कबीर सागर अध्याय 16 'सुल्तान बोध' पृष्ठ 37 (757) सुल्तान एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ है 'राजा'। इब्राहिम अधम नाम का एक शासक था। उन्हें 'सुल्तान' कहा जाता था। पिछले जन्म के भक्त राजा, अधिकारी और करोड़पति बनते हैं । जिस दिन से आत्मा 'सतपुरुष' से अलग होकर ब्रह्म-काल के जाल में फँसी है, वह उसी आराम और शांति की तलाश में है जो वह सनातन दुनिया 'सतलोक' में भोगती थी और इसलिए निरंतर प्रयास कर रही है 'सतलोक' प्राप्ति का । लेकिन पूजा का सही तरीका नहीं मिलने से आत्मा जन्म और पुनर्जन्म के दुष्चक्र में फंसी रह जाती है । कबीर परमेश्वर स्वयं 'सतपुरुष' हैं। कबीर परमेश्वर स्वयं प्रत्येक युग में पृथ्वी पर प्रकट होते हैं और सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान को बताते हैं और पुण्य आत्माओं को मोक्ष मंत्र देकर उन्हें मुक्ति प्रदान करते हैं। उनमें से कुछ ही सतगुरु (कबीर परमेश्वर) द्वारा प्रदान किए गए सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान को स्वीकार करते हैं, लेकिन अज्ञानी संत उन्हें गुमराह करते हैं और सच्ची पूजा करने से उन्हें दूर करके, उन्हें काल की पूजा पर फिर से स्थापित करते हैं।
महान संत गरीबदास जी महाराज ने अपनी अमृत वाणी में उल्लेख किया है;
अनंत कोटि बाजी तहाँ, रचे सकल ब्रह्मांड |
गरीबदास में क्या करूं, काल करे जीव खण्ड |।
अर्थ: संत गरीबदास जी कहते हैं कि कबीर साहेब ने उनसे कहा है, 'हे गरीबदास! मैं इतना सक्षम हूं कि मैंने अनंत प्राणियों और पूरे ब्रह्मांड को बनाया है। लेकिन निर्दोष आत्माएं मुझे न पहचानकर, मुझे छोड़ देतीं हैं ; और काल के जाल में फंस जातीं हैं l तुम मुझे बताओ, मैं क्या करूँ?'। तब आगे कबीर जी गरीबदास जी से कहते हैं:
जो जन मेरी शरण है, ताका हूं मैं दास |
गेल- गेल लाग्या फिरूँ, जब तक धरती आकाश ||
गोता मारूँ स्वर्ग में, जा बैठूँ पाताल|
गरीबदास खोजत फिरूं, अपने हीरे मोती लाल ||
अर्थ: परमात्मा कबीर जी ने कहा है कि यदि कोई प्राणी किसी भी युग में मुझसे दीक्षा लेता है और किसी कारण से मुक्त नहीं हो पाता है तो मैं उसे उसके किसी मानव जन्म में उपदेश दूंगा और उस आत्मा को फिर से अपनी शरण में ले लूंगा। मैं उनके साथ रहता हूं और मेरी कोशिश है कि उन्हें काल के जाल से मुक्त कर उन्हें शाश्वत शांति प्रदान करूँ ताकि उन्हें 'सतलोक' के सुख धाम की प्राप्ति हो सके। मेरा यह प्रयास कयामत तक रहता है।
इस प्रक्रिया के कारण, इब्राहिम इब्न अधम की आत्मा पिछले कई जन्मों से कबीर परमेश्वर की शरण में थी। तब काल ने उसे नाम से खंडित कर दिया।
आईये जानते हैं अधम सुल्तान का जीवन वृत्तांत;
अधम सुल्तान एक महान भक्त था जिसने अपने किसी पूर्व के मानव जन्म में कबीर परमेश्वर की शरण ली थी। भगवान उनके सभी जन्मों में उनके साथ रहे और सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करके अंतत: उसे काल के जाल से मुक्त किया।
यह लेख निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से इसे समझाने पर केंद्रित होगा: -
- सम्मन की आत्मा ही सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम की आत्मा थी
- सम्मन वाली आत्मा ने नौशेर खान के रूप में जन्म लिया
- इब्राहिम सुल्तान की जन्म कहानी
- सुल्तान को शरण में लेना
- इब्राहिम इब्न अधम सुल्तान की परीक्षा
- भक्त का इरादा अलग होना चाहिए
- सेवक /भक्त की परिभाषा
- सुल्तानी को 'सार शब्द' कैसे प्राप्त हुआ ?
- राजा श्रेष्ठ है या भक्त ?
- काम, क्रोध, मोह, वासना जैसे विकार नष्ट नहीं होते, शांत हो जाते हैं
- भक्त तरूवर (वृक्ष) जैसे स्वभाव का होता है
सम्मन की आत्मा ही सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम की आत्मा थी
600 वर्ष पूर्व सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी काशी, वाराणसी में अवतरित हुए थे। उस समय दिल्ली निवासी 'सम्मन' नाम के चूड़ी विक्रेता ने अपनी पत्नी 'नेकी' और पुत्र 'सेउ' के साथ कबीर परमेश्वर से दीक्षा ली थी। वे बहुत अच्छे भक्त थे परंतु गरीब भी बहुत थे। वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर चूड़ियाँ बेचते थे ( मनियार थे ) और जहां भी जाते अपने गुरुदेव की महिमा का गुणगान करते थे। एक दिन कबीर परमेश्वर जी 'शेख फरीद' और 'कमाल' नाम के दो शिष्यों के साथ उनके घर पहुंचे ।
अपने गुरू देव को पहली बार अपने घर आया देखकर सम्मन , नेकी और सेऊ बहुत अधिक खुश हुए। उन्होंने गुरूजी को घर में सम्मान के साथ बैठाया और उनसे भोजन खाने के लिए पूछा। नेकी ने सम्मन को एकांत में ले जाकर बताया कि उनके घर में आज खाने को कुछ भी नहीं है जिससे वह अधिक चिंतित हो गया। सम्मन ने अपनी बीवी नेकी से कहा कि वह जाकर किसी से आटा उधार मांग ले आए। आज हमारे घर पहली बार हमारे गुरु जी आए हैं। नेकी ने सम्मन से कहा मैं गई थी उन्होंने देने से मना कर दिया। मैं अपनी चुनरी लेके भी गई थी कि इसके बदले कुछ आटा दे दो परंतु चुनरी फटी होने के कारण नहीं दिया।
सम्मन और उसका पुत्र कुछ आटा लेने गए, लेकिन किसी ने उन्हें आटा नहीं दिया क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे। तब सम्मन और नेकी ने कुछ आटा चुराने का फैसला किया ताकि वे अपने गुरु जी के लिए भोजन तैयार कर सकें। सम्मन और सेउ ने एक अमीर व्यापारी के घर से कुछ गेहूं का आटा चुराया लेकिन अंधेरा होने के कारण सेउ का पैर किसी चीज़ से टकरा गया और खुड़का (शोर) होने से व्यापारी नींद से जाग गया और सेउ को उसने पकड़ लिया। व्यापारी ने उससे कहा कि वह अगली सुबह उसे (चोर को) सार्वजनिक रूप से बेनकाब कर देगा।
सेउ ने आटे की पोटली जिसमें लगभग तीन सेर ( तीन किलोग्राम) आटा था बाहर फैंक दिया। सम्मन आटा उठाकर अपने पुत्र सेउ को वहीं छोड़कर अपने घर चला आया। फिर, नेकी ने सम्मन से कहा कि जाओ और अपने बेटे 'सेउ' का सिर काट दो। सम्मन वहां दोबारा गया और कोठरी के छोटे से छेद में से आवाज़ लगाई बेटा सेउ, एक बार बात सुन तब सेउ ने व्यापारी से कहा कि एक बार मेरे पैर की रस्सी थोड़ी ढीली करना मेरे पिताजी कुछ कहना चाहते हैं। सम्मन ने कहा बेटा कल ये व्यापारी तुझे राजा के सामने ले जाएगा और तुझे चोर कहेगा । हमारे गुरूजी की बेइज्जती होगी और कहेंगे कि गुरूजी चोरी करवाते हैं। बेटा मैं तेरा सिर काट देता हूं गुरूजी की बेइज्जती नहीं होगी। सेउ ने सम्मन से कहा पिताजी यदि आपने मेरा सिर नहीं काटा तो मैं समझूंगा कि आप मेरे पिता नहीं हो मैं किसी और का जाया हूं।
यह सुनते ही सम्मन के शरीर में करंट सा लगा और उसने सेउ का सिर काट दिया। अमीर व्यापारी डर गया और शव को अपने घर से बाहर घसीट कर झाडियों में डाल दिया और घर को लीप पोत कर सो गया। नेकी ने सम्मन को अपने बेटे सेउ का शव लाने को कहा , सम्मन ने व्यापारी के घर बाहर खून के निशान देखे जिन्हें देखते हुए बेटे के कटे हुए सिर के साथ धड़ भी उठा ले आया और उसे घर में एक अलमारी में रख दिया। नेकी ने गुरु जी और अन्य दो मेहमानों के लिए भोजन तैयार किया और भोजन को तीन थालियों में परोसा। कबीर परमेश्वर ने नेकी को छह थालियों में खाना परोसने को कहा। सम्मन और नेकी यह छिपाने की कोशिश कर रहे थे कि उनका बेटा अब ज़िंदा नहीं रहा लेकिन ईश्वर सर्वज्ञ हैं। अपने गुरुदेव के निर्देशों का पालन करते हुए, 'नेकी' ने आखिरकार छह थालियों मे भोजन परोसा। तब कबीर परमेश्वर ने कहा-
आओ सेऊ जीम लो, यह प्रसाद प्रेम |
शीश कटत है चोरों के, साधो के नित क्षेम ||
सेऊ धड़ पर शीश चढ़ा, बैठा पंगत माही |
नहीं गरारा गर्दन में, वो सेऊ अक नाहीं ||
तुरंत ही सेउ का धड़ शीश पर लग गया और गर्दन पर कटे का निशान भी नहीं था। सर्वशक्तिमान कबीर परमेश्वर की कृपा से सेउ जीवित हो गया । फिर सभी छेहों ने एक साथ खाना खाया।
सम्मन वाली आत्मा ने नौशेर खान के रूप में जन्म लिया
नेकी और सेउ ने मोक्ष प्राप्त किया। लेकिन सम्मन के मन में यह दुख रह गया था कि अगर वह अमीर होता तो उसे अपने बेटे का सिर नहीं काटना पड़ता। कबीर परमेश्वर ने उस जन्म में ही सम्मन को करोड़पति होने का आशीर्वाद दिया। उसने अपने गुरुदेव के लिए पुत्र का बलिदान दिया था। लेकिन सम्मन में मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा नहीं थी। उसका अगला जन्म नौशेर खान शहर के राजा के बेटे का था। वह शासक बन गया लेकिन कंजूस था। कबीर परमेश्वर 'जिंदा बाबा' का रूप धारण करके राजा नौशेर खान के पास गए और उसे दान करने का उपदेश दिया लेकिन उसने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि 'वह गरीब है'।
जब भगवान ने उससे कहा कि तेरे पास तो बहुत बड़ा खज़ाना है, तो नौशेर खान ने मना कर दिया और कहा, 'यह सब तो कोयला है'। तब हकीकत में सारा खज़ाना कोयला बन गया। जिंदा बाबा के जाने पर राजा ने खजाने खोल कर देखे तो उनमें हीरे मोती और धन के स्थान पर सब कोयला बन गया था। नौशेर खान ने जिंदा बाबा की खोज करवाई और 'जिंदा बाबा' से माफी मांगी। कबीर भगवान ने उसे आशीर्वाद दिया और पूरा खज़ाना फिर से कीमती हीरे और मोतियों में बदल गया। फिर उसने अपने खज़ाने से अधिकतम का दान किया। उस भक्ति कमाई और संत की सेवा करने से, पुरस्कार के रूप में वह बल्ख शहर के इराक में शासक बन गया।
सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम की जन्म कहानी
इब्राहिम इब्न अधम सुल्तान का जन्म अधम शाह नाम के एक फकीर से हुआ था, जिसने बल्ख के राजा की बेटी , राजकुमारी से शादी की थी। अपने प्रिय भक्त आत्मा नौशेर खान को मुक्त करने के लिए यह सर्वशक्तिमान कबीर परमेश्वर ने दिव्य लीला की थी। कबीर भगवान अपनी अमृत वाणी में कहते हैं;
यह सब खेल हमारे किए | हम से मिले जो निश्चेय जिये ||
जो जन मेरी शरण है, ताका हूं मैं दास |
गेल- गेल लाग्या फिरूँ, जब तक धरती आकाश |।
सुल्तान को शरण में लेना
अगले जन्म में नौशेर खान , इराक में बल्ख का राजा बना। उसकी राजधानी उसी शहर में थी। राजा का नाम सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम था। सम्मन के मानव जन्म में उसने जो पूजा की थी, उससे वह लगातार मानव जन्म प्राप्त कर रहा था और अपने द्वारा किए गए दान और गुणों के बदले में वह राजा बनता रहा। उसका सबसे बड़ा दान तीन किलोग्राम गेहूं के आटे का था जो उसने अपने बेटे की बलि देकर दिया था जिससे वह एक अमीर राजा बन गया। यह सब सर्वशक्तिमान कबीर जी की कृपा से हुआ। उसके पास 18 लाख घोड़े और एक बहुत बड़ा खज़ाना था। वह कीमती जूते पहनता था जिसमें ढाई लाख के हीरे लगे थे। उसके पास सोलह हज़ार रानियां थीं और वह एक भव्य जीवन व्यतीत कर रहा था। वह कई जानवरों का शिकार करता था।
एक दिन एक महान संत एक भक्त के घर, राजा के महल के पास आध्यात्मिक प्रवचन करने के लिए पहुंचे। सुल्तान इब्राहिम इब्न के महल तक सत्संग की आवाज़ आ रही थी जिसे अधम ने रात भर अपनी छत पर बैठ कर सुना और भक्ति करने के लिए अत्यधिक प्रेरित हुआ। सुबह इब्राहिम इब्न अधम ने अपने सैनिकों से कहा कि वह किसी प्रसिद्ध संत से मिलना चाहता है। मंत्रियों द्वारा एक प्रसिद्ध नकली उपदेशक को राजा के पास लाया गया और इब्राहीम ने उस नकली संत द्वारा बताई गई विधि के अनुसार भक्ति करना शुरू कर दिया। संत ऐसे ढोंग करता था जैसे कि वे सभी दोषों और भौतिक सुखों से ऊपर है लेकिन वास्तव में वह लालची और धोखेबाज था।
इब्राहिम उस नकली बाबा से अत्यधिक प्रभावित था। इब्राहिम एक कीमती अंगूठी पहना करता था। उस लालची बाबा ने एक जौहरी की मदद से राजा की अंगूठी के समान एक नकली अंगूठी तैयार करवाई। एक दिन लालची बाबा राजा से मिलने गया और राजा के साथ नौका विहार करने की इच्छा व्यक्त की। सारे इंतजाम हो गए और दोनों नौका विहार करने के लिए निकल गए। नदी के बीच, बाबा ने अधम सुल्तान को अपनी कीमती अंगूठी दिखाने के लिए कहा और चतुराई से नकली अंगूठी के साथ उसका आदान-प्रदान कर लिया। इब्राहिम इब्न अधम ने उस नकली बाबा को वह कीमती अंगूठी भेंट करनी चाही, परंतु चतुर बाबा ने यह कहते हुए लेने से इनकार कर दिया कि, 'ये कीमती गहने फकीर के लिए बेकार हैं, और फिर अंगूठी को नदी में फेंक दिया। राजा को यकीन हो गया कि तपस्वी वास्तव में सांसारिक लोभ और माया से दूर है। तथा एक महान संत हैं l
कुछ समय बाद, राजा के एक विश्वसनीय व्यक्ति ने अंगूठी के रहस्य का खुलासा किया, बाबा की धोखाधड़ी का पर्दाफाश हो गया। अंगूठी बाबा की कुटिया में दबी मिली। बाबा की धोखाधड़ी से राजा को आघात पहुंचा और संतों पर से उसका विश्वास उठ गया। उसने बाबा को कैद में डलवा दिया। फिर उसने अपने साम्राज्य के सभी साधू-संतों को बुलाया और पूछा कि क्या उन्हें 'खुदा' मिला है तो उसे भी अल्लाह से मिलाने में मदद करें लेकिन किसी के पास जवाब नहीं था। एक संत ने राजा से एक गिलास दूध की व्यवस्था करने को कहा। वही किया गया। तब उस संत ने राजा से कहा, राजा इस दूध में घी नहीं है। राजा ने पूछा कि दूध से घी कैसे प्राप्त होता है? संत ने प्रक्रिया बताई।
पहले दूध को दही में बदला जाता है, फिर उसका मंथन किया जाता है और फिर घी प्राप्त किया जाता है। इस उदाहरण से संत ने राजा को समझाया कि ईश्वर को प्राप्त करने का एक उचित तरीका है जो मानव जन्म में ही संभव है। एक गुरु बनाएं और सच्ची भक्ति करें। लेकिन राजा उनके उत्तर से संतुष्ट नहीं हुआ और संतों से नाराज़ होकर उसने सभी को कैद में डलवा दिया। वे सभी संत जेल के अंदर चक्की पीसते थे। वे सभी साधू ईश्वरप्रेमी आत्मा थे लेकिन सच्चा आध्यात्मिक गुरु ना मिलने के कारण मनमानी पूजा कर और करवा रहे थे । भगवान दयालु हैं और वह एक प्रबुद्ध संत के रूप में खुद को छिपा कर अपनी प्रिय आत्माओं की मदद करते हैं, उन्हें सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान का उपदेश देते हैं ताकि वे भक्ति करके मोक्ष प्राप्त कर सकें।
उन फंसी हुई प्रिय आत्माओं (ऋषि) और उनके प्रिय भक्त इब्राहिम, उसी सम्मन वाली आत्मा को कसाई ब्रह्म-काल से मुक्त कराने के लिए; सर्वशक्तिमान कबीर जी ने कुछ करिश्मे किए।
- दिव्य चमत्कार 1 - 360 चक्कियां सर्वशक्तिमान कबीर जी की कृपा से अपने आप चलने लगीं
- दिव्य चमत्कार 2 - ऊँट चराने वाले ग्रामीण के रूप में कबीर परमेश्वर का प्रकट होना
- दिव्य चमत्कार 3 - कबीर परमेश्वर का एक गाँव के यात्री के रूप में प्रकट होना
- दिव्य चमत्कार 4 - कबीर परमेश्वर ने सुल्तान अधम की दासी-सेविका का रूप धारण किया
- दिव्य चमत्कार 5 - सर्वशक्तिमान कबीर जी ने राजा को उनके पूर्वजों को दिखाया जो मृत्यु के बाद कुत्ते बन गए
- दिव्य चमत्कार 6 - इब्राहिम को दलदल से निकालने के लिए कबीर परमेश्वर का अंतिम प्रहार
- दिव्य चमत्कार 7 - सुल्तान ने काल लोक के सांसारिक सुखों को त्याग दिया
- ब्रह्म-काल के चक्रव्यूह में फंसे व्यक्ति को समझाना
दिव्य चमत्कार 1 - 360 चक्कियां परमेश्वर कबीर जी की कृपा से अपने आप चलने लगीं
कबीर भगवान ने ऋषि का वेश बनाया और बैल पर सवार होकर राजा अधम सुल्तान के महल के कार्यालय में जा पहुंचे और कहा कि बैल बताएगा कि अल्लाह कैसा है? अल्लाह कहाँ है? बैल परमेश्वर कबीर की कृपा से एक इंसान की तरह बोलने लगा और इब्राहिम से कहा 'मुझ पर बैठने वाला अल्लाहु अकबर है'। एक बैल को बोलता देख कर सुल्तान चौंक गया और वह भी प्रभावित हुआ। तब भगवान कबीर बैल सहित गायब हो गए और जेल के सामने खड़े हो गए। जैसा कि सैनिकों को निर्देश दिया गया था कि जो भी साधु या संत मिले उन्हें तुरंत कैद कर लें, उन्होंने कबीर परमेश्वर को कैद कर लिया। सिपाहियों ने कबीर साहेब को चक्की चलाने को कहा जैसा कि अन्य कैदी संत कर रहे थे। भगवान कबीर ने कहा हम सभी कैदी एक काम करेंगे या तो चक्की चलाएंगे या फिर अनाज डालेंगे। सैनिकों ने अनाज डालने के लिए सहमति व्यक्त की और सभी कैदियों को चक्की को चलाने के लिए कहा। कबीर साहेब ने सभी संतों को खड़े होकर आंखें बंद करने को कहा। कबीर साहब ने एक चक्की चलाई। अचानक, सभी 360 चक्कियां अपने आप चलने लगीं। कबीर परमेश्वर ने सैनिकों से कहा कि वे अनाज डालते रहें और जितना आटा चाहिए उतना पीस लें। फिर उन्होंने सभी संतों को अपनी आंखें खोलने के लिए कहा। उन सभी ने खुद को जेल के बाहर बल्ख शहर से एक किलोमीटर दूर एक जंगल में पाया। कबीर परमेश्वर ने सभी संतों को तुरंत नगर त्यागने को कहा। इस प्रकार ईश्वर ने अपने इस दिव्य चमत्कार से सभी संतों को मुक्त कराया। राजा को एक फकीर (कबीर) के इस दिव्य कार्य के बारे में बताया गया। राजा जेल में आया और अपने आप चल रही 360 चक्कियों को देखकर हैरान रह गया। बाद में चक्कियां अपने आप बंद हो गईं।
दिव्य चमत्कार 2 - ऊँट चराने वाले ग्रामीण के रूप में कबीर परमेश्वर का प्रकट होना
कुछ समय बाद, कबीर परमेश्वर रात में राजा इब्राहिम के निवास की छत पर हाथ में एक लंबी छड़ी लिए ऊंट चराने वाले ग्रामीण के वेश में प्रकट हुए। राजा गहरी नींद में सो रहा था। कबीर परमेश्वर ने छत पर लाठी पीटना शुरू कर दिया जिससे राजा की नींद खराब हो गई और वह क्रोधित हो गया, उसने अपने सैनिकों को उस व्यक्ति को पकड़ने का आदेश दिया जिसने उसकी नींद में खलल डाली ।
ऊंट चराने वाला ग्रामीण यानी भगवान कबीर जी को पकड़ कर राजा के सामने लाया गया। राजा ने पूछा, 'तुम कौन हो? तुम मेरी छत पर क्या कर रहे थे?
परमात्मा कबीर जी ने कहा, 'मैं ऊंट चराने वाला हूं। मेरा एक ऊंट खो गया है और उसकी तलाश में मैं आपकी छत पर आया। मैं एक 'कारवां' हूं। राजा को आश्चर्य हुआ और उसने कहा, 'ऊंट महल की छत पर कैसे आ सकता है? यह असंभव है। जाओ और ऊँट को जंगल में खोजो'।
कबीर परमेश्वर ने कहा 'हे इब्राहिम! जिस प्रकार ऊँट कभी छत पर नहीं मिलता, उसकी खोज जंगल में की जानी चाहिए, उसी प्रकार सिंहासन पर बैठ कर विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करने वाले को भगवान कभी नहीं मिल सकते। संतों में ईश्वर पाया जाता है। यह कह कर भगवान अंतरध्यान हो गए। सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम बेहोश हो गया और ज़मीन पर गिर गया। फिर, मंत्रियों और रानियों ने एक तांत्रिक को बुलाया जिसने राजा के दाहिने हाथ पर ताबीज़ बांध दिया और कहा कि वह भूत और प्रेत के प्रभाव में है, अब वह ठीक हो जाएगा।
राजा की सांसारिक कार्यों में अब कोई रूचि नहीं रही और वह शांत और परेशान रहने लगा। कबीर परमेश्वर पुन: कारागार में प्रकट हुए और शेष बंदियों के साथ चक्कियों को स्वत: चलाने का वही चमत्कार किया और उन सभी को भी मुक्त कर दिया।
इसके बाद, राजा ने कभी किसी ऋषि और संत को कैद नहीं किया। इसके बाद डर के मारे कोई साधु/संत उसके शहर में नहीं आता था। भगवान भी चाहते थे कि नकली गुरु राजा के पास न आएं ताकि वे सुल्तान अधम को गुमराह न कर सकें। कुछ समय बाद राजा सामान्य हो गया और फिर से अपने विलासितापूर्ण जीवन में खो गया ।
दिव्य चमत्कार 3 - कबीर परमेश्वर का एक ग्रामीण यात्री के रूप में प्रकट होना
भगवान कबीर फिर से एक ग्रामीण यात्री के रूप में कपड़े की एक गठरी को हाथ में पकड़े राजा के निवास पर प्रकट हुए। इब्राहिम ने पूछा, 'तुम कौन हो और यहाँ क्यों आए हो?' कबीर साहेब ने कहा, 'मैं एक यात्री हूं और आपकी धर्मशाला में एक रात रुकना चाहता हूँ । एक रात ठहरने का किराया बताओ'। राजा ने हँसते हुए कहा, 'हे भोले यात्री! यह कोई सराय नहीं है, यह मेरा महल है। मैं राजा हूं'। दयालु भगवान ने कहा 'इस महल में आप से पहले कौन रहता था?' इब्राहिम ने कहा, 'मेरे पिता, और मेरे पूर्वज'। भगवान ने कहा 'वे अब कहाँ हैं? मैं उनसे मिलना चाहता हूं'। राजा ने कहा 'वे अब जीवित नहीं हैं'। भगवान ने पूछा, 'तुम इस महल में कितने दिन रहोगे?'। राजा शांत हो गया। 'तुझे भी मरना है'। भगवान ने कहा 'हे भोले आदमी! ये सराय नहीं तो और क्या है'?
तेरे बाप-दादा पड़ पीढ़ी | वे बसे इसी सराय में गीद्दी ||
ऐसे ही तू चल जाई | ताते हम महल सराय बताई ||
अब तू तखत बैठकर भूली | तेरा मन चढ़ने को सूली ||
तब भगवान अंतर्ध्यान हो गए और राजा फिर से बेहोश हो गया। फिर किसी तांत्रिक को बुलाया गया। इस बार राजा के बाएं हाथ पर ताबीज बांध दिया और कहा कि राजा के साथ अब कुछ भी गलत नहीं होगा और चला गया।
दिव्य चमत्कार 4 - भगवान कबीर ने इब्राहिम अधम की दासी-सेवक का रूप धारण किया
अधम सुल्तान विलासितापूर्ण जीवन का आनंद ले रहा था। दिन के समय, राजा अपने नौलखा उद्यान (विभिन्न प्रजातियों के नौ लाख फल-वृक्षों वाला बगीचा) में विश्राम किया करता था । दासियाँ राजा के लिए बिस्तर बिछाती थीं और उसको चारों ओर से फूलों के बर्तनों से सजाती थीं। दासियों का पहनावा रानियों से अलग हुआ करता था। एक आत्मा को कसाई ब्रह्म-काल के जाल से छुड़ाने के लिए दयालु कबीर परमेश्वर अनेक प्रयास करते हैं। यह एक और दिव्य चमत्कार है।
एक दिन कबीर परमेश्वर ने राजा की दासी का वेष धारण किया। भगवान ने स्त्री रूप धारण किया और राजा के बिस्तर पर लेट गए। जब अधम सुल्तान आया और उसने अपने शाही बिस्तर पर एक 'बाँधी' (दासी) को लेटा देखा तो वह क्रोधित हो गया। उसने कोड़ा उठाया और लेटी हुई दासी (कबीर परमेश्वर) की कमर पर तीन बार जोरदार प्रहार किया, जिससे निशान रह गए। कबीर परमेश्वर बिस्तर से नीचे उतरे और एक बार रोने की क्रिया की और फिर वे ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे। राजा ने दासी का हाथ पकड़कर पूछा, 'तुम क्यों हंस रही हो?' भगवान ने कहा, 'मैं इस बिस्तर पर एक घड़ी यानि बाईस मिनट के लिए सिर्फ एक बार सोई और मुझे तीन चाबुकों से दंडित किया गया । मुझे हंसी आ रही है क्योंकि जो दिन रात इस गंदे बिस्तर पर सोएगा उसका क्या हाल होगा? मुझे तुम पर दया आती है, 'हे भोले आदमी'। यह देख राजा फिर बेहोश हो गया। जब उसे होश आया तो वह समझ नहीं पाया कि 'मेरे साथ क्या हो रहा है?'
मैं एक घड़ी सेज पर सोई | ताते मेरा यह हाल होई ||
जो सोवे दिवस और राता | उनका क्या हाल विधाता ||
गेब भये खवासा | सुल्तानी भये उदासा ||
यह कौन छलावा भाई | याका भेद समझ ना आई ||
सच्ची भक्ति के महत्व पर जोर देते हुए, भगवान कबीर ने निम्नलिखित भजन में भक्त दादू दयाल जी, गुरु नानक जी और सुल्तान अधम का उल्लेख किया है।
सत कबीर द्वारे तेरे पर एक दास भिखारी आया है, भक्ति की भिक्षा दे दीजो उम्मीद कटोरा लाया है||
सांभर में दादू दास मिले, फिर नानक को खर क्यास मिले||
सुल्तानी को हो ख्वास मिले, जिसका बिस्तर झाड़ बिछाया है||
भक्ति की भिक्षा दे दीजो उम्मीद कटोरा लाया है||
दिव्य चमत्कार 5 - सर्वशक्तिमान कबीर जी ने राजा को उनके पूर्वजों को दिखाया जो मृत्यु के बाद कुत्ते बन गए
एक बार राजा शिकार पर गया। हिरण का पीछा करते हुए वह गहरे जंगल में चला गया। वह और उसका घोड़ा बुरी तरह प्यासे थे। उसने देखा कि पास में फलों से लदे पेड़ों के बीच बगीचे में एक फकीर बैठा है और पानी से भरा एक बर्तन रखा है। सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम ऋषि के पास गया, पानी पिया और अपनी और घोड़े की प्यास बुझाई। उसने घोड़े को एक पेड़ से बाँधा तो देखा कि वहाँ तीन प्यारे कुत्ते भी बंधे हुए थे। राजा ने ऋषि का अभिवादन किया और उसे दो कुत्ते देने का अनुरोध किया। तपस्वी ने कहा, 'मैं तुम्हें ये कुत्ते नहीं दे सकता। मुझे इन्हें सबक सिखाना है। पूर्व जन्म में ये बल्ख नगर के शासक थे। मैं उनसे कहता था कि तुम अल्लाह को याद करो क्योंकि तुम सनातन नहीं हो और मरने के बाद तुम कुत्ते बन जाओगे। आज आप मानव जीवन में सभी सुखों को प्राप्त कर रहे हो और पूर्व जन्मों के गुणों के कारण स्वादिष्ट भोजन खा रहे हो।
यदि आप इस मानव जन्म में सच्ची भक्ति नहीं करेंगे तो आपको कुत्ते और अन्य प्रजातियों के जीवन में कष्ट उठाना होगा और आपको खाने के लिए अच्छा भोजन तो दूर भोजन भी नहीं मिलेगा। उन्होंने, मुझ ऋषि को मूर्ख समझकर मेरी बात नहीं सुनी। उन्हें केवल इस बात की चिंता थी कि उनके साम्राज्य और रानियों की देखभाल कौन करेगा? अब वे कुत्ते बन गए हैं। देख, मैंने उनके लिए हलवा तैयार किया है और इसमें सूखे मेवे भी डाले हैं लेकिन खाने को नहीं दूंगा। अगर वे खाने की कोशिश भी करेंगे तो मैं उन्हें खाने नहीं दूंगा और पीटूंगा । यह कहकर भगवान ने कुत्तों को लोहे के डंडे से पीटना शुरू कर दिया। कुत्ते बुरी तरह चिल्लाने लगे। तब भगवान ने सुल्तान से कहा कि चौथी जंजीर बल्ख शहर के वर्तमान शासक के लिए रखी है जो भौतिक सुखों से प्रभावित है और अल्लाहु अकबर को भूल गया है। वह भूल गया है कि मरने के बाद वह भी कुत्ता बनेगा।
मैं उसे कई बार कह चुका हूं कि अल्लाह की इबादत करो क्योंकि वह यहां इस सराय में स्थायी नहीं रहेगा। वह अल्लाह से नहीं डरता और निर्दोष संतों पर अत्याचार करता है। मैं बच गया हूँ क्योंकि मैं बहुत दूर हूँ। जब वह मर जाएगा और कुत्ता बन जाएगा तो मैं उसे इस जंजीर से बांध दूंगा'। ऋषि की बातें सुनकर और अपने पूर्वजों को कुत्तों के रूप में बंधे देखकर राजा डर गया। उसने कहा। 'मैं ही बल्ख का राजा हूं, कृपया मुझे क्षमा करें, और फकीर को दण्डवत् किया'। जब वह खड़ा हुआ तो उसे वहां कुछ नहीं मिला, ऋषि गायब हो गए थे। न कुत्ता, न झोपड़ी, न पानी, न बगीचा। तब राजा भयभीत हो गया और अपने महल में लौट आया।
दिव्य चमत्कार 6 - सुल्तान इब्राहिम को दलदल से निकालने के लिए कबीर परमेश्वर का अंतिम प्रहार
महल में अधम सुल्तान अब उदास रहने लगा था। एक दिन महल में एक कुत्ता आया जिसके सिर में घाव था और कई कीड़े उसके सिर को खुजला रहे थे। यह भी कबीर परमेश्वर की ही लीला थी। इब्राहिम को दलदल से निकालने के लिए यह अंतिम प्रहार था। कुत्ते ने कहा, 'हे इब्राहिम! मैं भी एक शासक था। जितने लोगों को मैंने युद्ध में मारा और जितने जानवरों का मैंने शिकार किया आज वे सभी कीड़े बन गए हैं और मेरा सिर खुजलाकर अपना बदला ले रहे हैं। मैं कुछ भी करने में असमर्थ हूं। आपकी भी यही स्थिति होगी। अपना भविष्य देखें। खुदा तुम्हारे पीछे घूम रहा है। आप अपने परिवार और साम्राज्य के स्नेह में अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं। इस चेतावनी के बाद सुल्तान अधम ने उसी रात महल को त्याग दिया।
दिव्य चमत्कार 7 - सुल्तान ने काल लोक के सांसारिक सुखों को त्याग दिया
एक मालिन (महिला माली) बगीचे के बाहर बेर बेच रही थी। इब्राहिम इब्न अधम सुल्तान भूखा था, लेकिन उसके पास बेर खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए उसने अपने कीमती ढाई लाख के जूते मालिन को बेचकर एक किलो बेर खरीदे। जब मालन इब्राहिम को बेर दे रही थी, तब उनमें से एक बेर भूमि पर गिर पड़ा। दोनों गिरे हुए बेर को लेने के लिए झुके और अपने होने का दावा करने लगे। उस समय, कबीर परमेश्वर वहां प्रकट हुए और उन्होंने मालिन को डांटा कि तुम एक बेर के लिए सुल्तान के साथ झगड़ा कर रही हो, जिसने अपने ढाई लाख के कीमती जूते तुमसे केवल एक किलो बेर खरीदने के लिए दे दिए। साथ ही, भगवान ने अधम सुल्तान को एक चांटा मारा कि 'हे मूर्ख! एक तरफ तो तुमने कीमती जूते बेचे, दूसरी तरफ तुम एक बेर के लिए झगड़ा कर रहे हो। ये कैसी कुर्बानी है? समझदारी से काम लो, धैर्य रखो। यह कहकर भगवान सुल्तान के सामने से अदृश्य हो गये।
जीवन का आगे का सफर ऐसा भी हो सकता है। आगे बढ़ते हुए, अधम ने देखा कि एक भिखारी सड़क पर सो रहा था जिसने अपना सिर एक पत्थर पर टिकाया हुआ था। उसी क्षण उसने अपना गद्दा और तकिया फेंक दिया। आगे सुल्तान ने देखा कि एक व्यक्ति अपने हाथों से नदी का पानी पी रहा है। फिर, उसने अपना लोटा (छोटा गोल धातु का बर्तन) भी फेंक दिया।
ब्रह्म-काल के चक्रव्यूह में फंसे व्यक्ति को समझाना
सुल्तान जा रहा था। रास्ते में तेज बारिश शुरू हो गई। मौसम सुहावना था। सुल्तान अधम ने एक किसान की झोंपड़ी देखी, जिसके पास दो एकड़ भूमि और एक बूढ़ी गाय थी। खुद को बारिश से बचाने के लिए सुल्तान उसकी झोपड़ी के पीछे चला गया। अच्छी बारिश, अच्छी फसल से पति-पत्नी खुश थे। वे रात में चर्चा कर रहे थे, 'वे बल्ख बुखारे के राजा से कहीं अधिक सुखी हैं'। सुल्तान सुबह तक वहीं रहा और विदाई के समय उसने किसान जोड़े को भौतिक सुखों को त्यागने और मोक्ष प्राप्त करने के लिए अल्लाह की भक्ति करने को कहा। उसने, उनसे कहा कि 'वह अधम सुल्तान है और उसने ईश्वर को प्राप्त करने के लिए अपना साम्राज्य छोड़ दिया है' लेकिन दम्पति ने उसकी बात का भरोसा नहीं किया और कहा, 'यदि ऐसा है, तो आप जैसा मूर्ख पृथ्वी पर नहीं है'।
सुल्तान ने कहा:-
गरीब, रांडी (स्त्री) डांडी (गाय) ना तजै, यह नर कहिए काग |
बलख बुखारा त्याग दिया, थी कोई पिछली लाग ||
इसके बाद सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम धरती के सुल्तान नहीं रहे बल्कि वे भक्ति के सुल्तान बने। कबीर परमेश्वर ने उसे शरण में लिया और दीक्षा दी। वह 'सुल्तान' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
इसका उल्लेख कबीर सागर अध्याय 'सुल्तान बोध' पृष्ठ 62 . में किया गया है।
प्रथम पान प्रवाना लेई | पीछे सार शब्द तोई देई ||
तब सतगुरु ने अलख लखाया | करी परतीत परम पद पाया ||
सहज चौका कर दीन्हा पाना (नाम) | काल का बंधन तोड़ बगाना ||
सर्वशक्तिमान कबीर हरियाणा के झज्जर जिले के छुड़ानी गाँव के गरीबदास जी से मिले और उन्हें दिव्य दृष्टि का आशीर्वाद दिया। तब संत गरीबदास जी ने सदग्रंथ में उल्लेख किया है।
गरीब, हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया।
जात जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
गरीब , अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड का एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सृजन हार।।
सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम की परीक्षा
सुल्तान अधम ने कई वर्षों से तपस्या कर रहे एक ऋषि की कुटिया देखी। सुल्तान ऋषि के पास गया। तपस्वी ने अधम से कहा कि वह यहां न रहें क्योंकि वहां भोजन और पानी उपलब्ध नहीं है। ऋषि ने कहा , 'आपको कहीं और जाना चाहिए'। सुल्तान इब्राहिम ने बताया, 'मैं आपका मेहमान बनकर नहीं आया हूं। मैं भगवान का अतिथि हूं। वह मेरे लिए भोजन की व्यवस्था करेगा। व्यक्ति का भाग्य पहले से तय होता है। 'हे धोखेबाज! तुम एक अच्छे नागरिक भी नहीं हो। तुम ईश्वर को पाना चाहते हो। नीयत ठीक न हो तो मनुष्य दान नहीं कर सकता। दान के बिना ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती। वह, जिसने जन्म दिया है वह भोजन भी प्रदान करेगा। इब्राहिम कुछ दूर जाकर बैठ गया। शाम को आसमान से एक थाली उतरी जिसमें तरह-तरह की सब्जियां, हलवा, खीर, रोटी और पानी रखा हुआ था। थाली एक कपड़े से ढकी हुई थी। इब्राहिम ने थाली से कपड़ा उठाकर वृद्ध साधक को दिखाया। उस वृद्ध साधक के लिए आकाश से दो रोटियां, जौ का आटा और एक लोटा (धातु का पात्र) जल आया। यह देखकर बूढ़ा साधक क्रोधित हो गया कि, हे 'प्रभु, मैं आपके द्वारा भेजा गया भोजन नहीं खाऊंगा। आप भेदभाव करते हैं। आप मेरे लिए जौ की सूखी रोटी भेजते हो, और इब्राहिम के लिए स्वादिष्ट भोजन भेजते हो'।
भगवान ने एक दिव्य घोषणा की (आकाशवाणी) 'हे भक्त! इब्राहिम एक धनी राजा था। उसके पास अरबों-खरबों का खज़ाना था। उसकी सोलह हजार रानियाँ और बच्चे थे। उसके पास अमीर मंत्री और अधिकारी थे। उसके कई परिचारक थे। उसने मुझे प्राप्त करने के लिए एक अत्यधिक भव्य जीवन छोड़ा है। मुझे उसे क्या नहीं देना चाहिए? आप अपनी हैसियत देखिए। आप एक घसियारे थे। दिन भर घास खोदते थे तो एक पैसा मिलता था। आप रोज़ सिर पर भारी बोझ ढोते थे। तुम्हारी कोई पत्नी नहीं थी, कोई माँ नहीं थी और न ही तुम्हारे पिता अमीर थे। मैं तुम्हें पकी हुई रोटियाँ भेजता हूँ और तुम तब भी नखरे दिखाते हो। अगर आप मेरी रज़ा मे नहीं रहते हो तो कहीं और जाकर बैठ जाइए। यदि आप भक्ति से विमुख हो गए हैं, तो आपकी घास काटने वाली खुरपी, और जाली यहाँ रखी हुई है, जाकर घास काटकर अपनी आजीविका का प्रबंध करें। अगर आप ईश्वर से कुछ पाना चाहते हैं तो मेरी इच्छा के विरुद्ध कार्य न करें। यदि भक्त में अभिमान है तो वह परमात्मा से कोसों दूर है। अगर कोई भगवान के भक्त का सम्मान करता है तो वह भगवान के करीब है।
सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम ने ईश्वर से अनुरोध किया कि, 'हे ईश्वर! मैं अपने अस्तित्व के लिए कड़ी मेहनत करूंगा और भक्ति भी करूंगा। यह खाना आप मेरे लिए मत भेजिए, मुझे जो कुछ भी मिलता है उसे खाकर मैं आपके चरणों में रहना चाहता हूं। आप मेरे लिए जो खाना भेज रहे हो उसे खाने के बाद मेरे मन में दोष पैदा हो सकते हैं और मैं गलतियाँ कर सकता हूँ। बूढ़ा भक्त भी इन सब बातों को सुन रहा था और उसे शर्म आ रही थी। उसने अनुरोध किया, 'हे भगवान! मेरी गलतियों को माफ कर दो। मैं आपकी इच्छा में राज़ी रहूँगा'। उस दिन के बाद से इब्राहिम जंगल से लकड़ियां काट कर बाज़ार में बेचता था और उस कमाई से वह खाना खरीद कर खाता था। वह महीने में आठ दिन खाता था और भक्ति में लगा रहता था।
भक्त का इरादा अलग होना चाहिए
कुछ वर्षों के बाद, इब्राहिम एक यात्रा पर निकला। एक अमीर आदमी का बगीचा था। उसे एक नौकर की आवश्यकता थी। उसने बगीचे की रखवाली के लिए सुल्तान को नियुक्त किया। एक वर्ष के बाद वह धनी व्यक्ति बगीचे में आया। उसने इब्राहिम से अनार लाने को कहा। सुल्तान अनार ले आया। अनार खट्टे थे। अमीर आदमी ने कहा कि 'एक साल में तुम्हें यह भी पता नहीं चल सका कि अनार कितने मीठे होते हैं? सुल्तान ने कहा, 'सेठ जी, आपने मुझे बगीचे की सुरक्षा के लिए रखा है, बगीचे को नष्ट करने के लिए नहीं'! रखवाला ही भक्षक बन जाए तो कैसा होगा? मैंने कभी कोई फल नहीं खाया, तो खट्टे-मीठे के बारे में मुझे कैसे पता चलेगा?’ अमीर आदमी ने अन्य नौकरों से पूछा, तो नौकरों ने कहा कि इस नौकर को दो रोटियां मिलती हैं, यह उन्हें खाता है, बड़बड़ाता है और बगीचे में घूमता रहता है। हमने उसे गुपचुप तरीके से भी देखा है। न तो उसने कभी कोई फल तोड़कर खाया और न ही गिरे हुए फल को खाया है। कुछ नौकरों ने उसे बताया कि वह बल्ख शहर का शासक है।
मैंने उसे दस साल पहले एक जंगल में देखा था जब वह शिकार कर रहा था। जब मैंने पूछा, 'ऐसा लगता है कि आप बल्ख शहर के सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम हैं, तो शुरू में उन्होंने मना कर दिया। फिर मैंने कहा, 'जिस समय आप शिकार कर रहे थे, उस समय मैंने आपको जंगल में देखा था। मेरे जीजा 'याकूब' आपकी सेना में एक महान अधिकारी हैं। उन्होंने हमें बताया कि राजा ने वैराग्य ले लिया है। उनका बेटा बल्ख शहर पर शासन कर रहा है'। फिर उन्होंने कहा, 'किसी को मत बताना'। धनवान ने उनके पैरों पर गिरकर क्षमा मांगी और बहुत सारा धन दिया और कहा कि 'आप इस धन को अपनी जीविका के लिए ले लें और भक्ति भी करते रहें। सुल्तान ने धन्यवाद किया और आगे बढ़ गए।
सेवक/भक्त की परिभाषा
एक बार की बात है, सुल्तान एक संत के आश्रम में गया और संत के विशेष अनुरोध पर कुछ समय वहीं रहा। तपस्वी का नाम 'हुकुम दास' था। वह अपने बारह शिष्यों फकीर दास, आनंद दास, कर्म दास, धरम दास आदि के साथ आश्रम में रहता था, लेकिन उनका व्यवहार दास जैसा नहीं था। यदि उनके गुरु उनसे कुछ काम करने के लिए कहते तो वे उसमें विलंब करते और कहते कि धरम दास की बारी थी, उसे करने के लिए कहें। धरम दास कहता 'आनंद दास की बारी है'। उनके व्यवहार को देखकर सुल्तान ने कहा;
दासा भाव नेडे़ नहीं, नाम धराया दास | पानी के पिये बिन, कैसे मिटे है प्यास ||
सुल्तान ने उन शिष्यों से कहा कि 'जब मैं राजा था; तब मैंने एक नौकर मोल लिया था'। मैंने उससे पूछा 'तुम्हें क्या खाना पसंद है?' नौकर ने उत्तर दिया, 'दास को वही पसंद है जो उसका स्वामी उसे खाने के लिए देता है'। मैंने पूछा, 'आप क्या चाहते हैं? आपको कौन सा काम करना पसंद है? उसने उत्तर दिया, 'जो भी काम मालिक ने करने को निर्देश दिया है वह मेरी पसंद है'। मैंने पूछा, 'तुम क्या पहनते हो?'। उन्होंने कहा, 'मैं मालिक द्वारा दिए गए फटे पुराने कपड़े पहनता हूं'। मैंने उसे मुक्त कर दिया और उसे बहुत सारे पैसे दिए। उसी बात का पालन करते हुए मैं अपने स्वामी के आदेश का पालन करता हूं। मैंने कभी अपनी इच्छा नहीं रखी। भगवान जो कुछ भी प्रदान करते हैं मैं उनकी इच्छा को स्वीकार करते हुए खाता हूं। मैं स्वयं को सेवक समझ कर सेवा करता हूँ। भगवान को प्रसन्न करने के लिए गुरुदेव को प्रसन्न करना आवश्यक है। उसके बाद, सभी शिष्य आज्ञाकारी ढंग से रहने लगे और अपने गुरु के आदेशों का पालन करते हुए आपस में अच्छा व्यवहार करने लगे और अपने जीवन को सफल बनाया।
सुल्तानी को 'सार शब्द' कैसे प्राप्त हुआ?
सर्वशक्तिमान कबीर जी ने एक आश्रम बनाया और रहने लगे। वे 'जिंदा बाबा' के नाम से प्रसिद्ध थे। पहले मंत्र की दीक्षा के कुछ महीनों के बाद सुल्तानी को सतनाम (दो शब्द का मंत्र) की दीक्षा दी गई, जिनमें से एक 'ओम' मंत्र है, और दूसरा उपदेश के समय बताया जाता है। सुल्तान कई बार परमात्मा के दर्शन के लिए आता रहा। 'सतनाम' के बाद योग्य होने पर साधक को 'सार शब्द' की दीक्षा दी जाती है। एक वर्ष के बाद सुल्तान ने विनम्रतापूर्वक अपने आश्रम में गुरु जी से 'सारनाम' की दीक्षा के लिए प्रार्थना की तो भगवान ने उन्हें एक वर्ष बाद उसी दिन आने के लिए कहा और कहा कि मैं आपको 'सारनाम' की दीक्षा दूंगा। उस दिन आप मुझे मिलने के लिए कभी भी आ सकते हैं। इस तरह ग्यारह साल बीत गए। बीच-बीच में वह दर्शनों के लिए नियमित रूप से आता था लेकिन दीक्षा लेने के लिए 'सारनाम' का एक दिन निश्चित था। जब ग्यारहवें वर्ष में सुल्तान 'सारनाम' की दीक्षा के लिए आ रहा था, वह एक घर के पास के रास्ते से गुज़र रहा था। उस घर की गृहिणी ने छत की सफाई की और छत से कचरा गली में फेंक दिया जो गलती से सुल्तान भक्त पर गिर गया। सुल्तान उस पर चिल्लाया, 'क्या तुझे दिखाई नहीं देता? गली में इंसान भी आते-जाते हैं'।
यदि मैं राज्य त्याग कर यहां न आया होता, तो मैं तुम्हारी खाल उतार देता। उस गृहिणी ने माफ़ी मांगी।
वह भी सर्वशक्तिमान कबीर जी की शिष्या थी। जब उसने आश्रम में सुल्तान को देखा तो उसने कबीर परमेश्वर से पूछा, 'हे गुरुदेव! जो भक्त एकांत में बैठा है, क्या वह कभी राजा था?' जिंदा बाबा ने पूछा, 'क्या बात है बेटी? यहां राजा और गरीब में कोई अंतर नहीं है। आपने यह सवाल क्यों पूछा है? वह पहले बल्ख शहर का राजा था। मैंने उसे सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान बताया तो उसने साम्राज्य छोड़ दिया। वह कड़ी मेहनत करता है और लकड़ियां बेचकर अपनी आजीविका कमाता है। भक्ति भी करता है। उस बहन ने कहा, गलती से मैंने उस पर कचरा फेंक दिया तो वह नाराज़ हो गया और कहा, 'अगर आज मैं राजा होता तो मैं तुम्हारी खाल उतार देता'।
सत्संग के बाद योग्य शिष्यों को 'सार शब्द' के लिए बुलाया गया। जब सुल्तान की बारी आई तो ज़िंदा बाबा ने कहा 'तुम बादशाह हो, सार शब्द उस नौकर को दिया जाता है जिसने मानव शरीर को केवल राख मान लिया हो । सुल्तानी ने कहा , 'मैंने कई सालों पहले राज्य को छोड़ दिया है'। गुरु जी ने कहा, 'मेरे लिए कुछ भी अज्ञात नहीं है। आपने शासन छोड़ दिया है लेकिन राज्य भाव नहीं त्यागा है। आप एक साल बाद फिर से, 'सारनाम' दीक्षा लेने आना।
एक साल बाद सुल्तान 'सारनाम' लेने उसी गली से निकल कर जा रहा था। गुरु जी ने उसी शिष्या से कहा कि राजा 'सार शब्द' लेने आ रहा है। आप गाय के गोबर, राख और पानी का कचरा मिश्रण तैयार करें और उस पर डालें और मुझे उसकी प्रतिक्रिया बताएं। ज़िंदा बाबा के कहने पर उसने वैसा ही किया और बाद में माफ़ी भी मांगी। तब सुल्तान ने कहा, 'बहन, यह तो मिट्टी पर मिट्टी गिरी है, कोई बात नहीं, मैं नहाकर अपने कपड़े धो लूंगा'। बहन ने गुरुदेव को सुल्तान की प्रतिक्रिया बताई तो कबीर परमेश्वर ने उन्हें 'सार शब्द' प्रदान किया और कहा, 'बेटा! आज तुम दास बने हो, अब तुम्हारा उद्धार निश्चित है।
‘मुक्ति बोध’ पुस्तक लेखक है जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ‘सुमरण के अंग’ में वाणी नं. 103, ‘पतिव्रता का अंग’, वाणी नं. 32-33 के सरलार्थ में लिखा है।
गरीब, सोला सहंस सुहेलियां, छाडे़ मीर दिवान। बलख बुखारा तजि गये, देख अधम सुलतान।।32।।
गरीब, सुलतानी पतिब्रत है, छाड्या बलख बुखार। मन मंजन अबिगत रते, सांई का दीदार।।33।।
सरलार्थ:– अब्राहिम सुल्तान अधम को जब परमेश्वर का ज्ञान हुआ तो परमात्मा पति के लिए समृद्ध राज्य त्याग दिया। सोलह हजार स्त्रिायाँ, अठारह लाख घोड़े-घोड़ी, अन्य धन को त्यागकर परमात्मा के लिए बेघर हो गए। फिर कभी राज्य की इच्छा मन में नहीं आई। भूख-प्यास, गर्मी-सर्दी को सहन किया, परंतु परमात्मा पति के मार्ग पर डटे रहे। पतिव्रता धर्म का पालन किया, मोक्ष पाया।
इसलिए भक्तों को इस कथा से सीख लेनी चाहिए, 'सार शब्द' लेने में जल्दबाजी न करें। अपने अंदर के सभी दोषों को सामान्य करें, विवेक से काम लें, तब मोक्ष निश्चित है।
राजा श्रेष्ठ है या भक्त
एक बार सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम अपने शहर के बाहर एक तालाब के पास जाकर बैठ गया। उसका पुत्र राजा था। जब उसे पता चला तो वह हाथी पर सवार हो कर अपनी मण्डली के साथ तालाब पर पहुँच गया और अपने पिता को घर लौटने के लिए कहा। सुल्तान अधम ने मना कर दिया। बेटे ने कहा, 'आपने खुद का क्या हाल बना लिया है? यहाँ आप आराम से रहें, आप एक भिखारी के रूप में कष्ट उठा रहें हैं। आज सब कुछ मेरे आदेश से होता है'। सुल्तान ने कहा, 'जो भगवान कर सकता है, राजा कभी नहीं कर सकता'। बेटे ने कहा, 'आप आज्ञा दीजिए। मैं वही करूंगा। आपको हमारे साथ रहना होगा'। सुल्तान मान गया और बोला, 'मैंने तालाब में सुई डाल दी है । तालाब से सुई निकालो और मुझे लौटा दो। राजा ने सिपाहियों, गोताखोरों को बुलाया, जाल मंगवाया , सब कोशिश की लेकिन उनके प्रयास व्यर्थ गए। बेटे ने कहा, 'पिताजी! मैं एक सुई के स्थान पर एक हजार सुइयां लाऊंगा। क्या आपका अल्लाह इस सुई को निकाल सकता है?'
तब सुल्तान ने कहा, 'हे पुत्र! अगर मेरा अल्लाह इस सुई को निकाल देगा, तो क्या तुम भक्ति करोगे?' क्या आप सन्यास ले लोगे? बेटे ने कहा, 'पहले आप अपने अल्लाह के जरिए इस सुई को बाहर निकालो, फिर मैं सोचूंगा'। इब्राहिम ने कहा, 'मछलियों, भगवान की बेटी, मेरी (दास की) एक सुई तुम्हारे तालाब में गिर गई है। कृपया मेरी सुई बाहर निकालो'। कुछ ही क्षणों के बाद, एक मछली इब्राहिम के पास अपने मुँह में सुई लिये हुए किनारे पर आई। इब्राहिम ने सुई पकड़ ली और मछली को हाथ जोड़कर धन्यवाद किया । तब सुल्तान ने कहा, 'बेटा! भगवान जो कर सकते हैं, वह मानव चाहे राजा भी क्यों ना हो, नहीं कर सकता। अब, क्या तुम भक्ति करोगे?'। बेटे ने कहा, 'भगवान ने आपको सिर्फ एक सुई दी है, मैं आपको मोती और हीरे दे सकता हूं। मैं अपने बुढ़ापे में भक्ति करूंगा'। भक्त इब्राहिम खड़ा हुआ और अपनी गुफा की ओर चल दिया।
विकार जैसे काम, क्रोध, मोह, वासना नष्ट नहीं होते, वे शांत हो जाते हैं
विकार मरे ना जानियो, ज्यों भुभल में आग |
जब कर्रेलय धधकही, बचे सतगुरु शरणा लाग ||
इब्राहिम सुल्तान एक बार मक्का गया । उसका उद्देश्य भ्रमित मुस्लिम भक्त जो हज के लिए या वेसे वहाँ आते हैं उन्हें समझाना था, इसलिए वह कुछ दिन वहीं रहा। एक हज यात्री ने बल्ख शहर में जाकर बताया कि इब्राहिम मक्का में रहता है। जब बालक ने अपने पिता से मिलने की ज़िद की, तब उसकी माता और नगर के कुछ स्त्री-पुरुष उनके साथ मक्का जाकर इब्राहिम से मिले। इब्राहिम अपने शिष्यों को शिक्षा देते थे कि बिना दाढ़ी-मूंछ वाले लड़के और किसी परायी स्त्री को नहीं देखना चाहिए। ऐसा करने से उनके प्रति आकर्षण बढ़ जाता है। अपने लड़के को देख कर इब्राहिम से रहा नहीं गया, वह बच्चे को देखता रहा। लड़का 13 साल का था। शिष्यों ने कहा कि 'गुरुदेव आप हमें सिखाते हैं कि बिना दाढ़ी और मूंछ वाले बच्चे को ज्यादा देर तक नहीं देखना चाहिए पर आप उसे देख रहे हो। इब्राहिम ने कहा, 'मुझे नहीं पता कि मैं उसकी ओर क्यों आकर्षित हूं? उसी समय एक वृद्ध ने कहा, राजा ! यह तुम्हारी रानी है और यह तुम्हारा पुत्र है। जब आपने राज्य का त्याग किया था , उस समय वे गर्भ में था। वह तुमसे मिलने आया है'। उसी समय लड़के ने पिता के पैर छुए और उनकी गोद में बैठ गया।
इब्राहिम की आंखों में प्रेम के आंसू छलक पड़े। ईश्वर की ओर से आकाशीय घोषणा हुई (आकाशवाणी) कि सुल्तानी, तुमने मुझसे प्यार नहीं किया। आप अपने परिवार से प्यार करते हैं, घर जाओ। उसी समय, इब्राहिम चौंक गया और अपनी आँखें बंद करके प्रार्थना की, 'भगवान यह मेरे नियंत्रण से बाहर है, या तो मुझे मार डालो या इस लड़के को मार डालो'। उसी समय लड़का मर गया, इब्राहिम उठा और चला गया। बल्ख के लोग लड़के के अंतिम संस्कार की तैयारी करने लगे।
भगवान को पाने के लिए भक्त को हर कसौटी पर खरा उतरना पड़ता है, तभी सफलता मिलती है। भगवान ने तुरंत उस लड़के के जीव को मानव जीवन दिया और उसे अपने भक्त के घर में जन्म दिया। बचपन से ही उस आत्मा को ईश्वर का मार्ग मिल गया।
एक बार सभी भक्त जिंदा बाबा के आश्रम में सत्संग में एकत्रित हुए। वह लड़का उस समय चार साल का था। परमेश्वर की कृपा से, उसका बिस्तर और इब्राहिम का बिस्तर एक साथ रखा गया था। लड़के ने इब्राहिम को देखकर कहा, हे पिता, आपने मुझे मक्का में क्यों छोड़ दिया? मैं अब एक भक्त के घर में पैदा हुआ हूँ, देखो अल्लाह ने मुझे तुम्हारे साथ फिर से मिला दिया है'। जब यह बात गुरु जी के ध्यान मे लाई गयी, तब ज़िंदा बाबा (कबीर परमेश्वर) ने बताया कि यह इब्राहिम का बेटा है जो मक्का में मरा था। अब भगवान ने इस प्राणी को भक्त के घर में जन्म दिया है। लड़के की मौत से इब्राहिम दुखी हुआ था लेकिन उसने किसी के साथ साझा नहीं किया। उस दिन उसने कहा, "हे दया के सागर! तुम सर्वज्ञ हो, आज मेरा हृदय हल्का हो गया है। मैं लगातार सोच रहा था, भगवान ने यह क्या किया?'। उसकी माँ वापस घर कैसे जाएगी? आज मेरी आत्मा पूरी तरह से शांत है। जिंदा बाबा ने लड़की की पूर्व माँ यानी इब्राहिम की पत्नी को संदेश भेजा कि वह आश्रम आ जाए। लड़के और उसके नए माता-पिता और इब्राहिम को भी बुलाया गया और उस लड़के को उसकी माँ से मिलवाया। उसे देखकर लड़के ने तुरंत कहा, 'माँ ! आप मुझे मक्का में छोड़ कर चले गए थे ।' वहां भगवान आए, देखो वे बैठे (जिंदा बाबा की ओर इशारा करते हुए कहा)। वह मुझे साथ ले गये और उनके घर छोड़ आए । फिर मेरा इस माँ से जन्म हुआ।
अब, मैंने दीक्षा ली है और पहले मंत्र का जाप करता हूँ। 'हे माँ! आप भी गुरु जी से दीक्षा ले लो, आपका कल्याण हो जाएगा'। इब्राहिम की पत्नी ने दीक्षा ली और कहा, 'इस लड़के को मेरे साथ भेज दो'। भगवान कबीर जी, जिंदा बाबा ने कहा कि अगर उसे उस नर्क में (राजा की चकाचौंध में) रखना होता तो वह क्यों मरता? अब आप आश्रम में आकर हर महीने सत्संग में बच्चे को मिल जाया करो। इब्राहिम को उस लड़के से अपनापन नहीं लगा था क्योंकि वह किसी और के शरीर से पैदा हुआ था। लेकिन अब उसका भ्रम, और मन की मूर्खता नष्ट हो गई। जो वह मन ही मन कहता था कि अल्लाह को ऐसा नहीं करना चाहिए था। अब, उसे पता चला कि भगवान जो करता है अच्छा करता है। भले ही वह उस समय आपको अच्छा न लगे। सभी जीव अल्लाह के हैं। वह सबका हित सोचता है। हम अपने हितों के बारे में सोचते हैं। रानी को भी लड़के में वह भाव नहीं था, लेकिन आत्मा वही थी। इसलिए मन में मां की ममता जगती थी, तब उसे देखकर उसे शांति मिलती थी। यह कारण बना कर भगवान ने रानी और बच्चे दोनों को मुक्त कर दिया।
भक्त तरूवर (वृक्ष) जेसे स्वभाव का होता है
एक बार एक जहाज में एक धनी व्यक्ति व्यापार के लिए जा रहा था। उसके साथ रसोईया और मज़ाक करने वाले लोगों की मण्डली भी थी। यह एक लंबी यात्रा थी, इसमें एक महीना लगना था। मज़ाकिया लोगों को एक ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत होती है जिस पर वे मज़ाक कर सकें। ढूंढने पर उन्हें इब्राहिम मिला, तो उसे साथ ले गए। उन्होंने सोचा कि वह एक भिखारी है, जिसे भोजन की ज़रूरत है, हम प्रदान कर देंगे । समुद्र में बहुत दूर जाने के बाद धनी व्यक्ति के मनोरंजन का कार्यक्रम शुरू हुआ। वे इब्राहिम का मज़ाक उड़ा रहे थे कि एक मूर्ख इब्राहिम था। वह उसी पेड़ की डाली पर बैठा था जिसे वह काट रहा था। वह गिर गया और मर गया। वे सब ज़ोर से हँसे। इस तरह वे काफी देर तक इस तरह की अभद्र टिप्पणी करते रहे। इब्राहिम बहुत दुखी हुआ, उसने सोचा कि यह पीड़ा महीनों तक बनी रहेगी। न भक्ति कर पाऊंगा और न चैन से जी पाऊंगा।
उसी समय, एक आकाशवाणी हुई, 'हे भक्त! यदि तुम कहो तो मैं इन मूर्खों को मार डालूं और जहाज को डुबो दूं और तुम्हारी जान बचा लूँ। इन्होनें आपको चोट पहुंचाई' है। यह आवाज़ सुनकर जहाज के सभी लोग डर गए। इब्राहिम ने कहा, 'हे अल्लाह! यह कलंक मेरे माथे पर मत लगाना। वे अज्ञानी हैं, इतने लोगों को मारने के बजाय, मुझे मार डालो या इन्हें अच्छी समझ दें। इन्हें भक्ति करनी चाहिए और कल्याण करवाना चाहिए'। जहाज के मालिक सहित सभी यात्रियों ने इब्राहिम से माफी मांगी और भगवान द्वारा बताए आध्यात्मिक ज्ञान को सुना। उन्होंने उसे आदर के साथ अपने पास रखा और जहाज में उसको भक्ति करने के लिए अलग स्थान दिया। इब्राहिम ने उन्हें सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान समझाया और आश्रम में लेजाकर गुरु जी से दीक्षा दिलवाई। इब्राहिम स्वयं दीक्षा देते थे। जब यह बात जिंदा बाबा यानी परमेश्वर कबीर जी को इब्राहिम की उपस्थिति में बताई गई कि इब्राहिम दीक्षा देते हैं तब भगवान ने कहा, 'हे भक्त! तुम गलती कर रहे हो। आप नाम दीक्षा देने के अधिकारी नहीं हैं'। उस दिन के बाद, इब्राहिम ने दीक्षा देना बंद कर दिया और अपने शिष्यों को फिर से गुरु जी से नाम दीक्षा लेने के लिए कहा। उसने माफी मांगी और अपना नाम शुद्ध करवाया और भविष्य में इस गलती को नहीं दोहराने का वादा किया।
निष्कर्ष
दयावान कबीर परमात्मा उस आत्मा को मुक्त कर देते हैं जो किसी मानव जन्म में उनकी शरण में आती है, चाहे कुछ और जन्म क्यों न लगें। वह सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान का उपदेश और आत्मा को आशीर्वाद देते हैं तथा मोक्ष प्रदान करते हैं। ऐसा ही सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम के साथ भी हुआ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कबीर जी वर्तमान में पुण्य आत्माओं को मुक्त करने के लिए अवतरित हुए हैं। महान तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज सर्वशक्तिमान कबीर जी हैं। यह उन भक्तों को सलाह है जो भगवान की खोज करना चाहते हैं। आप सभी कबीर जी की शरण लें तथा मोक्ष प्राप्त करके अपने मूल अमर निवास स्थान 'सतलोक' में वापस जा सकते हैं।
FAQs : "सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम (बल्ख के राजा) की मोक्ष की कहानी"
Q.1 इस लेख के अनुसार अबू बेन अधम कौन थे?
अबू बेन अधम को सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम के नाम से भी जाना जाता है। वह एक मुस्लिम राजा थे और उन्होंने बल्ख शहर पर शासन किया था। उन्हें पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी स्वयं आकर मिले थे और उन्हें सच्चा अध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया था।सूक्ष्मवेद में यह प्रमाण है कि वह अपने पिछले जन्म में सम्मन नाम के मुनियार थे और कबीर साहेब जी के शिष्य थे। इतना ही नहीं उन्होंने अपने गुरुदेव यानि कि कबीर साहेब जी के लिए अपने बेटे का शीर्ष भी काट दिया था, लेकिन फिर भी वह मोक्ष से वंचित रह गए थे। फिर कई जन्मों के संचित आध्यात्मिक धन के कारण वे राजा बने और सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने कबीर साहेब जी की शरण ग्रहण करने से पहले एक राजा के रुप में शासन किया था। लेकिन जब उन्हें कबीर साहेब जी ने सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान समझाया तो उन्होंने अपना सिंहासन त्याग दिया।
Q.2 इस लेख के अनुसार बल्ख बुखारा के राजा कौन थे?
सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम बल्ख बुखारा के राजा थे। उनके पास बहुत धन था और वह बहुत शक्तिशाली राजा थे। लेकिन सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के बाद उन्होंने अपना राज त्याग दिया था। कबीर साहेब जी उन्हें कई रूपों में आकर मिले जैसे कि एक संत, एक साधारण ग्रामीण, एक यात्री आदि। फिर उसके बाद कबीर साहेब जी ने ही उन्हें सिंहासन त्याग कर सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान की खोज करने की प्रेरणा दी थी।
Q. 3 क्या अबू बिन अधम एक अच्छे इंसान थे?
जी हां बिल्कुल, अबू बेन अधम या सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम बहुत ही नेक इंसान थे। उन्होंने कबीर साहेब जी के दिए सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान से प्रभावित होकर अपना जीवन मोक्ष प्राप्त करने के लिए समर्पित कर दिया था। इतना ही नहीं उन्होंने अपना सिंहासन त्याग दिया था और ईश्वर के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा दिखाई। इस तरह सभी बुराईयां और आरामदायक जीवनशैली को छोड़कर ईश्वर के बताए आध्यात्मिक ज्ञान को अपनाया।
Q.4 सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम को मोक्ष प्राप्त करने की प्रेरणा कहां से मिली?
सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम को मोक्ष प्राप्त करने की प्रेरणा कबीर साहेब जी से मिली। कबीर साहेब जी सुल्तान इब्राहिम को विभिन्न रुप धारण करके मिले। जिसमें एक संत, ऊँटों की देखभाल करने वाला एक ग्रामीण, एक भटकता हुआ यात्री और अन्य रुपों में। कबीर साहेब जी ने उनका मार्गदर्शन किया। उन्होंने सुल्तान इब्राहिम को अपना सिंहासन त्याग कर सच्चे आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
Q.5 इस लेख के अनुसार सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम के जीवन के बारे में वर्णित अमर कथा का क्या महत्त्व है?
सुल्तान इब्राहिम इब्न अधम के जीवन से यह प्रेरणा मिलती है कि भौतिक सुख के पीछे दौड़ने के बजाय मनुष्य को अपने आध्यात्मिक विकास और मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। इससे यह भी पता चलता है कि मनुष्य के जीवन का मुख्य उद्देश्य जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त होना है। लेकिन मोक्ष की प्राप्ति केवल सच्चे आध्यात्मिक मार्गदर्शक और सर्वशक्तिमान परमेश्वर कबीर साहेब जी की कृपा से ही प्राप्त हो सकती है।
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Preetpal Singhal
इस लेख में वर्णित अमरकथा एक ऐसे व्यक्ति के बारे में है, जो ईश्वर के प्रति समर्पित था। मेरा भी ईश्वर में दृढ़ विश्वास है और मैं बुरी आदतों से भी दूरी बनाकर रखता हूं। मैं पांचों विकारों को नियंत्रित करने की भी कोशिश करता हूं, लेकिन निराशा ही हाथ लगती है। इसके अलावा मैं आध्यात्मिक संतों द्वारा सुझाए गए विभिन्न तरीके भी अपनाता हूं जैसे कि ध्यान क्रिया आदि। लेकिन मुझे कोई लाभ नहीं मिलता। इसलिए मैं अपने पांचों विकारों पर काबू करने के लिए सही तरीके की खोज कर रहा हूं।
Satlok Ashram
प्रीतपाल जी, आप जी ने हमारे लेख को पढ़कर अपने विचार व्यक्त किए, उसके लिए आपका धन्यवाद। देखिए मनुष्य में पांच विकार त्रिदेवों के तीन गुणों के प्रभाव के कारण होते हैं। लेकिन सच्चे गुरु से सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करके उसके अनुसार भक्ति करने से पांचों विकारों पर काबू पाया जा सकता है। अधिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के प्रवचनों को यूट्यूब चैनल पर सुनिए। इसके अलावा आप "ज्ञान गंगा" पुस्तक भी पढ़ सकते हैं और अपने सभी प्रश्नों के उत्तर जान सकते हैं।