एक ऐसा बाबा जिसका सच जानने के बाद वास्तव मे उन्हे महान सन्त कहना ही उचित लगता है। क्योंकि असल मे यही वो संत हैं जिसने...पाखंडियों के पाखंड पर चोट की, धर्म के नाम पर हो रहे धंधे का खुलासा किया, नकली गुरुओं की वास्तविकता समाज़ मे प्रमाण को आधार बनाकर दिखा दी, व्यवस्था के भ्रष्टाचार को सार्वजनिक कर दिया , समाज से नशा शराब छुड़वा दिया, सामाजिक कुरीतियां बन्द करवा दि, और सच्चे गुरु की पहचान बताई । जो वास्तव में सभी घटनाओं का कारण बना । ऐसे महान संत पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज होना तो लाज़मी था। जी हां ये बखान 72 लाख गुरु पदवी पर बैठे संतो, महंतो, आचार्य, मौलानाओ के बीच लेकिन बिल्कुल अलग बाबा रामपाल के बारे में है। दरअसल इन तथ्यों को बताना देश के भावी मीडिया चैनल्स का मुख्य उद्देश्य था । लेकिन अपने गुण और धर्म के विपरीत मीडिया ने बाबा रामपाल दास जी के संबंध में सारी हि निराधार जानकारियां समाज के सामने रखी ।
लेकिन आज ये सच को आधार बनाकर लिखा जाने वाला लेख पढकर निश्चित तौर पर आपकी मानसिकता संत जी के प्रति बदल जाएगी। जिन्होंने ज्ञान की वो चोट कि, जिसने सभी धर्म के गुरुओ को हिला कर रख दिया। बाबा रामपाल जी के ज्ञान की इस लाठी ने अज्ञानता पर ऐसा वार किया, कि उसने संत जी के ही जीवन में संघर्ष की दास्तां लिख दी । जिसकी शुरुआत जुलाई 2006 में करोंथा कांड से हुई। इससे पहले कि आने वाले समय में इतिहास में लिखे जाने वाले, इस काले दिन का उजागर इस लेख मे शुरु हो। पहले यह जानते हैं कि बंदीछोड़ जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज कौन है ? इतने लम्बे नाम के पीछे का सच क्या है ?
कौन है बाबा रामपाल ?
बाबा रामपाल जी का जन्म 8 सितम्बर 1951 को गांव धनाना जिला सोनीपत हरियाणा में एक जाट किसान परिवार में हुआ। पढ़ाई पूरी करके हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की पोस्ट पर बाबा रामपाल 18 वर्ष तक एक सामान्य व्यक्ति की तरह ही कार्यरत रहे।
स्वभाव से धार्मिक प्रवृत्ति का होने के कारण बाबा रामपाल आमजन की तरह हिंदू देवी और देवता की भक्ति करते थे। लेकिन भगवान के प्रति विशेष लगाव के चलते परमात्मा प्राप्ति का माध्यम, गुरु की शरण ली और अपने आध्यात्मिक सफर की शुरुआत सन 1988 में कबीर ज्ञान पर आधारित गरीबदास पंथ के संत स्वामी राम देवानंद जी से नाम दीक्षा लेकर भक्ति करने लगे।
वर्ष 1993 में, स्वामी रामदेवानंद जी महाराज ने बाबा रामपाल को सत्संग करने का आदेश दे दिया और 1994 में नाम (मंत्र / आध्यात्मिक निर्देश) देने का आदेश दिया कि,,,
"आप अब भक्ति मार्ग का, सत्य ज्ञान का, तन मन धन से प्रचार प्रसार करो।"
गुरु शिष्य की परंपरा और नियमो से विधिवत परिचित, बाबा रामपाल ने गुरु आदेश को सर्वोपरि मानकर कबीर परमेश्वर द्वारा प्रमाणित ज्ञान को ग्रंथों में दिखाकर उसका प्रचार प्रसार करना, अपनी नौकरी से अतिरिक्त समय में, लोगों को बताकर शुरू कर दिया। नतीजतन लाखों लोग बाबा रामपाल के सबसे अलग, अनसुने, धर्मग्रन्थो मे दिखाये प्रमाणित आध्यात्मिक ज्ञान को समझकर निशुल्क नाम दीक्षा धारण कर उनके शिष्य बन गये।
सतज्ञान, सतभक्ति मिलने के बाद उन्हे चमत्कारिक लाभ होने के कारण शिष्यो का अटूट विश्वाश बाबा रामपाल पर हो गया जो अब तक कायम है।
यहां गौर करिएगा
1=बाबा रामपाल ने कभी भी नाम दीक्षा का कोई शुल्क नही लिया जो आज भी निशुल्क है।
2= जो भी बाबा रामपाल जी के शिष्य बने, सिर्फ और सिर्फ उनके ज्ञान को आधार बनाकर बने।
3= किसी लुभावने लालच, फायदे या जोर जबरदस्ती के चलते नही।
इन महत्वपूर्ण तथ्यो के सामने आने के बाद ये साफ तौर पर साबित हो जाता है कि ये अनुयाई अनपढ़ और अंधविश्वासी नहीं जैसा कि मीडिया चैनलों मे बताया गया। क्योंकि यह पूरा प्रकरण ही ज्ञान के कारण है।
फिर धर्मग्रंथों (पवित्र श्रीमदभगवदगीता, पवित्र कुरान,पवित्र बाईबल पवित्र गुरुग्रंथ साहेब) के आधार पर सच्चे संत की प्रमाणित जानकारी को देखते हुए बाबा रामपाल, बंदीछोङ तत्वादर्शी जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज के रूप में जाने गए । यहां आवश्यक रूप से ध्यान देने कि जरुरत है कि बाबा रामपाल को जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज की श्रेणी में सदग्रंथों में उल्लेखित सतगुरु की पहचान के मौजूदा प्रमाण पर ये गुरु पदवी का नाम मिला। जो किसी प्रसिद्धि की इच्छानुसार नहीं बल्कि भगवान के संविधान अनुसार निश्चित हुआ।
जिसे पाठक समाज पवित्र श्रीमदभगवतगीता के अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में तत्वदर्शी संत की पहचान के स्पष्टीकरण में देख सकता है।
भक्ति के मार्ग में तल्लीन होने के कारण बाबा रामपाल जी ने अपना त्याग पत्र जे. ई. के पद से दिया, जिसे हरियाणा सरकार ने पत्र संख्या 3492-3500, दिनांक 16/5/2000 में स्वीकार किया है। वर्ष 1994 से 1998 तक संत रामपाल जी महाराज ने हर घर, हर गाँव और हर शहर में जाकर सत्संग किया। बड़ी संख्या में लोग उनके अनुयायी बने। इसके साथ ही, अनजाने संतों से विद्रोह भी आगे बढ़ा और शुरुआत हो गयी करोंथा कांड की।
करोंथा कांड 12/7/ 2006
"सतलोक आश्रम" रोहतक-झज्जर रोड पर करौंथा गांव से 2 किलोमीटर दूर तथा डीघल गांव से 4 किलोमीटर की दूरी पर सड़क पर गांव करौंथा की सीमा में स्थित है। करौंथा जिला रोहतक (हरियाणा) का गांव है। अप्रैल वर्ष 1999 में, ग्राम करौंथा जिला रोहतक (हरियाणा) में सतलोक आश्रम करौंथा की स्थापना हुई । महीने मे एक बार प्रत्येक पूर्णिमा के दिन सत्संग होने लगा । बहुत संख्या मे भक्त्जन सत्संग सुनने के लिए आने लगे। बाबा रामपाल जी ने सभी धर्मशास्त्र गीता, वेद, पुराण, बाइबल, कुरान, गुरुग्र्ंथ साहेब, मे लिखित प्रमाण आधार से आध्यात्मिक ज्ञान को पढा और प्रत्येक धर्म, पंथ अर्थात वर्तमान मे जो अनगिनत पंथ चले हुए है इसके अलावा समाज में की जा रही भक्ति को भी जाना। उसमें पाया कि जो भी धर्म पंथ या समाज जिस भी ग्रंथ का नाम लेकर अपना धार्मिक प्रचार कर रहा है। वह स्वयं नहीं जानता कि वो जिस ग्रंथ को सत्य मानते हैं। वो उसके विपरीत ज्ञान और भक्ति विधि बता रहे हैं और तब आतम कल्याण के उद्देश्य से बाबा रामपाल दास जी ने अपने सत्संग में प्रोजेक्टर के माध्यम से सभी धर्मग्रंथों के आधार पर सभी धर्मगुरुओं के ज्ञान को उन्हीं की पुस्तकों में दिखाकर उनके ज्ञान की परख और फैसला उन पर और उनके शिष्यो पर ही छोड़ दिया । जिस कारण देखते ही देखते सामाजिक पाखंडवाद की बेङियां टूटने लगी। लोग जागरूक हो गए। उन्हें समझ आ गया कि, हम गलत ज्ञान देने वाले गलत गुरु की शरण है। वे अपने गुरुओं, संतों और आचार्यों से सवाल करने लगे कि, आप हमारे सच्चे शास्त्रों के विपरीत सारा ज्ञान बता रहे हैं। इस तरह के तर्क का,जवाब देने में असमर्थ, ज्ञान की कमी और आर्थिक रूप से हालात बिगड़ने के डर से, आत्म कल्याण को मुख्य ना समझते हुए धर्मगुरुओं ने संत रामपाल जी को नष्ट करने की योजना गढी। ताकी उनका आध्यात्मिक पाठ्यक्रम पर आधारित तत्वज्ञान वही खत्म हो जाए।
यहां आपको थोङी अलग लेकिन एक विशेष जानकारी देने की जरूरत लग रही है। कबीर ज्ञान को खंगालते समय मेरी नज़र में एक वाणी आयी। जिसमे कबीर साहिब ने सच्चे संत की पहचान बताते हुए लिखा है कि,,
जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावे।
वाके संग सभि राढ़ बढ़ावे ।।
अर्थात जो संत सभी वेद शास्त्रों के आधार पर सतज्ञान देता है उसके साथ अन्य गुरु, महंत, आचार्य सभी झगड़ा करते हैं।
कुछ ऐसा ही नजर आ रहा था संत जी के भी प्रमाणित ज्ञान प्रचार प्रसार और उनकी आध्यात्मिक ज्ञान की लोकप्रियता को देखकर। इसी बीच एक और बात जो स्पस्ट हुई। वो ये की ऐसा नहीं था कि बाबा रामपाल जी किसी एक पंथ (आर्य समाज़) पर ही केंद्रित होकर अपनी व्यक्तिगत राय दे रहे थे, कि, इन लोगो को कोई भी आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है। बल्कि बाबा रामपाल जी ये सब कुछ केवल आत्मकल्याण के उदेशय से सही और गलत की पहचान बताकर मोक्ष मार्ग को प्रत्यक्ष करने के लिये कर रहे थे।
ठीक वैसे ही जैसे नकली नोट और असली नोट की पहचान बताने के लिए नकली नोट की सभी कमियां जनता के सामने सरकार द्वारा निर्धारित व्यक्ति प्रत्यक्ष करता है। ताकि नकली नोटों के इस्तेमाल से होने वाली हानियों से जनता बच सके। क्योंकि यह एक आध्यात्मिक ज्ञान है , इसलिए यहां सरकार परमेश्वर है और उनके द्वारा निर्धारित संत बाबा रामपाल दास जी । लेकिन इन सभी पन्थो के बीच केवल आर्य समाज ने ही जो एक धार्मिक समाज होने का दावा करता है। उसने बाबा रामपाल जी के बताए इस ज्ञान को व्यक्तिगत रूप से लेकर विद्रोह और उपद्रव शुरू किया ।
क्योंकि जिस प्रकार बाबा रामपाल समाज में फैले अन्य सभी पंथ प्रवर्तकों की पुस्तकों को वेदों से मिलान करके सिद्ध करते थे। ठीक उसी प्रकार आर्य समाज जो कि महर्षि दयानंद का अनुयाई है महर्षि दयानंद द्वारा लिखित पुस्तक "सत्यार्थ प्रकाश" को भी प्रोजेक्टर के माध्यम से स्क्रीन पर दिखाकर बताया कि इनका ज्ञान वेदो से नहीं मिलता। जबकि पूरा आर्य समाज महर्षि दयानंद सरस्वती जी के बताये अनुसार चारों वेद (ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद अथर्ववेद) को ही सत्य ज्ञान युक्त पुस्तक मानता है। वे यहां तक कहते हैं कि हम वेद के अतिरिक्त किसी आध्यात्मिक पुस्तक को सत्य नहीं मानते। जिन का ज्ञान वेदों से नहीं मिलता और बाबा रामपाल दास जी ने "सत्यार्थ प्रकाश" के ज्ञान की तुलना वेदों से ही करके सिद्ध कर दिया, कि महर्षि दयानंद को वेद ज्ञान बिल्कुल नहीं था और ना ही उनको समाज सुधार का ज्ञान था।
चुंकी महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने "सत्यार्थ प्रकाश" के समुल्लास 12 पेज 342 अनुभूमिका 2 में लिखा है की आपस में वाद-विवाद करने से सत्य असत्य का निर्णय होता है, अवश्य करना चाहिए। इसी आधार से बाबा रामपाल ने समाचार पत्रों के माध्यम से लेख लिखकर ज्ञान चर्चा के लिए आमंत्रित किया सिर्फ उन्हें ही नहीं विश्व के सभी धर्म गुरुओं को ज्ञान चर्चा के लिए आमंत्रित किया। जिसमें विशेष रूप से यह लिखा की अगर आप हमारे ज्ञान को गलत सिद्ध करते हैं तो मैं अपने सभी शिष्यों को लेकर आपकी शरण आ जाऊंगा और अगर आपका ज्ञान गलत होता है तो आपको इस ज्ञान को स्वीकार करना होगा। आतम कल्याण का उद्देश्य है जीव का कल्याण हो सके इस जन्म मरण से पीछा छुड़वाना है। बस हम यही चाहते हैं। लेकिन उस ज्ञान चर्चा में कोई भी धर्मगुरु शामिल नहीं हुआ।
अब तक ये बेहद विचारणीय विषय हो गया होगा आप के लिये कि, ऐसा कौन सा ज्ञान था जो एक कांड का कारण बना , क्योंकि ज्ञान सदैव बहस बन सकता है जिसका उद्देश्य निष्कर्ष तक पहुचना होता है। ज्ञान कभी भी कांड का कारण नहीं बनता निर्दोषों की मौत का कारण नहीं बन सकता। वो भी एक आध्यात्मिक ज्ञान ।
तो चलिए बताते हैं कि वह ज्ञान क्या था और किस ज्ञान ने किसको इस कदर ठेस पहुचा दी कि ये आध्यात्मिक ज्ञान एक कांड बन गया।
विशेष प्रमाण जो मुख्य रूप से करौंथा कांड का कारण बना ज्ञान का पहला महत्वपूर्ण बिंदु था....
1 = महर्षि दयानंद जी सत्यार्थ प्रकाश नामक पुस्तक के समुल्लास 7 पेज 154 पर लिखते हैं कि परमात्मा निराकार है । जबकि ऋग्वेद मंडल 9 सक्त 86 मंत्र 26, 27 यजुर्वेद अध्याय 7 मंत्र 39 और भी अन्य कई जगहों पर ये लिखा है कि परमात्मा साकार है। राजा के समान दर्शनीय है। वह धू लोग के पृष्ठ भाग पर विराजमान है।
ये कमाल की बात रही कि इन वेद मंत्रों के अनुवादकर्ता भी आर्य समाजी ही हैं तथा प्रकाशक भी सार्वजनिक आर्य प्रतिनिधि सभा दिल्ली है।
अत: महर्षि दयानंद जी का "सत्यार्थ प्रकाश" वाला निराकार परमेश्वर का सिद्धांत यहा पूर्ण रूप से गलत सिद्ध हो गया।
2 = "सत्यार्थ प्रकाश" समुल्लास 7 पृष्ठ 155 तथा 163 पर महर्षि दयानंद जी ने कहा है कि परमात्मा भक्तों के पाप क्षमा (नष्ट) नहीं करता। जबकि यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13, ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 97 मंत्र 16, और अन्य कई जगह पर यह स्पष्ट रूप से वर्णित किया गया है कि परमात्मा पाप नाश करता है।
यहां पर भी महर्षि दयानंद जी का "सत्यार्थ प्रकाश" का परमेश्वर के पाप नष्ट ना करने का सिद्धांत गलत सिद्ध हो गया।
उपरोक्त सचाई को अपनी आंखों से प्रोजेक्टर पर देख कर श्रोताओ ने घर जाकर सभी पुस्तकों का फिर से मिलान करके जांचा और पाया कि महर्षि दयानंद पूर्ण रूप से अज्ञानी था और बाबा रामपाल जी जो कह रहे थे वह बिल्कुल सत्य कह रहे थे । श्रोताओ में आर्य समाज से संबंधित व्यक्ति भी थे। उन्होंने तथा अन्य ने मिलकर आर्य समाज के आचार्यों से सवाल किया कि आप आज तक इस अज्ञान को समाज में फैला रहे हो। आपका उद्देश्य क्या है ?? आचार्यों को सभी प्रमाण दिखाए उन्होंने कहा कि यह "सत्यार्थ प्रकाश" नकली है। श्रोताओ ने कहा कि क्यों पढ़ें लिखे लोगों को मूर्ख बनाते हो। अब ये सब नहीं चलेगा। देखो आपके झज्जर-गुरुकुल से खरीदा गया है। यह रसीद है। आचार्य प्रिंटिंग प्रैस, दयानंद मठ, गोहाना मार्ग रोहतक से छपा है।
आर्य समाज के आचार्यों का कर्तव्य तो ये बनता था कि सत्य आंखों से देखकर खुद भी सावधान होते और अपने अनुयायियों को भी बताते कि "सत्यार्थ प्रकाश" सत्य से परे है। अपना और अन्य भोली-भाली जनता का कल्याण करवाते लेकिन ऐसा ना करके संत तथा भक्तों पर अत्याचार शुरू कर दिए।
आर्य समाज ने मीटिंग में यह निर्णय लिया, कि यदि जनता को महर्षि दयानंद के इस अज्ञान का पता चल गया तो "सत्यार्थ प्रकाश" को बेचकर जो दयानंद कि फोकट महिमा बनाई है और दुनिया से आर्य समाज के नाम पर चंदा इकट्ठा करते हैं। तो हमारी दुकानें बंद हो जाएगी । इसका एक ही रास्ता है कि सतलोक आश्रम को बंद कराया जाए। रामपाल को मार दो तब बात बनेगी अपनी योजना के तहत उन अज्ञानी संतों, महंतों और आचार्यों ने सतलोक आश्रम करौंथा के पड़ोसी गांवों में, न्यूज़ चैनल, समाचार पत्रों में संत जी के बारे मे बुरा और भङकाऊ प्रचार करना शुरू कर दिया, और अन्ततः ज्ञान का जवाब ज्ञान से ना देकर, कोर्ट मे किसी भी तरीके की अप्लिकेशन को दायर करना उचित ना समझते हुए, हरियाणा के समकालीन राजनेताओं और उच्च पदों पर आसिन अधिकारियों के सहयोग से करोंथा "सतलोक आश्रम" पर हमला करने का फैसला लिया ।
क्योंकि दुर्भाग्यवश मार्च 2005 में हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा आर्य समाजी बन गए। उसके बाद यह उपद्रवी अधिक सक्रिय हो गए ,और जनता और मुख्यमंत्री से सच्चाई छुपाकर झूठ के आधार पर आश्रम करोंथा को नष्ट करने और बाबा रामपाल को जान से मारने का षड्यंत्र रचकर और 12-7-2006 को अपने कुकृत्य को अंजाम दिया। जब सभी भक्तजन पूर्णमासी का सत्संग सुनने के लिए आश्रम इकट्ठे हुए थे। सभी श्रद्धालुओं को बंधक बनाया गया। रोगी, वृद्ध, बच्चे, स्त्रियां बहुत संख्या में थे। उपद्रवियों ने आश्रम के पानी की लाइन काट दी। बिजली की सप्लाई काट दी। हाहाकार मचा दिया रोहतक के डीएसपी और मुख्यमंत्री आदि सभी बड़े अधिकारियों के पास टेलीग्राम किए गए। सभी स्थितियों को बताया गया। लेकिन उन पर कोई असर नहीं हुआ। क्योंकि वह खुद अत्याचार करा रहे थे।
पुलिस की तरफ से हुई फायरिंग में 56 लोग घायल हो गए और एक गांव भागलपुर का उपद्रवी हमलावर सोनू नामक युवक मारा गया। जिसके बाद सरकार ने करौंथा में "सतलोक आश्रम" को जब्त कर लिया और एक नही अनेको झूठे आरोप से बने झूठे मुकदमे की धारा लगाकर जैसे FIR no192 मुकदमा नं. 198/06 Dt 18/9/2006 u/s 148-149, 323,307, 302, I. P.C. व 27, 54, 59 A act के तहत बाबा रामपाल दास जी और कुछ अनुयायियों को जेल में डाल दिया गया ।
अब एक बड़ा सवाल है जो सामने आता है कि आखिर तत्कालीन राजनेताओं ने, आला अधिकारियों ने किस आधार पर एक धार्मिक संस्था का सहयोग दिया दूसरी धार्मिक संस्था को तहस-नहस करने मे???? क्यों उन्हें यह नहीं लगा कि हमें पहले इस विरोध की वजह जाननी चाहिए ????
अब तक यह तो साफ तौर पर जाहिर हो रहा था कि भले ही, अज्ञानियों की बातों में आकर पद और बल का दुरुपयोग करने वाले समकालीन प्रशासनिक अधिकारियों ने मनगढ़ंत धाराएं लगाकर बाबा रामपाल दास जी को प्रसिद्ध कर दिया, लेकिन इन आरोपों को सही ठहराने वाले एक सबूत एक गवाह भी उनके पास नहीं थे। जिससे साबित हो रहा था कि संत जी निर्दोष है। लेकिन संत का ज्ञान के लिये संघर्ष बदस्तूर जारी रहा।
अन्ततः बाबा रामपाल जी को कुछ अन्य 50 भक्तो के साथ गिरफ्तार किया गया । बाबा रामपाल जी पर मर्डर का केस लगाया गया। इसके साथ ही कई अन्य झूठे आरोप भी लगाए गए।
जरा सोचे, पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई कितनी न्यायसंगत है? जिन लोगों ने आश्रम पर हमला किया था, वे आजाद घूम रहे थे और राज्य सरकार द्वारा उन्हें इनाम भी दिया गया था।
जिन लोगों पर हमला किया गया था वो बाबा रामपाल दास जी के साथ सलाखों के पीछे डाल दिये गये और उन्हें 22 महीने तक जमानत नहीं दी गई थी।
अब इस तथ्य को भी उनके ऊपर लगाए गए झूठे मामलों से स्पस्ट करते हैं। चुंकी मनमाने ढंग से लगे मुकदमों की संख्या ज्यादा है। इसलिए यहां पर वही मुकदमे स्पष्ट हो सकते हैं जो मुख्य रूप से आश्रम खाली कराने और बाबा रामपाल को जेल भेजने के लिए पर्याप्त रहे । जानिए क्या है लगाए गए झूठे मुकदमे और उनकी स्थिति।
करोंथा कांड से जुड़े बाबा रामपाल जी पर लगाए गए झूठे और मनगढ़ंत मामले
1. सतलोक आश्रम, करौंथा जमीन का झूठा मुकदमा ,
केस विवरण - आश्रम की जमीन धोखाधड़ी के जरिए ली गई ।जबरदस्ती हस्ताक्षर करवाकर जमीन ली और आश्रम बनाया।
सच्चाई इस प्रकार है-
असल मे यह एक झूठा मुकदमा था, जो कि राजनीतिक दबाव के तहत बाबा रामपाल पर मुकदमा नं. 446 दिनांक 21/7/2006 में दायर किया गया। जिसमें बाबा रामपाल पर धोखाधड़ी यानी धारा 420 के तहत आश्रम की जमीन लेने का आरोप लगाया गया। जिसके कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु आपके सामने रखते है ।
केस की न्यायालय मे कार्रवाई (जजो का भ्रस्टाचार) जिसे भारत जैसे लोकतांत्रिक देश मे भारतीय जनता के लिये जानना बेहद जरूरी है।
1 = इस केस की सुनवाई के दौरान मुख्य गवाह जिसके नाम पर FIR काटी गई थी, उसने न्यायालय में स्पष्ट बयान देकर यह बताया की मुझे, ”इस FIR में क्या लिखा है”। उसकी कोई भी जानकारी नहीं है, क्योंकि पुलिस ने उस FIR पर मुझ से जबरदस्ती हस्ताक्षर कराए थे। अर्थात शिकायतकर्ता को ना तो FIR में लिखित तथ्यों की जानकारी थी और ना ही उसे इस बात की जानकारी थी, कि पुलिस उसके बयान का किस प्रकार से दुरुपयोग करेगी।
2 = उक्त विवादित जमीन को इच्छानुसार दानकर्ता ने दान में साल 1999 मे ट्रस्ट को दिया था। लेकिन गर्भवती होने के कारण वह तहसील में नहीं आ सकती थी। इसलिए, उसने अपनी बहन की फोटो के बजाय, अपनी बुआ की फोटो चिपकाई और उसे अपनी बहन के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने इस पूरे प्रकरण को ट्रस्ट के सदस्यों से छिपाया जिसे वह जमीन दान कर रहे थे। कम्युनिटी हेडमैन (नम्बरदार) ने देखा कि सभी सदस्य मौजूद हैं । बाबा रामपाल दास जी ने समपति के दस्तावेजों पर कहीं भी अपने हस्ताक्षर नहीं किये हैं, फिर भी बाबा रामपाल दास जी और ट्रस्ट के सदस्यों पर धोखाधड़ी का झूठा मामला बनाकर दोषी बनाया गया ।
इस सच्चाई का प्रमाण सहित खुलासा होने के बाद विशेष रुप से जो एक तथ्य आप सभी को बताना जरूरी है वह ये कि, उक्त विवादित जमीन को ट्रस्ट को दान में दिया गया था, ना, की, बाबा रामपाल जी को।जो कि किसी ट्रस्टी या चेयरमैन की निजी संपत्ति नहीं है, ना हो सकती है। यह केवल परोपकार के लिए है जो किसी भी तरीके से धोखे (420) की संज्ञा में नहीं आता। उक्त विवादित जमीन पर बाबा रामपाल दास जी का कोई व्यक्तिगत हित नहीं था। उक्त जमीन ट्रस्ट को दानकर्ता द्वारा लोकहित (चैरिटेबल) के मद्देनजर स्वेछानुसार दी गयी थी।
3 = उक्त विवादित जमीन ट्रस्ट को वर्ष 1999 मे दान में दी गई थी और FIR वर्ष 2006 में दर्ज की गई। यहां गौर करने का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु जो सामने आया वो पहला तो यह था कि दानकर्ता को आपत्ति 5 साल बाद हुई। जो साफ तौर पर एक भड़काई हुई प्रक्रिया के तहत समझ आती है। दूसरा ये था कि इस केस में दिनांक 1/8/2013 तक यानी 14 वर्ष बीत जाने के बाद भी दानकर्ता कमला को पुलिस द्वारा गवाह के रूप में स्वीकार नही किया गया और ना ही CRPC की धारा 161 के तहत पुलिस द्वारा चालान के साथ बयान लिया गया ।
इसके बाद जो तथ्य प्रमाण के साथ हमारे सामने आए वह निश्चित ही सरकार की भूमिका को संदेह के घेरे में करते हुए संविधान मैं न्याय की धज्जियां उड़ाते भी नजर आए।
4 = जब उक्त विवादित जमीन की सुनवाई जज अश्विनी कुमार द्वारा की जा रही थी। तब आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उन्होंने ट्रस्ट के सदस्यों से व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर केस को पूरी तरह से बाबा रामपाल के फेवर में समझ कर इसे खारिज करने के लिए 2,00,000 लाख रुपए मांगे। जिसे बाबा रामपाल दास जी के भक्ति नियमों के विरुद्ध होने के कारण गंभीरता से अस्वीकार कर दिया गया।
अंततः एक बहुत बडे अत्याचार को बढ़ावा देते हुए संविधान की शपथ को ताक पर रखकर न्याय के देवता ने एक असंवैधानिक निर्णय लिया जो कि उनके बर्ताव से पहले ही महसूस हो गया था। जज अश्विनी कुमार ने बाबा रामपाल के विरोध मे न्याय विरुद्ध निर्णय सुनाकर दिनांक 19/2/2014 में कहा कि "कमला पीड़ित है और उसके साथ फ्रॉड हुआ है।"
केस आगे ले जाने पर एडिशनल जज नरेश कुमार सिंगला ने भी और ज्यादा पैसे की मांग करते हुए जज अश्विनी कुमार के आदेश पर मोहर लगा दी ।
5 = जज महोदयो के लिये न्याय और कानून की अहमियत ना के बराबर देख और भारत के संविधान की धज्जियां उड़ाते देख ट्रस्ट ने उक्त आदेश के तहत पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट चंडीगढ़ में अपील की । जिसमे "माननीय विद्वान जज श्री सुरेंद्र गुप्ता जी" ने अपने आदेश नं. Crl. Misc नं.M-17667 of 2014 Dt. 22/5/2014 में न्याय किया।"
और एक जजमेंट दिया कि "कमला" पीड़ित नहीं है और ना ही उसके साथ कोई धोखा हुआ है।
उक्त केस में संबंधित तथ्यों पर सर्वोच्च न्यायालय का एक निर्णय आदेश नं. 2009 (S) Law of HERALD (S.C.) 3310 For Criminal Appeal No. 1695 of 2009 arising of out of SLP (crl.) नं. 6211of 2007 स्पष्ट करता है कि यदि A ने B की जमीन "B" बनकर "C" को बेच दी या दान कर दी तो "A" दोषी है "C" दोषी नहीं ठहराया जा सकता। और इस आधार पर ट्रस्टी यानी जमीन प्राप्त करने वाले "C" है। अब जाहिर है कि उन पर यह मुकदमा बनता ही नही और इसके साथ ही ये साफ तौर पर स्पष्ट हुआ कि यह राजनीतिक दबाव से बनाया गया मुकदमा था।
लेकिन अफसोस सर्वोच्च न्यायालय के इन आदेशों को भी जज साहिबानो ने लालचवश अनदेखा कर दिया उन्हें एक बार भी ऐसा नहीं लगा उनकी मलिन मानसिकता जगजाहिर हो रही है। क्योंकि यदि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध जमीन लेने वाले दोषी बनाए गए हैं। तो ये जरूरी था कि तहसीलदार, रजिस्ट्री क्लर्क, और अर्जीनिवेश को भी दोषी बनाया जाना चाहिए था। जिन्होंने सारे कागजात की पूरी तरह जांच पड़ताल करके रजिस्ट्री कर दी थी। अर्थात ये जमीन विवाद का झूठा मुकदमा सच्चे सबूतो और बयानो के प्रमाण आधार से झूठा साबित होता है।
कुल मिलाकर यह स्पष्ट रूप से सिर्फ जाहिर ही नहीं प्रमाणित भी हुआ की बाबा रामपाल जी के ज्ञान की चोट इस कदर थी कि लोकतंत्र के चारों स्तंभ डगमगा चुके थे। नतीजतन बार-बार सच को अनदेखा किया जा रहा था।
2. सतलोक आश्रम, हत्या का झूठा मुकदमा
केस विवरण - आश्रम से बरामद हथियारों से हुई सोनू नाम के युवक की हत्या।
सच्चाई इस प्रकार है-
1 = षड्यंत्रकारियों द्वारा गुमराह किए जाने पर असामाजिक तत्वों ने करौंथा आश्रम पर हमला किया। उन हमलावरों में से एक की मौत हो गई जिसका नाम सोनू था। उस समय हमलावर भी गोलीबारी कर रहे थे, पुलिस भी गोलीबारी कर रही थी, और आत्मरक्षा में आश्रम से भी लाइसेंसी बंदूकों से हवा में गोलियां चलाई गई ।
जिसके तहत बाबा रामपाल पर हत्या के केस का झूठा मुकदमा कर दिया गया ।
2= उक्त मामले में केस नं. __ तथा धारा__ के तहत बाबा रामपाल दास जी पर केस बनाए गये ।
3= जब मामला ट्रायल कोर्ट में पहुंचा तो मृतक "सोनू" की जिस गोली के लगने से मृत्यु हुई थी उसकी फॉरेंसिक साइंस लैबोरेट्री (FSL) मधुबन करनाल से जो रिपोर्ट कोर्ट में आयी।
• उससे ये साबित हो गया कि मृतक सोनू की मृत्यु आश्रम से बरामद लाइसेंसी बंदूक की गोली से नहीं हुई थी।
• FSL रिपोर्ट ने यह साबित कर दिया है कि मृतक के शरीर पर गोली के घाव की विशेषताएं हैं कि उसे दूर से नही बल्कि बहुत ही करीब से दागा गया था। जबकी विवाद आश्रम से 100 मीटर की दूरी पर हो रहा था।
• FSL की रिपोर्ट और परिस्थिति जन्य साक्ष्य से पाया गया कि "यह व्यक्ति जिसका नाम सोनू था वह आश्रम की लाईसेंसी बन्दूक की गोलियों से नहीं मरा है।" यहां तक कि यह भी नहीं कहा जा सकता है कि आखिरी बार इस बन्दूक से गोली कब चली थी।
• एक अन्य प्रमाण जो कि बेहद महत्वपूर्ण रहा इन सभी के बीच घटना के दौरान छपी खबरों के आधार पर समकालीन राजनेताओं और प्रशासन ने उपद्रवियों के प्रति कोई कार्यवाही ना करते हुए घायलों को ₹50,000 तथा मृतक को ₹5,00,000 तथा घर के एक सदस्य को नौकरी दी गई। जाहिर है यह निन्दनीय कृत्य समकालीन राजनेताओं की मानसिकता को स्पष्ट कर रहा था। यह बता रहा था कि जो भी नुकसान हुआ वह पुलिस और प्रशासन की नज़रे इनायत थी। जिसके चलते ही मृतक, घायल और उनका परिवार के ईनाम के हकदार हुए।
एक बेहद मजबूत साक्ष्य के साथ इस केस मे भी यह साबित हो गया की बाबा रामपाल दास जी को दोषी साबित करने की कुचेष्टा की योजना के तहत मानवता को ताक पर रखकर एक षड्यंत्र के रूप में किसी भी मृत्यु करके बाबा रामपाल दास जी को फसाने जैसा पाप कर्म भी इन उपद्रवियों को छोटा लगा । जिसके तहत ऐसा घृणित कार्य करके इसे रचा गया था।
3 = छुडानी आश्रम के साथ लड़ाई का झूठा मामला :
सच्चाई इस प्रकार है - उन दिनों बाबा रामपाल दास जी महाराष्ट्र राज्य के जिला पुना में प्रवचन देने गए थे। जिसकी खबर वहां के अखबार में भी प्रकाशित भी हुई थी। अनुयाइयो द्वारा उस खबर को पुलिस को दिखाया, फिर भी उन्होंने संत रामपाल दास जी महाराज और उनके अनुयायियों के खिलाफ झूठा मुकदमा किया।
उक्त केस में जब बाबा रामपाल दास जी ने सभी प्रमाण दिखा कर साबित कर दिया कि घटना के दौरान वह उस स्थान पर ही नहीं थे जहां पर लड़ाई शुरू हुई । तो साक्ष्यों के आधार पर बाबा रामपाल दास जी को उक्त केस में भी राहत दी गई।
केस की स्थिति
केवल आरोपो के तहत 21 महिने तक जेल मे बिताने के बाद आखिरकार 30 अप्रैल 2008 को बाबा रामपाल दास जी को जमानत दे दी गई। लेकिन झूठे मुकदमे के तहत अत्याचार जारी रहा क्योंकि उपद्रवी कोर्ट के फैसले से बिल्कुल भी सहमत नहीं थे।
2009 - हाईकोर्ट ने आश्रम ट्रस्ट और संत रामपाल जी को वापस लेने का अधिकार दिया।
आर्य समाजी इसे सहन नहीं कर सके और सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की।
फरवरी 2013 - सुप्रीम कोर्ट ने आर्य समाजियों की अपील को खारिज कर दिया और आदेश दिया कि आश्रम को संत रामपाल जी महाराज को वापस सौंप दिया जाए। लेकिन यह बेहद दुखद रहा कि आज तक उस आश्रम पर उन उपद्रवियों ने ट्रस्ट का कब्जा नहीं करने दिया निसन्देह यह स्थिति सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े करती हैं।
वीडियो फुटेज में आर्य समाजी हमलावरों को पुलिस पर गोलियां चलाते हुए दिखाया गया है।
(नीचे दिए गए वीडियो में 1.22)।
बहुत सारे पुलिस कारण थे। कई पुलिस कर्मी घायल हो गए लेकिन फिर भी समूह के नेताओं या मौजूद आला अधिकारियों की जाँच करने के लिए कुछ नहीं किया गया।
आर्य समाजी हमलावरों और ग्रामीणों द्वारा धारा 144 का घोर उल्लंघन किया गया लेकिन फिर भी कोई जांच नहीं बैठाई गई। जबकि बाबा रामपाल दास जी लगातार प्रशासन से सीबीआई (CBI) जांच की मांग करते रहे, कि जांच के आधार से मुझे दोषी साबित किया जाए । जिसका धरना प्रदर्शन दिल्ली जंतर मंतर पर भी शांति पूर्वक किया गया। लेकिन इस बाबत कोई संज्ञान नही लिया गया।
निष्कर्ष
निश्चित ही धार्मिक स्वतंत्रता के भारत देश में धार्मिक ज्ञान के नाम पर, ऐसा तांडव बेहद शर्मनाक है। मगर अपने गुरु आदेश से बाबा रामपाल दास जी ....नहीं संत, महान संत रामपाल दास जी का आध्यात्मिक ज्ञान के लिए, जीव कल्याण के लिए ही, संघर्ष बदस्तूर जारी है, क्योंकि संत रामपाल दास जी महाराज पर लगाए गए झूठे आरोपों का सिलसिला वर्तमान समय तक खत्म नहीं हुआ है।
लेकिन इन लगाए झूठे केसों की गाथा में इस कदर असंख्य अत्याचार मौजूद है। जो यदि उजागर हुए तो केवल इतिहास ही नही बनेंगे, बल्कि निश्चित रूप से लोकतंत्र के चारों स्तंभ संसद न्यायपलिका, कार्यपालिका, मीडिया को डगमगा देंगे।
क्योंकि लोकतंत्र का सबसे मजबूत स्तंभ न्यायपालिका और न्यायाधीशों ने अपने स्वार्थ के लिए महान जगत्गुरु तत्वादर्शी संत रामपाल जी महाराज को,न्यायालय की गरिमा को, जन साधरण को, अपूर्णनीय क्षति पहुंचाई है।
पहली बार यह महसूस किया कि वो ज्ञान जिसको समझ कर सिर्फ और सिर्फ उसके बढ़ाने में सहयोग होना चाहिए था, सिर्फ और सिर्फ उसको खत्म करने में लोकतंत्र के चारों स्तम्भों ने अपनी घिनोनी भूमिका निभाई है। जिसमे महत्वपुर्ण रोल न्यूज़ चैनलों ने भी प्ले किया क्योंकि ये लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में राजनीतिज्ञों और अफसरों के पिछलग्गू बन गये हैं। ये Tv चैनल की ही देन रही, कि संत रामपाल जी का सच अब तक जनता से कोसो दूर है। इस संबंध मे भी सुधार बेहद जरूरी है क्योंकि स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता के बिना ना तो यह राष्ट्र रहेगा और ना ही यह लोकतंत्र।
अन्ततः यह आवश्यक तौर पर जरूरी हो जाता है कि 2006 से लेकर अब तक जितने भी केस संत रामपाल जी तथा उनके शिष्यों पर हुए हैं, उनकी लाइव जाँच करवाई जाए ताकि भ्रष्ट जजों की, समकालीन नेताओं की, आला अधिकारियों के पद और बल का दुरुपयोग जनता के सामने आ सके।