त किया था।
राजा वीर सिंह बघेल को सतनाम कबीर साहेब जी से प्राप्त हुआ
बीर/वीर सिंह बघेल वाराणसी के एक प्रसिद्ध राजा थे जिन्होंने परमेश्वर कबीर साहेब जी की शरण ली और उनके शिष्य बने।
कबीर सागर, अध्याय बीर सिंह बघेल पृष्ठ 97 (521) पर,
हम तो अगम देश से आये। सतनाम सौदा हम लाये।।
अर्थ: एक बार राजा बीर सिंह ने अपने महल में 'कीर्तन' का आयोजन किया जहां कई संतों, ब्राह्मणों आदि ने उपस्थिति दर्ज कराई। परमेश्वर कबीर साहेब भी गये। भगवान ने वहां श्रोताओं को उपदेश दिया और उनसे कहा कि मैं अमर लोक से आया हूं और मेरे पास उन साधकों को देने के लिए एक मोक्ष मंत्र है, जो भगवान को प्राप्त करना चाहते हैं।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 8 'बीर सिंह बोध' पेज नं. 114 में उल्लेख है कि परमेश्वर कबीर साहेब ने राजा बीर सिंह को सतनाम प्रदान किया।
करूणारमन सद्गुरू अभय मुक्तिधामी नाम हो।।
पुलकित सादर प्रेम वश होय सुधरे सो जीवन काम हो।।
भवसिन्धु अति विकराल दारूण तासु तत्व बुझायऊ।।
अजर बीरा नाम दै मोहि। पुरुष दरश करायऊ।।
सोरठा-राय चरण गहे धाय, चलिये वहि लोक को।।
जहवाँ हंस रहाय, जरा मरण जेहि घर नहीं।।
कबीर साहेब की वाणी
तौन नाम राजा कहँ दीना। सकल जीव आपन करि लीना।।
राय श्रवण जब नाम सुनायी। तब प्रतीति राया जिव आयी।।
सत्यपुरूष सत्य है फूला। सत्य शब्द है जीव को मूला।।
सत्यनाम जीव जो पावै। सोई जीव तेहि लोक समावै।।
ऐसो नाम सुहेला भाई। सुनतहिं काल जाल नशि जाई।।
सोई नाम राजा जो पाये। सत्य पुरूष दरशन चित लाये।।
पुराने कबीर सागर की वाणी
अब राजा तुम सिमर करिहो। राज पराये चित न धरिहो।।
सत्य नाम बख्स मैं दीना। रहना सदा भक्त संत के आधीना।।
सार शब्द जब तक नहीं पावै। कोई साधक सतलोक नहीं जावै।।
सार शब्द सुमरण करही। सो हंस भवसागर तिरही ।।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 36 'अगम निगम बोध' पृष्ठ 84-87, प्रवचन नं. 7-9 में कहा गया है 'सातों नाल जो आए विहंगा' यानि सातों देवता एक ही कड़ी से जुड़े हुए हैं। आगे कहा गया है;
सोहं नाल चीन्ह जिन पाई, सोई सिद्ध संत है भाई।
पाँच नाम तिहको परवाना, जो कोई साधु हृदय में आना।
सप्त नाल के सातों नामा, बीर विहंग करे सब कामा।
उपरोक्त वाणी से स्पष्ट है कि सतनाम कुछ ही भक्तों को प्राप्त हुआ जबकि पहला मंत्र कबीर परमेश्वर की कृपा से और भी अधिक लोगों को प्राप्त हुआ था।
नीचे इस बात का प्रमाण है कि धर्मदास जी परमेश्वर कबीर साहेब के शिष्य बने और उन्हें सतनाम प्रदान किया गया।
धर्मदास जी को सतनाम परमेश्वर कबीर साहेब से प्राप्त हुआ
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 6- ज्ञान प्रकाश।
परमेश्वर कबीर साहेब जी ने मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ के रहने वाले धर्मात्मा धर्मदास साहेब को शरण में लिया। भक्त धर्मदास साहेब को कबीर साहेब जी ने सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान दिया। धर्मदास भगवान विष्णु के उपासक थे। नीचे वर्णित कुछ साक्ष्य यह साबित करेंगे कि धर्मदास साहेब को सतनाम परमेश्वर कबीर साहेब से प्राप्त हुआ था। ये प्रमाण दोनों के बीच हुए संवाद से लिए गए हैं।
कबीर साहेब जी धर्मदास जी को समझाते हुए कहते हैं कि तीर्थ यात्रा करना व्यर्थ प्रथा है। हमारे किसी भी पवित्र ग्रंथ में इसका कोई महत्व नहीं है। जिंदा बाबा रूप में परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा;
कोटि कोटि जो तीरथ नहाओ | सतनाम बिन मुक्ति न पाओ ||
अर्थ: भगवान को प्राप्त करने और प्रसन्न करने के लिए तीर्थ यात्रा के दौरान नदी में स्नान करने से कोई फायदा नहीं होता है। यह एक व्यर्थ प्रथा है। तीर्थयात्रा करने से कभी मोक्ष नहीं मिल सकता। केवल सतनाम ही आत्माओं को काल के लोक से मुक्ति दिलाएगा।
पेज नं. 19 पर धर्मदास जी की वाणियों का उल्लेख किया गया है। धर्मदास जी कबीर साहब जी के लिए भोजन लाते हैं और उन्हें भोजन खाने को कहते हैं और परमेश्वर कबीर ने उत्तर दिया;
सतनाम है मोर अधारा | भक्ति भजन सत्संग सहारा ||
अर्थ: कबीर साहेब ने कहा कि मुझे भूख नहीं है। मुझे भोजन की आवश्यकता नहीं है। मैं सतनाम का सिमरन करता रहता हूं यही मेरा आधार है।
पेज नं. 62 पर सतनाम का उल्लेख
सत्यनाम सतगुरू तत् भाखा, सार शब्द ग्रंथ कथि गुप्त ही राखा।।
सत्य शब्द गुरू गम पहिचाना। विन जिभ्या करू अमृत पाना।।
ओहं (ॐ) - सोहं जानों बीरू। धर्मदास से कहो कबीरू।।
धरीहों गोय कहियो जिन काही। नाद सुशील लखैहो ताही।।
सुमिरण दया सेवा चित धरई। सत्यनाम गहि हंसा तीरही।।
सत्यनाम सुमिरण करै सतगुरू पद निज ध्यान।
परमात्म पूजा जीव दया लहै सो मुक्ति धाम।।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 1, ज्ञान सागर पृष्ठ 1 पर
सोरठा- बुझो संत विवेक करि, सत्यनाम सार।
सतगुरू का आदेश यह, उतरो भवजल पार।।
सुमरो मन चित एक कर, सतगुरू दीन दयाल।
(यथार्थ वाणी = सुमरो मन चित एक करि, सतगुरू करे निहाल।)
अगम शब्द प्रमाण इमि, छेड़ सके नहीं काल।।
भावार्थ: कबीर परमेश्वर अपने प्रिय भक्त धर्मदास से कहते हैं कि सतनाम का जाप करने से आत्मा इस लोक से पार हो जाती है।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 2 अनुराग सागर, वाणी नं. 11-12
सुत परिजन धन स्वपन स्नेही। सत्यनाम गहु निज मति ऐही।।11।।
स्व तन सम प्रिय और न आना। सो भी संग नहीं चलत निदाना।।12।।
अर्थ: परमेश्वर कबीर जी धर्मदास जी से कहते हैं कि भक्त को मुक्ति पाने के लिए पूरी तरह से भगवान के प्रति समर्पण करना चाहिए और सतनाम का जाप करना चाहिए, क्योंकि इस दुनिया को छोड़ने के बाद केवल भगवान आत्माओं के साथ रहते हैं और कोई भी सगा और प्रिय उनके साथ नहीं जाता है।
अनुराग सागर के पृष्ठ 11 से वाणी सच्चे नाम के जपने की विधि "गुरुगमभेद छन्द" -
अजपा जाप हो सहज धुना, परखि गुरुगम डारिये।।
मन पवन थिरकर शब्द निरखि, कर्म ममन मथ मारिये।।
अनुराग सागर के पृष्ठ 125 के छंद से :-
कलि यह नाम प्रताप धर्मनि, हंस छूटे कालसो।।
सत्तनाम मन बिच दृढ़गहे, सोनिस्तरे यमजालसो।।
यम तासु निकट न आवई, जेहि बंशकी परतीतिहो।।
कलि काल के सिर पांदै, चले भवजल जीतिहो।।
भावार्थ: इस संदर्भ में परमेश्वर कबीर साहेब जी धर्मदास साहेब जी से कह रहे हैं कि मेरी शब्द शक्ति से 10 महीने के भीतर आपकी पत्नी के गर्भ से एक पुत्र पैदा होगा। उसका नाम 'चूड़ामणि' रखना और मैं उसे नामदीक्षा दूँगा। सतनाम के जाप से कलयुग में आत्माओं को काल के जाल से मुक्ति मिलेगी।
परमेश्वर कबीर साहेब ने धर्मदास जी को कबीर सागर के अध्याय 'कबीर वाणी' के पृष्ठ 111 (957) के शब्द "कर नैनो दीदार महल में प्यारा है" की वाणी संख्या 9, 13, 23 और 24 में मानव शरीर के भीतर मौजूद कमल चक्र के बारे में बताते हुए सतनाम का उल्लेख किया है।
कमलन भेद किया निर्वारा, यह सब रचना पिंड मँझारा।
सतसँग कर सतगुरु शिर धारा, वह सतनाम उचारा है।।9।।
डाकिनी शाकनी बहु किलकारे, जम किंकर धर्म दूत हकारे।
सतनाम सुन भागे सारें, जब सतगुरु नाम उचारा है।।13।।
सहस अठासी दीप रचाये, हीरे पन्ने महल जड़ाये।
मुरली बजत अखंड सदा ये, तँह सोहं झनकारा है।।23।।
सोहं हद तजी जब भाई, सत्तलोक की हद पुनि आई।
उठत सुगंध महा अधिकाई, जाको वार न पारा है।।24।।
अनुराग सागर के पृष्ठ 162-163 पर भक्त के लक्षण समझाते हुए परमेश्वर कबीर साहेब जी धर्मदास जी से कहते हैं;
गुरू के शब्द सदा लौ लावे। सत्यनाम निशदिन गुणगावे।।
भावार्थ: समस्त मानव जाति के लिए भगवान का यही संदेश और उपदेश है कि भक्त को 'परमार्थी' बनना चाहिए, जिन्हें सतगुरु मिल गया, वे शाश्वत हो जाएंगे। उन्हें सतनाम जाप पर ध्यान केंद्रित रखना चाहिए।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 5 सर्वज्ञ सागर, पृष्ठ नं. 135 (411) पर परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को सृष्टि रचना व सतनाम के बारे में बताया।
अबोल परस सुरति कह दीन्हा। सात संधि प्रकट कर लीन्हा।।
सात संधि तब गुप्त ही पेखा। पीछे सोहं शब्द विवेका।।
सोहं शब्द सत्य अनुसारा। सोहं सुरति अजावन सारा ।।
भावार्थ है कि सात मंत्र जो सात शक्तियों के हैं, वे प्राप्त करने के पश्चात् सोहं शब्द यानि सतनाम तथा सार शब्द का विवेक करना चाहिए। फिर सारशब्द प्राप्त करके आत्मकल्याण करना चाहिए।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 7 अमर सिंह बोध, पृष्ठ नं. 84 (508) पर परमेश्वर कबीर साहेब जी द्वारा धर्मदास जी को नरक का वर्णन
सुनत वचन प्रभु मन विहँसाये। कही शब्द धर्मनि समुझाये।।
धर्मनि तुमही भय कछु नाही। सतगुरू शब्द है तुमरे पाही ।।
और कथा सुनहु चितधारी। संशय मिटै तो होहु सुखारी ।।
जब राजा विनती मम कीन्हा। तब हम ताहि दिलासा दीन्हा।।
शब्द गहै सो नाहि डराई। तुम किमि डरहु सुनहु हो राई ।।
सत्य शब्द मम जे जिव पैहैं। काल फांस सो सबै नशैहैं।।
सुनत वचन राजा धरू धीरा। बोल वचन काल बलबीरा।।
भावार्थ: उपर्युक्त वाणी में परमेश्वर कबीर साहेब धर्मदास जी को सांत्वना दे रहे हैं तथा जब वह परमेश्वर के मुख कमल से नरक का वर्णन तथा नरक में आत्मा को मिलने वाली यात्नाओं का वर्णन सुनकर भयभीत हो गए थे। तब कबीर साहेब जी ने धर्मदास जी को सांत्वना देते हुए कहा कि तुम्हें चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि तुमने मुझसे सतनाम प्राप्त कर लिया है।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय कबीर वाणी पृष्ठ 137 तथा अध्याय जीव धर्म बोध पृष्ठ 1937, मोक्ष का पूरा कोर्स देने के बाद यानी धर्मदास साहेब जी को कबीर परमेश्वर ने तीनों मंत्र देने के बाद कहा था।
कबीर सागर, अध्याय जीव धर्म बोध पृष्ठ 1937 :-
धर्मदास मेरी लाख दुहाई, सारशब्द कहीं बाहर न जाई ।
सारशब्द बाहर जो पड़ही, बिचली पीढ़ी हंस न तिरही ।।
कबीर सागर, अध्याय कबीर वाणी पृष्ठ 137 :-
धर्मदास मेरी लाख दोहाई, मूल (सार) शब्द बाहर न जाई।
पवित्र ज्ञान तुम जग में भाखो, मूल ज्ञान गोई (गुप्त) तुम राखो।।
मूल ज्ञान तब तक छुपाई, जब तक द्वादश पंथ न मिट जाई।।
संदर्भ: कबीर सागर अध्याय 10 "जगजीवन बोध" पृष्ठ 21 पर परमेश्वर कबीर साहेब ने एक राजा जगजीवन को अपनी शरण में लिया और उन्हें सतनाम दिया। उन्होंने वही वृत्तान्त धर्मदास साहेब जी को सुनायाः
कहैं कबीर सुनो धर्मदासा। तुम घट भली बुद्धि परकासा।।
प्रथमैं सत्य नाम गुण गाऊँ। घट भीतर का भेद बताऊँ।।
अर्थ: भगवान दीक्षा प्रदान करते समय गुप्त मोक्ष मंत्र सतनाम को प्रकट करते हैं।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 18 ज्ञान बोध पेज नं. 23
कबीर, ऐसा राम कबीर ने जाना। धर्मदास सुनिये दे काना।।
जग जीवों को दीक्षा देही। सतनाम बिन पुरुष द्रोही।।
ज्ञानहीन जो गुरू कहावै। आपन भूला जीवन भुलावै।।
ऐसा ज्ञान चलाया भाई। सत साहब की सुध बिसराई।।
या दुनिया दोरंगी भाई। जीव गह शरण काल की जाई।।
अर्थ: कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि हे धर्मदास ! कान देकर यानि ध्यान से सुन ले। जो सबसे भिन्न परमात्मा है, वह मैंने जाना है। जो सतनाम की दीक्षा नहीं लेता और जो गुरू सतनाम नहीं जानता या जो अधिकारी न होकर सतनाम की दीक्षा देता है, वह परमेश्वर का द्रोही है। यह दुनिया दोगली है। हमारा ज्ञान सुनकर नाम दीक्षा लेकर फिर से वही पूजा काल वाली करने लगती है। नकली गुरुओं ने ऐसा ज्ञान संसार में फैला दिया। सत साहब यानि सच्चे परमात्मा (परम अक्षर ब्रह्म) का नाम ही भुला रखा है।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 20 मुक्तिबोध पेज नं. 72-74
मुक्ति बोध पृष्ठ 72 :-
जब लग भक्ति अंग नहीं आवा। सार शब्द कैसे को पावा।।
सत्यनाम श्रवण महं वोषै। ज्यों माता बालक कहं पोषै।।
भावार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने स्पष्ट किया है कि जब तक प्रथम नाम तथा सत्यनाम के जाप से भक्त के शरीर में भक्ति प्रवेश नहीं होगी यानि दोनों मंत्रों की भक्ति कमाई संग्रह नहीं होगी, उसको सार शब्द कैसे दिया जा सकता है? सत्यनाम जो दो अक्षर का है, उसको भी बोलकर सुनाया जाता है। कान में सुनता है यानि सब मंत्र कहे और सुने जाते हैं। नाम के जाप से आत्मा को ऐसे बल मिलता है जैसे बालक का माता के दूध से पोषण होता है।
मुक्ति बोध पृष्ठ 73 :-
जब लग सार नाम गुरू नहीं बतावै। तब तक प्राणी मुक्ति नहीं पावै।।
सार नाम बिन सीप बिन मोती। उपज खपे बिना हर खेती ।।
आदि नाम है अक्षर माहीं। बिन गुरू नरक छूटै नाहीं।।
सोहं में निःअक्षर रहाही। बिन गुरू कौन दे है लखाई।।
भावार्थ :- जब तक शिष्य सार शब्द को प्राप्त करने योग्य नहीं होता तो उसको सार शब्द नहीं दिया जाता। जब तक सार शब्द नहीं मिलेगा। तब तक मोक्ष नहीं हो सकता। आदि नाम अक्षर में है और उसको गुरु से प्राप्त किए बिना काल लोक का नरक का जीवन नहीं छूटता यानि मोक्ष प्राप्त नहीं होता। सोहं शब्द के साथ सार शब्द का संयोग है। उसको गुरू ही शिष्य को बताता है। अन्य किसी को तो सार शब्द का ज्ञान भी नहीं होता। सार शब्द बिना तो यह मानव शरीर ऐसा है जैसे सीप में मोती न हो तो उसकी कोई कीमत नहीं होती। इसी प्रकार मानव शरीरधारी प्राणी सार शब्द बिना व्यर्थ जीवन जीता है।
मुक्ति बोध पृष्ठ 74 :-
जाको है गुरू का विश्वासा। निश्चय जाय पुरूष के पासा।।
अक्षर आदि निज नाम सुनाऊँ। जरा मरण का भ्रम मिटाऊँ।।
सोह संग आए संसारा। सो गुरू दीजे मोहे उपचारा।।
अर्थ: जो लोग गुरु जी पर भरोसा रखते हैं उन्हें भगवान की प्राप्ति अवश्य होती है। सतनाम से आत्मा को आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं जिसके माध्यम से आत्मा काल के लोक को पार कर सकती है। वृद्धावस्था और मृत्यु की बीमारी केवल सतनाम और सारनाम से ही ठीक हो सकती है।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 'कबीर बानी (कबीर वाणी)' पृष्ठ नं. 105-106, धर्मदास जी एवं उनकी पत्नी आमिनी देवी को दीक्षा प्रदान करने के प्रसंग में सतनाम का उल्लेख है।
कबीर बानी पृष्ठ 105 :-
तीनि अंश की लगन विचारी। नारी तथा पुरुष उबारी।।
नारी-पुरुष होए एक संगा। सतगुरु वचन दीन्ह सोहंगा (सोहं )।।
सोहं शब्द है अगम अपारा। ताका धर्मनि मैं कहूँ विचारा।।
सोहं पेड़ का तना और डारा। शाखा अन्य तीन प्रकारा।।
अमृत वस्तु बहु प्रकारा। सोहं शब्द है सुमरन सारा।।
सोहं शब्द निश्चय हो पावै। सोहं डोर गह लोक सिधावै।।
जा घट होई सोहं मत सारा। सोई आवहु लोक हमारा।।
सुरति नाम सोहं में राखो। परचे ज्ञान तुम जग में भाषो।।
एति सिद्धि (शक्ति) सोहं की भाई। धर्मदास तुम लेओ चितलाई।।
धर्मदास लीन्हा परवाना। भए आधीन छुटा अभिमाना।।
सोहं करनी ऊँच विचारा। सोहं शब्द है जीव उजियारा।।
कबीर बानी पृष्ठ 105 :-
कबीर, धर्मदास उन-मन बसो, करो सत्य शब्द की आश।
सोहं सार सुमरन है, मुनिवर मरें पियास ।।
सार: परमेश्वर कबीर साहेब ने धर्मदास जी और उनकी पत्नी आमिनी देवी को दीक्षा दी। जैसा कि उपर्युक्त वाणी में कहा गया है, दोनों ने सतनाम प्राप्त किया।
संदर्भ: कबीर सागर, कबीर बानी पृष्ठ 133 से
तब सतगुरू यह वचन पुकारा। चूड़ामणि वंश छत्र उजियारा।।
और सब जीव काल धर खाई। नारायण जीव काल का भाई।।
चूड़ामणी नाम से काल डराई। सत्य नाम है तो जीव मुक्ताई।।
तिनकी सनंद चलै संसारा। उनके हाथ नाम सत हमारा।।
भावार्थ: परमेश्वर कबीर जी ने स्पष्ट कर दिया है कि नारायण दास तो काल का भेजा जीव है। वह हमारे मार्ग पर नहीं चलेगा। उसने तो श्री कृष्ण की महिमा बताई थी। चूड़ामणी को मैं गुरूपद दूँगा। उसके सिर पर गुरू पद का छत्र लगेगा। अनुराग सागर के पृष्ठ 140 पर स्पष्ट किया है कि चूड़ामणि की परंपरा भी भ्रमित होकर काल जाल में रह जाएगी। उपरोक्त वाणी में यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यदि गुरू पद पर विराजमान के पास सतनाम है तो जीव मुक्त होंगे। उनकी सनद यानि प्रमाणिकता संसार में मुक्ति के लिए मान्य होगी। उनके हाथ में हमारा सत शब्द भी रहेगा। अन्यथा न गुरु का मोक्ष होगा, न अनुयाईयों का।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 'ज्ञान स्थिति बोध', पृष्ठ 105 और 126 पर सतनाम का प्रमाण
पृष्ठ 105 पर :-
ओहं-सोहं ताको जापा। लिखत परै नहीं पुण्य और पापा।।
मूल शब्द (सार शब्द) काहु नहीं पावा। मूल नाम में गुप्त छिपावा।।
पृष्ठ 126 पर :-
ओहं सोहं के होई सवारा। छोड़ जब देह जावे दरबारा।।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 30 'आत्म बोध', पेज नं. 10
आप में आप है अजपा जपो। जाप जपते आप पावै।।
कहें कबीर ये सत्य की सैन है। सत का शब्द सब सन्त गावै।।
भावार्थ: इस अध्याय में कबीर परमेश्वर ने आत्मा की वास्तविक स्थिति बतायी है कि उसका परमेश्वर से क्या सम्बन्ध है? कबीर जी बताते हैं कि सतनाम ईश्वर को प्राप्त करने का अनमोल मंत्र है जो सतगुरु द्वारा प्रदान किया जाता है। वह अजप्पा जाप यानी जप करने का तरीका बताते हैं। श्वांस-उश्वांस के माध्यम से सतनाम का जाप करना होता है।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 32 'स्वसमबेद बोध' पृष्ठ 111, तप्तशिला पर प्राणियों के साथ परमेश्वर कबीर साहेब के संवाद में सतनाम का प्रमाणः
कबीर परमेश्वर अपने पुत्र जोगजीत/सहजदास के रूप में , काल के क्षेत्र में तप्तशिला नामक स्थान पर प्रकट हुए और आत्माओं को बताया कि तुम क्यों दुःख भोग रहे हो?
आयो जहाँ काल जीव सतावै। काल निरंजन जीव नचावै।।
चटक चटक करे जीव तहँ भाई। ठाढ भयो मैं तहँ पुनि जाई।।
मोहि देखि जिव कीन पुकारा। हो साहिब मोहि लेव उबारा।।
तब हम सत्य शब्द गोहरावा। पुरूष शब्द ते जीव तप्त बुझावा।।
सब जीवन मिलि अस्तुति लाई। धन्य पुरूष यह तपन बुझाई।।
यमते छोरि लेहु मोहिं स्वामी। दया करो प्रभु अंतरयामी।।
सार: जब आत्माएं तप्तशिला पर कष्ट भोग रही थीं तो कबीर परमेश्वर ने सतनाम का जाप करके आत्माओं को राहत दी।
तब हम कहा जीव समुझाई। जोर करो तो बचन नसाई।।
जब तुम जाय धरो नर देहा। तब तुम करिहो सत्य शब्द सनेहा।।
पुरूष नाम सुमिरन सहिदानी। बीरा सार करो परमानी।।
देह धरे सत शब्द समाई। तब हंसा सतलोकहि जाई।।
देह धरे कीने जहँ आसा। अन्तकाल लीनो तहँ बासा।।
अब तोहि कष्ट भयौ जिव आनी। ताते यहि बिधि बोलो बानी।।
जब तुम देह धरो जग जाई। बिसरे पुरूष काल धरि खाई।।
सार: परमेश्वर कबीर ने शक्तिशाली मंत्र सतनाम का उल्लेख किया है|
सोरठा - कला कला परचण्ड, जीव परे बस कालके।
जन्म जन्म सहै दण्ड, सत्यनाम चीन्हे बिना।।
छन यक जीवनको सुख दैऊ। जिव बँध मेटि पुरुषपहँ गैऊ।।
सार: परमेश्वर कबीर जी बताते हैं कि जो साधक सतनाम का जाप करता है उसे काल लोक के कष्टों से मुक्ति मिलती है और उसे शाश्वत शांति प्राप्त होती है। उन्हें काल जाल से मुक्ति मिल जाती है।
चौपाई- परमेश्वर कबीर जी आत्माओं को मुक्ति दिलाने के लिए इस संसार में अवतरित होते हैं।
यहि विधि काल जक्त धरि खायौ। जिव नहिं कोई मुक्तिपद पायौ।।
तीनों पुर पसरा यमजाला। सकल जीव कहँ कीन बिहाला।।
कालके जाप करते जीव न छूटे। बहुविधि योग युक्ति में जूटे।।
बिन सत शब्द न जीव उबारा। तब समरथ अस बचन उचारा।।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 24 'अमर मूल' पेज नं. 265 (1111), परमेश्वर कबीर साहेब जी धर्मदास जी से कहते हैं कि पहला नाम देने के बाद दूसरे नाम की तुलना में साधक की दृढ़ता की परीक्षा होती है। जिससे सतनाम प्रदान किया गया है। अंत में, सारनाम आत्मा की मुक्ति सुनिश्चित करता है।
धर्मदास मैं कहाँ बिचारी। जिहितें निबहै सब संसारी।।
प्रथम शिष्य होय जो आई। ता कहूं पान देहुं तुम भाई।।
जब देखो तुम दृढ़ता ज्ञाना। ता कहं कहूं (सत) शब्द प्रवाना ।।
शब्द माहीं जब निश्चय आवै। ता कहं ज्ञान अगम सुनावै।।
धर्मदास तुम कहौ सन्देशा। जो जस जीव ताहि उपदेशा।।
बालक सम जाकर है ज्ञाना। तासौं कहहु बचन प्रवाना।।
जा कहं सूक्ष्म ज्ञान है भाई। ता कहं सुमरन देहु लखाई।।
ज्ञानगम्य जा कहं पुनि होई। सार शब्द जा कहं कहु सोई।।
चलिए आगे बढ़ते हैं, नीचे दी गई वाणी में परमेश्वर कबीर साहेब ने अपने और ब्रह्म-काल के बीच हुए संवाद में धर्मदास जी को सतनाम की प्रभावशीलता के बारे में बताया, जिससे काल भटक गया और पाताल लोक में गिर गया।
सतनाम के संबंध में कबीर साहेब और ब्रह्म-काल के बीच संवाद
ब्रह्म-काल इक्कीस ब्रह्मांडों का स्वामी है, जहां हम सभी आत्माएं कैद हैं और पीड़ित हैं। परमेश्वर कबीर और ब्रह्म-काल के बीच एक बार चर्चा हुई थी जिसका सूक्ष्मवेद में विस्तार से वर्णन किया गया है। यहां हम केवल उस वाणी का वर्णन करेंगे जहां परमेश्वर कबीर साहेब जी धर्मदास जी को सतनाम की महत्ता और प्रभावशीलता के बारे में बता रहे हैं।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 2 अनुराग सागर पृष्ठ 62-63 :-
हमने कहा सुनो अन्याई। काटों फंद जीव ले जांई।।41
जेते फंद तुम रचे विचारी। सत्य शब्द ते सबै विडारी।।42
जौन जीव हम शब्द दृढ़ावै। फंद तुम्हारा सकल मुक्तावै।।43
जबही जीव चिन्ही ज्ञान हमारा। तजही भ्रम सब तोर पसारा।।44
सत्यनाम जीवन समझावै। हंस उभार लोक लै जावै।।45
पुरूष सुमिरन सार बीरा नाम अविचल जनावहूँ।
शीश तुम्हारे पाँव देके हंस लोक पठावहूँ।।46
ताके निकट काल नहीं आवै। संधि देख ताको सिर नावै।।48
(संधि = सत्यनाम+सारनाम)
भावार्थ: परमात्मा कबीर साहेब काल से कह रहे हैं कि हे क्रूर! मैं अपनी आत्माओं को सच्चा मोक्ष मंत्र सतनाम और सारनाम प्रदान करके वापस ले जाऊंगा। तब आत्माएं तुम्हारे जाल से मुक्त हो जाएंगी।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 32 'स्वसमवेद बोध' पेज नं. 91, इस वाणी में सतनाम का साफ जिक्र है-
जाते ओहं पुरूष भये अंशा। ओहं सोहं भये द्वै अंशा।।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 32 'स्वसमवेद बोध' पृष्ठ 121
चौथा युग जब कलयुग आई। तब हम अपना अंश पठाई।।57
काल फंद छूटै नर लोई। सकल सृष्टि परवानिक (दीक्षित) होई।।58
घर-घर देखो बोध (ज्ञान) बिचारा (चर्चा)। सत्यनाम सब ठोर उचारा।।59
पाँच हजार पाँच सौ पाँचा। तब यह वचन होयगा साचा।।60
कलयुग बीत जाए जब ऐता। सब जीव परम पुरूष पद चेता।।61
अर्थ: कबीर परमेश्वर ने काल से कहा कि मैं चौथे युग में अपना प्रतिनिधि भेजूंगा और अपनी आत्माओं को वापस ले जाऊंगा। मैं उन्हें तुम्हारे जाल से मुक्त कर दूँगा। सभी लोग आपके गलत आध्यात्मिक ज्ञान को समझ जायेंगे और मेरे संत द्वारा दिये गये सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान से अवगत हो जायेंगे। सभी सतनाम का जाप करेंगे। मेरे ये वचन तब सत्य हो जायेंगे जब कलयुग 5505 वर्ष बीत जायेगा। सभी को पता चल जाएगा कि परम पुरुष कौन है? ईश्वर कौन है?
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 32 'स्वसमवेद बोध' पृष्ठ 171 (1515), कबीर साहेब जी की वाणी
पाँच हजार अरू पाँच सौ पाँच जब कलयुग बीत जाय। महापुरूष फरमान तब, जग तारन कूं आय।।66
हिन्दु तुर्क आदि सबै, जेते जीव जहान। सत्य नाम की साख गही, पायें पद निर्वान।।67
यथा सरितगण आप ही, मिलें सिन्धु मैं धाय। सत्य सुकत के मध्य तिमि, सब ही पंथ समाय।।68
जब लग पूर्ण होय नहीं, ठीक का तिथि बार। कपट चातुरी तबहि लौं, स्वसम बेद निरधार।।69
सबही नारी नर शुद्ध तब, जब ठीक का दिन आवंत। कपट चातुरी छोड़ि के शरण कबीर गहंत।।70
एक अनेक ह्वै गए, पुनः अनेक हों एक। हंस चलै सतलोक सब सत्यनाम की टेक।।71
घर घर बोध विचार हो, दुर्मति दूर बहाय। कलयुग में सब एक होई, बरतें सहज सुभाय।।72
कहाँ उग्र कहाँ शुद्र हो, हरै सबकी भव पीर (पीड़)।।73
सो समान समदृष्टि है, समर्थ सत्य कबीर।।74
अर्थ: परमेश्वर कबीर ने काल से कहा कि जब कलयुग 5505 वर्ष बीत जाएगा तब एक महापुरुष जो मेरा प्रतिनिधि होगा वह पृथ्वी पर आएगा जो धर्म, जाति और पंथ की सभी बाधाओं को दूर कर देगा और सभी को सतनाम प्रदान करेगा। सभी लोग पाखंडवाद त्यागकर एकजुट होकर परमेश्वर कबीर की भक्ति करेंगे। सभी सच्चे उपासक मजबूत मंत्र सतनाम की शक्ति से सतलोक पहुंचेंगे।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 32 'स्वसमवेद बोध' पृष्ठ 111 पर चौपाई - परमेश्वर कबीर और काल के बीच युद्ध का वर्णन;
योगजीत कैल ही ललकारा। गहि कर सुंड दूर तिहि डारा।।
पुरूष प्रताप सुमिर मन माहीं। मारयो सत्य शब्द से ताहीं।।
ततछन ताहि दृष्टि पर हेरा। श्याम लिलार भयौ तिहिकेरा।।
भावार्थ: परमेश्वर कबीर साहेब कह रहे हैं कि काल ने योगजीत रूप में आये मुझे मारने की कोशिश की, तब योगजीत रूप में मैंने सतनाम का जाप किया, जिससे काल पाताल लोक में जाकर गिरा।
ज्ञानी कहै सुनो धर्मराई। काटो फंद जीव ले जाई ।।
जेतो फंद रची तुम भारी सत्य शब्द ले सकल बिडारी ।।
जिहि जिवको हम शब्द दृढै हैं। फंद तुम्हार सबै मुक्तैहैं ।।
अर्थ: परमेश्वर कबीर साहेब काल से कह रहे हैं कि मैं सभी आत्माओं को सतनाम प्रदान करूंगा और इसकी शक्ति से सभी की मुक्ति होगी।
संदर्भ: कबीर सागर, अध्याय 32 'स्वसमवेद बोध' पृष्ठ 165 पर भी सतनाम का उल्लेख किया गया है।
तीन अंश आगे परमाना। ओहं-सोहं को अस्थाना।।
आठ अंश तहबां उपजाए। अंश बंश अस्थान बनाए।।
ओहं-सोहं होत उचारा। जन्म रोगा का यही उपचारा।।
श्री गुरु नानक देव जी को सतनाम परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त हुआ
नोट: सिख धर्म के संस्थापक आदरणीय श्री गुरु नानक देव जी ने भी सतनाम और सारनाम अकाल पुरुष/ सतपुरुष/ परम अक्षर ब्रह्म कविर्देव से प्राप्त किया था, जो उन्हें जिंदा बाबा के रूप में मिले थे और सच्चखंड दिखाया था। नानक जी ने सतनाम और सारनाम का जाप करके मोक्ष प्राप्त किया और इसका उल्लेख कई पवित्र वाणियों में किया गया है जो पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब, प्राण संगली और भाई
में लिपिबद्ध हैं।
प्राण संगली - हिन्दी के पृष्ठ नं. 84 पर राग भैरव महला 1 पौड़ी नं. 32
साध संगति मिल ज्ञानु प्रगासै। साध संगति मिल कवल बिगासै।।
साध संगति मिलिआ मनु माना। न मैं नाह ॐ-सोहं जाना।।
सगल भवन महि एको जोति। सतिगुर पाया सहज सरोत।।
नानक किलविष काट तहाँ ही। सहजि मिलै अंम्रित सीचाही।।32।।
अन्य प्रमाण :- "भाई बाले वाली जन्म साखी" पुस्तक में "साखी समुद्र की चली" नामक अध्याय में प्रमाण है कि श्री नानक जी स्वयं ओम्-सोहं नाम को जपते हुए समुन्दर के जल पर थल की तरह चल रहे थे। उनके साथ दोनों सेवक भाई बाला तथा मर्दाना भी श्री गुरू नानक जी के आशीर्वाद से उनके पीछे-पीछे चल रहे थे।
निष्कर्ष
सूक्ष्म वेद में वर्णित सतनाम का प्रमाण कबीर सागर पुष्टि करता है कि ब्रह्म-काल के जाल से मुक्ति पाने के लिए तत्वदर्शी संत की शरण लेने और सतनाम और सारनाम का जाप करने के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं है, जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है और जैसा कि कई महापुरुषों की वाणी में भी प्रमाणित है। आज वर्तमान में महान तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी वही सतनाम और सारनाम जाप प्रदान कर रहे हैं जिससे आत्माओं को जन्म और मृत्यु के रोग से सदा के लिए मुक्ति मिलेगी। वह अपनी अमृत वाणी में बताते हैंः
बाइबिल वेद कुरान है, जैसा चांद प्रकाश |
सूरज ज्ञान कबीर का, करे तिमर का नाश ||
रामपाल सच्ची कहे, करो विवेक विचार |
सतनाम वा सारनाम, यही मंत्र है सार ||
रामदेवानंद गुरु जी, कर गए नजर निहाल |
सतनाम का दिया खजाना, बरते रामपाल||
हमारी हमारे प्रिय पाठकों से केवल यही प्रार्थना है कि सर्वशक्तिमान भगवान को पहचानें और तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से नामदीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त करें।
सूक्ष्म वेद में सतनाम के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न और सतनाम के समर्थन में कई संतों की वाणी
Q.1 सतनाम का क्या अर्थ है?
सतनाम एक मंत्र है। पवित्र गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में वर्णित दो शब्द "ओम" और "तत्" (सांकेतिक शब्द, जिसे केवल सच्चा गुरु ही जानता है) से मिलकर बना है। इस मंत्र से मोक्ष तभी प्राप्त होता है जब नामदीक्षा तत्वदर्शी संत द्वारा दी जाती है और साधक सच्ची भक्ति के निर्धारित नियमों में रहता है।
Q.2 सतनाम का जाप कैसे करें?
श्वांस-उशंवास के माध्यम से सतनाम का जाप किया जाता है। सांस अंदर-बाहर करके सतनाम का जाप किया जाता है लेकिन पूरी विधि, सतभक्ति का पाठ्यक्रम जानने और वास्तविक लाभ पाने के लिए अधिकारी संत यानी तत्वदर्शी संत से यह मंत्र लेना होगा।
Q. 3 क्या सतनाम केवल एक अभिवादन शब्द है?
सतनाम केवल अभिवादन नहीं अपितु संकेत है। सिख धर्म में, लोग आमतौर पर 'सतनाम वाहेगुरु' का जाप यह सोचकर करते हैं कि इससे उन्हें आध्यात्मिक लाभ मिलेगा। परंतु वास्तव में उनके लिए यह केवल अभिवादन ही बनकर रह गया है। आदरणीय गुरु नानक देव जी ने सतलोक की यात्रा और सच्चखंड में सर्वशक्तिमान सत्यपुरुष कविर्देव के दर्शन करने और सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के बाद जब काशी में भगवान कविर्देव को जुलाहे के रूप में देखा, तो खुशी और उमंग से उनके मुख से सहज प्रतिक्रिया 'सतनाम वाहेगुरु' निकली थी, जो भगवान की महिमा थी, जिसका अर्थ था कि सतपुरुष ने उन्हें मोक्ष मंत्र सतनाम दिया, इसलिए गुरु की महिमा हुई। यह तो ईश्वर को याद करने का संकेत मात्र था।
Q.4 सतनाम शब्द कहाँ से आया है?
परमेश्वर कबीर जी सतनाम मंत्र के जनक हैं जो मोक्ष प्रदान करने वाला है। कबीर सागर में लिखा है कि
"सोहं शब्द हम जग में लाए। सार शब्द हमने गुप्त छिपाए।।"
कबीर सागर, अध्याय 2 अनुराग सागर पृष्ठ 62-63 में लिखा है कि
जबही जीव चिन्ही ज्ञान हमारा। तजही भ्रम सब तोर पसारा।।44
त्यनाम जीवन समझावै। हंस उभार लोक लै जावै।।45
Q.5 सतनाम जाप का क्या प्रभाव होता है ?
सतनाम एक बहुत ही अनमोल मंत्र है जिसका मूल्य 14 लोक + 3 लोक (पृथ्वी, स्वर्ग और नर्क) से भी अधिक है, इसका वर्णन गरीबदास जी महाराज ने किया गया है:
गरीब, सत्यनाम पालड़ै रंग होरी हो, चौदह भवन चढावै राम रंग होरी हो।
तीन लोक पासंग धरै रंग होरी हो, तो न तुलै तुलाया राम रंग होरी हो।।
सतनाम मंत्र आत्माओं को काल के जाल से मुक्ति दिलाता है।
Q.6 क्या कोई भी मंत्र आपका जीवन बदल सकता हैं?
केवल सच्चे मन्त्र ही प्रभावशाली होते हैं जो सच्चे सतगुरु/तत्वदर्शी संत द्वारा दिये गये होते हैं। बाकी कोई भी मंत्र जो शास्त्रों में वर्णित नहीं है वह व्यर्थ हैं। केवल अधिकृत संत से लिया गया सतनाम मंत्र ही जीवन बदल सकता है।
Q.7 सतनाम मंत्र जाप के लाभ क्या हैं?
- सतनाम मंत्र केवल अधिकृत तत्वदर्शी संत से लेने पर ही लाभ होता है-
- यह पापों का नाश कर सकता है।
- इससे जीवनकाल बढ़ सकता है।
- इससे आर्थिक, मानसिक शारीरिक के साथ-साथ आध्यात्मिक लाभ भी मिलते हैं।
- परमेश्वर कबीर जी कहते हैं: "जबहि सतनाम हृदय धरो, भयो पाप को नाश | जैसी चिंगारी अग्नि की, पड़े पुराने घास ||"
Q.8 कौन सा मंत्र बहुत शक्तिशाली है?
सारनाम को एक शक्तिशाली मंत्र माना जाता है जो तत्वदर्शी संत द्वारा सतनाम मंत्र के बाद दिया जाता है। इसका प्रमाण गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में भी है।
Q.9 कौन सा मंत्र सभी प्रकार की समस्याओं को दूर करता है?
सच्चा मोक्ष मंत्र 'ओम तत् सत्' (सांकेतिक) सच्चे गुरु से लेने पर जीव की सभी समस्याओं को दूर करने की शक्ति रखता है।
Q.10 कौन सा मंत्र किसी की जान बचा सकता है?
सतनाम एक जीवन रक्षक मंत्र है और भगवान हमेशा सच्चे उपासकों के साथ रहते हैं तथा हर पल उनकी रक्षा करते हैं। संत गरीब दास जी कहते हैं:
सतगुरु जो चाहे सो करही, चौदह कोटि दूत यम डराही |
उत भूत यम त्रास निवारे, चित्र गुप्त के कागज फारे||
Q.11 मुनुष्य को किस मंत्र का जाप करना चाहिए?
केवल एक सच्चा गुरु ही सच्चा मोक्ष मंत्र 'ओम तत् सत्' देता है जिसका जाप सभी मनुष्यों (नर-नारी) को करना चाहिए जिससे उनको सांसारिक सुख व पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है।
Q.12 क्या हम बिस्तर पर बैठ/लेट कर सतनाम/सारनाम का जाप कर सकते हैं?
तत्वदर्शी संत द्वारा प्रदत्त सच्चे मोक्ष मंत्रों का जाप किसी भी समय किया जा सकता है। संत गरीब दास जी कहते हैं:
नाम उठत नाम बैठत, नाम सोवत जाग रे।
नाम खाते नाम पीते, नाम सेती लाग रे।।
Recent Comments
Latest Comments by users
यदि उपरोक्त सामग्री के संबंध में आपके कोई प्रश्न या सुझावहैं, तो कृपया हमें [email protected] पर ईमेल करें, हम इसे प्रमाण के साथ हल करने का प्रयास करेंगे।
Anupam
गुरु नानक जी ने 'वाहेगुरु सतनाम' का जाप क्यों किया था?
Satlok Ashram
सर्वशक्तिमान कबीर जी बेई नदी पर नानक देव जी से मिले और उन्हें सचखंड लेकर गए। उसके बाद उन्होंने नानक जी को अपनी रचनाएँ दिखाईं और उन्हें सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान दिया। फिर अमरलोक सतलोक से लौटने के बाद गुरु नानक जी उनसे काशी में मिले यहां उन्हें सतनाम' (गुप्त मोक्ष मंत्र) दिया था। उसके बाद भगवान की महिमा करते हुए खुशी से नानक जी के मुख से सहज ही निकला 'वाहेगुरु सतनाम'। उमंग में भरे श्री नानक जी ‘‘वाहेगुरु सत्यनाम‘‘ वाहेगुरु-वाहेगुरु का उच्चारण करते हुए काशी से वापिस आए। जिसको श्री नानक जी के अनुयाईयों ने जाप मंत्र रूप में जाप करना शुरु कर दिया कि यह पवित्र मंत्र श्री नानक जी के मुख कमल से निकला था, परन्तु वास्तविकता को न समझ सके। इसलिए इस नाम के जाप को करना सही नहीं है। वास्तविक मंत्र तो गुप्त है, जो सतगुरु द्वारा शिष्य को अकेले में दिया जाता है। विस्तार से इसकी जानकारी के लिए संत रामपाल जी महाराज के आध्यात्मिक ज्ञान को सुनना चाहिए और हमारी वेबसाइट भी पर पढ़ना चाहिए।