अज्ञानतावश लोकवेद के अनुसार ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव पूर्ण परमात्मा हैं। हिंदू धर्म में उन्हें शंकर/ शंभु/ महेश/ रूद्र/ भोलेनाथ/ कैलाशपति/ त्रिकालदर्शी आदि अन्य नामों से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि भगवान शिव देवों में देव महादेव हैं जो पूर्ण परमात्मा हैं। कुछ लोग अपने शिव भगवान को आदियोगी/ महाशिव/ महाकाल/ सदाशिव/ साम्ब सदाशिव/ बाबा विश्वनाथ/ पशुपतिनाथ के रूप में भी पूजते हैं। जब धर्मग्रंथों का गहन अध्ययन किया जाता है तो पता चलता है कि शिव/ शंकर और महाशिव/सदाशिव दो भिन्न सत्ताएं हैं। ये दो अलग अलग देव हैं जिनकी भूमिका, परिचय, पूजा विधि, मंत्र और शक्तियां एक दूसरे से पूर्णतया भिन्न हैं।
यह सर्व विदित है कि अधूरा ज्ञान समाज के लिए हानिकारक होता है। अब तक सही आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में ऋषियों, संतों महंतों, एवं मंडलेश्वरों द्वारा अधूरा और भ्रामक ज्ञान प्रदान किया गया है। हिंदू धर्म में चार वेदों के अतिरिक्त एक अन्य पांचवां वेद है जिसे सूक्ष्म वेद कहते हैं। इसकी जानकारी भक्त समाज को कम ही है। यह सूक्ष्मवेद सच्चिदानंद घन ब्रह्म के मुख कमल से बोली गई उक्तियों, दोहों, भजन व अन्य वाणियों का संग्रह है। स्वयं परमात्मा इस वेद के माध्यम से शिव और सदाशिव में भेद बताते हैं।
शास्त्रों के आधार पर इस लेख का उद्देश्य भगवान शिव और भगवान सदाशिव के मध्य का अंतर समझाना है। ये दोनों देवता हैं और दोनों ही नश्वर हैं। दोनों की ही भक्ति से मुक्ति संभव नहीं है। मुक्ति के सही मंत्र भक्त समाज को ज्ञात न होने के कारण साधक मोक्ष प्राप्त न करके केवल चौरासी लाख योनियों के चक्र में ही उलझे रहते हैं।
इन देवताओं के मूल मंत्र अलग अलग हैं जिन्हें केवल तत्वदर्शी संत ही जानते हैं। वे संत पूर्ण परमात्मा/ परम अक्षर ब्रह्म/ सत्पुरुष के प्रतिनिधि होते हैं। ऐसे तत्वदर्शी संत जो वास्तविक नाम मंत्र बताते हैं उनसे ही साधक को चौरासी लाख योनियों के कष्ट से मुक्ति मिलती है और परम् आनंदमय स्थान यानी सतलोक की प्राप्ति होती है।
बिना विलंब आइए जानें हमारे धर्मग्रंथों से प्रमाणित शिव और महाशिव के मध्य अंतर और उनके विषय में सर्व जानकारी।
- भगवान शिव/शंकर के माता-पिता कौन हैं?
- भगवान सदाशिव/महाशिव कौन हैं?
- भगवान शिव/शंकर के दादा कौन हैं?
- भगवान शिव/शंकर के पिता भगवान सदाशिव और माता देवी दुर्गा की उत्पत्ति
- भगवान शिव/शंकर के जन्म की कथा
- भगवान शिव/शंकर क्या धारण करते हैं?
- भगवान शिव/शंकर की पत्नी कौन हैं?
- भगवान शिव/शंकर की पत्नी देवी उमा/पार्वती की उत्पत्ति
- भगवान शिव/शंकर की आयु कितनी है?
- भगवान सदाशिव/महाशिव/महाकाल की आयु कितनी है?
- भगवान सदाशिव/महाशिव कहाँ निवास करते हैं?
- भगवान शिव/ शंकर कहाँ निवास करते हैं?
- हिंदू भगवान शिव/शंकर की सवारी कौन है?
- भगवान शिव, आदियोगी, मिथक अथवा सत्य
- भगवान शिव/शंकर को नीलकंठ क्यों कहा जाता है?
- मानव शरीर चक्र में भगवान सदाशिव/महाकाल का स्थान
- मानव शरीर चक्र में भगवान शिव/शंकर का स्थान
- 21 ब्रह्माण्डों में भगवान शिव/शंकर की क्या भूमिका है?
- भगवान शिव/शंकर की संतान कौन हैं?
- क्या भगवान भैरव/काल भद्र और भगवान शिव एक ही हैं?
- भगवान शिव/शंकर ने प्रजापति दक्ष को क्यों मारा?
- भगवान शिव/शंकर ने उमा/पार्वती के कंकाल को कई युगों तक क्यों ढोया?
- भगवान शिव/शंकर ने कामदेव को क्यों मारा?
- भगवान शिव भगवान विष्णु के मोहिनी रूप पर क्यों मोहित हो गए?
- क्या भगवान रूद्र और भगवान शिव एक ही हैं?
- भगवान सदाशिव/महाशिव का मंत्र क्या है?
- भगवान शिव/शंकर का मंत्र क्या है?
- अमरनाथ तीर्थ की स्थापना में भगवान शिव की भूमिका
- भगवान शिव/शंकर सुखदेव को क्यों मारना चाहते थे?
- कैसे शुरू हुई शिवलिंग की पूजा?
- क्या है भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए की जाने वाली कांवड़ यात्रा का सच?
- गंगा नदी के भगवान शिव/शंकर तक पहुंचने के पीछे क्या है कहानी?
- भगवान शिव/शंकर की पूजा करके रावण को क्या हासिल हुआ?
- भगवान शिव/शंकर को राक्षस भस्मागिरी से किसने बचाया?
- भगवान शिव/शंकर के उपासकों द्वारा हरिद्वार में नरसंहार
- नश्वर भगवान सदाशिव और भगवान शिव मुक्ति प्रदान नहीं कर सकते
- भगवान शिव/शंकर किसका ध्यान करते हैं?
- शिव पुराण का सार क्या है?
- इस्लाम में शिव क्या है?
- भगवान शिव/शंकर से महान कौन सा देवता है?
- कौन सा भगवान मोक्ष प्रदान करता है?
सर्वप्रथम हम ये जानेंगे कि भगवान शिव के विषय में नकली और अज्ञानी धर्मगुरु क्या प्रचार करते हैं। इसके पश्चात हम धर्मग्रंथों में वर्णित तथ्यों पर तुलनात्मक विश्लेषण करेंगे।
भगवान शिव/शंकर एवं महाशिव/सदाशिव के विषय में अज्ञानी धार्मिक गुरुओं के विचार
किसी भी धर्म में धर्मगुरु की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। हिंदू धर्म में भी धर्मगुरु की भूमिका महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे धार्मिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन देते हैं। आध्यात्मिक रहस्य बहुत गूढ़ होते हैं इसलिए अगर उन्हें ठीक से न समझाया जाए तो समाज में भ्रामक जानकारी फैलती है जो शास्त्रविरुद्ध होती है। नकली धर्मगुरु स्वयं ज्ञान न होते हुए भी लालच में गुरु पद पर बैठकर कई बार गलत जानकारी से जनता को भ्रमित कर देते हैं जिससे अध्यात्म का स्वरूप ही बिगड़ जाता है। इस लेख का उद्देश्य उलझे आध्यात्मिक ज्ञान को सुलझाना है।
सदियों से भक्त समाज में शिव और सदाशिव/महाशिव में अंतर को लेकर रहस्य बना हुआ है। वर्तमान के मंडलेश्वर/ संत और महंत सदियों से गलत ज्ञान का प्रचार कर रहे हैं जोकि पूरी तरह से मनमाना है तथा प्रमाणित ग्रन्थों के अनुसार भी नहीं है। उनके द्वारा दिए बयान कुछ इस प्रकार हैं -
● भगवान शिव/शंकर स्वयंभू हैं। इसलिए उन्हें शम्भू भी कहा जाता है। उनके माता-पिता नहीं हैं।
● भगवान शिव/शंकर अनादि काल से हैं और प्रलय के बाद भी रहेंगे।
● भगवान शिव/शंकर अमर-सनातन, मृत्युंजय (जिसने मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है), कालिंजय (जिसने काल पर विजय प्राप्त कर ली है), त्रिकालदर्शी (तीन लोकों की हर चीज का ज्ञाता), सर्वोच्च शक्ति, निर्माता और साथ ही सृष्टि के संहारक है।
● भगवान शिव/शंकर शुभ और कल्याण के अवतार हैं।
● भगवान शिव/शंकर ब्रह्मांड के पिता (जगतपिता) हैं। सृष्टि की उत्पत्तिकर्ता देवी पार्वती (जगत-जननी) सभी जीवित प्राणियों की माता हैं।
● शिव/शंकर सर्गुण (मूर्ति रूप) भी हैं और निर्गुण (लिंग रूप) भी हैं।
● शंकर जी के पिता शंकर ही हैं। महादेव के पिता महादेव ही हैं और कोई नहीं।
● शिव निराकार (अरूप) हैं।
● शंकर जी के सिर और गर्दन पर नाग लिपटा हुआ है जो इस बात का प्रतीक है कि वे कालों के काल अर्थात महाकाल हैं। वे काल को धारण करते हैं अर्थात समय को नियंत्रित करते हैं इसलिए अन्य तो देवता हैं जबकि शंकर जी देवों के देव महादेव हैं।
● शिव का हृदय विष्णु है और विष्णु का हृदय शिव है, इसलिए दोनों एक हैं। जब लोग/भक्त भ्रमित हो गए, तब शैव और वैष्णव दोनों के बीच लड़ाई को समाप्त करने के लिए भगवान शिव आधे विष्णु और आधे शिव रूप में कर्नाटक के हरिहर नामक स्थान पर प्रकट हुए।
● ब्रह्मा जी के पिता भगवान विष्णु हैं। विष्णु जी के पिता भगवान शंकर हैं। शिव जी का जन्म नहीं हुआ।
● वेद और पुराण शंकर जी को पूर्ण ब्रह्म बताते हैं इसलिए शिव पुराण की रचना हुई है।
● शिव जी 'अर्धनारीश्वर' हैं इसलिए शक्ति उन्हीं से है। शिव शक्ति से हैं, शिव में विष्णु हैं और विष्णु में महेश हैं।
● शैवागम का कहना है कि सत्य और असत्य शब्द बाद में आए, शिव पहले हैं। जहां सत्य है वहां असत्य नहीं। जब सत्य और असत्य प्रकट होते हैं तब असत्य की उपस्थिति में 'असदख्य' का श्रोता होता है और सत्य की उपस्थिति में 'साधक्य' का श्रोता होता है। इसी से भगवान भूतभावन (शिव) का नाम सदाशिव हो गया।
● शिव के दृढ़ भक्त केवल शिव के निवास स्थान में ही पूजा करते हैं। अतः कैलाश निवास में शिव जी अपने मूल रूप में हैं और सदाशिव कहलाते हैं। शिवजी का यह सदाशिव स्वरूप विष्णु तत्व का स्वरूप है। विष्णु तत्व और शिव तत्व में कोई अंतर नहीं है। वही सदाशिव जब ब्रह्मांड के अंदर अपना विस्तार करते हैं तो शिव रूप में प्रकट होते हैं। जब वह विनाश का कार्य करते हैं तो उन्हें रुद्र कहा जाता है।
● भगवान सदाशिव शिवपुरी में निवास करते हैं। निराकार शिव को सदाशिव कहा जाता है।
● अध्यात्म जगत में शिव ही सत्य हैं, बाकी तो नाम मात्र हैं। 'सत्यम शिवम सुन्दरम'। शिव आत्मा है। शिव के लिए 'शिवोहम्' कहा गया है। शंकरोहम् नहीं कहा जा सकता। शिव का चरित्र नहीं है, शंकर का चरित्र है। शिव का कोई परिवार नहीं है। शंकर का परिवार है, पत्नी और बच्चे हैं।
● शंकर किसी पुराण या कथा के केन्द्रीय पात्र हो सकते हैं परन्तु शिव नहीं। वास्तव में जिसे हम शिव पुराण के नाम से जानते हैं वह वास्तव में शंकर की कथा है, शिव की नहीं।
● शंकर/भोलेनाथ ने विष्णु, ब्रह्मा और महेश (शंकर) को जन्म दिया है।
● मंगल शिव जी के पिता का नाम है।
● ब्रह्मा भगवान नारायण के पुत्र हैं। भगवान शिव ब्रह्मा के पुत्र हैं। भगवान शिव ब्रह्मा जी की भौंह से प्रकट हुए हैं। ब्रह्मा, विष्णु की नाभि से निकले हैं। विष्णु नारायण स्वयंभू हैं।
● शिव को देखा नहीं जा सकता। वे निराकार हैं। वह कल्पना से परे, पाप-पुण्य से परे, धर्म और जाति से परे है।
● शंकर जी निरंतर भगवान शिव का ध्यान करते रहते हैं। अतः भगवान शिव ज्योति स्वरूप हैं। इसलिए इसे ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। शंकर जी साकार हैं। शिव निराकार हैं। शंकर संहारक हैं। शिव दयालु हैं। शंकर सृष्टि हैं और शिव रचयिता हैं। भगवान शिव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के निर्माता हैं। शिवलिंग में तीन रेखाएं और बीच में एक ज्योति ब्रह्मा, विष्णु और शंकर का प्रतीक है और बीच में बिंदु शिव का प्रतीक है जो ज्योति-रूप है।
● शंकर तो एक ब्रह्माण्ड के स्वामी हैं। शिव/सदाशिव 21 ब्रह्माण्डों के स्वामी हैं। शंकर जी ब्रह्माण्ड के भीतर निवास करते हैं और उनका मूल रूप सदाशिव समस्त ब्रह्माण्ड से परे है, यहाँ तक कि निराकार सर्वशक्तिमान से भी परे है। वहां उनका नाम सदाशिव है।
व्याख्या: ये वर्तमान समय के कुछ प्रसिद्ध धर्म गुरुओं के विचार दिए गए हैं। सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह है कि वर्तमान समय के प्रसिद्ध धर्म प्रचारकों/गुरुओं/आचार्यों/शंकराचार्यों के कथनों से निकले उपरोक्त विचार एक-दूसरे से ही मेल नहीं खाते। भगवान शिव/शंकर और भगवान सदाशिव के बारे में हर कोई अपने मनगढ़ंत सिद्धांत दे रहा है जो प्रमाणिक धर्मग्रंथों द्वारा समर्थित नहीं हैं।
सूक्ष्मवेद में कहा गया है कि ऐसे अज्ञानी गुरुओं, संतों और महापुरुषों को अज्ञान रूपी मोतियाबिंद की बीमारी थी। वे संस्कृत भाषा के विद्वान थे, और चार वेदों, पुराणों और पवित्र भगवद्गीता के 18 अध्यायों को जानते थे, लेकिन अध्यात्म का क, ख, ग भी नहीं जानते थे। उनके लिए ऐसा कहा गया है -
मोती मुक्ता दर्शत नांही, ये गुरू सब अंध रे।
दीखत के तो नैन चिसम हैं, इनकै फिरा मोतिया बिंद रे।।
भगवान शिव/शंकर के बारे में सच्चाई जानने के लिए हम विभिन्न आध्यात्मिक उपदेशकों/फर्जी गुरुओं के इन कथनों को हमारे हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों से सत्यापित करेंगे। अनेकों साधु-संतों ने अपना जीवन अमूल्य आध्यात्मिक जानकारी को समझने में ख़त्म कर दिया, फिर भी किसी ने भी भगवान सदाशिव और भगवान शिव/शंकर के अंतर को नहीं समझा। जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज पूरे विश्व में एकमात्र संत हैं जिन्होंने धर्मशास्त्रों के गूढ़ रहस्यों को उजागर करके एक एक रहस्य सरल शब्दों में समझाया है। इनमें से कुछ को हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे। आगे बढ़ने से पहले आइए हमारे प्राचीन धार्मिक ग्रन्थों का अवलोकन करते है।
भगवान शिव/ शंकर के माता पिता कौन हैं?
अज्ञानी धर्मगुरु भगवान शिव/ शंकर को अजन्मा घोषित कर देते हैं। उनके अनुसार न तो शिव/ शंकर के पिता हैं और न ही माता, उनकी उत्पत्ति स्वयं हुई है। जबकि हमारे हिंदू धर्म के धर्मग्रंथ बताते हैं कि भगवान शिव/ शंकर का जन्म हुआ था। उनके पिता ब्रह्म हैं जिन्हें भगवान सदाशिव/ महाशिव/ क्षर पुरुष/ ज्योति निरंजन/ महाकाल/ अलख निरंजन/ धर्मराय भी कहा जाता है। इसका प्रमाण संक्षिप्त शिव पुराण, रूद्र संहिता, 6वें व 7वें अध्याय, पृष्ठ 98-103 में है। इसके संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार हैं तथा यह गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित है। (गोबिंद भवन कार्यालय, कोलकाता संस्थान, गोरखपुर)
भगवान शिव/शंकर की माता देवी दुर्गा/प्रकृति/अष्टांगी हैं
श्रीमद् देवी भागवत पुराण, तृतीय स्कंद, पृष्ठ 114-118, पृष्ठ 11-12 अध्याय 5 श्लोक 12, पृष्ठ 14 श्लोक 43 में दिए गए प्रमाण से सिद्ध होता है कि देवी दुर्गा तथा ब्रह्म काल पति-पत्नी हैं। दुर्गा/प्रकृति का ब्रह्म/सदाशिव से अभिन्न संबंध है। प्रकृति और पुरुष/धर्मराय दोनों एक साथ रहते हैं और सदा भोग विलास (संभोग से उत्पत्ति) करते रहते हैं। उनका हाल किसी को नहीं पता। वह अपने बड़े बेटे ब्रह्मा को यह बात बताती है
'वह (सदाशिव) जो है, वही मैं हूं; मैं जो हूं, वह है। मानसिक भ्रम के कारण भेद कथित है।'
विशेष: भगवान सदाशिव/ब्रह्म काल ही श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान दाता हैं। उन्होंने महाभारत युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण के शरीर में प्रेत की तरह प्रवेश करके अर्जुन को आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया था। गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में वर्णित प्रमाण के अनुसार भगवान सदाशिव/ब्रह्म ने अर्जुन को अपना परिचय देते हुए कहा है कि 'मैं संसार का संहार करने वाला बढ़ा हुआ काल हूं। अब मैं सबको खाने के लिए, सबका नाश करने के लिए प्रकट हुआ हूँ।'
वही भगवान काल/सदाशिव भगवद्गीता अध्याय 14 श्लोक 3-5 में बताते है कि वह आदि प्रकृति/दुर्गा के गर्भ में बीज स्थापित करने वाले पिता है, उनके संयोग से ही काल के 21 ब्रह्मांडों में प्राणी उत्पन्न होते हैं।
कबीर सागर में सृष्टि रचना का प्रमाण है। पवित्र कबीर सागर (कबीर पंथी, भारत पथिक स्वामी युगलानंद बिहारी द्वारा प्रकाशित, प्रकाशक और मुद्रक खेमराज श्री कृष्णदास प्रकाशन, अध्यक्ष श्री वेंकटेश्वर प्रेस हैं, खेमराज श्री कृष्णदास रोड, मुंबई) यानी सूक्ष्म वेद में सृष्टि रचना अध्याय खंड बोध सागर में अध्याय ज्ञान बोध, खंड 1 में यह स्पष्ट किया गया है कि भगवान सदाशिव/महाशिव/ब्रह्म काल का विवाह दुर्गा से हुआ है। वे पति-पत्नी के रूप में रहते हैं और 21 ब्रह्मांडों में सारी रचनाएँ करते हैं। दोनों भौतिक शरीर में स्वरूप में हैं।
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
इसके अलावा भी सूक्ष्मवेद में यह स्पष्ट किया गया कि दोनों पति-पत्नी हैं -
धर्मराय को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। माया को रही तब आसा।।
उपरोक्त विषय को लेकर हिंदू धार्मिक ग्रन्थों में भी साक्ष्य हैं। किंतु सही आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में लोगों से ब्रह्म/ सदाशिव का भेद अज्ञात रहा। इस लेख के माध्यम से भगवान सदाशिव के विषय में यह बात प्रमाणित हो जाएगी कि वे भगवान शिव के पिता हैं (प्रमाण संक्षिप्त शिव पुराण, रुद्र संहिता 6वां अध्याय, पृष्ठ संख्या 102)। शिव और सदाशिव दोनों ही अलग-अलग सत्ताएँ हैं, दो अलग-अलग भगवान हैं तथा शिव और सदाशिव के संबंध में अज्ञानी गुरुओं के सभी सिद्धांत गलत हैं। आगे बढ़ते हुए हम भगवान सदाशिव के अस्तित्व के संबंध में कई साक्ष्य धार्मिक ग्रन्थों से देखेंगे।
भगवान सदाशिव/महाशिव कौन हैं?
भगवान सदाशिव/ब्रह्म काल 21 ब्रह्मांडों का स्वामी है जहाँ हम सभी आत्माएं निवास करती हैं।
प्रमाण श्री विष्णु पुराण:- भाग-4 अध्याय 1 पृष्ठ 230-231 श्लोक 83 व 86 में भगवान सदाशिव/महाशिव को 21 ब्रह्माण्डों का स्वामी कहा गया है।
पवित्र सूक्ष्म वेद में वर्णित निम्नलिखित वाणी से सिद्ध होता है कि सदाशिव/काल शैतान/शैतान/दुष्ट आत्मा है जिसे प्रतिदिन एक लाख सूक्ष्म मानव शरीरों का मैल खाने (गीता अध्याय 11 श्लोक 21) तथा सवा लाख जीव प्रतिदिन उत्पन्न करने का श्राप लगा हुआ है।
अलख निरंजन बड़ा बटपारा। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।
इसका विस्तृत वर्णन पवित्र कबीर सागर के 'अनुराग सागर' और 'कबीर वाणी' अध्याय में वर्णित है। ऋग्वेद मण्डल नं 10 सूक्त 90 मन्त्र 1 में उसके जिस स्वरूप का वर्णन है वह अत्यंत भयानक है। इनका विशाल रूप भयभीत करने वाला है तथा उसके एक-एक हजार सिर, आँखें, हाथ और पैर हैं। वह एक हजार कलाओं का स्वामी है।
गीता अध्याय 15 श्लोक 1-4, 16 व 17 में उल्टे संसार के रूप में ब्रह्मांड की रचना का वर्णन किया गया है जिसके अनुसार संसार को एक पीपल के पेड़ की तरह बताया गया है जिसमें ब्रह्म काल/सदाशिव को एक तने के रूप में दर्शाया गया है जिसमें तीन शाखाएँ जुड़ी हुई हैं जो तीन गुणों को दर्शाती हैं (ब्रह्मा, विष्णु, शिव)।
सच्चिदानंद घन ब्रह्म की वाणी में भगवान सदाशिव/ब्रह्म काल/क्षर पुरुष का उल्लेख किया गया है यह बिलकुल सही तरीक़े से गीता के इन अध्यायों की जानकारी देता है।
कबीर, अक्षर पुरुष एक पेड़ है, निरंजन वाकी डार।
तीनों देवा शाखा है, ये पात रूप संसार।।
गीता अध्याय 14 श्लोक 3-5 प्रमाणित करता है कि भगवान सदाशिव/क्षर पुरुष भगवान शिव/शंकर के पिता हैं तथा देवी दुर्गा उनकी माता हैं। यही प्रमाण श्री शिव महापुराण (प्रमाण संक्षिप्त शिव पुराण, रूद्र संहिता छठा अध्याय, पृष्ठ संख्या 102), देवी पुराण तथा मार्कण्डेय पुराण में मिलता है।
गीता अध्याय 4 के श्लोक 5 से 9 में बताया गया है कि भगवान सदाशिव जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं। यही स्थिति भगवान शिव/शंकर सहित सभी देवी-देवताओं और प्राणियों की है। उनके कर्म अलौकिक हैं।
चूंकि भगवान सदाशिव/महाशिव को उनके दुराचार के कारण शाश्वत लोक, सतलोक में श्राप दिया गया था और वहां से सोलह संख कोस की दूरी पर निष्कासित कर दिया गया था, इसलिए उन्होंने अव्यक्त रहने की कसम खाई (गीता अध्याय 7 श्लोक 24 और 25)। यही प्रमाण कबीर सागर अध्याय "स्वसंवेद बोध" के पृष्ठ संख्या 96 में है, "श्वांश गुंजार" के पृष्ठ संख्या 21 एवं "अनुराग सागर" के पृष्ठ संख्या 26 में दिया गया है। सदाशिव/ महाशिव कभी भी अपने मूल रूप में प्रकट नहीं होते (गीता अध्याय 9 श्लोक 11) इस कारण वे कम प्रसिद्ध हैं, लेकिन पवित्र ग्रंथों में उनके अस्तित्व के पर्याप्त प्रमाण हैं जो अधूरे गुरु/नकली उपदेशक नहीं बता सके बल्कि यह कहकर भ्रामक ज्ञान फैलाते रहे कि शिव और सदाशिव एक ही हैं।
नोट: भगवान सदाशिव ने केवल एक बार अपना विशाल रूप दिखाया था जो महाभारत युद्ध के दौरान युद्ध के मैदान में अर्जुन के लिए भी बहुत डरावना अनुभव था जैसा कि गीता 11:47 में स्पष्ट है।
भगवान शिव/शंकर के दादा कौन हैं?
जब पवित्र ग्रंथों में जानकारी होने के बावजूद नकली धर्म गुरुओं को भगवान शिव/शंकर के माता-पिता के बारे में ही पता नहीं है तो उन्हें उनके दादा के बारे में कैसे पता होगा?
सर्वशक्तिमान कविर्देव/सतपुरुष शिव जी के दादा और भगवान सदाशिव/महाशिव के पिता हैं। सूक्ष्मवेद के श्लोकों की व्याख्या 'यथार्थ भक्ति बोध' पुस्तक के पृष्ठ 130-131 पर लिखित वाणी संख्या 12 से भी यही स्पष्ट होता है।
सतपुरुष से ओंकारा। अविगत रूप रचे गैनारा।।12
अर्थ: ओंकार शब्द काल का सांकेतिक रूप है। काल (सदाशिव) की रचना सत्पुरुष ने की थी, जिन्होंने सभी पर्वतों की भी रचना की थी।
परम अक्षर ब्रह्म/सत्पुरुष कबीर साहेब, अविनाशी-अमर भगवान संपूर्ण ब्रह्मांडों के रचयिता हैं जिनका प्रमाण सभी धर्मों के पवित्र ग्रंथों में वर्णित है लेकिन अज्ञानी संत/महंत/मंडलेश्वर पवित्र ग्रंथों के इन गूढ़ रहस्यों को न तो ख़ुद समझ सके और न ही जनता को समझा सके। बल्कि मनगढ़ंत ज्ञान बताकर जनता को सदियों से गुमराह करते रहे।
कबीर परमेश्वर ने वायु, जल, आकाश, पर्वत, सूर्य, चंद्रमा, तारे आदि तथा सर्वोपरि आत्माओं की रचना की। सभी जीवित प्राणी उनकी रचनाएँ हैं। उन्होंने ही क्षर पुरुष/भगवान सदाशिव/ब्रह्म काल तथा दुर्गा/प्रकृति की रचना की। वह स्वयंभू हैं और कोई नहीं। वह ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश आदि देवताओं के अस्तित्व में आने से पहले भी अस्तित्व में थे।
यथार्थ बोध वाणी क्रमांक 2-4, पृष्ठ 171 पर लिखा है -
जा दिन ना थे पिंड न प्राणा, नहिं पानी पवन जमीं असमाना।।2
कच्छ मच्छ कूरम्भ न काया, चंद सूर नहीं दीप बनाया।।3
शेष महेश गणेश न ब्रह्मा, नारद शारद न विश्वकर्मा।।4
इसका प्रमाण ऋग्वेद मण्डल नं.10 सूक्त 90 मन्त्र 1-4 में भी मिलता है। ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 में परम परमेश्वर के साक्षात परम धाम सतलोक की महिमा बताई गई है। इसके अलावा अथर्ववेद कांड 4 अनुवाक 1 मंत्र 1-7 और यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 1, अध्याय 1 मंत्र 15. पवित्र श्रीमद्भगवद गीता अध्याय 15 श्लोक 1-4, 16,17 में भी इसका प्रमाण है। पवित्र कुरान शरीफ सूरत फुरकान 25 आयत 52-59, पवित्र बाइबिल उत्पत्ति A1: 20-25, Iyov 36:5 (OJB) और कई अन्य स्थानों पर कबीर परमेश्वर का उल्लेख है।
पूर्ण परमात्मा कबीर ही सदाशिव के पिता और सबके मुक्तिदाता यानी बंदीछोड़ हैं जिसका प्रमाण ऋग्वेद मण्डल नं.10 सुक्त 90 मन्त्र 15,16 में है। वह पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मन्त्र 32 तथा अध्याय 8 मन्त्र 13 के अनुसार पापों के नाश करने वाले हैं।
पवित्र कबीर सागर (सूक्ष्मवेद) भी प्रमाणित करता है कि कबीर भगवान हैं, सभी ब्रह्मांडों के निर्माता हैं। उन्होंने ही भगवान सदाशिव की रचना की। वह शिव/शंभू/शंकर के दादा हैं।
अब हम सदाशिव/ब्रह्म काल की उत्पत्ति के बारे में जानेंगे।
भगवान सदाशिव (पिता), भगवान शिव/शंकर और देवी दुर्गा (माता) की उत्पत्ति
संदर्भ: कबीर सागर
पूज्य गुरु नानक देव जी की अमृतवाणी महला 1, गुरु ग्रंथ साहिब में राग बिलावल अंश 1, पृष्ठ नं. 839), पूज्य संत गरीब दास जी महाराज की अमृतवाणी में आदि रमैनी (सद्ग्रंथ पृष्ठ नं. 690 से 692) में सम्पूर्ण सृष्टि रचना के प्रमाण हैं। ऋग्वेद मण्डल नं.10 सूक्त 90 मन्त्र 5 भी इसकी गवाही देता हैं।
प्रारंभ में स्वयंभू सत्पुरुष/सर्वशक्तिमान कविर्देव बिल्कुल अकेले थे। वे अनामीलोक/अनामयलोक/अकहलोक में रहते थे। उनका अत्यंत कांतिमय शरीर करोड़ों सूर्यों और करोड़ों चंद्रमाओं के सम्मिलित प्रकाश से भी अधिक चमकीला है। सभी आत्माएँ परमात्मा के शरीर के अंदर समाहित थीं। तब परमेश्वर कबीर ने अपनी शब्द शक्ति से सबसे पहले तीन नीचे के लोकों अगम लोक, अलख लोक तथा सतलोक की रचना की।
इसके अलावा सतलोक में सतपुरुष ने शब्द शक्ति से 16 द्वीपों की रचना की। फिर शब्द शक्ति से ही उन्होंने 16 पुत्रों को उत्पन्न किया। इसके बाद परम अक्षर ब्रह्म ने मानसरोवर झील की रचना की और उसे अमृत जल से भर दिया। सर्वशक्तिमान/सतपुरुष ने इसके पश्चात शेष सृष्टि की रचना का भार अचिन्त नामक अपने एक पुत्र को सौंपा। उसे परमेश्वर ने शब्द शक्ति प्रदान की। अचिंत ने शब्द शक्ति से सृष्टि की रचना के लिए अक्षर पुरुष/परब्रह्म की रचना की।
एक बार परब्रह्म/अक्षर पुरुष स्नान के लिए मानसरोवर झील के अंदर गए जहां उन्हें सुख की अनुभूति हुई और उन्हें नींद आ गई। सतलोक में जीवन श्वासों का नहीं होता। सभी आत्माओं का शरीर एक 'नूरी' तत्व से बना है जबकि क्षर पुरुष यानी काल भगवान के लोक में पाँच तत्वों से बना है।
जब काफी देर तक अक्षर पुरुष बाहर नहीं आए तो अचिन्त असहाय हो गए, तब उसने सर्वशक्तिमान कविर्देव/सतपुरुष से प्रार्थना की और उनसे आगे की रचना में मदद करने का अनुरोध किया। क्योंकि अक्षर पुरुष बाहर नहीं आ रहे थे। परमात्मा ने मानसरोवर झील के जल से एक बहुत बड़ा अंडा बनाया और उसके अंदर एक आत्मा डालकर उसे झील में छोड़ दिया। अंडा डूबने लगा जिससे ध्वनि उत्पन्न हुई और इस कारण अक्षर पुरुष की गहरी नींद में खलल पड़ा, परिणामस्वरूप उसने क्रोध भरी दृष्टि उस विशाल अंडे पर डाली जिससे वह दो हिस्सों में टूट गया। उस अंडे से काल ब्रह्म/क्षर पुरुष निकला।
परम अक्षर ब्रह्म कविर्देव ने अचिन्त, अक्षर पुरुष तथा क्षर पुरुष तीनों को एक ही द्वीप में रहने को कहा। बाद में, परमेश्वर ने सभी आत्माओं की रचना की। अंडे से उत्पन्न कैल/काल ब्रह्म एक अत्यंत कुख्यात और दुष्ट आत्मा थी। बाद में उसे शाश्वत लोक सतलोक से निष्कासित कर दिया गया क्योंकि उसने एक युवा लड़की के साथ दुर्व्यवहार किया था जिसे बाद में अष्टंगी/ आदिमाया/दुर्गा कहा गया। यह वही ब्रह्म काल सदाशिव/महाशिव है, जो 21 ब्रह्मांडों का स्वामी है। यह उसे अपने लिए एक अलग स्वतंत्र द्वीप बनाने के उद्देश्य से सतलोक में की गई कठोर तपस्या के फलस्वरूप प्राप्त हुआ था।
यह भगवान सदाशिव और देवी दुर्गा की रचना की सच्ची कहानी है जो पति और पत्नी हैं (अथर्ववेद कांड संख्या 4 अनुवाक संख्या 1 मंत्र संख्या 5) और अपने 21 ब्रह्मांडों में सभी रचनाएँ करते हैं। यहां मृत लोक में रहने वाली सभी आत्माओं को भी सदाशिव और अष्टांगी के साथ निष्कासित कर दिया गया था क्योंकि हम सभी अपने सुख देने वाले पिता, भगवान कविर्देव के प्रति निष्ठावान नहीं रहे थे। जब काल वह कठोर तपस्या कर रहा था, हम बार बार चेतावनी मिलने के बाद भी उसकी ओर आसक्त होते रहे। हम क्षर पुरुष पर अत्यधिक मोहित हो गए थे। हमने अपने पिता को धोखा दिया जिन्होंने हमें सतलोक में सभी सुख प्रदान किए और ब्रह्म के साथ उसके 21 ब्रह्मांडों में आने की स्वीकृति दी। स्वीकृति देने वालों में आदिमाया/दुर्गा पहली आत्मा थीं। हम सभी को दंड के रूप में इस लोक में भेजा गया है जो कष्टों से भरा है।
भगवान शिव/शंकर का जन्म
नकली गुरुओं के इस उपदेश के विपरीत कि भगवान शिव/शंकर का जन्म नहीं होता है और वे शाश्वत एवं अजन्मे हैं, यहां हम उनके जन्म को प्रमाणित करेंगे।
अध्याय 14 श्लोक 3-5 में गीता ज्ञान दाता ब्रह्म काल/भगवान सदाशिव कहता है कि उसकी पत्नी प्रकृति/दुर्गा/अष्टांगी सभी प्राणियों का गर्भ है और मैं (सदाशिव/महाशिव) उसके गर्भ में बीज धारण करता हूँ। सभी जीव हमारे मिलन से पैदा होते हैं। मैं बीज देने वाला पिता हूं। आदि प्रकृति गर्भाधान करती है। प्रकृति से उत्पन्न तीन गुण रजोगुण ब्रह्मा, सतोगुण विष्णु और तमोगुण शिव शाश्वत आत्मा को शरीर से बांधते हैं।
इसका उल्लेख सच्चिदानंद घन ब्रह्म की वाणी में कुछ इस प्रकार किया गया है
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
शिव पुराण में इसका प्रमाण, विद्येश्वर संहिता, पृष्ठ 24-26, रुद्र संहिता, गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, अनुवादक श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार-अध्याय 6, 7 और 9 पृष्ठ संख्या 100-105 और 110 पर हैं। पवित्र श्रीमद् देवी महापुराण, तृतीय स्कंद, अध्याय 5, पृष्ठ संख्या 114 से 123, अध्याय 6 पृष्ठ संख्या 129 गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित, अनुवादक श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार, चिमन लाल गोस्वामी हैं, उसमें भी इसका प्रमाण है। तृतीय स्कंद अध्याय 4 श्लोक 42 पृष्ठ 10 पर, अध्याय 5 श्लोक 8 पृष्ठ 11 एवं 12 पर, तृतीय स्कंद अध्याय 1-3 पृष्ठ 119-120 सिद्ध करते हैं कि भगवान शिव/शंकर भगवान सदाशिव और देवी दुर्गा के पुत्र हैं।
भगवान शिव/शंकर क्या धारण करते हैं?
संदर्भ: साभार यथार्थ भक्ति बोध पुस्तक वाणी संख्या 38 पृष्ठ संख्या 135 पर, लेखक जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हैं।
वामें कर त्रिशूल विराजै, दहनें कर सुदर्शन साजै।38
अर्थ: भगवान शिव अपने बाएं हाथ में त्रिशूल और दाहिने हाथ में सुदर्शन चक्र रखते हैं जो उनकी शक्ति को दर्शाता है।
पेज नंबर 130 पर वाणी नंबर 7
शंकर शेष रु ब्रह्मा विष्णुं, नारद-शरद जा उर रसनम।।7
भावार्थ: इस वाणी में काल ब्रह्म की महान शक्तियों की जानकारी दी गई है। उनके नाम बताए गए हैं, शेषनाग का नाम भगवान शिव/शंकर से जोड़ा गया है। शेषनाग को एक महान शक्ति माना जाता है। शेषनाग के वंशज नाग भगवान शिव/शंकर की गर्दन की शोभा बढ़ाते हैं। शंकर जी के पास डमरू और कमंडल भी है।
पेज नंबर 134 पर वाणी नंबर 34
गंग तरंग छूटैं बहु धारा, अजपा तारी जय-जय कारा।।34
अर्थ: उनकी जटाओं से गंगा नदी बहती है। उनके मस्तक पर अर्धचंद्र उनकी सुंदरता को बढ़ाता है और वे सदा ही अजपा जाप जपते रहते हैं।
चन्द्र लिलाट सूर संगीता । योगी शंकर ध्यान उदीता।।32
पेज नंबर 134-135 पर रमैणी नंबर 37
सर्प भुवंग गले रुंड माला, वृषभ चढ़िये दीन दयाला।।37
दूसरी ओर वह भस्मकंडा (कंगन) पहनते हैं और मुंडमाला (अपनी पत्नी पार्वती के पिछले जन्म की खोपड़ी की माला) पहनते हैं।
भगवान शिव/शंकर की पत्नी कौन हैं?
देवी पार्वती अपने 108वें जन्म में भगवान शिव/शंकर की पत्नी हैं। पूर्वजन्म में उसी आत्मा का नाम उमा/सती आदि था।
संदर्भ: यथार्थ भक्ति बोध पुस्तक संख्या 8 पृष्ठ संख्या 130 पर
गौरज और गणेश गौसांईं, कारज सकल सिद्ध होय जाहीं।।8
अर्थ: भगवान शिव/शंकर की पत्नी देवी पार्वती अपनी शक्ति के स्तर तक अपने भक्तों को सुख प्रदान करती हैं। जो साधक उनकी सच्ची भक्ति करते हैं और किसी तत्वदर्शी संत द्वारा दिए गए उनके सच्चे मंत्र का जाप करते हैं, उन्हें उनसे लाभ प्राप्त होता है।
पेज नंबर 130 पर वाणी नंबर 9-10
ब्रह्मा विष्णु और शम्भू शेषा , तीनों देव दयालु हमेशा।।9
सावित्री और लक्ष्मी गौरा, तिहूँ देवा सिर कर हैं चौंवरा।।10
अर्थात तीनों देवता श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु और श्री शिव दयालु हैं। उनकी पत्नियाँ सम्मान के संकेत के रूप में अपने पतियों के ऊपर चंवर डुलाती रहती हैं। देवी सावित्री अपने पति ब्रह्मा जी के ऊपर और लक्ष्मी जी श्री विष्णु जी के ऊपर चंवर डुलाती हैं। इसी प्रकार देवी पार्वती भगवान शिव/शंकर पर चंवर करती हैं।
भगवान शिव/शंकर की पत्नी देवी उमा/पार्वती की उत्पत्ति
संदर्भ: (सुक्ष्मवेद) जब तीनों पुत्र ब्रह्मा, विष्णु और शिव युवा हो गए थे और उन्हें उनके लोकों या विभागों की जिम्मेदारी सौंपी गई, तब भगवान सदाशिव/महाकाल/महाशिव ने अपनी पत्नी अष्टंगी/दुर्गा से कहा कि वे तीनों पुत्रों को समुद्र मंथन के लिए भेजें। सदाशिव ने दुर्गा को यह आदेश दिया कि वह तीन रूप बनाकर समंदर में रहे और समुद्र मंथन में निकले। दुर्गा यानी अष्टांगी ने वैसा ही किया जैसा निर्देश सदाशिव ने दिया गया था। जब दूसरी बार समुद्र मंथन हुआ तो तीन युवतियां निकलीं। सबसे पहली कन्या ज्येष्ठ पुत्र ब्रह्मा को दी गई। उसका नाम सावित्री रखा गया। देवी दुर्गा ने वचनों से दोनों का विवाह बिना किसी आडंबर के सादगी से कर दिया। इसी प्रकार दूसरी कन्या का नाम देवी लक्ष्मी रखा गया और उसका विवाह विष्णु जी से हुआ। तीसरी का नाम उमा था जो भगवान शिव/शंकर की पत्नी बनीं।
इसका प्रमाण श्रीमद् देवी भागवत महापुराण भाषाभाषटीकम संहिताम्, खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाशन मुम्बई में है; संस्कृत पाठ, हिंदी में अनुवादित।
चूंकि भगवान सदाशिव, शंकर और दुर्गा सहित हर प्राणी नाशवान 21 ब्रह्मांडों में नश्वर है, उमा की भी निर्दिष्ट अवधि के बाद मृत्यु हो गई। एक ही आत्मा ने 107 बार जन्म लिया फिर 108वें जन्म में वह राजा हिमालय के घर जन्मी पार्वती थीं। हर बार पूर्व निर्धारित विधि के अनुसार उसी आत्मा का विवाह भगवान शिव से हुआ। वर्तमान में भगवान शिव और देवी पार्वती पति-पत्नी हैं।
भगवान शिव/शंकर की आयु कितनी है?
संदर्भ: सूक्ष्म वेद, दिव्य वर्ष/देव वर्ष की गणना
भगवान शिव/शंकर नश्वर हैं। उनकी आयु भी निर्धारित है। इसी प्रकार सभी देवताओं और प्राणियों की आयु ही पहले से ही निर्धारित होती है। सात ब्रह्मा जी की मृत्यु के बाद एक विष्णु जी की मृत्यु होती है। सात विष्णु जी की मृत्यु के बाद एक शिव जी की मृत्यु होती है। इतनी ही उम्र उनकी पत्नी पार्वती जी की भी है।
नोट: भगवान शिव/शंकर की आयु उनके पिता भगवान सदाशिव/महाशिव के 21 ब्रह्मांडों में सभी देवताओं की तुलना में सबसे अधिक है। आयु भले ही अधिक है किंतु वे अमर नहीं हैं।
भगवान सदाशिव/महाशिव/महाकाल की आयु क्या है?
70,000 (सत्तर हजार) त्रिलोकी शिव की मृत्यु के बाद एक ब्रह्मलोकी महाशिव अर्थात् सदाशिव/काल ब्रह्म की मृत्यु होती है।
भगवान सदाशिव/महाशिव कहाँ निवास करते हैं?
21 ब्रह्मांडों में सब कुछ पांच तत्वों और तीन गुणों द्वारा निर्मित है। यही बात 'यथार्थ भक्ति बोध' पुस्तक के पृष्ठ संख्या 130-131 पर वाणी संख्या 11 से भी स्पष्ट है।
पंच तत्व आरंभन कीन्हा, तीन गुणन मध्य शाखा झीना।।11
पेज नं 130 पर वाणी नं 4
आब खाक पावक और पौना, गगन सुन्न दरियाई दौंना।।4
अर्थ: यहाँ समस्त सृष्टि के लिए पाँच तत्व उत्तरदायी हैं। आब (जल) खाक (पृथ्वी) पावक (अग्नि) पावन (वायु) गगन (आकाश) दौना अर्थात सतलोक को नदी तथा काल के लोक को तालाब बताया है।
भगवान सदाशिव और देवी दुर्गा ने अपने 21 ब्रह्मांडों में सभी रचनाएँ की हैं। भगवान सदाशिव अपने मूल रूप (शैतान) में ब्रह्मलोक/महाब्रह्मांड में रहता हैं जहां तप्तशिला (एक बहुत बड़ी चट्टान जो स्वचालित रूप से बहुत गर्म रहती है) है। यहां वह प्रतिदिन एक लाख सूक्ष्म मानव शरीरों को भूनकर उनका मैल खाता है। इसलिए वह एक शैतान/दुष्ट आत्मा हैं जो अव्यक्त रहता हैं। (गीता 7:25)।
उसने तीन गुप्त स्थान भी बनाये हैं जो रजोगुण प्रधान हैं जहां वे स्वयं महाब्रह्मा रूप में रहता हैं और अपनी पत्नी दुर्गा को महासावित्री रूप में रहता हैं। इनके संयोग से यहां जन्मा पुत्र स्वतः ही रजोगुण से युक्त हो जाता है। उसका नाम ब्रह्मा रखते हैं।
इसी प्रकार, सतोगुण प्रधान क्षेत्र में भगवान सदाशिव प्रकट रूप में महाविष्णु रूप में और देवी दुर्गा महालक्ष्मी रूप में निवास करती हैं। जन्म लेने वाला पुत्र स्वत: ही सतोगुण से युक्त हो जाता है। रहता नाम विष्णु रखा जाता है।
तीसरा क्षेत्र तमोगुण प्रधान है जहां वह प्रकट रूप में महाशिव के रूप में निवास करता हैं और अपनी पत्नी दुर्गा को महापार्वती रूप में रखता हैं। इस लोक में उनके मिलन से उत्पन्न पुत्र स्वतः ही तमोगुण से युक्त हो जाता है। (दुर्गा पुराण अध्याय 5, श्लोक 8)। इस पुत्र का नाम शिव रखते हैं।
भगवान शिव शंकर कहाँ निवास करते हैं?
भगवान शिव/शंकर अपनी पत्नी पार्वती देवी के साथ शिवलोक/शिवपुरी/कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं।
संदर्भ: 'यथार्थ भक्ति बोध', वाणी संख्या 41, पृष्ठ संख्या 135-136 पर
इक लख योजन ध्वजा फरकैं, पचरंग झंडे मौहरे रखैं।।41
अर्थ: आपके निवास के सामने पांच रंग का झंडा लहराता है। इसकी ऊंचाई एक लाख योजन अर्थात 12 लाख किलोमीटर है। (एक योजन=4 कोस, एक कोस=3 किलोमीटर)।
हिंदू भगवान शिव/शंकर का पर्वत कौन है?
संदर्भ: 'यथार्थ भक्ति बोध', वाणी संख्या 37, पृष्ठ संख्या 134-135 पर
सर्प भुवंग गले रुंड माला, वृषभ चढ़िये दीन दयाला।।37
अर्थ: शिव स्तुति में यह कहा जा रहा है कि हे शिव जी आपके गले में सर्प फन उठाए हुए 'सर्प भुवंग' लिपटे हुए हैं। आप देवी पार्वती की कपाल माला भी अपने गले में धारण करते हैं। दोनों आपकी गर्दन की खूबसूरती बढ़ाते हैं। हे दयालु प्रभु! आप वृषभ (नंदी बैल) पर सवारी करते हैं। आपका वाहन वृषभ अर्थात नंदी बैल है।
पेज नं.137 पर वाणी नं.48
तुम शम्भू ईशन के ईशा, वृषभ चढ़िये बिसवे बीसा।।48
अर्थ: पुनः स्तुति में कहा जा रहा है कि 'हे शिवशंभु जी! आप गणों के भी देव हैं अर्थात भगवान गणपति हैं। आप 'वृषभ' यानी नंदी बैल पर सवारी करते हैं। ये 'विश्वे बीसा' यानी पूर्ण सत्य है। आदरणीय संत गरीब दास जी महाराज कहते हैं 'हे शिव जी! आप अपने नंदी बैल पर सवार हैं। ये बिल्कुल सच है।
भगवान शिव, आदियोगी, मिथक या सत्य
संदर्भ: 'यथार्थ भक्ति बोध', संख्या 32, पृष्ठ संख्या 134 पर
चंद लिलाट सूर संगीता, योगी शंकर ध्यान उदीता।।32
अर्थ: आपके मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित है और आपके साथ 'सुर' अर्थात गाण्डीव भी निवास करते हैं। आपकी एकाग्रता यानी पूरा ध्यान त्रिकुटी की ओर ऊपर की ओर है। आगे वर्णित वाणी क्रमांक 33 से यह भी सिद्ध होता है कि भगवान शिव/शंकर आदियोगी होने के साथ-साथ दिव्य भी हैं।
पेज नं 134 पर वाणी नं 36
असन पदम लागे योगी, निः इच्छा निर्बाणी भोगी।।36
अर्थ: शिव जी महान योगी भी हैं। वे योगासन की मुद्रा पद्मासन पर विराजमान रहते हैं। वे इच्छाओं से रहित और शांत हैं अर्थात मोक्ष प्राप्त करने के उद्देश्य से आप ऊपरी लोकों पर ध्यान केंद्रित करते हैं और आनंद लेते हैं।
पेज नंबर 135 पर वाणी नंबर 39
सुन अरदास देवों के देवा, शम्भु जोगी अलख अभेवा।।39
अर्थ: 'हे देवताओं में श्रेष्ठ भगवान! हमारी प्रार्थना सुनो। हे शंकर योगी! आपकी महिमा 'अलख' अद्वितीय है जिसे कोई देख और समझ नहीं सकता। आपकी महिमा का रहस्य साधारण मनुष्य नहीं जान सकता।
इससे सिद्ध होता है कि भगवान शिव भी योगी हैं।
भगवान शिव/शंकर को नीलकंठ क्यों कहा जाता है?
संदर्भ: 'यथार्थ भक्ति बोध', संख्या 33, पृष्ठ संख्या 134 पर
नीलकंठ सोहे गरुड़ आसन। शम्भु योगी अचल सिंहासन।।33
अर्थ: भगवान शिव/शंकर ने समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को पी लिया था। उन्होंने इसे अपने गले में धारण किया जिसके कारण उनकी गर्दन नीली हो गई, इसलिए भगवान शिव/शंकर को नीलकंठ के रूप में नमस्कार किया जाता है। हे नीलकंठ! आप भी गरुड़ पक्षी की भांति सिंहासन की शोभा बढ़ाएं। जैसे, एक योग का रूप है जिसे मयूरासन कहते हैं। जैसे मोर पक्षी अपने दोनों पैरों पर लंबे पंख फैलाकर संतुलित होकर चलता है, उसी प्रकार योगाभ्यास करने वाले भी इसी मुद्रा का अनुकरण करते हैं। चूँकि शंकर जी भगवान हैं इसलिए उन्हें आदर देते हुए श्री विष्णु जी के वाहन गरुड़ पक्षी के समान योग करने वाले महान योगी के रूप में स्वागत किया जाता है। आप गरुड़ के सिंहासन को सुशोभित करें। आपका पद (आयु) बहुत लम्बे समय के लिए है।
चूंकि शंकर जी की आयु अन्य देवताओं की तुलना में सर्वाधिक है, इसलिए इसे अचल सिंहासन कहा जाता है।
मानव शरीर चक्र में भगवान सदाशिव/महाकाल का स्थान
संदर्भ: 'यथार्थ भक्ति बोध', वाणी संख्या 6, पृष्ठ संख्या 102 पर
कंठ कमल में बसै अविद्या, ज्ञान ध्यान बुद्धि नास हीं।
लील चक्र मध्य काल कर्मम्, आवत दम कूँ फांस हीं।।6
अर्थ: कंठ कमल गर्दन के पीछे रीढ़ की हड्डी पर होता है। अविद्या का अर्थ है भगवान सदाशिव/महाशिव की पत्नी देवी दुर्गा यहां निवास करती हैं जिनके प्रभाव से साधक की भक्ति के दौरान बुद्धि और एकाग्रता नष्ट हो जाती है। दुर्गा बुद्धि को भ्रष्ट कर देती है। इसकी 16 पंखुड़ियाँ हैं। यहाँ काल निरंजन/भगवान् सदाशिव भी अपनी पत्नी सहित सूक्ष्म रूप में निवास करते हैं। भगवान सदाशिव ने अव्यक्त रहने की प्रतिज्ञा की है। ये दोनों मिलकर भक्तों को आध्यात्मिक ज्ञान, एकाग्रता के साथ-साथ सांसों के साथ जपने वाले मंत्र को भी भुला देते हैं।
वाणी संख्या 8
सहंस कमल दल भी आप साहिब, ज्यौं फूलन मध्य गंध है।
पूर रह्या जगदीश योगी, सत्य समर्थ निर्बन्ध है।।8
अर्थ: सहंस्त्र कमल सिर के पीछे की ओर ऊपर की ओर होता है, जहां कुछ साधक चोटी बनाकर रखते हैं, बाल छोटे करने पर वह बिंदु वैसे भी दिखाई देता है। इस कमल में एक हजार पंखुड़ियाँ होती हैं इसलिए इसे संहस्त्र कमल कहा जाता है। भगवान सदाशिव/काल निरंजन के साथ-साथ सर्वशक्तिमान कबीर की विशेष शक्ति निरंतर विद्यमान है, जैसे सूर्य की गर्मी अन्य स्थानों की तुलना में भूमध्य रेखा पर अधिक होती है। वह पूर्ण परमात्मा जगदीश वास्तव में सर्वशक्तिमान है। वह सर्वव्यापक है। महाकाल/सदाशिव 21 ब्रह्माण्डों में बंधे हैं। कुल मिलाकर सर्वशक्तिमान ही मालिक है।
मानव शरीर चक्र में भगवान शिव/शंकर का स्थान
संदर्भ: पवित्र कबीर सागर, अध्याय कबीर वाणी, पृष्ठ 111
परम पूज्य संत गरीब दास जी महाराज की पवित्र वाणी 'ब्रह्म बेदी' की वाणी संख्या 5, यथार्थ भक्ति बोध के पृष्ठ 101-102 पर वर्णित है।
हृदय कमल महादेव देवं, सती पार्वती संग है।
सोहं जाप जपत हंसा, ज्ञान योग भल रंग है।।5
संत गरीबदास जी ने रीढ़ की हड्डी के भीतरी भाग में स्थित विभिन्न देवताओं द्वारा शासित शरीर चक्रों का विस्तृत विवरण दिया है। भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ हृदय कमल (हृदय कमल चक्र) में निवास करते हैं। हृदय कमल चक्र रीढ़ की हड्डी के भीतरी हिस्से में सीने के केंद्र के पीछे स्थित होता है जिसमें 12 पंखुड़ियाँ होती हैं।
21 ब्रह्मांडों में भगवान शिव/शंकर की क्या भूमिका है?
संहारक शिव तमोगुण से युक्त हैं। अपने पिता के लिए उनकी भूमिका उनके लिए भोजन तैयार करने की है, जिसका अर्थ है भगवान सदाशिव/महाशिव के लिए, जिन्हें अपने ऊपर लगे श्राप के कारण प्रतिदिन एक लाख सूक्ष्म मानव शरीर की गंदगी खानी पड़ती है। सूक्ष्मवेद में वर्णित वाणी से विनाश में उनकी भूमिका स्पष्ट होती है।
संदर्भ: यथार्थ भक्ति बोध का वाणी संख्या 31 पृष्ठ संख्या 134 पर
कोटि कटक पैमाल करंता, ऐसे समर्थ शंभू कंता ।।31
अर्थ: 'हे शंकर जी! आप कोटि काटक अर्थात् करोड़ों सेनाओं का नाश करने वाले हैं। हे शंकर जी! आप ऐसे समर्थ भगवान हैं।
पेज नंबर 135 पर वाणी नंबर 40
तूं पैमाल करे पल मांही, ऐसे समर्थ शम्भु साईं।।40
अर्थ: हे शिव जी! तुम प्रकृति (सृष्टि) को एक सेकण्ड में नष्ट कर देते हो। आप बहुत सक्षम हैं।
विडम्बना यह है कि भक्त अज्ञानवश शिव शम्भू की पूजा करते हैं। वे अच्छी तरह जानते हैं कि वह प्राणियों को मारता है फिर भी उन्हें भगवान मानते हैं और अपने पूज्य देवता के रूप में उनकी पूजा करते हैं।
भगवान शिव/शंकर अपनी यह भूमिका निभाने के लिए बाध्य हैं। देवी भागवत पुराण अध्याय 5 श्लोक 8 पृष्ठ 11-12 पर भगवान शंकर अपनी माता देवी दुर्गा से पूछते हैं कि आपने मुझे तमोगुणी क्यों बनाया? आपने हमें प्राणियों के जन्म और मृत्यु के पाप कर्म में क्यों लगाया?'
भगवान शिव/शंकर की संतान कौन हैं?
संदर्भ: यथार्थ भक्ति बोध के संख्या 30 पृष्ठ संख्या 133 पर
जय-जय शम्भु शंकर नाथा, कला गणेश रु गौरज माता।।30
अर्थ: जय शिव जी! आपकी जय हो नाथ! गौरज (गिरिजा=पार्वती) गणेश की मां हैं जिन्होंने उन्हें अपनी कौशल/शक्ति से बनाया है।
पेज नं.137 पर वाणी नं.48
तुम शम्भू ईशन के ईशा, वृषभ चढ़िये बिसवे बीसा।।48
अर्थ: 'हे शिवशंभु जी! आप गणों के भी देव हैं अर्थात भगवान गणेश/गणपति।
शिव जी के दूसरे पुत्र भगवान कार्तिकेय हैं
पेज नंबर 130 पर वाणी नंबर 8
गौरिज और गणेश गोसाईं, कारज सकल सिद्ध हो जाई।।8
अर्थ: भगवान शिव/शंकर के पुत्र भगवान गणेश/गणपति की महिमा की गई है, साथ ही उनकी माता गौरज/पार्वती की भी महिमा की गई है, जो उनके सच्चे मंत्र का जाप करने वाले और शास्त्र के अनुसार सही भक्ति करने वाले साधकों को खुशी प्रदान करते हैं।
नोट: केवल एक तत्वदर्शी संत ही भगवान गणेश, पार्वती और अन्य देवी-देवताओं के सही मंत्र प्रदान करता है। इनके मंत्रों के जाप का एक विशेष तरीका होता है।
क्या भगवान भैरव/काल भद्र और भगवान शिव एक ही हैं?
संदर्भ: यथार्थ भक्ति बोध के वाणी संख्या 42 पृष्ठ संख्या 136 पर
काल भद्र कृत देव बुलाऊँ, शंकर के दल सब ही ध्याऊँ।।42
अर्थ: काल भद्र की उत्पत्ति- प्रजापति दक्ष द्वारा आयोजित धार्मिक यज्ञ (हवन) के दौरान, उनकी बेटी देवी पार्वती क्रोध से आग के कुंड में कूद गईं जहां वह जलकर मर गईं। जब भगवान शिव को पता चला कि दक्ष ने सती/पार्वती का अपमान किया था, जिसके कारण उन्होंने आत्मदाह कर लिया, तो भगवान शिव/शंकर ने अपनी जटाओं से भैरव/काल भद्र को उत्पन्न किया और उन्हें दक्ष को मारने के लिए भूत-गणों आदि की सेना के साथ भेजा। इसलिए इस वाणी में काल भद्र को भगवान कृत (बनाया गया) कहा गया है।
यहां पूज्य संत गरीबदास जी संकेत कर रहे हैं कि भगवान शिव/शंकर को प्रसन्न करने के लिए इस प्रकार स्मरण करे कि आप प्रत्येक साधक की रक्षा करें तथा अपने भक्त के सभी शत्रुओं का नाश करें। हमारे सभी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष शत्रुओं से हमारी रक्षा करें। मैं आपको और आपके योद्धाओं के समूह को भी आमंत्रित करता हूं। मैं आपके द्वारा रचित (कृत), काल भद्र को भी आमंत्रित करता हूं।
पेज नंबर 136 पर वाणी नंबर 43
भैरव खेत्रपाल पलीतं, भूत और दैत्य चढ़े संगीतं।।43
अर्थ: आपके सेनापति भैरव और क्षेत्रपाल बहुत खतरनाक हैं। वे युद्ध के दौरान आक्रमण करते हैं। इससे साबित होता है कि भगवान भैरव/काल भद्र की रचना शिव जी ने की थी। ये दो अलग-अलग चरित्र हैं।
भगवान शिव/शंकर ने प्रजापति दक्ष को क्यों मारा?
संदर्भ: मुक्तिबोध पुस्तक पृष्ठ 68। लेखक जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हैं।
जब श्री राम वनवास के दौरान अपनी खोई हुई पत्नी सीता के शोक में समय गुजार रहे थे तब यह पुष्टि करने के लिए कि क्या वह भगवान विष्णु थे या एक साधारण व्यक्ति थे, माता पार्वती ने परीक्षा ली। उन्हें भगवान शिव ने मना किया परंतु उन्होंने अपने पति की इच्छा के विरुद्ध जाकर सीता का रूप धारण किया। श्री राम के सामने सीता रूप में आने पर विष्णु अवतार राम ने उन्हें तुरंत पहचान लिया और पूछा हे दक्षपुत्री माया आप यहां कैसे? शिव जी को जब यह पता हुआ कि माता पार्वती ने उनके मन करने के बावजूद सीता रूप धारण करके श्री राम की परीक्षा ली है तो वे क्रोधित हुए। उनके बड़े भाई (विष्णु जी) की पत्नी उनके लिए माता समान आदरणीय हैं और पार्वती का सीता रूप धारण करने से शिव जी ने उन्हें भी माता तुल्य ही कहा।
इसके बाद, शिव और उमा/सती/पार्वती के बीच बहुत लंबे समय तक तनावपूर्ण संबंध रहे। जब उमा/पार्वती के शंकर जी को समझाने और प्रसन्न करने के सभी प्रयास व्यर्थ गए, तब दोषी सती ने अपने पति के व्यवहार से असंतुष्ट होकर घर छोड़ दिया और अपने पिता प्रजापति (लोगों के भगवान) दक्ष के पास चली गईं।
जब वह अपने माता-पिता के घर पहुंची तो उसने देखा कि उसके पिता दक्ष ने एक धार्मिक अनुष्ठान/हवन यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें उन्होंने महान दिग्गजों, देवताओं, ऋषियों, संतों आदि को आमंत्रित किया था, लेकिन उन्हें और उनके पति शिव को नहीं।
दक्ष सती से नाराज़ थे क्योंकि उसने उनकी इच्छा के विरुद्ध शिव से विवाह किया था, इसलिए उन्होंने दोनों को त्याग दिया। जब सती/पार्वती ने नाराजगी व्यक्त की कि दोनों को आमंत्रित क्यों नहीं किया गया तो दक्ष ने भगवान शिव के बारे में बुरा कहा और अपनी झुंझलाहट व्यक्त की।
अप्रसन्न और व्यथित सती सोचती है कि अब वह न तो अपने पति की प्रिय है और न ही उसके पिता उसका आदर करते हैं, इसलिए क्रोधवश वह अग्निकुंड में कूद जाती है और पूरी तरह जलकर मर जाती है। जब शिव जी को यह पता चला तो वे क्रोधित हो गये। उन्होंने अपने जटाओं से काल भद्र को उत्पन्न किया और उन्हें गणों की सेना के साथ यज्ञ में उपस्थित सभी लोगों को नष्ट करने के लिए भेजा।
भयंकर युद्ध हुआ। भगवान विष्णु ने दक्ष की ओर से युद्ध किया लेकिन वे हार गए। भगवान शिव ने प्रजापति दक्ष का वध कर दिया। उसने उसकी गर्दन काट दी। बाद में अनुरोध करने पर उन्होंने उसकी गर्दन पर बकरे का सिर रख दिया और दक्ष को पुनर्जीवित कर दिया।
भगवान शिव/शंकर ने कई युगों तक उमा/पार्वती का कंकाल क्यों धारण किया?
संदर्भ: मुक्तिबोध पुस्तक पृष्ठ 68
उमा/सती/पार्वती द्वारा आत्मदाह करने के बाद भगवान शिव दुःख से कई युगों तक उनके कंकाल को उठाए रहे और एक वैरागी की तरह 'उमा उमा, हे दक्षपुत्री उमा' चिल्लाते हुए घूमते रहे। बाद में भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उस कंकाल के 52 टुकड़े कर दिये जिससे शिव शम्भू का मोह टूट गया और वे होश में आये।
विशेष: यह और उपरोक्त घटना यह दर्शाती है कि काल के लोक में देवता भी राग, मोह, क्रोध, प्रेम, घृणा, वासना और अहंकार जैसे विकारों से अछूते हैं। सभी देवता और प्राणी जन्म और मृत्यु के दुष्चक्र में फंसे हुए हैं। यह भगवान सदाशिव/ब्रह्म काल का बहुत बड़ा और खतरनाक जाल है। केवल कबीर परमात्मा ही काल के जाल को तोड़ सकते हैं।
जहां भी सती के कंकाल के 52 टुकड़े गिरे, वहां भक्तों ने एक मंदिर बनाया और शक्ति/जगदंबिका की पूजा करना शुरू कर दिया। इस तरह 52 शक्ति पीठ की स्थापना हुई। जहां उनका शरीर गिरा वहां वैष्णो देवी का मंदिर स्थापित हुआ, जहां उनकी आंखें गिरीं वहां नैना देवी और जहां उनकी जीभ गिरी वहां ज्वाला देवी का मंदिर स्थापित हुआ।
असल में ये मंदिर केवल एक स्मरण मात्र हैं कि ऐसी घटना घटी थी लेकिन देवी कहीं भी विराजमान नहीं हैं इसलिए यहां जाना और पूजा करना व्यर्थ प्रथा है। यह मनमाना है तथा गीता 16:23 में इसका निषेध किया गया है।
कामदेव को भगवान शिव/शंकर ने क्यों मारा?
संदर्भ: मुक्तिबोध पुस्तक पृष्ठ 68
जब भगवान शिव को एहसास हुआ कि उन्होंने अपनी पत्नी को खो दिया है, तो वे दुनिया से अलग हो गए और अपने दुख का कारण कामदेव (प्रेम के देवता) को माना। कामदेव को दबाने के लिए, काम पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से भगवान शिव ने हजारों वर्षों तक कठोर तपस्या की।
एक दिन कामदेव शिव शम्भू के पास आये और उनकी दृष्टि से भस्म हो गये। इस प्रकार भगवान शिव शंकर ने कामदेव का वध किया। भगवान शिव अपनी सफलता पर प्रसन्न हुए कि उन्होंने ध्यान के माध्यम से काम पर विजय प्राप्त कर ली है और अपनी उपलब्धि पर घमंड करने लगे।
भगवान शिव भगवान विष्णु के मोहिनी रूप पर मोहित हो गए
संदर्भः मुक्तिबोध पुस्तक पृष्ठ 68-69
सदाशिव यानी काल बहुत धोखेबाज भी हैं। जब उसने देखा कि भगवान शिव ने ये सोच लिया हैं कि उन्होंने काम पर विजय प्राप्त कर ली है और उन्हें एक महिला की आवश्यकता नहीं है और वे सोचते हैं कि विवाहित जोड़े दुखी रहते हैं। महाशिव/काल ने सोचा कि यदि हर मनुष्य स्त्री से घृणा करेगा तो प्राणियों की उत्पत्ति कैसे होगी और यदि मनुष्यों की रचना नहीं होगी तो मृत्यु भी नहीं होगी। तो फिर मैं क्या खाऊंगा? मुझे हर दिन एक लाख इंसान की जरूरत है ताकि मैं भूख से न मरूं।
इसी दृष्टिकोण से सदाशिव ने नारद मुनि को शिव जी के दर्शन के लिए प्रेरित किया। जब वह वहाँ गए तो शिव जी कामदेव पर अपनी विजय का घमंड करने लगे। नारद जी भगवान विष्णु के पास गये और उन्हें वही बात बताई।
काल यानी सदाशिव की प्रेरणा से श्री विष्णु जी ने अपने छोटे भाई शिव की परीक्षा लेने का विचार किया। एक बार शिव जी विष्णु जी से मिलने गए और बातचीत के दौरान विष्णु जी ने कहा 'मैंने सुना है कि आपने कामदेव को मार डाला है।’ शिवजी प्रसन्न होकर बोले, 'हां, मैंने काम पर विजय पा ली है।' तब शिव जी ने काल की प्रेरणावश विष्णु जी से उन्हें अपना मोहिनी रूप दिखाने के लिए कहा, जिसने समुद्र के मंथन के दौरान राक्षसों को कामुक बना दिया था, जिसे शिवजी उस समय देखने से चूक गए थे क्योंकि तब वे समुद्र मंथन से निकले जहर को गले में धारण कर रहे थे।
प्रारंभ में, विष्णु जी ने बहाने बनाए लेकिन जब अंततः शिव जी ने विष्णु के मोहिनी रूप का मनोरम आकर्षण देखा तो उन्होंने पाया कि वे अभी भी कामवासना से प्रभावित हैं और उन्होंने स्वीकार किया कि वह गलत थे कि उन्होंने वासना और प्रेम जैसी बुराइयों पर जीत हासिल कर ली है।
इसके बाद उन्होंने पार्वती से विवाह किया जब उमा वाली आत्मा ही राजा हिमालय के घर पैदा हुई।
क्या भगवान रूद्र और भगवान शिव एक ही हैं?
संदर्भ: संक्षिप्त शिव महापुराण हिंदी अनुवाद सहित भाग 1। इसके लेखक विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद जी मिश्र हैं। खेमराज श्री कृष्णदास प्रकाशन, मुंबई। विद्येश्वर संहिता, अध्याय 6-10, पृष्ठ क्रमांक:11-20.
एक बार श्री ब्रह्मा जी और श्री विष्णु जी के बीच एक छोटी सी बात पर विवाद उत्पन्न हो गया कि कौन किससे श्रेष्ठ है? दोनों दावा कर रहे थे कि 'मैं तुम्हारा पिता हूं, मैं तुम्हारा निर्माता हूं।’ यह देखकर उनके पिता सदाशिव ने उनके बीच में एक अत्यधिक प्रकाशित स्तंभ (लिंग) स्थापित किया। वे युद्ध करना भूल गए और उस विशाल स्तंभ के ओर छोर की खोज करने लगे लेकिन असफल रहे। तब भगवान सदाशिव अपने पुत्र शिव/शंकर के रूप में प्रकट हुए और उन दोनों को बताया कि उनका स्वयं को भगवान मानना गलत है। दोनों में से कोई भी श्रेष्ठ नहीं है। सृजन के लिए ब्रह्मा जी को रजोगुण और विष्णु जी को संरक्षण के लिए सतोगुण, उनकी कड़ी तपस्या के फलस्वरूप मिले है और उनसे प्रसन्न होकर उन्होंने दोनों पर इन पद की दया की है।
सदाशिव/ब्रह्म काल ने आगे कहा इसी प्रकार, मैंने तमोगुण (तिरोभाव) विभाग की जिम्मेदारी महेश (शिव) को और विनाश की जिम्मेदारी अपने जैसे दिखने वाले रुद्र को दी है।
यह कथन प्रमाणित करता है कि ये पाँच शक्तियाँ (देवता) ब्रह्मा, विष्णु, महेश (शिव), रुद्र और वक्ता इनके पिता सदाशिव हैं। इससे सिद्ध होता है कि रुद्र और शिव दो अलग-अलग सत्ताएँ हैं, दो अलग-अलग देवता हैं, एक नहीं।
भगवान सदाशिव/महाशिव का मंत्र क्या है?
संदर्भ: 'यथार्थ भक्ति बोध', संख्या 1-3 पृष्ठ 129 पर
सत पुरुष समर्थ ओंकारा, अदली पुरुष कबीर हमारा।।1
आदि युगादि दया के सागर, काल कर्म के मोचन आगर।।2
दुःख भंजन दरवेश दयाला, असुर निकंदन करै पैमाला।।3
अर्थ: इस वाणी में सर्वशक्तिमान पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी को याद किया गया है। ओंकार का वास्तविक अर्थ काल ब्रह्म है क्योंकि यह ओम मंत्र का पर्याय है। ॐ ब्रह्म का मंत्र है। ब्रह्मज्ञानी कहे जाने वाले ऋषियों का दावा है कि हमारे पूज्य देवता ब्रह्म अर्थात् भगवान हैं जिनका नाम ओंकार है। ओंकार (ओम) मंत्र का जाप करने से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। वे ब्रह्म को निराकार, सर्व समर्थ सृष्टिकर्ता बताते हैं।
संत गरीबदास जी महाराज ने कहा है कि सतपुरुष सर्व समर्थ ओंकार, समर्थ ब्रह्म (ब्रह्म अर्थात् सर्वशक्तिमान) है परन्तु काल अधूरा भगवान, अधूरा ब्रह्म है। अज्ञानतावश ऋषि मुनि काल को भी ब्रह्म कहने लगे। सर्व समर्थ ईश्वर को पूर्ण ब्रह्म कहा जाता है। इसी दृष्टि से कहा गया है कि समर्थ ओंकार अर्थात् कबीर परमेश्वर ब्रह्म है। अदली (न्यायिक) पुरुष (सर्वशक्तिमान) हमारे कबीर जी हैं। सृष्टि के आरंभ से ही वे दया के सागर हैं और काल तथा पापों का नाश करने वाले हैं। कबीर परमात्मा दुखों का नाश करने वाले, दयालु 'दरवेश' (जो एक महान संत के रूप में प्रकट होते हैं) हैं। वे परवरदिगार ही राक्षसों का नाश करते है।
वाणी सं. 69 पृष्ठ संख्या 147 पर
आदि मूल बेद ओमकारा, असुर निकंदन कीन्ह सिंघारा ।।69
अर्थ: ओंकार अर्थात ॐ प्रारम्भ से ही (यजुर्वेद 40:15) मूल मन्त्र रहा है। काल ब्रह्म/सदाशिव ॐ मंत्र का जाप करने वाले साधकों के शत्रुओं (सच्चे उपासकों के लिए बाधा बनने वाली शैतानी आत्माएं) को नष्ट कर देता है, जिससे भक्ति की रक्षा होती है। उन्हें श्री ब्रह्मा, विष्णु और शिव के रूप में देखा जाता है जिसके कारण सभी दुखों को दूर करने वाले के रूप में इन देवताओं की महिमा होती रहती है। तीनों देवता भी अज्ञानतावश स्वीकार करते हैं कि हम कर्ता धर्ता हैं। (प्रमाण गीता 9:22)
गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में भगवान सदाशिव/ब्रह्म काल कहते हैं कि उनका मंत्र ॐ है और कुछ नहीं। जो साधक अंतिम सांस तक ॐ का जाप करते हैं वे मुझ (ब्रह्म) को प्राप्त कर लेते हैं। वे ब्रह्मलोक चले जाते हैं। गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में उन्होंने कहा है कि उनकी प्राप्ति भी अनुत्तम है क्योंकि उन्हें प्राप्त करने वाले यानी ब्रह्मलोक को प्राप्त करने वाले साधक पुनरावृत्ति में रहते हैं अर्थात् उनका जन्म मृत्यु होता रहता है। (गीता 8:16)।
श्रीमद् देवी भागवत पुराण, स्कंद 7, अध्याय 36, पृष्ठ 562-563 में बताया गया है कि ॐ ब्रह्मलोक में रहने वाले भगवान सदाशिव का मंत्र है।
अज्ञानी गुरु कहते हैं कि "ओम नमः शिवाय" (ॐ नमः शिवाय) शिव जी का मंत्र है जो गलत है। यह न तो सदाशिव का है और न ही उनके पुत्र शंकर का। यह मनमाना है, अज्ञानता के कारण उन्होंने ओम मंत्र में मिलावट की है। देखें शिव पुराण से प्रमाण -
संदर्भ: संक्षिप्त शिव पुराण, विद्येश्वर संहिता, भाग 1, अध्याय 10 पृष्ठ संख्या 19 पर
ओम पंचाक्षरी मंत्र है जिसका अर्थ है पांच अक्षरों वाला मंत्र (पांच ध्वनियां)। भगवान सदाशिव कहते हैं 'मेरे मुख से उत्पन्न होने वाला यह 'ओंकार' मेरा लक्षण स्वरूप ही है। इससे बहुत लाभ मिलता है। वह उद्घोषक है, मैं आवाज हूं। यह मंत्र मेरी आत्मा है। इसके जाप से मुझे याद किया जाता है। उत्तर के मुख से 'अकार', पश्चिम के मुख से 'उकार', दक्षिण के मुख से 'मकार', पूर्व के मुख से 'बिंदु', मध्य मुख से 'नाद' बनता है, इस प्रकार यह उत्पन्न होता है। पाँच रूप, ये सब मिलकर एक शब्द 'ओम' और 'प्रणव' बन जाते हैं। इस मंत्र का जाप करें क्योंकि यह अहंकार को दूर करता है।’
यह गीता 8:13 में वर्णित सदाशिव/ब्रह्म के कथन को प्रमाणित करता है।
शिव पुराण पृष्ठ 115 पर कहा गया है कि महाशिव/सदाशिव एक अलग परमात्मा हैं।
श्री ब्रह्मा जी का अपने पुत्र नारद जी से वार्तालाप
जो 'शिवत्व' नाम से प्रसिद्ध हैं। जो 'शिव लिंग' के रूप में स्थापित है। ॐ मंत्र का जाप करते हुए उस भगवान सदाशिव का लिंग रूप में पूजन करें।
नोट:- शिवलिंग पूजा व्यर्थ है और इसका हमारे पवित्र प्राचीन ग्रंथों में कोई प्रमाण नहीं है। इस लेख के बाद के भाग में इस पर चर्चा की गई है।
सार: प्रमाण प्रमाणित करते हैं कि ओम भगवान सदाशिव/महाशिव का मंत्र है। ॐ नमः शिवाय मिलावटी मंत्र है। ॐ से प्राप्त मुक्ति निम्नतम है (गीता 7:18) क्योंकि जीव पुनरावृत्ति में रहते हैं (गीता 8:16)
विशेष: गीता 17:23 में वर्णित मन्त्र ॐ-तत्-सत् (सूचक) से पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसका रहस्य एक तत्वदर्शी संत ही बता सकता है।
भगवान शिव/शंकर का मंत्र क्या है?
संदर्भ: यथार्थ भक्ति बोध, संख्या 34, पृष्ठ संख्या 134 पर
गंग तरंग छूटै बहु धारा, अजपा तारी जय-जय कारा।।34
अर्थ: आपके शिवलोक में गंगाजल की अनेक धाराएँ बह रही हैं। आपका ध्यान 'अजपा जाप' पर है जिसे बिना बोले सांसों के साथ किया जाता है। यह मन को सांसों पर केंद्रित करके किया जाता है। यह अद्भुत मन्त्र आपको परमात्मा से प्राप्त हुआ है। तुम धन्य हो। आपकी जय हो, आपकी जय हो।
पहले सतयुग में, कबीर परमात्मा ऋषि सत सुकृत के रूप में भगवान शिव/शंकर से मिले थे, उन्हें सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया और उन्हें सोहम् मंत्र दिया, जिसका वे ध्यान करते समय जाप करते हैं। यह बात सच्चिदानंद घन ब्रह्म की वाणी से स्पष्ट होती है।
हम बैरागी ब्रह्म पद सन्यासी महादेव, सोहम मंत्र दिया शिव जी को वो करे हमारी सेवा ।।
परम अक्षर ब्रह्म से प्राप्त इस मंत्र के जाप से भगवान शिव/शंकर को शक्ति प्राप्त होती है।
नोट: इन मंत्रों का जाप एक विशेष प्रकार से किया जाता है जिसकी विधि किसी तत्वदर्शी संत द्वारा बताई जाती है तभी ये साधकों को लाभ प्रदान करते हैं अन्यथा नहीं।
अमरनाथ तीर्थ की स्थापना में भगवान शिव की भूमिका?
देवी पार्वती भी नश्वर हैं। उनकी आत्मा ने 107 जन्म ले लिये थे। उनके 108वें जन्म पर ऋषि नारद ने उन्हें बताया कि माता पार्वती के 107 जन्म हो चुके हैं क्योंकि वह जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं। सिद्ध करते हुए नारद जी ने उन्हें शिव जी द्वारा पहने जाने वाली कपाल की माला के विषय में बताया जो कि माता पार्वती की थी। नारद जी ने यह भी बताया कि शिव जी के पास एक अद्भुत मोक्ष मंत्र है यदि वह उसे दे दें तो वह भी भोलेनाथ/शिव शंभू की तरह अमर हो सकती है।
संदर्भ: यथार्थ भक्ति बोध, वाणी संख्या 37, पृष्ठ संख्या 134-135 पर
सर्प भुवंग गले रुंड माला, वृषभ चढ़िये दीन दयाला।।37
यह वाणी प्रमाणित करती है कि शिव जी गले में कपाल की माला पहनते हैं।
(नोट: भगवान शिव/शंकर जो कपाल माला पहनते हैं वह पार्वती के पिछले मानव जन्मों की 107 खोपड़ियाँ हैं जिन्हें शंकर जी अपनी पत्नी के प्रति असीम प्रेम के कारण उनकी मृत्यु के बाद एक स्मृति के रूप में अपने पास रखते थे।)
नारद जी के चले जाने के बाद देवी पार्वती ने दास भाव से अपने पति शिवजी से प्रार्थना की, कि वह उन्हें उस मोक्ष मंत्र की दीक्षा देकर दया करें जो उन्होंने अब तक छुपा कर रखा है। पार्वती जी में सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान को जानने की गहरी इच्छा देखकर भगवान शिव/शंकर ने उन्हें कबीर साहेब द्वारा दिया गया ज्ञान सुनाया और एक गुफा के अंदर एकांत स्थान पर उन्हें मंत्र दिया, जो अब अमरनाथ तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है। चूंकि शिव शंभू ने इस गुफा में अमर मंत्र प्रदान किया था इसलिए इसका नाम यह रखा गया है। समय के साथ, यादगार बनाए रखने के लिए इस मंदिर का निर्माण किया गया और भक्त फिर यहाँ पूजा करने के लिए आने लगे।
विशेष: सच तो यह है कि यहां भगवान शिव विराजमान ही नहीं हैं और वैसे भी तीर्थ यात्रा से कोई लाभ नहीं है। यह एक मनमानी पूजा है जो पवित्र शास्त्रों के आदेशों के विरुद्ध है और यह सदाशिव/ब्रह्म काल का एक बड़ा जाल है। ऐसा करना व्यर्थ है तथा गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में इसका निषेध किया गया है।
अज्ञानी गुरु निरर्थक उपदेश देते हैं कि तीर्थ स्थान पर जाने से शिव जी का आशीर्वाद मिलेगा। वे इसे मोक्ष प्राप्ति के साथ जोड़ते हैं जोकि एक मिथक है। यही बात चार धाम यात्रा, केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और सभी 12 ज्योतिर्लिंगों के लिए भी सच है जहां शिव शंकर विराजमान नहीं हैं।
(नोट: शिव जी और पार्वती जी दोनों ही नाशवान हैं। शिव जी द्वारा दीक्षा लेने के बाद पार्वती जी का जन्म मरण समाप्त हो गया। उन्होंने शिव जी के समान अमरत्व वाली आयु प्राप्त की। अपनी आयु को पूरा करने के बाद दोनों 84 लाख योनियों में कष्ट भोगेंगे। पूर्ण मोक्ष प्राप्त करने के लिए गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में बताए गए मंत्र का जाप किसी तत्वदर्शी संत से प्राप्त करके करना होगा जिसकी पहचान गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4, 16,17 में बताई गई है। तत्वदर्शी संत गीता अध्याय 18 श्लोक 62 व 66 में बताए गए पूर्ण परमात्मा के द्वारा भेजे हुए प्रतिनिधि होते हैं।)
भगवान शिव/शंकर सुखदेव को क्यों मारना चाहते थे?
भगवान शिव/शंकर ने पार्वती को जो सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष मंत्र दिया था, वह एकांत स्थान पर दिया था ताकि किसी ओर को इसके बारे में पता न चले और वह अमरत्व प्राप्त न कर सके और उस मंत्र के जाप से प्राप्त सिद्धियों का दुरुपयोग न कर सके। इसीलिए शिव जी ने एकांत स्थान चुना। गुफा में प्रवेश करने से पहले उन्होंने तीन बार ताली बजाई जिससे बहुत तेज आवाज हुई जिसके कारण सभी पक्षी, जानवर और जीवित प्राणी आसपास की जगह खाली कर गए।
लेकिन एक सूखे पेड़ के नीचे तने में एक छेद के अंदर एक तोते का सड़ा हुआ अंडा था। चूँकि अंडा अस्वस्थ था इसलिए अंडे के अंदर मौजूद आत्मा अन्य जीवों की तरह उड़ नहीं सकती थी। जब भगवान शिव ने पार्वती देवी को सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान का उपदेश देना शुरू किया और मोक्ष मंत्र दिया, तो तोते की आत्मा ने इसे सुना और वह स्वस्थ हो गई और उसने देवी पार्वती के समान अमरत्व प्राप्त कर लिया। उस आत्मा को सिद्धियाँ प्राप्त हुईं। जब पार्वती ध्यान की अवस्था में (समाधिस्थ हो गईं) चली गईं और शिव जी की बातों पर हुंकार भरना बंद कर दिया, तो यह अंडे के भीतर की आत्मा ने 'हां-हां' कहकर शिव जी की बात पर स्वीकृति देना शुरू कर दिया।
जब शिव शंभु को पता चला कि पार्वती की जगह तोता बोल रहा है तो वे उसे मारने के लिए दौड़े। उस सड़े हुए अंडे को मन्त्र से शक्ति प्राप्त हो गई, अत: वह तुरंत उड़ गया। भगवान शिव भी उसके पीछे-पीछे उड़े। आत्मा ने तोते का शरीर त्याग दिया और सूक्ष्म रूप में ऋषि वेद व्यास की पत्नी के गर्भ में प्रवेश किया। तब भगवान शिव असहाय हो गए और उसे मार नहीं सके और लौट आए।
बाद में उनका जन्म पुत्र के रूप में हुआ। वह आत्मा अपनी माता के गर्भ में 12 सालों तक रहा जोकि असामान्य घटना थी। अंत में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के अनुरोध पर वे गर्भ से बाहर आये। यह उस सिद्धि के फलस्वरूप हुआ जो उन्होंने मंत्र से प्राप्त की थी। चूंकि ऋषि वेद व्यास की पत्नी के लिए 12 साल की गर्भावस्था अवधि एक सुखद अनुभव (सामान्य नौ महीने के बजाय) थी, और इस संतान से उन्हें कोई भी कष्ट नहीं होता था इसलिए उनका नाम सुखदेव रखा गया। ऋषि-मुनि उन्हें शुकदेव भी कहते हैं (संस्कृत में शुक का अर्थ तोता होता है)।
जब वह तीनों देवताओं की प्रार्थना पर गर्भ से बाहर आये तो उन्होंने जन्म लेते ही अपनी गर्भनाल को अपने कंधे पर रखा और वह पृथ्वी पर रहने के बजाय आकाश में उड़ गये। उन्हें आकाश में उड़ने की सिद्धि भी प्राप्त थी। सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान के कारण उन्हें ज्ञान था कि मानव जन्म का एकमात्र उद्देश्य मुक्ति प्राप्त करना है। वे समझ गए थे कि काल यानी सदाशिव के मृत लोक में झूठे रिश्तों में फंसना मात्र धोखा है। हालाँकि ऋषि वेद व्यास ने उनसे एक बेटे के रूप में उनके साथ रहने का अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया।
नोट : ऋषि सुखदेव प्राचीन ग्रंथों में वर्णित एक प्रसिद्ध ऋषि हैं। उन्हें सिद्धिया प्राप्त थी लेकिन इससे उन्हें पूर्ण मुक्ति नहीं मिली। वे अभी भी 84 लाख योनियों में कष्ट सहेंगे, जो प्रमाणित करता है कि कबीर परमेश्वर की पूजा करने का सही तरीका ही मोक्ष की प्राप्ति की ओर ले जाता है। किसी अन्य देवता की पूजा व्यर्थ है।)
सूक्ष्मवेद की निम्नलिखित वाणी से यह स्पष्ट होता है-
सुखदेव ने चौरासी भुगति, बना पजावे खर बो।
तेरी क्या बुनियाद प्राणी, तू पैंडा पंथ पकड़बो।।
कैसे शुरू हुई शिवलिंग की पूजा?
भगवान सदाशिव/ब्रह्म काल के लोक में प्रचलित एक और गलत प्रथा है शिवलिंग पूजा।
संदर्भ: शिव पुराण, भाग-1, विद्येश्वर संहिता, अध्याय-5, पृष्ठ संख्या-11-30, विद्येश्वर संहिता पृष्ठ 18 अध्याय 9 श्लोक 40-43
शिव महापुराण कोटि रुद्र संहिता शिव पुराण का अध्याय 12 (ग्यारह खंड) अनुवादक पी. प्यारेलाल रघु, प्रकाशक तेजकुमार कुमार बुक डिपो (पी) लिमिटेड लखनऊ पृष्ठ संख्या 144 से 147।
कथा इस प्रकार है कि ब्रह्मा और विष्णु के बीच लड़ाई के दौरान, भगवान सदाशिव (अपने पुत्र शिव रूप में प्रकट) ने दोनों के बीच में एक ज्योतिर्मय स्तंभ यानी लिंग प्रकट किया। उस समय उनकी पत्नी, उनकी मां दुर्गा भी पार्वती रूप में मौजूद थीं। उन्होंने दोनों से कहा कि:
'मैं (सदाशिव/काल) शरीर रूप में विद्यमान हूँ। यह स्तम्भ मेरे (कालब्रह्म के) दूसरे रूप की भी पहचान कराता है। बेटों! इसकी पूजा आपको हर दिन करनी है। यह मेरी आत्मा है। योनि और लिंग की अविभाज्यता के कारण यह लिंग विशेष रूप से पूजनीय है।'
उन्होंने योनि में डाले गए लिंग की एक पत्थर की मूर्ति बनाई और इसकी पूजा करने को कहा। तभी से यह गलत और निर्लज्ज पूजा शुरू हुई और सदियों से हिंदू भक्त अज्ञानतावश ऐसा करते आ रहे हैं। शैतान सदाशिव ने जानबूझकर इस गलत पूजा को बताया क्योंकि वह आत्माओं को ईश्वर की सच्ची भक्ति से दूर रखना चाहता है और भोली आत्माओं को शास्त्र विरुद्ध अभ्यास में गुमराह करके उनका अनमोल मानव जन्म बर्बाद कर देता है जो सच्ची भक्ति करने और मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्राप्त होता है।
इस घृणित, अश्लील और बेशर्म प्रथा के संबंध में कबीर सागर में लिखा है
धरे शिव लिंग बहु विधि रंगा, गाल बजावे गहले।
जे लिंग पूजे शिव साहब मिले, तो पूजे क्यों न खैले।।
अर्थ: शिवलिंग की पूजा करने से अच्छा है कि बैल के लिंग की पूजा की जाए, जिसके गाय से मिलन से बछड़ा या बछिया पैदा होगी। बड़े होने पर बछड़े का उपयोग खेतों की जुताई में किया जा सकता है और बछिया दूध देगी और आगे बच्चे भी देगी। लेकिन शिवलिंग की पूजा व्यर्थ है।
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए की जाने वाली कांवड़ यात्रा का सच
यहां उजागर किए गए कांवड़ यात्रा के भेद के माध्यम से इस मनमानी प्रथा के बारे में साधकों की अज्ञानता को उजागर करेंगे, क्योंकि पवित्र ग्रंथों में इसके लिए कोई निर्देश नहीं है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रावण मास के दौरान भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यह प्रथा समुद्र मंथन के बाद शुरू हुई जिसमें से अन्य 14 बहुमूल्य रत्नों के साथ विष भी निकला। संतुलन बनाए रखने के लिए शिव शंकर ने विष पी लिया और अपनी सिद्धियों से इसे अपने कंठ में धारण कर लिया। विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया। तभी से उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है।
एक मान्यता यह है कि देवताओं ने अपने पूजनीय भगवान को प्रणाम करने के लिए इस कृत्य के जरिए शिव जी पर गंगा जल डाला था और दूसरी मान्यता यह है कि उन्होंने जहर के प्रभाव को बेअसर करने के लिए ऐसा किया था। भक्तों का यह भी मानना है कि कांवड़ यात्रा से बहुत पुण्य मिलता है और इस तरह शिव शंभु को प्रसन्न करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।
सूक्ष्मवेद में बताया गया है कि वर्षा ऋतु में बहुत सारे सूक्ष्म जीव (कीड़े-मकोड़े) आदि पैदा हो जाते हैं जो दिखाई भी नहीं देते और लोगों के पैरों के नीचे आकर चलते-चलते मर जाते हैं। इसलिए, लोगों को पापों से बचने के लिए तो बरसात के मौसम में आवाजाही भी कम कर देनी चाहिए। लेकिन श्रद्धालु कांवड़ यात्रा के दौरान गंगा जल लाने के लिए पैदल चलकर हरिद्वार जाते हैं और कई प्राणियों को मार देते हैं जो उनके बुरे कर्मों के लेख के रूप में लिखे जाते है और बाद में व्यक्ति को सभी पापों को भुगतना पड़ता है। इस तरह व्यक्ति के खाते में पुण्यों की जगह पाप जुड़ जाते हैं।
पवित्र श्रीमद्भगवद गीता 16:23 साधकों द्वारा अपनी मन की इच्छाओं के अनुसार की जाने वाली ऐसी सभी मनमानी प्रथाओं पर रोक लगाता है। न तो वेद और न ही कोई अन्य पवित्र ग्रंथ इस प्रथा का समर्थन करते हैं। कांवड़ यात्रा या शिव चालीसा का पाठ करने या शिवरात्रि उत्सव मनाने आदि से कोई पुण्य प्राप्त नहीं होता है, न ही ऐसी किसी साधना से मुक्ति मिलती है। ये सब व्यर्थ साधना है। इन अनुष्ठानों से भगवान शिव कभी प्रसन्न नहीं होते।
संदर्भ: सच्चिदानंद घन ब्रह्म की वाणी में भजन, पुस्तक गहरी नजर गीता से पृष्ठ 539-540 :
ककड़ भांग तमाखू पीबै,
बकरे काटि तलावै हैं ।
सन्यासी शंकर कूं भूले, बंब महादे ध्यावैं है।।
ये दशनाम दया नहीं जानै, गेरू कपड रंगावैं हैं।
पारब्रह्म सैं परचे नांहि, शिव करता ठहरावैं हैं।।
शिव शंकर से लाभ पाने के लिए साधकों को शास्त्रानुसार पूजा करनी चाहिए और किसी तत्वदर्शी संत से नाम प्राप्त कर उनका सच्चा मोक्ष मंत्र जपना चाहिए।
गंगा नदी के भगवान शिव/शंकर तक पहुंचने के पीछे क्या कहानी है?
संदर्भ: सूक्ष्मवेद
भगवान शिव/शंकर के भक्तों का मानना है कि सबसे पवित्र नदी गंगा है और वह शिवजी से उत्पन्न होती है। शिव जी की जटाओं में गंगा, शिव की छवियों, मूर्तियों और तस्वीरों में दर्शाई जाती है जो कि एक मिथक है। तो क्या है गंगा नदी की उत्पत्ति का सच?
सम्पूर्ण सृष्टि परम अक्षर ब्रह्म द्वारा रची गई है। वह शाश्वत स्थान सतलोक में रहते है जहाँ सब कुछ स्थाई और अनंत है। वहाँ फलों और मेवों से लदे सदाबहार पेड़ हैं। दूध, दही और पानी की नदियाँ हैं। वहाँ रत्नों, मोतियों और हीरों के पर्वत हैं। वहाँ बुढ़ापा और मृत्यु नहीं है। सतलोक की महिमा अपार है।
उसी पूर्ण परमात्मा, रचयिता, भगवान कविर्देव ने इस मृत लोक में गंगा नदी को नमूने के रूप में यह सिद्ध करने के लिए भेजा है कि सतलोक में गंगा नदी के समान ऐसे पदार्थ हैं जो कभी खराब नहीं होते हैं।
गंगा सतलोक से भगवान सदाशिव के लोक में आई थी। ब्रह्मलोक में एक बहुत बड़ा बांध है जिसे 'जटा कुंडली' बांध कहा जाता है। यह जल वहाँ संग्रहित हो गया, फिर काल के लोक से बहकर विष्णुलोक और फिर शिवलोक में आ गया।
गंगा नदी की गति बहुत तेज है और भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया है, जहां से वह सूक्ष्म रूप में पृथ्वी पर उतरती हैं और हिमालय की गौमुख, उत्तराखंड से बहती हैं। यह गंगा नदी की उत्पत्ति की सच्ची कहानी है।
यह एक पौराणिक मान्यता है कि गंगा नदी ऋषि भागीरथ के कारण शिवशंभु द्वारा पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। कुछ साधकों ने शिवलोक तक अपनी दिव्य दृष्टि से केवल यही देखा कि गंगा का उद्गम शिवलोक से हुआ है इसलिए उन्होंने वही बताया। इसलिए एक भ्रांति फैल गई कि भगवान शिव ही गंगा नदी के स्रोत हैं।
भगवान शिव/शंकर की पूजा से रावण को क्या हासिल हुआ?
लंका का राजा रावण तमोगुण शिव का बहुत बड़ा भक्त था, जिसने कठोर तपस्या करके सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। यहां तक कि उसने भगवान शिव को दस बार अपना सिर काट कर अर्पण कर दिया था जिसके परिणामस्वरुप उसे सिर मिल जाते और उसके दस सिर हो गए थे। रावण को इसी कारण से दशानन भी कहते थे। आइये जानते हैं कि सूक्ष्मवेद हमें रावण के बारे में क्या बताता है। क्या शिव की आराधना से उन्हें मुक्ति मिली?
संदर्भ: यथार्थ भक्ति बोध, वाणी संख्या 35, पृष्ठ संख्या 134 पर
ऋद्धि-सिद्धि दाता शम्भु गोसांईं, दारिद्र मोक्ष सबै होय जाई।।35
अर्थ: भगवान शिव/शंकर के पास आठ ऋद्धि-सिद्धियाँ थीं। लंका के राजा रावण ने तमोगुण शिव जी की भक्ति करके उनमें से दो को प्राप्त किया। एक तो आकाश में उड़ने की शक्ति और दूसरा धन। इस वाणी में कहा गया है कि भगवान शिव/शंकर रिद्धि-सिद्धि के प्रदाता हैं। इनकी साधना से साधकों को दरिद्रता से मुक्ति मिलती है।
वाणी क्रमांक 44 पृष्ठ क्रमांक 136 पर
राक्षस भंजन विरद तुम्हारा, ज्यौं लंका पर पदम अठारा।।44
अर्थ: 'हे शिव जी! राक्षसों को मारने में ही आपकी विरद (स्वभाव) विशेषता है। उदाहरणार्थ श्री रामचन्द्र जी की पूजा से प्रसन्न होकर आपने 18 करोड़ सैनिकों को रावण की सेना से युद्ध करने के लिये भेजा।
पेज नंबर 136 पर वाणी नंबर 45
कोट्यौं गंधर्व कमंद चढ़ावैं, शंकर दल गिनते नहीं आवैं।।45
अर्थ: लंका में रावण के साथ युद्ध के समय श्री रामचन्द्र जी की सहायता के लिए करोड़ों गंधर्व धनुष-बाण लेकर युद्ध कर रहे थे। भगवान शिव/शंकर जी की सेना असंख्य थी जो रावण की सेना से युद्ध कर रही थी।
पेज नं 136 पर वाणी नं 46
मारे हाक दहाक चिंघारैं, अग्नि चक्र बाणों तन जारैं।।46
अर्थ: युद्ध के समय आपकी सेना चिल्ला रही थी और युद्ध कर रही थी। हाक दहाक चिंघारैं यानी उनकी दहाड़ हर किसी के दिल को दहला रही थी। वे अग्नि बाण और अग्नि चक्र छोड़ रहे थे जो शत्रुओं के शरीर को जला रहे थे।
पेज नंबर 136 पर वाणी नंबर 47
कम्प्या शेष धरणि थर्रानी, जा दिन लंका घाली घानी।।47
अर्थ: जिस दिन आपकी 18 करोड़ की सेना ने श्री रामचन्द्र जी की पक्षधर होकर 'घाली घानी' अर्थात लंका को नष्ट करने के लिए आक्रमण किया तो रावण की सेना बुरी तरह पराजित हो गई। उस समय आपकी भयंकर सेना के आक्रमण से पृथ्वी भी कांप उठी।
शक्ति प्राप्त करने के बाद रावण बहुत अहंकारी हो गया था। यहां तक कि उसने स्वर्ग के 33 कोटि देवताओं को बंदी बना लिया था। श्री रामचन्द्र से युद्ध के समय भगवान शिव की सेना ने रावण का साथ नहीं दिया, बल्कि उसके विरुद्ध युद्ध किया। अंत में वह पूर्ण परमात्मा की कृपा से मारा गया, जिन्होंने गुप्त रूप से भगवान विष्णु उर्फ भगवान राम को रावण को मारने में मदद की थी। रावण कुत्ते की मौत मरा। तमोगुण शिव की आराधना से उसे मुक्ति नहीं मिली, बल्कि उसे नरक में जाकर कष्ट सहना पड़ा।
नोट: भगवान शिव स्वयं जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं और मोक्ष के प्रदाता नहीं हैं। उनके पास आठ शक्तियाँ हैं, अधिक से अधिक वे अपने भक्तों को इन्हें दे सकते हैं लेकिन मुक्ति नहीं।
भस्मागिरी राक्षस से भगवान शिव/शंकर को किसने बचाया?
अज्ञानी धर्मगुरु दावा करते हैं कि भगवान शिव/शंकर मृत्युंजय, कालिंजय और सर्वेश्वर हैं। आइए जानें कि उनके दावे में कितनी सच्चाई है।
भस्मागिरी नामक एक राक्षस ने एक बार पार्वती को अपनी पत्नी बनाने के इरादे से भगवान शिव के निवास के द्वार के सामने कठोर तपस्या शुरू कर दी। उसने बारह वर्षों तक शीर्षासन (शीर्षासन - ज़मीन पर सिर और आकाश की ओर पैर उठाए हुए) कर कठोर तपस्या की। एक दिन देवी पार्वती ने अपने पति शंकर जी से भस्मागिरी को दर्शन देने और उसकी मांग पूरी करने का अनुरोध किया। भगवान शिव/शंकर सहमत हो गए और भस्मागिरी से पूछा 'मांगो, तुम्हें क्या चाहिए?' भस्मागिरी ने शिवजी से वचनबद्ध होने की प्रार्थना की। भस्मागिरि के मन में शिवजी से भस्मकड़ा लेने की इच्छा थी जिसे शिवजी ने हाथ में पहना था। भगवान शिव नहीं जान सके कि भस्मागिरि के मन में क्या है?
भगवान शिव ने सोचा कि शायद यह तपस्वी है और वह राक्षसों या जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा के लिए यह कंगन मांग रहा होगा, इसलिए उसे दे दिया।
नोट: भस्मकड़े की विशेषता यह थीं कि उसे किसी के भी सिर पर रखकर भस्म कहने पर व्यक्ति भस्म हो जाता है और व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।)
जैसे ही भस्मागिरि को भस्मकड़ा प्राप्त हुआ, उसने तुरंत कहा, ‘खबरदार भोलेनाथ! मैं तुम्हें मार डालूँगा और पार्वती को अपनी पत्नी बना लूँगा। मैं इसी भाव से तपस्या कर रहा था।’
शिवजी भयभीत हो गये और स्वयं को बचाने के लिये तेजी से भागने लगे। आगे भगवान शिव शम्भू थे और उनका उपासक (भस्मागिरी) उनका पीछा कर रहा था।
कबीर परमेश्वर सब के रक्षक हैं। वह इन देवताओं की भी सहायता करते हैं जब वे संकट में होते हैं। कबीर परमेश्वर पार्वती का रूप धारण करके भस्मागिरी के सामने प्रकट हुए। वह वहीं खड़ा रहा, तब पार्वती रूप में भगवान कबीर ने कहा, 'मेरे साथ आओ, मुझे अपना नृत्य दिखाओ ताकि मैं तुमसे प्रभावित हो सकूं।'
हताश भस्मागिरि तो वैसे भी मौके की ताक में था। उसने कहा, 'मैं वैरागी हूं, मुझे नृत्यकला नहीं आती'। भगवान कबीर ने पार्वती रूप में कहा -'ठीक है, मैं तुम्हें नृत्य सिखाऊंगी। जैसे जैसे मैं करूं वैसे वैसे आप करें।'
इसके बाद उन्होंने भस्मासुर को अलग अलग भाव भंगिमा बनाते हुए नृत्य करके बताया। बातों बातों में कबीर साहेब ने भस्मकड़े वाला हाथ भस्मागिरी के सिर पर रखवा दिया। भस्मागिरी ने ज्यों ही सिर पर हाथ रखा जिसमें उसने भस्मकड़ा पहना हुआ था, तो पार्वती रूप में भगवान कबीर साहेब ने 'भस्म' कहा, भस्मागिरी तुरंत राख में बदल गया और मर गया। तब कबीर परमेश्वर जी श्री विष्णु जी के रूप में शिव शंभु के सामने प्रकट हुए और उन्हें बताया कि भस्मागिरी की मृत्यु हो गई है।
भयभीत भगवान शिव/शंकर को पहले तो विश्वास नहीं हुआ लेकिन जब भगवान ने भस्मागिरी की राख दिखाई तो शिव जी की हृदय गति सामान्य हो गई। इस प्रकार कबीर परमेश्वर ने भगवान शिव की रक्षा की।
विचार करने योग्य बिंदु:
यदि अज्ञानी उपदेशकों के दावे के अनुसार शिव जी अमर मृत्युंजय, कालिंजय थे तो वे अपनी मृत्यु से डरकर क्यों भागे?
यदि वे सर्वेश्वर, त्रिकालदर्शी, सर्वज्ञ थे तो भस्मागिरी की कुटिल मंशा को क्यों नहीं समझ सके?
हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित इस सत्य प्रसंग से यह सिद्ध होता है कि हमारे समकालीन ऋषि-मुनि/मंडलेश्वर/गुरु अज्ञानी थे। उन्हें अज्ञान रूपी मोतियाबिंद था और वे भोली-भाली आत्माओं को गुमराह कर रहे थे। वे अध्यात्म का क ख भी नहीं जानते।
भगवान शिव/शंकर के उपासकों ने हरिद्वार में क्या नरसंहार किया?
भगवान सदाशिव अपने तीनों पुत्रों के उपासकों के बारे में गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में कहता हैं कि जिनका ज्ञान हरा जा चुका है जो मेरी अर्थात् ब्रह्म साधना भी नहीं करते, इन्हीं तीनों देवताओं तक सीमित रहते हैं ऐसे आसुर स्वभावको धारण किये हुए मनुष्यों में नीच दूषित कर्म करनेवाले मूर्ख मुझको नहीं भजते अर्थात् वे तीनों गुणों (रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शिव) की साधना ही करते रहते हैं। जब काल ब्रह्म जोकि शंकर भगवान के पिता है उसकी पूजा ही व्यर्थ है तो शिव जी की पूजा उत्तम कैसे हो सकती है। यानी भगवान शिव की पूजा करना व्यर्थ है।
संदर्भ: मुक्ति बोध 409
तीर तुपक तलवार कटारी, जमघड़ जोर बधावैं हैं।
हर पैड़ी हर हेत नहीं जाना, वहाँ जा तेग चलावैं हैं ।।
काटैं शीश नहीं दिल करुणा, जग में साध कहावैं हैं।
जो जन इनके दर्शन कूं जावैं, उनको भी नरक पठावैं हैं ।।
लगभग 300 वर्ष पूर्व एक बार हरिद्वार में आयोजित कुम्भ पर्व के अवसर पर भगवान शिव/शंकर के उपासक अर्थात नाथ, गिरि, पुरी, नागा आदि ने पुराने समय में हरिद्वार की सीढ़ियों पर स्थित परभी में शिव और विष्णु के उपासकों का युद्ध हुआ था। युद्ध का कारण यह था कि दोनों ही (शैव और वैष्णव) यह दावा कर रहे थे कि वे श्रेष्ठ हैं और वे पहले नहाएंगे।
उस भीषण युद्ध में पच्चीस हजार त्रिदेव उपासक एक दूसरे से लड़कर मर गये। उन्होंने एक-दूसरे को तलवार और चाकू से काटकर मार डाला। बहुत बड़ा नरसंहार हुआ। यह शास्त्रविरुद्ध पूजा का नतीजा था। हमारे धर्मग्रन्थों में कहीं भी ऐसी प्रथा का उल्लेख नहीं है। ऐसे त्रिगुण यानी रजोगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु और तमोगुण शिव के उपासक राक्षस प्रवृत्ति के होते हैं। यह दर्शाता है कि शिव की पूजा अनुत्तम है लेकिन नकली गुरु कहते हैं कि शिव शंकर की पूजा श्रेष्ठ है और अपने पूज्य देवताओं को प्रसन्न करने और मोक्ष प्राप्त करने के लिए पवित्र गंगा नदी में स्नान करने, उपवास रखने, तीर्थ स्थानों पर जाने आदि की प्रथा को बढ़ावा देते हैं।
नश्वर भगवान सदाशिव और भगवान शिव मुक्ति प्रदान नहीं कर सकते
गीता अध्याय 2 श्लोक 10-16 में भगवान सदाशिव कहता हैं 'अर्जुन तू, मैं और ये सभी सैनिक पहले भी थे और आगे भी होंगे। हम सभी जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं।'
गीता में, अध्याय 2 श्लोक में 12 भगवान सदाशिव/ब्रह्म काल कहता हैं कि सभी आत्माएं पहले भी विराजमान थीं।
गीता अध्याय 2 श्लोक 13 में सदाशिव कहता हैं कि आत्मा दूसरा शरीर प्राप्त कर लेती है।
गीता 10:2 तथा 4:5-9 भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि गीता बोलने वाला नश्वर है।
देवी पुराण स्कंद 3, अध्याय 5, पृष्ठ संख्या 123 प्रमाणित करता है कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव जन्म लेते हैं और मर जाते हैं।
सच्चिदानंद घन ब्रह्म की वाणी में इसका उल्लेख है
तीन देव की जो करते भक्ति उनकी कदे ना होवे मुक्ति।।
अर्थ: तीन देवताओं ब्रह्मा, विष्णु और शिव की पूजा करने वालों को कभी मोक्ष नहीं मिलता है।
यह प्रमाण सिद्ध करता है कि भगवान सदाशिव और भगवान शिव नश्वर हैं। वे जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसे हुए हैं। जब उन्हें स्वयं मुक्ति नहीं मिली तो जाहिर है कि उनके उपासकों को भी मुक्ति नहीं मिल सकती। सदाशिव और शंकर/शिव/शम्भू दोनों ही मोक्ष प्रदाता नहीं हैं।
भगवान शिव/शंकर किसका ध्यान करते हैं?
भगवान शिव कबीर परमात्मा का ध्यान करते हैं। भगवान कबीर देव सूक्ष्मवेद में कहते हैं कि मैंने शिव जी को सोहं मंत्र दिया था। वह इस मंत्र से मेरा ध्यान करते हैं तो उन्हें शक्तियां प्राप्त होती हैं।
हम बैरागी ब्रह्म पद सन्यासी महादेव, सोहम मंत्र दिया शिव जी को वो करे हमारी सेव ।।
यथार्थ भक्ति बोध, वाणी क्रमांक 2, पृष्ठ क्रमांक 173
अनंत कोटि जाके शम्भु ध्यानी, विष्णु ब्रह्मा संख बेद पढ़ैं वाणी।।2
भावार्थ: आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज बताते हैं कि परमेश्वर कबीर के निजलोक में शिव जी के समान करोड़ों ध्यानी अर्थात् महात्मा तथा ब्रह्मा के समान करोड़ विद्वान हैं, जो वेद का पाठ करते हैं।
इससे सिद्ध होता है कि भगवान शिव कबीर परमात्मा का ध्यान करते हैं।
शिव पुराण का सार क्या है?
भगवान सदाशिव/काल ब्रह्म पवित्र श्री शिव महापुराण के मुख्य पात्र हैं। उनकी पत्नी प्रकृति/अम्बिका/दुर्गा को जगत-जननी भी कहा जाता है। उनके 21 ब्रह्मांडों में सभी जीवित प्राणियों का निर्माण उनके द्वारा किया गया है। तीन गुण- रजोगुण ब्रह्मा, सतोगुण विष्णु और तमोगुण शिव/शंभु/शंकर इनके तीन पुत्र हैं जो क्रमश: सृजन, पालन और संहार का कार्य करते हैं। त्रिदेव अपने पिता की कुटिल मंशा से अनभिज्ञ हैं और प्राणियों को माया के भ्रम में रखकर 84 लाख योनियों के कष्टों में फंसाये रखते हैं और प्राणियों को काल के जाल से मुक्त नहीं होने देते हैं।
भगवान सदाशिव/महाकाल तथा दुर्गा की रचना सत्पुरुष/परम अक्षर ब्रह्म कविर्देव की शब्द शक्ति से अविनाशी लोक सतलोक में हुई, परन्तु अपनी गलती के कारण ये निष्कासित हो गये। उनके 21 ब्रह्माण्ड नाशवान हैं। पवित्र शिव पुराण महाशिव/सदाशिव और दुर्गा/महापार्वती/त्रिदेवजननी की विभिन्न जीवन घटनाओं और सच्ची कहानियों के इर्द-गिर्द घूमता है। सदाशिव अपने लोकों का संपूर्ण प्रबंधन दुर्गा और अपने तीन पुत्रों के माध्यम से करवाते हैं लेकिन वास्तव में वह सब कुछ ख़ुद ही पर्दे के पीछे से करता हैं क्योंकि यहां जो कुछ भी होता है उसका एकमात्र कारण वही हैं। वह अव्यक्त रहता हैं।
इस्लाम में शिव क्या है?
संदर्भ: सूक्ष्म वेद
वही मुहम्मद वही महादेव, वही आदम वही ब्रह्मा।
कहे कबीर दूसरा कोई नहीं, देख अपने घरमा।।
पैगम्बर मुहम्मद शिवलोक से आये हुए एक धर्मात्मा थे। वह पहले शिव के उपासक थे। वे एक ऐसी पुण्यात्मा थे जिन्होंने अपने गुणों के आधार पर शिवलोक प्राप्त किया था। वह भगवान शिव के क्षेत्र में एक ऐसे 'गण' थे जिन्होंने अपना जीवन वहाँ समाप्त करने के बाद पृथ्वी पर जन्म लिया। जिन साधकों का शरीर में मौजूद कमल चक्र सच्ची भक्ति से सक्रिय हो जाता है, वे इन देवताओं के क्षेत्रों में चल रही गतिविधियों को देख सकते हैं। जैसे बाबा आदम एक पुण्य आत्मा थे जो पैगम्बर मुहम्मद के समान ब्रह्मालोक से आये थे। उनका भी सारा जीवन इतिहास मानव शरीर के अंदर संबंधित कमल चक्रों के भीतर देखा जा सकता है। यह किसी टीवी चैनल की तरह है जिसके कार्यक्रम घर बैठे हमारे टेलीविजन सेट पर देखे जा सकते हैं जबकि कार्यक्रम कहीं ओर से प्रसारित किया जाता है।
इसी प्रकार, यदि हृदय कमल चक्र खुलता है, जिसके प्रमुख देवता भगवान शिव और देवी पार्वती हैं, जिसकी 12 पंखुड़ियाँ हैं, तो साधक शिवलोक में चल रही सभी गतिविधियों को एक फिल्म की तरह देख सकता है, अतीत और वर्तमान दोनों। सभी मनुष्यों की बनावट एक जैसी होती है और सभी मनुष्यों की रीढ़ में मानव चक्र होते हैं।
भगवान शिव/शंकर से बड़ा कौन सा भगवान है?
संदर्भ: यथार्थ भक्ति बोध, संख्या 33, पृष्ठ संख्या 113 पर
शम्भु जोग विजोग साध्या, अचल अडिग समाध है।
अविगत की गति नहीं जानी, लीला अगम अगाध है।।33।।
भावार्थ: श्री शंकर जी ने 'जोग' अर्थात् साधारण साधना से सोहम् मन्त्र को पूर्ण परमात्मा से प्राप्त करके 'विजोग' अर्थात् विशेष साधना को समझा तथा 'अचल अडिग ' अर्थात् बहुत समय तक शान्ति से ध्यान किया, परन्तु नहीं समझ सके। 'अविगत' की स्थिति, और ईश्वर के दिव्य कृत्य 'अगम अगध' अर्थात् पृथक एवं कल्पना से परे हैं।
पूर्ण परमात्मा कविर्देव का स्मरण शिव जी सदैव करते हैं। सदाशिव भगवान यानी (गीता 18:64) कहते हैं कि परम् अक्षर ब्रह्म ही उनके पूज्य देव हैं।
कबीर साहेब ही पूर्ण ब्रह्म अविनाशी (अविगत) है। उनका वेदों में नाम कविर्देव है। वे महान् भगवान् हैं (गीता 10:3)। सबको उनकी पूजा करनी चाहिए।
कौन सा भगवान मोक्ष प्रदान करता है?
कबीर परमेश्वर ही शाश्वत भगवान हैं। वह स्वयंभू है और अनादिकाल से विद्यमान है। वह भगवान शिव/शंकर के जन्म से भी पहले थे, जैसा कि यथार्थ भक्ति बोध में पृष्ठ संख्या 171 पर वाणी संख्या 4 से स्पष्ट है।
शेष महेश गणेश न ब्रह्मा, नारद शरद न विश्वकर्मा।।4
अर्थ: जब न तो शेषनाग का अस्तित्व था, न भगवान गणेश, ब्रह्मा और महेश (शिव) का जन्म हुआ और यहां तक कि ऋषि नारद और शारदा (श्री ब्रह्मा जी की बेटी) और विश्वकर्मा (ब्रह्मा जी के पुत्र) का भी जन्म नहीं हुआ तब कबीर परमेश्वर ही विद्यमान थे।
आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज शाश्वत निवास सतलोक में सुख की महिमा बताते हुए निम्नलिखित वाणी में बताते हैं कि ब्रह्म काल के लोक की महान देवियों अर्थात् सुंदर पार्वती, लक्ष्मी और सावित्री जैसी अनंत देवियाँ भी परमेश्वर के लोक और परमेश्वर के दरबार की शोभा बढ़ा रही हैं।
पेज नं.114 पर वाणी नं.38
कामधेनु कल्पवृक्ष जाकै, इंद्र अनंत सुर भरत है।
पार्वती कर जोर लक्ष्मी, सावित्री शोभा करत है।।38
गीता 18:62 और 66 में भगवान सदाशिव अर्जुन से कहते हैं कि उस परम ईश्वर की शरण में जाओ जो सृष्टिकर्ता है, जिसकी कृपा से वह सनातन परमधाम को प्राप्त होता है। भगवान कबीर/सतपुरुष अविनाशी हैं (गीता 2:17)। वह सम्पूर्ण सृष्टि का पालन-पोषण करता है (गीता 8:9)। वह घोर पापों का भी विनाशक है (यजुर्वेद 8:13) और मोक्ष प्रदाता है (गीता 8:3) और न तो भगवान सदाशिव और न ही उसका पुत्र भगवान शिव/शंकर मुक्ति दे सकते हैं।
यथार्थ भक्ति बोध में पृष्ठ संख्या 187-188 पर वाणी संख्या 1 व 2
कबीर, गुरु जी तुम न बीसरौ, लाख लोग मिल जाहीं।।
हमसे तुम कूं बहुत हैं, तुमसे हमको नाही।।1
कबीर, तुमरे बिसारे क्या बनै, मैं किसके शरने जाऊॅं।।
शिव बिरंच मुनि नारदा, तिनके हृदय न समाऊॅं।।2
भावार्थ: कबीर परमेश्वर ने बताया है कि एक भक्त को अपने गुरु जी के प्रति किस प्रकार की श्रद्धा रखनी चाहिए। भक्त को भगवान कबीर (गुरु जी) से आग्रह करना चाहिए कि कृपया हमें मत भूलना चाहे आपके लाखों शिष्य हों क्योंकि आपके पास हमारे जैसे बहुत सारे शिष्य हैं लेकिन हमारे पास आपके जैसा ज्ञानी गुरु पृथ्वी पर नहीं है। अगर आप हमें भूल जाएंगे तो हमारा क्या होगा? हम किसकी शरण में जाएँगे? मैंने आपका ज्ञान सुना इसलिए अब मैं एक कबीर परमेश्वर की पूजा करता हूँ इसलिए शिव, ब्रह्मा, अन्य देवताओं के अलावा इंद्र तथा नारद मुनि मुझसे नाराज हो गए। उनके दिल में मेरी जगह नहीं है, वह मुझे पसंद नहीं करते। अत: आप मुझे न भुलाइए, कृपा करके मुझे मुक्ति दिलाइये।
महत्वपूर्ण: पवित्र ग्रंथ तब तक पहेली बने रहे जब तक संत रामपाल जी महाराज इस धरातल पर नहीं आए लेकिन अब उन्होंने भगवान शिव/शंकर और भगवान सदाशिव के बारे में छिपे रहस्य को उजागर कर दिया है। जैसा कि बताया गया है कि संत रामपाल जी महाराज द्वारा पर्याप्त सबूत बताए गए है जो अज्ञानी नकली गुरुओं के उपदेश को गलत साबित करते हैं और यह उनके लिए एक करारा तमाचा है। इस लेख को पढ़ने के बाद इन दुष्ट संतों/महंतों/मंडलेश्वरों को शायद शर्म आ जाए कि उन्होंने आज तक भगवान सदाशिव और भगवान शिव के बारे में गलत उपदेश देकर भोली-भाली आत्माओं को गुमराह किया है।
निष्कर्ष: भगवान शिव/शंकर कबीर परमेश्वर का ध्यान करते हैं और उनके द्वारा प्रदान किए गए मंत्र का जाप करते हैं। वही सर्वशक्तिमान कविर्देव सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण हेतु पुनः अवतरित हुए हैं। वह जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के रूप में दिव्य चमत्कार कर रहे हैं जो सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार कर रहे हैं और भगवान सदाशिव और भगवान शिव दोनों का सच्चा मोक्ष मंत्र दे रहे हैं। मुक्ति की इच्छा रखने वाली ईश्वर-प्रेमी आत्माओं को शीघ्र ही उनकी शरण लेनी चाहिए, उनसे मोक्ष मंत्र प्राप्त करना चाहिए, सर्वशक्तिमान की पूजा करनी चाहिए जो सुख का सागर और मोक्ष प्रदान करने वाला है और अविनाशी लोक, सतलोक का स्थायी निवासी बनने की कोशिश करनी चाहिए।
जैसा कि पृष्ठ 180 पर संख्या 9 यथार्थ भक्ति बोध में लिखा है
गरीब, सतगुरु के लक्षण कहूँ, चाल विहंगम बीन।
सनकादिक पलड़े नहीं, शंकर ब्रह्मा तीन।।9
भावार्थ: जब सतगुरु आकाश मार्ग से सतलोक जाते हैं तो उनकी गति पथहीन पक्षी के समान होती है। जैसे 'बीन' (संगीत वाद्ययंत्र) की आवाज सुनकर सांप उस ध्वनि से मंत्रमुग्ध होकर उस स्थान पर पहुंच जाते हैं जहां 'बीन' बज रही होती है। इसी प्रकार भगवान साधक को सतलोक जाने के लिए कहते हैं और मुरली की ध्वनि को आधार बनाकर उस दिशा में उड़ान भरते हैं। इस ज्ञान की तुलना में ब्रह्मा, विष्णु, शिव और सनकादिक चारों का ज्ञान कहीं नहीं ठहरता।
FAQs : "भगवान शिव और सदाशिव: एक गूढ़ सत्य से परिचय"
Q.1 इस लेख में वर्णित प्रथम भगवान कौन हैं?
हमारे पवित्र शास्त्रों के अनुसार प्रथम भगवान कबीर साहेब जी हैं। उन्हें परम अक्षर ब्रह्म/सतपुरुष के नाम से भी जाना जाता है। वे भगवान सदाशिव/महाशिव और देवी दुर्गा सहित सभी भगवानों के और सृष्टि के निर्माता हैं।
Q.2 क्या श्री शिव जी और सदाशिव एक ही शक्ति हैं?
जी नहीं, श्री शिव जी और सदाशिव एक ही शक्ति नहीं हैं। सदाशिव को ब्रह्म, ब्रह्म काल या क्षर पुरुष के नाम से भी जाना जाता है और वे श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी और श्री शिव जी के पिता हैं।
Q. 3 सदाशिव और दुर्गा का आपस में क्या संबंध है?
सदाशिव 21 ब्रह्मांडों का स्वामी है और देवी दुर्गा जी का पति है। सदाशिव अपनी पत्नी दुर्गा के साथ मिलकर इन सभी ब्रह्मांडों का कार्य संभालते हैं। जबकि इन 21 ब्रह्मांडों का निर्माण सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी ने किया है।
Q.4 श्री शिव जी के पिता कौन हैं?
श्री शिव जी यानि कि शंकर जी के पिता ब्रह्म काल हैं। जिसे ब्रह्म काल यानि कि सदाशिव/महाशिव/क्षर पुरुष भी कहा जाता है। प्रमाण के लिए देखें शिवपुराण पृष्ठ नंबर 19, 86, 131 और 115 में कि ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी का जन्मदाता ब्रह्म काल है।
Q.5 श्री शिव जी की माता जी कौन हैं?
श्री शिव जी यानि कि शंकर जी की माता देवी दुर्गा जी हैं, उन्हें प्रकृति देवी, भवानी और अष्टांगी भी कहा जाता है।
Q.6 इस लेख में वर्णित 11 रुद्र कौन हैं?
शिव पुराण में वर्णित 11 रुद्र श्री शिव जी से अलग हैं। रुद्र विशेष रूप से विनाश में विशेष भूमिका निभाते हैं।
Q.7 क्या भगवान रुद्र और सदाशिव एक ही शक्ति हैं?
नहीं, सदाशिव 21 ब्रह्मांडों के स्वामी हैं। सदाशिव यानि कि ब्रह्म काल के ब्रह्मांडों में रुद्र एक विभाग के मुखिया हैं।
Q.8 श्री शिव जी की आयु कितनी है?
श्री शिव जी यानि कि शंकर जी 21 ब्रह्मांडों के सभी देवताओं की तरह, जन्म मृत्यु के चक्र में आते हैं। सात श्री विष्णु जी की मृत्यु के बाद, एक शिव जी की मृत्यु होती है। श्री शिव जी की आयु अन्य सभी देवताओं की तुलना में सबसे लंबी होती है।
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Vikramaditya Sharma
इस लेख में श्री शिव जी, सदाशिव और रुद्र के बारे में बहुत विस्तार से बताया गया है। लेकिन पहली बार पढ़ने वाले को यह एक काल्पनिक बात लग सकती है कि श्री शिव जी का जन्म हुआ था और वे नाशवान हैं। इस बात को समझना बहुत ही कठिन है।
Satlok Ashram
विक्रमादित्य जी, आप जी ने हमारे लेख को पढ़कर अपने विचार बताए, इसके लिए आपका धन्यवाद। हम इस बात से सहमत हैं कि जब कोई पहली बार इस सत्य आध्यात्मिक ज्ञान के गूढ़ रहस्यों को जानता है, तो उसके लिए उस पर विश्वास करना कठिन हो जाता है। हम आपको बताना चाहते हैं कि हमारे प्रत्येक लेख शास्त्र आधारित होते हैं, काल्पनिक नहीं। इस लेख में दी गई जानकारी को आप अपनी संतुष्टि के लिए हमारे पवित्र धार्मिक शास्त्रों से मिलान कर चैक कर सकते हैं। भगवान सदाशिव/काल ब्रह्म हैं। उनकी पत्नी दुर्गा को जगत जननी भी कहा जाता है। 21 ब्रह्माण्डों में सभी जीव इन्हीं के संयोग से उत्पन्न हुए हैं। तीन गुण- रजोगुण ब्रह्मा, सतोगुण विष्णु तथा तमोगुण शिव इनके तीन पुत्र हैं जो क्रमशः सृजन, पालन तथा संहार का कार्य करते हैं तथा जीवों को माया के मोह में फंसाकर 84 लाख योनियों के कष्टों में फंसाए रखते हैं तथा जीवों को काल के जाल से मुक्त नहीं होने देते। हम आपसे निवेदन करते हैं कि आप आध्यात्मिक ज्ञान को गहराई से जानने के लिए "ज्ञान गंगा" पुस्तक को पढ़िए। आप संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को यूट्यूब चैनल पर भी सुन सकते हैं।