कबीर प्रकट दिवस परमात्मा कबीर साहेब के धरती पर प्रकट होने के अवसर पर मनाया जाता है। भगवान कबीर साहेब भारत में उत्तर प्रदेश के काशी में लहरतारा तालाब पर एक कमल के फूल पर अवतरित हुए थे। नीरू-नीमा उन्हें वहां से उठाकर घर ले गए थे जो कि उनके मुँह बोले माता-पिता कहलाए। लोकवेद के कारण कबीर परमेश्वर जी को पूरी दुनिया एक जुलाहा, कवि या संत मानती है । पवित्र वेद भी कबीर परमेश्वर जी की महिमा गाते हैं। पवित्र ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94, मन्त्र 1 और मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17 से 20 में लिखा है कि वह परमेश्वर इस धरती पर सहशरीर आते हैं और अपना ज्ञान दोहों व लोकोक्तियों के माध्यम से पूरी दुनिया को बताते हैं।
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जानिए कबीर परमेश्वर जी की वास्तविक जीवन कहानी और लीलाएं। जब कबीर जी इस धरती पर 600 साल पहले अवतरित हुए थे।
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कबीर प्रकट दिवस तिथि
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कबीर प्रकट दिवस क्यों मनाया जाता है?
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भगवान कबीर साहेब जी का काशी में रहना: संक्षिप्त जीवनी
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भगवान कबीर जी का नीरू और नीमा को बच्चे के रूप में मिलना
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भगवान कबीर जी का पोषण एक कंवारी गाय के दूध से हुआ
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भगवान कबीर जी ने गुरु बनाया
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परमेश्वर कबीर जी के अन्य चमत्कार
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भगवान कबीर जी आध्यात्मिक ज्ञान समझाते थे
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शेख तकी ने कबीर परमेश्वर को मारने की 52 बार कोशिश की
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कलयुग के 5505 वर्ष 1997 में पूरे हुए
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परमेश्वर कबीर जी ने मगहर में शरीर छोड़ा
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अन्य संप्रदाय भी कबीर प्रकट दिवस मनाते हैं
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कबीर प्रकट दिवस कैसे मनाया जाता है?
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दहेज मुक्त विवाह: रमैणी
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रक्तदान और शरीर दान शिविर
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मुफ्त भोजन परोसना
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वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान के बारे में जागरूकता फैलाना
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धार्मिक पाखंडों के खिलाफ जागरूकता फैलाना
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हम हर साल कबीर प्रकट दिवस क्यों मनाते हैं?
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कबीर जी ने गरीब दास जी को सतज्ञान दिया था
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FAQs
कबीर प्रकट दिवस 2025 तिथि
वर्ष 2025 में, 628वां कबीर प्रकट दिवस 11 जून को मनाया जा रहा हैं जो कि हर साल ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। सन 1398 में कबीर परमेश्वर इसी दिन काशी में लहरतारा तालाब पर कमल के फूल पर प्रकट हुए थे। इस शुभ अवसर के उपलक्ष्य में 9 से 11 जून 2025 तक तीन दिवसीय अखंड पाठ और भंडारे का आयोजन होने वाला है। यह आयोजन देश-विदेश के 11 सतलोक आश्रम:
- सतलोक आश्रम कुरूक्षेत्र, हरियाणा, भारत
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सतलोक आश्रम भिवानी, हरियाणा, भारत.
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सतलोक आश्रम मुंडका, दिल्ली, भारत.
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सतलोक आश्रम शामली, उत्तर प्रदेश, भारत.
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सतलोक आश्रम खमाणो, पंजाब, भारत.
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सतलोक आश्रम धूरी, पंजाब, भारत
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सतलोक आश्रम सोजत, राजस्थान, भारत.
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सतलोक आश्रम इंदौर, मध्य प्रदेश, भारत.
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सतलोक आश्रम बैतूल, मध्य प्रदेश, भारत.
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सतलोक आश्रम धनाना धाम, हरियाणा, भारत.
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सतलोक आश्रम धनुषा, नेपाल
में आयोजित होता हैं।
कबीर प्रकट दिवस क्यों मनाया जाता है?
कबीर प्रकट दिवस कबीर परमेश्वर जी के 600 साल पहले काशी में लहरतारा तालाब पर अवतरण होने के अवसर पर मनाया जाता है। कबीर परमेश्वर जो हम सभी जीव आत्माओं के जनक हैं व सतलोक और सारी सृष्टि के रचनहार हैं इस धरती (मृत्यु लोक) पर सभी जीव आत्माओं को तत्वज्ञान समझाने के लिए व मोक्ष मार्ग दिखाने तथा सच्ची भक्ति का मार्ग बताने के लिए आए थे जिससे हम सब आत्माएं सतलोक की प्राप्ति कर सकते हैं।
कबीर परमेश्वर जी ने एक जुलाहे के रूप में जीवन व्यतीत किया, हम सभी को यह दिखाने के लिए कि जिसको भगवान पाना है उसे धन, दौलत व उच्च जाति की ज़रूरत नहीं होती। कबीर परमेश्वर का न तो जन्म होता है न उनकी मृत्यु होती है। कबीर परमेश्वर जी की 120 वर्ष की लीलाओं में उन्होंने कई चमत्कार किए और दर्शाया कि वह पूर्ण परमात्मा हैं।
भगवान कबीर साहेब जी का काशी में रहना: संक्षिप्त जीवनी
कबीर परमेश्वर जी 1398 (विक्रमी संवत् 1455) में ज्येष्ठ शुद्धि की पूर्णिमा में ब्रह्म मुहूर्त के समय (सूर्य उदय से डेढ़ घंटे पहले) लहरतारा तालाब के ऊपर एक कमल के फूल पर एक नवजात शिशु के रूप में प्रकट हुए। उस दिन अष्टानंद ऋषि वहां अपनी साधना कर रहे थे, उन्होंने आकाश से एक गोला आता हुआ देखा जिससे उसकी आँखें चौंधिया गयी। आँखें बंद करने पर उन्होंने एक बालक का रूप देखा, जब उन्होंने दुबारा आँखे खोली तब तक वह प्रकाश लहरतारा तालाब के एक कोने में सिमट गया था।
अष्टानंद ऋषि अपने गुरुदेव स्वामी रामानन्द जी के पास यह पूछने गए कि क्या यह मेरी कोई भक्ति की उपलब्धि है या यह मेरा कोई भ्रम है। स्वामी रामानन्द जी बोले कि यह न तो आपकी भक्ति की उपलब्धि है न आपका भ्रम। ऐसी गतिविधि ऊपर के लोकों से कोई अवतार या सिद्ध पुरुष जब धरती पर आते हैं तब करते हैं और वे माँ के गर्भ में आकर शरण लेते हैं। स्वामी रामानन्द जी को उतना ज्ञान नहीं था कि वह परमेश्वर कभी जन्म नहीं लेता।
भगवान कबीर जी का नीरू और नीमा को बच्चे के रूप में मिलना
निःसंतान दंपत्ति नीरू और नीमा लहरतारा तालाब में ब्रह्म मुहूर्त के समय स्नान करने जाते थे। नीरू और नीमा उसी जन्म में हिंदू-ब्राह्मण गौरीशंकर और सरस्वती थे। उन्हें ज़बरदस्ती मुसलमान बना दिया गया था। इसलिए, उन्होंने कपड़े बुनना (जुलाहे का काम) शुरू कर दिया था।
उस दिन स्नान के लिए जाते वक्त रास्ते में नीमा रो रही थी और अपने भगवान शिव से प्रार्थना कर रही थी कि काश! उन्हें भी एक बच्चा हो जाता जिससे उनका जीवन सफल हो जाता। नीरू और नीमा को भले ही मुसलमान बना दिया गया था परंतु फिर भी उनकी श्रद्धा भगवान शंकर जी में ही थी, जिनकी वे इतने सालों से पूजा कर रहे थे। नीरू, नीमा को सांत्वना दे रहा था, ''नीमा, हमारे नसीब में कोई बच्चा होता तो भगवान शिव हमें जरूर देते। अब हमारे भाग्य में कोई संतान नहीं है। आप इस तरह रो कर अपनी आँखें खराब न करो। हमारे पास बुढ़ापे में हमारी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। तुम मत रोवो।"
इस तरह बातचीत करते हुए वे लहरतारा तालाब पहुंचे। सबसे पहले नीमा ने स्नान किया। फिर, वह झील में वापस नहाने के दौरान पहने हुए पिछले कपड़े धोने के लिए चली गई। तभी नीरू तालाब में स्नान कर रहा था तो नीमा ने कुछ हिलता हुआ देखा। उसे वहां कुछ नजर आया। बालक के रूप में दैवीय लीला कर रहे कबीर जी के मुंह में एक पैर का अंगूठा था और दूसरे पैर को हवा में हिला रहे थे। वह डर गई कि कहीं वह सांप तो नहीं है और कहीं वो उसके पति को डंक न मार दे। जब उसने ध्यान से देखा तो उसे कमल के फूल पर एक बच्चा दिखाई दिया। वह चिल्लाई, "देखो! बच्चा डूब जाएगा। बच्चा डूब जाएगा।"
नीरू ने सोचा कि नीमा पागल हो गई है, अब उसने पानी में भी बच्चे देखना शुरू कर दिया। नीरू ने कहा, "नीमा, मैं तुमसे कहता हूं कि तुम बच्चों के बारे में ज़्यादा मत सोचो। अब तुम्हें पानी में भी बच्चे दिखने लग गए” नीमा ने कहा, "हां, सच में। वहाँ देखो। बच्चा डूब जाएगा।" उसकी आवाज़ में कसक देखकर उसने देखा कि नीमा किस ओर इशारा कर रही है। उसने वहां सचमुच में एक बच्चे को देखा। नीरू ने बच्चे के रूप में भगवान कबीर जी को कमल के फूल के साथ उठाकर नीमा को दे दिया। नीरू फिर नहाने के लिए अंदर चला गया।
नीरू ने सोचा (क्योंकि मनुष्य समाज के बारे में अधिक चिंतित होते हैं), "अगर हम इस बच्चे को घर ले जाते हैं, तो लोग पूछेंगे कि हम इस बच्चे को कहाँ से लाए हैं। अगर हम कहेंगे कि हमने उसे कमल के फूल पर पाया है, तो कोई भी हम पर विश्वास नहीं करेगा। वे कहेंगे कि हमने किसी का बच्चा चुरा लिया है और उसकी मां रो रही होगी। वे राजा से शिकायत करेंगे और हमें सज़ा दिलवाएँगे। हमें हिंदुओं का कोई समर्थन नहीं है और, हमने अभी तक मुसलमानों से भी कोई संबंध नहीं बनाया है।” नीरू नहाने के बाद बाहर आया। उसने देखा नीमा, एक माँ की तरह, बच्चे के रूप में भगवान कबीर जी को चूम रही थी, कभी उनको गले लगा रही थी, वह अपने शिव भगवान का लाख लाख शुकर मना रही थी कि उन्होंने उनकी तमन्ना पूरी की।
कबीर परमेश्वर, जिनके नाम का जाप करने से हमारी आत्मा में एक विशेष हलचल होती है। जिसे पाने के लिए ऋषि-मुनियों और महर्षियों ने हजारों वर्षों तक तप करके अपने शरीर का क्षय किया। उस भगवान को बालक रूप में नीमा गोद में लिए हुई थी । वह किस खुशी का अनुभव कर रही होगी इसका वर्णन नहीं किया जा सकता।
नीरू ने नीमा से कहा, “नीमा तुम इस बच्चे को यहीं रख दो। यह हमारे लिए अच्छा होगा।" नीमा ने नीरू से कहा, 'पता नहीं इस बच्चे ने मुझ पर क्या जादू कर दिया है। मैं उसे नहीं छोड़ सकती; मैं मर सकती हूँ।" नीरू ने उसे अपने विचार बताए कि उन्हें गांव से निकाल दिया जाएगा और बच्चा भी छीन लिया जाएगा । नीमा ने कहा, "मैं इस बच्चे के लिए वनवास भी स्वीकार करूंगी।"
नीरू ने कहा, “नीमा तू बहुत ज़िद्दी हो गई है। तू मेरी बात भी नहीं मान रही। मैंने तेरे से हमेशा प्यार से व्यवहार किया है क्योंकि हमारी कोई संतान नहीं है। मैंने तुझे कभी नहीं डांटा कि कहीं तेरी आत्मा दुखी न हो जाए। यह सोचकर मैंने हमेशा तेरी हर इच्छा पूरी करने की कोशिश की। इसलिए तू अब हठी हो गई है और मेरी बात नहीं मान रही है।”
उस दिन नीरू ने अपने जीवन में पहली बार नीमा को थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाया था। उसकी आँखों में आँसू भर आए। उसने प्यार और गुस्से में कहा, “तुम मेरी बात नहीं मान रही हो। इस बच्चे को यहीं छोड़ दो। नहीं तो अब मैं, तुम्हें थप्पड़ मार दूंगा।"
तभी परमात्मा कबीर जी ने शिशु रूप में कहा, "नीरू, मुझे घर ले चलो। कोई कुछ नहीं कहेगा। मैं यहाँ तुम्हारे लिए ही आया हूँ।" एक दिन के बच्चे को बोलता देख नीरू डर गया। बिना कुछ कहे नीरू आगे चल पड़ा। नीमा ने बच्चे में मोह के कारण कबीर साहेब जी की बात नहीं सुनी।
गांव पहुंचने पर लोगों ने पूछा कि उन्हें ये बच्चा कहां मिला? नीरू ने कहा कि उन्होंने बच्चे को कमल के फूल पर पाया। लोगों ने इसे सुना। कुछ ने विश्वास किया; कुछ ने नहीं। लेकिन, उन्होंने इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। गांव के लोग उस बेहद खूबसूरत बच्चे को देखने पहुंचे।
बच्चे के रूप में भगवान कबीर जी की सुंदरता को देखकर पूरा शहर हैरान रह गया। राजा भी उस सुन्दर बालक को देखने आया। स्वर्ग के देवता भी बालक रूप में कबीर जी की सुंदरता को देख रहे थे। हर कोई अपने-अपने अनुमान लगा रहा था कि यह देवता, भूत या किन्नर की आत्मा हो सकती है, जिससे नीमा नाराज़ हो जाती थी, और कहती "तुम मेरे बेटे पर बुरी नज़र लगा डालोगे।"
लोग कह रहे थे कि बच्चा कोई देवता लगता है। स्वर्ग में देवता कह रहे थे कि बच्चा ब्रह्मा, विष्णु या शिव का अवतार प्रतीत होता है। ऊपर ब्रह्मा, विष्णु और शिव कह रहे थे कि यह बच्चा पारब्रह्म (परमेश्वर) का अवतार हो सकता है।
भगवान कबीर जी का पोषण एक कंवारी गाय के दूध से हुआ
भगवान कबीर जी बालक के लीलामय शरीर रूप में 25 दिन के हो गए थे। उन्होंने कुछ खाया-पिया नहीं था फिर भी उनका शरीर ऐसे बढ़ रहा था जैसे बच्चा दिन में दो बार एक किलो दूध पीता हो। नीमा को चिंता हुई कि कहीं यह बच्चा मर न जाए। उसने सोचा, कि अगर यह बच्चा मर गया तो “मैं भी उसके साथ मरूँगी।” वह अपने भगवान शंकर जी को याद करके बुरी तरह रो रही थी, "हे भगवान शंकर जी, या तो आपको यह बच्चा हमें नहीं देना चाहिए था। अब आप बच्चे को देकर ले जा रहे हो।" भगवान कबीर जी ने सोचा, "मैं तो नहीं मरूंगा। लेकिन यह बूढ़ी औरत इस तनाव में ज़रूर मर जाएगी”।
भगवान कबीर जी ने भगवान शिव को प्रेरित किया। भगवान शिव ने देखा कि कौन उन्हें याद कर रहा है। भगवान शंकर साधु के रूप में वहाँ आए। उसने नीमा से पूछा कि वह क्यों रो रही है। नीमा ने उन्हें बताया कि मेरा बच्चा कुछ खा-पी नहीं रहा है। "वह मर जाएगा, और मैं उसके साथ मरूँगी।" भगवान शिव ने नीमा से पूछा कि उसका पुत्र कहां है? नीमा ने भगवान कबीर जी को भगवान शिव के चरणों में रखने की सोची। जब वह बालक कबीर को शिव जी के चरणों में डाल रही थी, तो वह हवा में तैरते हुए भगवान शिव के सिर के स्तर तक पहुंच गए।
नीमा ने सोचा कि यह इस संत की करामात है। भगवान शिव और भगवान कबीर जी ने सात बार चर्चा की। भगवान कबीर जी ने भगवान शिव से कहा, "नीरू-नीमा को एक कंवारी गाय लाने के लिए कहो। आप उसकी पीठ थपथपा देना। वह दूध देगी।" भगवान शंकर ने नीमा से कहा, “तुम्हारा बच्चा मरने वाला नहीं है, माँ। उसकी उम्र बहुत लंबी है। उसकी महिमा का कोई अंत नहीं है। धन्य हो तुम। धन्य है यह नगरी जहां इतनी महान आत्मा आई है।"
नीमा ने सोचा कि संत केवल उसे सांत्वना दे रहे हैं। तब भगवान शिव ने कहा, "आप एक कंवारी गाय और नया बर्तन लेकर आओ।" नीरू ने वैसा ही किया। नए बर्तन को थनों के नीचे रख दिया गया। भगवान शिव ने गाय की पीठ थपथपाई। थनों से दूध की धारा बहने लगी। बर्तन पूरी तरह भर जाने के बाद दूध बंद हो गया। उस दूध को कबीर परमेश्वर जी ने पिया।
नीमा ने संत को धन्यवाद दिया। उसने सोचा कि संत ने यह सब किया है। नीमा ने दक्षिणा (दान) देने के लिए अपनी बेबसी व्यक्त की । भगवान शिव ने कहा, "मैं उन लोगों में नहीं हूं जो पैसे मांगते हैं। मैं यहाँ इसलिए आया हूँ क्योंकि मैंने तुम्हें दुःख में देखा है।” यह कहकर भगवान शिव चले गए। उसके बाद वह गाय प्रतिदिन दूध देने लगी। उस दूध को कबीर परमेश्वर जी पीते थे। इस प्रकार परमेश्वर कबीर जी के पालन पोषण का दिव्य कार्य संपन्न हुआ।
पवित्र ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में कहा गया है कि ईश्वर के पालन-पोषण का दिव्य कार्य एक कंवारी गाय के दूध से होता है। परमात्मा की इस पहचान पर केवल परमात्मा कबीर जी ही खरे उतरते हैं।
5 वर्ष की आयु में ही कबीर जी ने अपने लीलामय शरीर (देह के साथ दैवीय कृत्यों को निभाने लगे) से वहां के जाने-माने संतों के साथ आध्यात्मिक विचार-विमर्श करना शुरू कर दिया था। कोई भी संत या ऋषि उनके आध्यात्मिक ज्ञान का उत्तर कभी नहीं दे सके।
भगवान कबीर जी ने गुरु बनाया
भगवान कबीर जी ने गुरु बनाने के लिए एक लीला की और 2.5 साल के बच्चे का रूप बनाया । ब्रह्म-मुहूर्त के समय गंगा घाट की सीढ़ियों पर लेट गए । स्वामी रामानन्द जी ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने गंगा घाट पर जाया करते थे। स्वामी रामानन्द जी की खड़ाऊ कबीर साहेब जी के सिर पर लग गयी। भगवान कबीर साहेब जी अभिनय करते हुए बच्चे की तरह रोने लगे। स्वामी रामानन्द जी अचानक झुके। उनकी एक मनके की तुलसी माला (जो एक वैष्णव संतों की पहचान होती है) भगवान कबीर जी के गले में गिर गई। स्वामी रामानन्द जी ने कबीर परमेश्वर जी के बाल रूप के सिर पर हाथ रखा और कहा, "बेटा, 'राम राम' कहो। राम के नाम से दुखों का नाश होता है। भगवान कबीर जी ने रोना बंद कर दिया। स्वामी रामानन्द जी कबीर जी को बाल रूप में वापस पौड़ी पर बैठाकर स्नान करने चले गए, यह सोचकर कि यह बच्चा भूल से यहाँ पहुँच गया होगा। हम उसे अपने आश्रम ले जाएंगे। वह जिस किसी का होगा, वे उसे वहाँ से ले लेंगे।” भगवान कबीर जी वहां से गायब हो गए और अपनी कुटिया में पहुंच गए।
तब भगवान कबीर जी ने एक बार स्वामी रामानन्द जी के शिष्य विवेकानन्द जी से उन श्रोताओं के सामने प्रश्न किया, जिन्हें वे विष्णु पुराण सुना रहे थे कि परमात्मा कौन है? विवेकानंद जी के पास कोई जवाब नहीं था। अत: श्रोताओं के सामने अपना मान बचाने के लिए उन्होंने बालक रूप में कबीर परमेश्वर जी को डाँटना शुरू कर दिया कि उनकी जाति और उनके गुरु कौन हैं? वहाँ उपस्थित श्रोताओं ने बताया कि कबीर जी निचली जाति के जुलाहा/धानक हैं। भगवान कबीर जी ने कहा, "मेरे गुरु आपके भी गुरु हैं। मैंने स्वामी रामानन्द जी से दीक्षा ली है।" विवेकानंद जी हँसे, “देखो लोगों! यह बालक झूठ बोल रहा है। स्वामी रामानन्द जी नीची जाति के लोगों को दीक्षा नहीं देते।। मैं स्वामी रामानंद जी को बताऊंगा और फिर तुम सब भी कल आकर देखना कि स्वामी रामानन्द जी इस बालक को किस प्रकार दण्ड देंगे।
विवेकानंद जी ने स्वामी रामानन्द जी को सब बात बताई। स्वामी रामानन्द जी ने भी क्रोधित होकर बालक को लाने को कहा। अगले दिन सुबह भगवान कबीर जी को स्वामी रामानन्द जी के सामने लाया गया। स्वामी रामानन्द जी ने अपनी झोंपड़ी के सामने यह दिखाने के लिए एक परदा लटका दिया था कि उन्हें दीक्षा देने की तो बात ही छोड़िए, वे तो उनके दर्शन भी नही करते। स्वामी रामानन्द जी ने बड़े क्रोध में परदे के पार से कबीर परमेश्वर जी से पूछा कि वे कौन हैं? भगवान कबीर जी ने कहा, "हे स्वामी जी, मैं इस सृष्टि का निर्माता हूं। यह सारा संसार मुझ पर आश्रित है। मैं ऊपर सनातन धाम सतलोक में निवास करता हूँ।"
स्वामी रामानन्द जी यह सुनकर नाराज़ हो गए। उन्होंने उन्हें फटकार लगाई और उनसे कुछ और प्रश्न पूछे! जिनका उत्तर एक आदर्श शिष्य की तरह व्यवहार करते हुए भगवान कबीर जी ने शांति और विनम्रता से दिया। तब रामानन्द जी ने सोचा कि बालक के साथ चर्चा करने में काफी समय लगेगा, वह पहले अपनी दैनिक धार्मिक साधना पूरी कर लें।
स्वामी रामानन्द जी ध्यान की अवस्था में बैठे हुए कल्पना करते थे कि वे स्वयं गंगा से जल लाए हैं, भगवान विष्णु की मूर्ति को स्नान कराया है, वस्त्र बदले हैं, माला पहनाई है और अंत में मूर्ति के मस्तक पर मुकुट यथावत रखा है। उस दिन स्वामी रामानंद मूर्ति के गले में माला डालना भूल गए। उसने माला को मुकुट से उतारने की कोशिश की लेकिन माला अटक गई। स्वामी रामानन्द जी व्यथित हो उठे, और अपने आप से कहने लगे कि “अपने पूरे जीवन में मैंने आज तक कभी ऐसी गलती नहीं की थी। मैंने आज ऐसा क्या गलत किया कि ऐसा हो गया?” तभी कबीर परमेश्वर जी ने कहा, "स्वामी जी! माला की गाँठ खोलो। तुम्हें मुकुट उतारना नहीं पड़ेगा।"
रामानन्द जी ने सोचा, “मैं तो केवल कल्पना कर रहा था। यहां कोई मूर्ति नहीं है। बीच में एक पर्दा भी है। और, यह बच्चा जान गया कि मैं मानसिक रूप से क्या साधना कर रहा हूं।" वह क्या गाँठ खोलते। यहां तक कि उन्होंने पर्दा भी फेंक दिया और जुलाहा जाति के बालक रूप में कबीर परमात्मा को गले से लगा लिया। रामानन्द समझ गए कि यह ईश्वर हैं।
फिर 5 वर्ष के बच्चे के रूप में भगवान कबीर जी ने 104 वर्ष के महात्मा स्वामी रामानंद जी को ज्ञान समझाया। उन्होंने उन्हें सतलोक दिखाया, उनको वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान बताया और रामानंद जी को दीक्षा दी। कबीर परमेश्वर जी ने रामानन्द जी को सांसारिक दृष्टि से अपना गुरु बना रहने को कहा अन्यथा आने वाली पीढ़ी कहेगी कि गुरु प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि कबीर जी का भी कोई गुरु नहीं था। स्वामी रामानन्द जी ने उनसे अनुरोध किया कि वह ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि वे जानते थे कि ईश्वर का गुरु बनना पाप है। भगवान कबीर जी ने कहा, "आप मेरी आज्ञा समझकर इसका पालन करें।"
परमेश्वर कबीर जी के अन्य चमत्कार
हिंदू और मुस्लिम धर्मगुरुओं की शिकायत पर, सिकंदर लोदी ने एक गर्भवती गाय को बीच में से काट दिया था और भगवान कबीर जी से कहा कि अगर वह अल्लाह हैं तो इसे जीवित कर दें। नहीं तो वह उनका सिर काट देगा। भगवान कबीर जी ने गाय और उसके बछड़े की पीठ थपथपाई। दोनों जी उठे। भगवान कबीर जी ने उस गाय के दूध से बाल्टी भर दी। सिकंदर लोदी ने कबीर जी को दण्डवत् प्रणाम किया।
■ सिकंदर लोदी का जलन का रोग ठीक किया
सिकंदर लोदी महाराजा एक लाइलाज बीमारी से पीड़ित था ( उसे जलन का रोग था) उन्होंने कई वैधों से इलाज करवाया और कई धार्मिक अनुष्ठान करवाए। लेकिन, कुछ काम नहीं आया। तभी किसी ने उन्हें कबीर परमेश्वर जी के बारे में बताया। वह परमेश्वर कबीर जी के पास गया। भगवान कबीर जी ने अपने आशीर्वाद मात्र से ही उसे ठीक कर दिया था।
■ स्वामी रामानन्द जी को जीवित किया
सिकंदर लोदी ने स्वामी रामानन्द जी का क्रोधवश वध कर दिया था। भगवान कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को अपने सामने फिर से जीवित कर दिया। यह देख कर सिकंदर लोदी ने कबीर परमेश्वर की शरण ली।
■ कमाल-कमाली को जीवित किया
परंतु सिकंदर लोदी के मुसलमान पीर शेख तकी को कबीर परमेश्वर से जलन होने लगी। उसने सिकंदर लोदी से कहा, "मैं उसे अल्लाह तभी मानूंगा जब वह मेरे सामने एक मरे हुए इंसान को जीवित करेगा।" सिकंदर ने परमात्मा कबीर जी से अपनी परेशानी बताई। अगले दिन सुबह उन्होंने देखा कि एक 12-13 साल के लड़के का शव नदी में तैर रहा है। कबीर जी ने शेख तकी को पहले कोशिश करने को कहा। शेख तकी ने कोशिश की, लेकिन असफल रहा। तब भगवान कबीर जी ने बालक को जीवित किया। वहां मौजूद सभी लोगों ने कहा, “कमाल (चमत्कार) कर दिया! कमाल कर दिया! लड़के का नाम कमाल रखा गया। भगवान कबीर जी ने उसे अपने पुत्र के रूप में अपने पास रखा।
पर शेख तकी ने यह देख कर भी कबीर जी की शक्ति को नहीं माना और फिर से कहा, "मैं उसे अल्लाह तभी मानूंगा जब वह मेरी मृत लड़की को पुनर्जीवित करेगा, जो कब्र में दफन है। वह लड़का शायद मरा हुआ नहीं था।” तारीख तय की गई। निर्धारित तिथि पर कई लोग चमत्कार देखने पहुंचे। भगवान कबीर जी ने उस लड़की को जीवित कर दिया। सबने कहा, कमाल कर दिया! कमाल कर दिया!"लड़की का नाम कमाली रखा गया। उसने शेख तकी के साथ जाने से इनकार करते हुए कहा, " अब मैं अपने असली पिता के साथ रहूंगी।” उसने डेढ़ घंटे तक सत्संग किया और लोगों को बताया कि यही अल्लाहू अकबर हैं। उसने अपने पिता से कहा, "शेख तकी, तुम अपने कर्मों को खराब न करो । उसे पहचानो। वह सर्वोच्च भगवान हैं। ” हजारों लोगों ने कबीर परमेश्वर की शरण ली। इस प्रकार कबीर परमेश्वर जी के एक पुत्र और एक पुत्री हुई। भगवान कबीर जी ने शादी नहीं की थी।
■ सेउ को जीवित किया
भगवान कबीर जी एक बार कमाल और शेख फरीद (उनके एक शिष्य) के साथ दिल्ली में अपने शिष्यों सम्मन (पिता), सेउ (पुत्र) और नेकी (मां) के पास गए। परिवार बहुत गरीब था। उस दिन उनके पास खाना नहीं था। उन्होंने (सम्मन और सेउ ने) रात में पास की दुकान से एक सेर आटा (1 सेर = 1 किलो लगभग) चोरी करने की योजना बनाई। सेउ ने भीतर जाकर अपने पिता सम्मन को आटा दिया। इसी बीच दुकान के मालिक की नींद खुल गई। उसने सेउ को पैर से पकड़ लिया। सम्मन ने अपनी पत्नी नेकी को आटा दिया। नेकी ने उससे कहा कि सेउ का सिर काट दो, नहीं तो दुकान-मालिक गुरुदेव को सज़ा दिलाएगा। सम्मन ने वैसा ही किया। प्रातः काल जब उन्होंने परमेश्वर कबीर जी तथा अन्य अतिथियों के लिए भोजन तैयार करवाया। भगवान कबीर जी ने सेउ को बुलाया। सेउ आया और खाना खाने के लिए पंगत में बैठ गया। सम्मन और नेकी यह देखकर हैरान रह गए कि सेउ की गर्दन पर कटे का कोई निशान भी नहीं है। इसके बाद उस मोहल्ले में कबीर साहेब के आशीर्वाद से सम्मन काफी धनी हो गया।
■ लाखों लोगों के असाध्य रोग ठीक किए
काशी में अपने 120 साल के लंबे प्रवास के दौरान, भगवान कबीर जी ने लाखों लोगों के असाध्य रोगों के साथ-साथ अन्य समस्याओं को भी ठीक किया। वे अपनी प्रिय आत्माओं को अपने आध्यात्मिक उपदेश देने के लिए काशी के अलावा एक दिन में सैकड़ों स्थानों पर प्रकट हो जाया करते थे। चूंकि तब दूरसंचार का कोई साधन नहीं था।
उस समय भारत की कुल आबादी लगभग चार करोड़ थी। भारत में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, इराक और ईरान भी शामिल थे। अस्पृश्यता भी चरम पर थी। उस समय, एक धानक/जुलाहा (बुनकर) के पूरे भारत में 64 लाख शिष्य थे। इससे पता चलता है कि वह एक सामान्य संत नहीं थे। वह स्वयं भगवान थे। और, हम उन्हें पहचान नहीं पाए।
भगवान कबीर जी आध्यात्मिक ज्ञान समझाते थे
भगवान कबीर जी हमारे पवित्र ग्रंथों के आधार पर आध्यात्मिक ज्ञान बताते थे, कबीर जी कहते थे "हिंदू और मुसलमान दोनों के पूजा के सही तरीके नही हैं। गीता देवताओं की पूजा के पक्ष में नहीं है, न ही हज़रत मोहम्मद ने कभी मांस खाया। ये अज्ञानी धर्मगुरु आपको गुमराह कर रहे हैं।” लेकिन हम उस समय अनपढ़ थे।
उस समय केवल ब्राह्मणों को ही शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति थी। नकली धर्मगुरु जनता को यह कहकर गुमराह करते थे कि कबीर जी अनपढ़ हैं। उन्हे पवित्र पुस्तकों का ज्ञान नहीं हो सकता क्योंकि उन्होंने उन्हें पढ़ा नहीं है । वह झूठा है।" उनके बहकावे में आकर हम कबीर परमेश्वर जी के दुश्मन हो गए। उस समय नकली धर्मगुरुओं के कारण लोगों में कबीर परमेश्वर के नाम के प्रति भी घृणा उत्पन्न हो गई थी।
कबीर परमेश्वर द्वारा बताए आध्यात्मिक ज्ञान को न समझकर लोग उन पर पथराव करने लगे थे, हिंदू धार्मिक नेता यह कहकर हिंदुओं को गुमराह करते कि “वह हमारे धर्म की आलोचना करता है। वह हमारी त्रिमूर्ति की आलोचना करता है।" मुस्लिम धार्मिक नेता कहते, "वह हमारे धर्म की आलोचना करता है। वह खुद को अल्लाह कहता है।" वे और गुमराह जनता कबीर साहेब जी को हर प्रकार से कष्ट देती रहती थी।
शेख तकी ने कबीर परमेश्वर को मारने की 52 बार कोशिश की
शेख तकी उस समय भारत के सभी मुसलमानों का मुखिया था। उसने कबीर परमेश्वर को मारने की 52 बार कोशिश की। उसने कबीर जी को एक खाली कुएं में डलवा दिया था। ऊपर से, कुंए को मिट्टी, लकड़ी, गोबर गारा, झाड़ झंखाड़ आदि से भर दिया गया था। शेख तकी, फिर सिकंदर लोदी को खबर देने गए कि कबीर जी मर गए। लेकिन, उसने कबीर जी को सिकंदर लोदी के साथ बैठे हुए पाया। शेख तकी हैवान यहीं तक नहीं रूका।
उसने कबीर परमेश्वर जी को उबलते तेल से भरी कड़ाही में बैठने को कहा। भगवान कबीर जी उबलते हुए तेल के कड़ाहे में भी आराम से बैठे थे। उन्हें कुछ नहीं हुआ। शेख तकी एक बार रात में कुछ गुंडों को कबीर परमेश्वर की कुटिया में ले गया। उन्होंने अपनी तलवारों से कबीर परमेश्वर जी पर 6-7 बार वार किया। हर बार भगवान कबीर जी के शरीर से तलवार निकल जाती। ऐसा लगता मानो रूई से नरम किसी चीज को छू रही हो, उनका शरीर पूरी तरह से हड्डी रहित था। उन्हें मरा हुआ समझ कर गुंडे पीछे हट गए। कबीर परमेश्वर जी ने खड़े होकर कहा, "शेख तकी, ऐसे मत जाओ। थोड़ा पानी लो।" सब उन्हें भूत समझ कर भाग गए। गुंडों को बुखार हो गया। फिर भी भगवान कबीर जी ने उन्हें ठीक कर किया।
एक बार कबीर जी को एक खून के प्यासे हाथी के सामने रखा गया, जो नशे में था। भगवान कबीर जी ने उसे एक बब्बर शेर का रूप दिखाया। शेर को देखकर हाथी लीद करने लगा और डर कर भाग गया।
कबीर परमेश्वर जी के गले में एक बहुत भारी पत्थर बांधकर गंगा नदी में डाल दिया गया था। रस्सी टूट गई। पत्थर डूब गया। भगवान कबीर जी नदी के ऊपर बैठ गए। नदी कबीर साहेब जी के चरण स्पर्श कर रही थी। इसके बाद उन पर पथराव किया गया। 12 घंटे तक तोपें चलाई गईं। लेकिन, अविनाशी को क्या मार सकता है? इतनी बार मारने की कोशिश करने के बाद भी परमेश्वर कबीर जी की मृत्यु नहीं हुई। वह वास्तविक शाश्वत ईश्वर हैं।
कलयुग के 5505 वर्ष 1997 में पूरे हुए
भगवान कबीर जी ने अपने सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान और पूजा के तरीके को अपनी प्यारी आत्माओं तक पहुंचाने के लिए कड़ा संघर्ष किया। वह जानते थे कि आज समाज अनपढ़ होने के कारण उन्हें पहचान नहीं रहा। इसलिए कबीर परमेश्वर जी ने लगभग 600 वर्ष पहले धर्मदास जी से कहा था, ''कलयुग के 5505 वर्ष (1997 ई.) होने पर समाज शिक्षित होगा। मैं फिर आऊँगा और उस समय सारा संसार मेरा आश्रय लेगा। तब सारी दुनिया आज़ाद हो जाएगी। जब तक वह समय नहीं आएगा, मेरे शब्द निराधार लगेंगे।”
परमेश्वर कबीर जी ने मगहर में शरीर छोड़ा
जब अपने सनातन स्थान पर वापस जाने का समय आया, तो कबीर परमेश्वर जी ने इस नश्वर संसार को छोड़ने के लिए मगहर को चुना क्योंकि उस समय के धर्मगुरुओं द्वारा एक विशेष अफवाह फैलाई गई थी कि, "मगहर में मरने वाले गधे बनते हैं और जो काशी में मरता है वह स्वर्ग जाता है।" 120 वर्ष की आयु में, वे काशी से मगहर पहुँचने के लिए तीन दिनों तक पैदल चले, यह दिखाते हुए कि एक सच्चे उपासक को बुढ़ापे में भी कष्ट नहीं होता है।
उनके शिष्य काशी के राजा बीरदेव सिंह बघेल हज़ारों सशस्त्र सैनिक और दर्शक कबीर जी के साथ गए। मगहर के राजा बिजली खां पठान, जो कि कबीर परमेश्वर के शिष्य भी थे, ने हर संभव व्यवस्था की थी। प्रस्थान करने से पहले भगवान कबीर जी ने वहां सूख चुकी आमी नदी में जल प्रवाहित किया था।
कबीर जी ने देखा कि हिंदू राजा बीरदेव सिंह बघेल और मुस्लिम राजा बिजली खान पठान दोनों अपनी-अपनी सेना तैयार कर चुके थे। कबीर जी ने उनसे पूछा कि वे अपनी सेनाएं साथ क्यों लाए हैं? बीरदेव सिंह बघेल और बिजली खान पठान दोनों ने सिर झुका लिया। अन्य हिंदू और मुस्लिम सैनिकों ने अपने इरादे व्यक्त किए, और कहा “आप हमारे गुरु हैं। हम आपका अंतिम संस्कार अपने धर्म के अनुसार करवाएंगे। अगर वे नहीं मानेंगे तो हमारे बीच युद्ध हो जाएगा।" भगवान कबीर जी ने कहा, "क्या मैंने आपको 120 साल तक यही सिखाया है? तुम दोनों हिंदू और मुस्लिम अब भी अपने को अलग समझते हो!
भगवान कबीर जी ने कुछ समय के लिए वहाँ उपस्थित सभी को आध्यात्मिक उपदेश दिया। भगवान कबीर जी जानते थे कि उन्होंने अपना मन नहीं बदला है, भले ही वे ऊपरले मन से उन्हें "हाँ" कह रहे हों; पर वे अपने मन से "हाँ" नहीं कह रहे थे।
फिर, प्रस्थान करने के लिए, कबीर जी एक चादर पर लेट गए और अपने आप को दूसरी चादर से ढ़क लिया। भक्तों ने श्रद्धा के साथ चादर पर फूल चढ़ाए। कुछ देर बाद कबीर परमेश्वर जी ने ऊपर से कहा, चादर उठाओ। तुम मेरे शरीर को नहीं पाओगे। वहाँ जो कुछ भी मिले, उसे दो भागों में बाँट लो, लेकिन आपस में मत लड़ो।”
जब उन्होंने ऊपर की ओर देखा, तो एक चमकदार रोशनी ऊपर जा रही थी। जब उन्होंने चादर उठाई तो उन्हें कबीर परमेश्वर के शरीर के आकार के फूल मिले। वे सभी रोने लगे, और कहने लगे कि हम अपने ईश्वर को अंतिम समय में भी सुख नहीं दे सके। वह वास्तव में भगवान थे। हम उन्हें पहचान नहीं पाए। जो हिंदू-मुसलमान थोड़ी देर पहले एक-दूसरे से लड़ने को तैयार थे, माता-पिता की मौत पर रोते-बिलखते भाई-बहन की तरह एक-दूसरे को गले लगा कर रो रहे थे।
उन्होंने फूलों को दो हिस्सों में बांट दिया। आज उसी स्थान पर मगहर में स्मारक है। एक तरफ भगवान कबीर जी का हिंदू मंदिर है और दूसरी तरफ मुस्लिम मज़ार है। बीच में एक ही गेट है। वहां कोई भी स्मारक पर जा सकता है। इस तरह परमेश्वर कबीर जी ने हिंदू मुस्लिमों के बीच युद्ध को होने से रोका और दोनों को भाई चारे की सीख दी।
अन्य संप्रदाय भी कबीर प्रकट दिवस मनाते हैं
कबीर सागर अध्याय कबीर बानी में पृष्ठ 136-137 पर बारह कबीर पंथों का वर्णन है। भगवान कबीर जी ने धर्मदास जी से कहा था कि उन बारह संप्रदायों में केवल काल का ही आदेश होगा। वे कबीर जी का नाम लेते हैं और सतलोक की महिमा बताते हैं, लेकिन वे काल की ही पूजा करते हैं जिन लोगों से इन पंथों की उत्पत्ति होगी वे पवित्र आत्मा होंगे लेकिन उनकी आने वाली पीढ़ियां काल से प्रेरित होंगी। अध्याय कबीर चरित्र बोध, पेज नं 1870 में बारह पंथों के नाम लिखे हैं। फिर कबीर बानी पृष्ठ 137 में लिखा है कि बारहवें पंथ में कबीर परमात्मा स्वयं आकर अन्य सभी पंथों का अंत करेंगे। फिर पृष्ठ 134 पर "वंश प्रसार" शीर्षक के तहत कबीर परमेश्वर कहते हैं कि तेरहवां वंश ज्ञान के सभी अंधकार को दूर करेगा।
उस तेरहवें पंथ की शुरुआत संत रामपाल जी ने की है। उनके वंश की उत्पत्ति बारहवें कबीर पंथ से हुई है, जो संत गरीबदास जी का पंथ है। सतगुरु रामपाल जी के गुरुदेव स्वामी रामदेवानंद जी ने संत रामपाल जी को गुरुपद की ज़िम्मेदारी सौंपते हुए कहा, "आपके समान दुनिया में कोई संत नहीं होगा।" वे कबीर परमेश्वर के ही अवतार हैं। सन् 1997 में परमात्मा कबीर जी ने संत रामपाल जी से भेंट की और सतनाम और सारनाम का रहस्य प्रकट करने का आदेश दिया। वह समय आ गया है जब सारा संसार उनकी शरण लेगा।
यहाँ इसका वर्णन करने का उद्देश्य यह है कि बारह और कबीर पंथ हैं जो कबीर साहेब प्रकट दिवस मनाते हैं। पूरे भारत में अन्य कुछ और भी कबीर पंथ हैं, जो काल की प्रेरणा से उत्पन्न हुए हैं। वे सभी कबीर साहेब प्रकट दिवस मनाते हैं। लेकिन, केवल कबीर जी द्वारा भेजे गए अधिकृत संत (कबीर बानी अध्याय के अनुसार तेरहवां पंथ) ही प्रकट दिवस का सही तरीका बताएंगे।
कबीर प्रकट दिवस कैसे मनाया जाता है?
संत गरीबदास जी के पवित्र सदग्रंथ साहिब जी के 5-7 दिवसीय पाठ का पठन करते हुए संत रामपाल जी आध्यात्मिक प्रवचन देकर इस अवसर को मनाते हैं। ऐसा वह शुरू से करते आ रहे हैं। इसके अलावा, दहेज मुक्त विवाह, रक्तदान और शरीरदान शिविर, भंडारा, सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान के बारे में जागरूकता और आध्यात्मिक पाखंड के खिलाफ जागरूकता प्रकट दिवस का उद्देश्य होता है।
दहेज मुक्त विवाह: रमैणी
सैकड़ों दहेज मुक्त शादियां रमैणी बड़ी सादगी से संपन्न होती हैं। विभिन्न धर्मों, राष्ट्रों और जातियों के जोड़े एक पैसा दिए या लिए बिना शादी करते हैं। दूल्हा और दुल्हन बेहद साधारण वस्त्र पहन कर विवाह करते हैं। दूल्हे और दुल्हन के साथ आने वाले मेहमानों को भंडारे में ही भोजन खिलाया जाता है। रमैणी विवाह करने का उद्देश्य विवाह में दहेज और फिजूलखर्ची जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करना है।
रक्तदान और शरीर दान शिविर
हर साल कबीर साहेब प्रकट दिवस के दौरान, रक्तदान और शरीर दान शिविर आयोजित किए जाते हैं। सैकड़ों लोग स्वेच्छा से रक्तदान करते हैं और मानवता के कल्याण के लिए मृत्यु के बाद शरीर दान करने के लिए पंजीकरण कराते हैं।
मुफ्त भोजन वितरण
संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा आयोजित कबीर साहिब प्रकट दिवस में भंडारे में सभी पकवान शुद्ध देसी घी का उपयोग करके बनाया जाता है। भोजन में कुछ मीठा शामिल होता है, जैसे लड्डू, जलेबी, हलवा या बूंदी प्रसाद के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की सब्जियां और पूरियां, रायता, अचार और सलाद। यह भंडारा सभी के लिए मुफ़्त होता है।
वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान के बारे में जागरूकता फैलाना
संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचन हमेशा कबीर प्रकट दिवस का मुख्य हिस्सा होते हैं। सतगुरु रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचन हर धर्म के पवित्र शास्त्रों पर आधारित हैं। वह भक्त समाज को वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान के बारे में बताने के लिए प्रोजेक्टर के माध्यम से पवित्र पुस्तकों को दिखाते हैं। कबीर साहेब प्रकट दिवस के दौरान, भगवान कबीर जी की महिमा और लगभग 600 साल पहले काशी में उनके 120 साल लंबे प्रवास पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
धार्मिक पाखंडों के खिलाफ जागरूकता फैलाना
जैसा कि ऊपर लिखा गया है, 12 कबीर पंथ हैं। और फिर, अन्य पंथ भी हैं। उनमें से कुछ को कबीर पंथ कहा जा सकता है; अन्य नहीं हैं। कई अलग-अलग धर्म हैं, जो पवित्र ग्रंथों के अनुसार पूजा नहीं कर रहे हैं। परिणामस्वरूप, उन धर्मों या पंथों के अनुयायियों में से कोई भी कबीर भगवान से लाभ प्राप्त नहीं कर सका। भगवान कबीर जी स्वयं संत रामपाल जी के रूप में आए हुए हैं। संत रामपाल जी ने वर्तमान में चल रहे हर धार्मिक पाखंड का पर्दाफाश किया और पवित्र ग्रंथों से अध्यात्म का सच्चा रास्ता दिखाया। उनके आदेश से, उनके भक्त कबीर साहिब प्रकट दिवस के अवसर पर उस सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार करते हैं।
हम हर साल कबीर प्रकट दिवस क्यों मनाते हैं?
भगवान कबीर जी द्वारा बताई गई सच्ची पूजा विधि सभी कष्टों का अंत करती है। परमेश्वर कबीर जी स्वयं सर्वोच्च परमेश्वर हैं। वह जो चाहे कर सकते हैं। यहां काशी में अपने 120 वर्षों के लंबे प्रवास के दौरान, उन्होंने कई लोगों की बीमारियों को ठीक किया है। उन्होंने अपने 64 लाख भक्तों के कष्टों को दूर करने के साथ-साथ उन्हें पूर्ण मोक्ष प्राप्त करने के लिए सच्चे मंत्र दिए। भगवान कबीर जी के यहाँ प्रकट होने का जश्न मनाने का इससे बेहतर कारण क्या हो सकता है।
कबीर जी ने गरीब दास जी को सतज्ञान दिया था
भगवान कबीर जी समय समय पर आकर अपनी प्यारी आत्माओं से मिलते हैं उन्हें सच्चा ज्ञान देते हैं। भगवान कबीर जी संत गरीबदास जी से मिले। कबीर परमेश्वर जी ने संत गरीबदास जी से कहा,
मैं रोवत हूं सृष्टि को, ये सृष्टि रोवे मोहे |
गरीबदास इस वियोग को, समझ न सकता कोये ||
इस वाणी में संत गरीबदास जी कह रहे हैं कि कबीर परमेश्वर जी ने कहा- हे गरीब दास! मैं दुनिया के लिए रोता हूं कि तुम सब मेरे बच्चे हो। मैं तुम्हारा बाप हूँ। आप यहाँ इस बुरे काल लोक में अपनी गलती के कारण आए हो। काल तुम्हारा दुरुपयोग कर रहा है। आप यहाँ पीड़ित हो। आप मेरे कहे अनुसार पूजा करें और अपने मूल स्थान सतलोक में चले जाएं, जहां कोई दुख नहीं है।
और, यह दुनिया मेरे लिए रोती है कि हे भगवान! आप सर्वशक्तिमान, निर्माता, सभी के पालनहार हैं। कृपया हमें खुशी दें। कृपया हमारे कष्टों को दूर करें। हम आपकी भक्ति, पूजा करते हैं।आप हमें दर्शन क्यों नहीं दे रहे हैं?
लेकिन, जब मैं उनके पास जाता हूं और उन्हें बताता हूं कि मैं भगवान हूं। फिर ईश्वर निराकार होने के इस निराधार विश्वास पर दृढ़ होकर मुझ पर विश्वास नहीं करते। इस काल ने हमारे बीच अज्ञानता की दीवार खींच दी है। इस अलगाव को कोई नहीं समझ सकता।
इस अलगाव को समझने के लिए एक तीसरी इकाई की जरूरत थी। वह तीसरी इकाई है सतगुरु, जो ईश्वर को अपनी आत्माओं से जोड़ता है। संत रामपाल जी महाराज जी आज एकमात्र सतगुरु हैं। वे स्वयं कबीर जी के अवतार हैं। वह वही आध्यात्मिक ज्ञान बताते हैं और उसी तरह पूजा का उपदेश देते हैं जैसे कबीर परमात्मा। इसका प्रमाण वह पवित्र कबीर सागर से भी देते हैं।
कबीर परमेश्वर जी की आराधना सभी प्रकार के कष्टों को दूर करती है। संत रामपाल जी कबीर जी की शास्त्र आधारित उपासना का तरीका बताते हैं। नतीजतन, उनके हजारों भक्त अंतिम चरण में पहुंचने के बाद भी कैंसर और एड्स जैसी घातक बीमारियों से ठीक हो चुके हैं। भूत और पितृ उनके भक्तों को नुकसान नहीं पहुंचा सकते। उनके हर प्रकार के कष्ट समाप्त हो जाते हैं। संत रामपाल जी से दीक्षा लेने से व्यक्ति की अकाल मृत्यु नहीं होती है। बस, भक्ति मर्यादाओं को निभाना अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
संत रामपाल जी कहते हैं कि यदि हम उनके द्वारा बताए गए सभी नियमों का पालन करते हुए और उनके द्वारा दी हुई पूजा की विधि का अनुसरण करते हैं, तो "कैंसर क्या? कैंसर का बाप भी ठीक होगा! कैंसर क्या है? उनके भक्तों की ये गवाही इसका जीता जागता प्रमाण है। इसलिए इस बार भगवान को पहचानने में तनिक देर न करें। उनके ज्ञान से स्वयं को परिचित करवाएं। संत रामपाल जी महाराज जी की शरण लीजिए और अपना कल्याण करवाएं।
FAQs : "कबीर प्रकट दिवस: तिथि, उत्सव, घटनाएँ, इतिहास"
Q.1 कबीर साहेब जी का समाज सुधार में क्या योगदान है?
कबीर साहेब जी ने समाज में फैली कुरीतियों (जात-पात, अंधविश्वास समाप्त करना आदि) को अपनी शिक्षाओं के माध्यम से जड़ से उखाड़ने के लिए प्रयत्न किए।
Q.2 कबीर साहेब जी ने किस रहस्य से पर्दा उठाया था?
कबीर साहेब जी ने अपनी वाणियों के माध्यम से काल ब्रह्म की असलियत को दुनिया के सामने पेश किया और जीवात्माओं के इस काल लोक में जन्म लेने और मरने के रहस्य से पर्दा उठाया।
Q. 3 कबीर साहेब जी के दोहे इतने प्रसिद्ध क्यों हैं?
कबीर साहेब जी के दोहों ने हमेशा समाज को अंधविश्वास और पाखंड से ऊपर उठकर उन्हें एक पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने के लिए प्रेरित किया है।
Q.4 कबीर साहेब जी कितने वर्ष इस धरा पर रहे?
120 वर्ष
Q.5 कबीर साहेब जी की जीवनी में ऐसा क्या बताया गया है जो पवित्र वेदों में भी लिखित है?
कबीर साहेब जी का यहां काल ब्रह्म के लोक में प्रकट होना और उनकी परवरिश की लीला समेत अन्य अनेकों गुण वेदों में परमात्मा के गुणों से मेल खाते हैं। इसका प्रमाण पवित्र ऋग्वेद मंडल नंबर 9 सुक्त 1 मंत्र 9, सुक्त 96 मंत्र 16 से 20, सुक्त 86 मंत्र 26 और 27, पवित्र यजुर्वेद अध्याय 29 श्लोक 25 और भी अन्य स्थानों पर मिलता है। इसके साथ इसका प्रमाण पवित्र कबीर सागर के ‘‘ज्ञान सागर‘‘ पृष्ठ 74, ‘‘कबीर चरित्र बोध‘‘ पृष्ठ 1794 से 1796, और ‘‘स्वसमवेद बोध‘‘ पृष्ठ 134 में भी मिलता है।
Q.6 कबीर जी हिंदू और मुसलमानों को क्या शिक्षा दिया करते थे?
कबीर साहेब जी ने हमेशा हिंदू और मुस्लिमों को एकजुट रहने की शिक्षा दी है।
Q.7 कबीर साहेब जी प्रकट हुए थे या उन्होंने जन्म लिया था?
कबीर साहेब जी प्रकट हुए थे, उनका किसी माता के गर्भ से जन्म नहीं हुआ है। इसका प्रमाण पवित्र ऋग्वेद मंडल 9 सुक्त 96 मंत्र 17 में स्पष्ट लिखा हुआ है।
Q.8 समाज के इतने विरोध के बाद भी कबीर साहेब जी के उस समय 64 लाख शिष्य कैसे हो गए थे?
यह मुमकिन तभी हो पाया क्योंकि कबीर साहेब जी स्वयं पूर्ण परमात्मा हैं और उन्होंने उस वक्त जगह-जगह प्रकट होकर अपने तत्वज्ञान का प्रचार किया, जैसा कि वह प्रत्येक युग में करते हैं।
Q.9 कबीर साहेब जी के गुरु कौन थे?
कबीर साहेब जी ने लीला करते हुए स्वामी रामानंद जी को अपना गुरु बनाया था।
Q.10 कबीर साहेब जी किस धर्म को मानते थे?
कबीर साहेब जी इंसानियत के धर्म को मानते थे। कबीर जी अपनी वाणी में कहते हैं कि;
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।
Q.11 कबीर साहेब जी ने विवाह नहीं किया था फिर भी उनके एक पुत्र और एक पुत्री कैसे थे?
कबीर साहेब जी ने दो मृत बालकों को अपनी शब्द शक्ति से जीवित किया था और उनको ही अपने पुत्र कमाल और पुत्री कमाली के रूप में रखा था।
Q.12 कबीर साहेब जी के ज्ञान ने कैसे अन्य नकली संतो की दुकानें बंद की थी?
कबीर साहेब जी ने अपने तत्वज्ञान से जो प्रश्न समाज के सामने रखे, उनके जवाब नकली संतों के पास नही थे। इसी वजह से उनकी दुकानें बंद होती गईं।