भारत एक ऐसा देश है जो संस्कृति में अत्यधिक आगे/सबसे बढ़कर है। अजूबों की भूमि; भारत में हर जगह रहस्यों और धार्मिक मान्यताओं के प्रमाणों के ऐतिहासिक श्रेय हैं। प्रत्येक धर्म से संबंधित विभिन्न धार्मिक स्थान कुछ ऐतिहासिक तथ्य को दर्शाते हैं। हिंदुओ की पौराणिक कथाओं में, 'असुरों/राक्षसों' नामक दुष्ट आत्माओं की एक अवधारणा है जो ईश्वर विरोधी हैं और शक्तिशाली प्राणियों की विशेषताओं से भरपूर होते हैं जो अधिक धन, क्रोध, अधर्मी प्रकृति और हिंसा की लालसा रखते हैं। पवित्र भूमि- भारत कई 'देवताओं/भगवानों', जिनके पास ऐसी दुष्ट आत्माओं की अधर्मी प्रकृति को रोकने की शक्ति है, उनकी(भगवानों की) पूजा के लिए प्रसिद्ध है। यह लेख एक रहस्यमयी धार्मिक स्थान जो मेहंदीपुर बालाजी मंदिर के नाम से जाना जाता है, की एक सच्चाई दिखाएगा, जिसके आदरणीय देवता भगवान हनुमान है और संसार के लोगों की यह मान्यता है कि यह मंदिर दुष्ट आत्माओं के धार्मिक उपचार और यंत्र-मन्त्र/ झाड़-फूक के लिए है। यहां हम विश्लेषण करेंगे कि आत्मा का वास्तविक धार्मिक/औपचारिक उपचार सतभक्ति के माध्यम से कैसे किया जाता है?
हम सभी जानते हैं कि मनुष्य जन्म सतभक्ति करने और भगवान प्राप्त करने के लिए मिलता है। भक्ति मार्ग में मनमाना आचरण जो सदग्रंथो में प्रमाणित नहीं है, व्यर्थ है। मृतक पूर्वजों (पितरों), भूतों, अर्ध भगवानों, श्राद्ध करना, और इस तरह की अन्य साधना जैसी क्रियाओं का कोई महत्व नहीं, और यह कहीं भी किसी भी धर्म, चाहे कोई भी धर्म हो, के पवित्र धार्मिक ग्रन्थों में उल्लिखित नहीं है।
यह लेख निम्नलिखित पर केंद्रित होगा-
- मेहंदीपुर बालाजी मंदिर के बारे में संक्षिप्त परिचय
- मेहंदीपुर बालाजी मंदिर कैसे स्थापित हुआ था?
- क्या मेहंदीपुर बालाजी में बुरी/ दुष्ट आत्माओं की पूजा करने से लोगों को लाभ मिलता है?
- क्या मेहंदीपुर बालाजी में भगवान हनुमान वास्तव में 'संकट मोचन' है?
- मेहंदीपुर बालाजी में किसकी पूजा होती है?
- क्या मेहंदिपुर बालाजी की पूजा मुक्ति प्रदान कर सकती हैं?
- पूर्ण परमात्मा/ सर्वित्तम भगवान कौन है?
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर के बारे में संक्षिप्त जानकारी
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर टोडाभीम के पास ब्रह्मबाद, दौसा, करौली जिले में स्थित है जो राजस्थान राज्य में हिंदौन शहर के पास है। मेहंदीपुर बालाजी मंदिर भगवान हनुमान; हिंदू देवता जिन्हें 'संकट मोचन' माना जाता है, यानी, संकट का नाश करने वाले, बल के देवता, के लिए समर्पित है। श्री हनुमान जी 'बाल' अवस्था मे यानी बाला जी, जो श्री हनुमान जी का दूसरा नाम है, के रूप में पूजे जाते थे, इसलिए मंदिर का नाम मेहंदीपुर बालाजी रखा गया है। यह मंदिर दुनिया भर के कई तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है क्योंकि यह धार्मिक उपचार और बुरी आत्माओं के अनुलग्नकों और काले जादू या मंत्रों से भूत भगाने के लिए प्रसिद्ध है। भक्तों का दृढ़ विश्वास यह है कि मेहंदीपुर बालाजी मंदिर बुरी आत्माओं- भूतों और प्रेतों को भगाने का सबसे बेहतर वरदान/आशीर्वाद देता है।
आइए हम आगे बढ़ते हैं और पवित्र शास्त्रों में उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर मेहंदीपुर बालाजी की स्थापना के बारे में वास्तविक जानकारी का अध्ययन करें और यह पता लगाने की कोशिश करें कि आत्मा के अनुष्ठानिक उपचार की सही प्रक्रिया क्या है?
दौसा राजस्थान में मेहंदीपुर बालाजी मंदिर की स्थापना कैसे हुई?
संदर्भ: जगतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन "समझा है तो सिर धर पांव" पुस्तक में।
एक बार राजस्थान प्रांत मेहंदीपुर में एक सच्चा आदमी था जिसकी उम्र लगभग 30 वर्ष थी। वह एक पुण्य आत्मा और महान भक्त था। उसने किसी कारण से विवाह नहीं करवाया था। जहां कहीं भी भगवान की कथा का पाठ होता था या सत्संग होता था, वह उस स्थान पर पहुंच जाता था। सभी कहते हैं कि गुरु के बिना मोक्ष नहीं मिल सकता। उसने भी एक गुरु बनाया। वह रामायण का पाठ किया करता था और कथा सुनाता था। यदि कोई भी 'पाठ' किया जाता है, तो गाय या भैंस के देसी घी’ (शुद्ध मक्खन) की ज्योति जगाई जाती है, जो एक अनुष्ठान का काम करती है, जहां अग्निकुंड जिसे ‘हवन’ कहा जाता है, के सामने भगवान से प्रार्थना की जाती है।
उसने श्री राम का एक मंदिर भी बनवा रखा था जिसमें रामचंद्र, सीता, लक्ष्मण और हनुमान की मूर्तियाँ भी स्थापित थीं। उन मूर्तियों के सामने वे अखंड ज्योति जलाते थे। यदि किसी में प्रेत बाधा होती थी तो उस मंदिर (आश्रम) में जग रही ज्योति को, हनुमान, श्री राम, लक्ष्मण, सीता की मूर्ति को देखकर वह भूत / प्रेत चिल्लाना शुरू कर देता कि बाबा मुझे छोड़ दे; मैं कभी नहीं आऊँगा’। थोड़ी देर में, वह प्रेत बाधा से पीड़ित (पुरुष या महिला) शांत हो जाता। मेहंदीपुर वाला भक्त भी यह सब देखा करता था। अगर कोई भूत या प्रेत बाधा से पीड़ित उसके सम्पर्क में आता तो वह उसे गुरुधाम ले जाता था और उसे ऐसी बुरी आत्माओं/ भूतों से छुटकारा दिलवाता था।
एक बार उसके गुरु जी बीमार पड़ गए और इलाज के लिए दूर शहर चले गए। लगभग 6 महीने तक उन्हें वहाँ रहना पड़ा लेकिन बाद में उनकी मृत्यु हो गई। वह मेहंदीपुर वाला भक्त हनुमान जी की पत्थर की मूर्ति के सामने एक अखंड ज्योति जलाता था (जो उसे बारिश के मौसम में एक ऊँचे स्थान पर मिट्टी कटकर बह जाने से वहाँ मिली थी जो बहुत अच्छी स्थिति में नहीं थी यानी साफ नहीं थी, लेकिन लगती थी कि हनुमान जी की है। वह उसे हनुमान जी की कृपा मान कर उठा लाया) और उस मूर्ति को एक स्थान पर स्थापित कर दिया और अखंड ज्योति जलाता था।
वह अपने गुरु द्वारा बताए गए हनुमान पाठ का तीन बार पाठ किया करता था। अब जो लोग प्रेत बाधा वाले गुरु के पास जाते थे या जो नए भक्त मेहंदीपुर वाले के पास जाते थे, जिन्हें वो गुरु के पास ले जाता था, वे उसके पास आये। भक्त ने उन्हें बताया कि गुरु जी तो इलाज के लिए बाहर गए हैं। हमें नहीं पता कि वह कब स्वस्थ होकर वापस आएंगे। इसी बीच, उन सभी ने उसके घर पर उस अखंड ज्योति के सामने चिल्लाना शुरू कर दिया जो हनुमान जी की मूर्ति के सामने जगी हुई थी। उसी तरह कहने लगे कि; 'बाबा हमें छोड़ दे; हम कभी नहीं आएंगे'।
उस समय 6 महीनों में वह आसपास प्रसिद्ध हो गया। जो लोग गुरु के पास जाते थे या जो नए आते थे सभी मेहंदीपुर जाने लगे। प्रेत बाधा की समस्या ठीक होने लगी। उस भोले भक्त को यह भ्रम हो गया कि तेरे पास भी गुरु जी जैसी शक्ति आ गयी है। वह महंत बन गया। उस भक्त में प्रेत प्रवेश कर गया। वह नई-नई प्रेरणा करने लग गया। स्वादिष्ट भोजन बनाना चाहिए। सात प्रकार की मिठाइ बनानी चाहिए। अधिक ज्योति जलानी चाहिए, आदि-आदि। उस भक्त ने सात प्रकार के खाद्य पदार्थ, हलवा, खीर, पुरी, कचौड़ी, पकौड़ी, इत्यादि बनवानी शुरू कर दी और सात प्रकार की मिठाइ मंगवानी शुरू कर दी। प्रेत के सताए हुए धनी व्यक्तियों ने उसपर बहुत धन लुटाया। उस भक्त ने एक हनुमान मंदिर बनया जो वर्तमान में बहुत बड़ा बनाया गया है।
भूत क्या करते हैं? :-
भूत दूसरों के शरीर में प्रवेश करते हैं और मिठाई व भोजन का आनंद लेते हैं। उनका सूक्ष्म शरीर होता है। जो मानव शरीर प्राप्त प्राणी है, उनका जीव भी मूल रूप में सूक्ष्म शरीर में रहता है। उसे मानव शरीर भक्ति, सेवा, दान करने और मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्राप्त होता है।
जो पूर्ण गुरु से दीक्षा लेकर भक्ति नहीं कर पाते, उनसे स्थूल मानव शरीर छीन लिया जाता है। उनमें से, कुछ प्रेत बन जाते हैं। वह प्राणी जो प्रेत बन गया है वो वही स्थूल शरीर वाला आनन्द चाहता है जो उसे केवल मानव शरीर में मिल सकता है। जिस कारण ये प्रेत किसी-किसी में प्रवेश करते है और आनंद लेते है। जो लोग शराब पीते हैं और छोड़ नहीं पाते। कोई शराबी मरने के बाद उसमें (भूत बनकर) प्रवेश है। चाहकर भी वे शराब नहीं छोड़ पाते।
मेहंदीपुर में बालाजी के नाम से भक्त ने एक मंदिर बनाया। मिठाई, मेवा (काजू, बादाम, किशमिश, अंगूर, आदि) के प्रसाद का भोग लगाने लगा। यह प्रेत की प्रेरणा से किया। जो प्रेत बाधा से पीड़ित मेहंदीपुर जाने लगा, उसका प्रेत तुरंत निकल जाता और उस गांव (मेहंदीपुर) के व्यक्ति जो शाम आरती में आते हैं उनमें प्रवेश कर जाता है और वहां स्थायी 'डेरा' बना लेता है। प्रतिदिन वह विभिन्न प्रकार की मिठाई खाता है। इस प्रकार, मेहंदीपुर बालाजी का धाम भूतगाह बन गया, यानी भूतों की छावनी बन गया। मोक्ष न तो उस भक्त का हुआ और न ही वहां जाने वालों का।
नोट: इसी प्रकार, राजस्थान प्रांत के चुरु जिले के गाँव सालसर में एक छोटे हनुमान मंदिर की कथा है; ठीक उसी तरह जैसे एक हनुमान भक्त द्वारा मेहंदिपुर बालाजी मंदिर की स्थापना हुई है। इस मंदिर में भी बुराई आत्माओं से छुटकारा दिलाया जाता है, ज्योति जलाई जाती है।
अब साधको के मन में यह प्रश्न आ रहा होगा- मेहंदीपुर बालाजी या सलासर में प्रेत आत्माओं की पूजा करने से मनुष्यों को कोई आध्यात्मिक लाभ होता है? क्या हमारे पवित्र शास्त्रों में से किसी में ऐसी पूजा का प्रावधान है?
क्या मेहंदीपुर बालाजी में प्रेत आत्माओं की पूजा करने से मनुष्यों को लाभ होता है?
शास्त्रविरुद्ध भक्ति करना जो शास्त्रविधि से रहित है 'अविद्या' (अज्ञान) कही जाती है जो साधक को कोई आध्यात्मिक लाभ प्रदान नहीं करती। इस तरह का मनमाना आचरण जीव को 84 लाख योनियों में फँसाये रखता है जिसमे उसे भूत और/ या प्रेत की योनी भी झेलनी पड़ती है। यही पवित्र श्रीमद भागवत गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में भी प्रमाणित है जिसमें गीता ज्ञान दाता; ब्रह्म-काल कहता है कि "देवताओं के पूजा करने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों की पूजा करने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों की पूजा करने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं; इसी प्रकार, मेरे भक्त, जो शास्त्रों के अनुसार पूजा करते हैं, वो मुझे प्राप्त करते हैं"।
गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में गीता ज्ञान दाता कहता है कि "जो पुरुष शास्त्रविधि को त्यागकर, मनमाना आचरण करता है, न ही सिद्धी को प्राप्त होता है, न ही परम गति/मोक्ष को प्राप्त होता है"। गीता अध्याय 16 श्लोक 24 में वह आगे कहता है "इसलिए, क्या किया जाना चाहिए और क्या नहीं किया जाना चाहिए (कर्तव्य और अकर्तव्य) की व्यवस्था मे तेरे लिए शास्त्र ही प्रमाण है। ऐसा जानकर, केवल उन कृत्यों को किया जाना चाहिए, जो शास्त्रविधि के अनुसार हैं"।
वेद भगवान का संविधान है और पवित्र गीता चारों वेदों का सार है। वेद पूर्ण परमात्मा (परमपिता) के आदेश हैं और गीता जी स्पष्ट करती हैं कि शास्त्रानुकूल भक्ति करनी चाहिए जिससे जीव भूत व प्रेत न बने। इसलिए मेहंदीपुर बालाजी में की जाने वाली प्रेत आत्माओं की पूजा व्यर्थ है, यह मनमाना आचरण है जो कि शास्त्रविरुद्ध है। इससे मनुष्यों को कोई लाभ नहीं होता बल्कि पाप कर्म बढ़ते है। इस प्रथा को त्याग देना चाहिए।
मेहंदीपुर बालाजी में भगवान हनुमान आदरणीय देवता हैं। आइए जानें- क्या भगवान हनुमान वास्तव में संकट को हरने वाले (संकट का नाश करने वाले) यानी "संकट मोचन" हैं?
क्या मेहंदीपुर बालाजी में भगवान हनुमान वास्तव में संकट मोचन हैं?
मेहंदीपुर बालाजी में मुख्य रूप से पूजे जाने वाले तीन देवताओं में भगवान हनुमान बालाजी के रूप में, भगवान भैरव, और श्री प्रेतराज सरकार (बुरी आत्माओं के राजा) हैं। विश्व के लोगों की मान्यताओं के अनुसार, तीनों देवता भूतों और प्रेतों से संबंधित हैं और उन लोगों को ठीक करने की क्षमता रखते हैं जो इन बुरी आत्माओं से पीड़ित होते हैं और काले जादू के माध्यम से वे पीड़ितों को बुरी आत्माओं के चंगुल से मुक्त कराने में मदद करते हैं।
गीता अध्याय 4 श्लोक 25-29 कहते हैं, "जो भी पूजा साधक करता है, उसे श्रेष्ठ और पाप नाशक मानता है"। मेहंदीपुर बालाजी में भक्त तीन देवताओं की भक्ति को अनजाने में सही मानकर उनकी भक्ति करते हैं। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि गीता जी ने सिद्ध कर दिया है कि भूतों, प्रेतों और पितरों की पूजा करना व्यर्थ साधना है। इसलिए, मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में कोतवाल भैरव, श्री प्रेतराज सरकार, और हनुमान जी 'संकट मोचन' के नाम से भी जाने जाते हैं, की इस उद्देश्य से पूजा करना कि वे बुरी आत्माओं से पीड़ितों का पीछा छुड़वाएँगे, यह गलत धार्मिक प्रथा है। यह शास्त्रविरुद्ध है। हनुमान जी प्रेत बाधा से पीड़ित लोगों के संकट को हरने (संकट का नाश करने) में असमर्थ हैं। वह स्वयं जन्म और पुनर्जन्म के चक्र में है और अभी तक मोक्ष प्राप्त नहीं किया है, तो उनके भक्त 84 लाख योनियों के दुष्चक्र से कैसे मुक्त हो सकते हैं। हनुमान जी वास्तव में 'संकट मोचन' नहीं हैं, यानी संकट के नाशक नहीं हैं।
विवरण के लिए हनुमान मोक्ष कथा भी पढ़ें
मेहंदीपुर बालाजी में किसकी पूजा करते हैं?
संदर्भ: सूक्ष्मवेद, सच्चिदानंदघनब्रह्म, यानी, सर्वशक्तिमान कबीर की अमृत वाणी
हिंदु दृढ़ता से मानते हैं कि त्रेता युग में भगवान हनुमान श्री रामचंद्र जी के हमेशा वफादार भक्त रहे थे। महाकाव्य रामायण के ऐतिहासिक प्रमाण में कहा गया है कि श्री राम और रावण के बीच युद्ध होने के बाद, राक्षस रावण मारा गया और श्री रामचंद्र जी की पत्नी सीता जी को शैतान रावण की जेल से मुक्त हुई। श्री रामचंद्र जी के युद्ध जीतने के बाद वे सभी अयोध्या लौट आए और खुशहाल जीवन जी रहे थे। एक दिन सीता जी ने श्री राम और सीता जी के प्रति समर्पण के लिए श्री हनुमान जी को इनाम के रूप में एक कीमती हार भेंट किया लेकिन भक्त हनुमान ने उस हार को तोड़ दिया क्योंकि उनके पूज्य श्री राम उस हार के मोतियों में अंकित नहीं थे, जिससे सीता जी गुस्सा हो गयी। इसलिए, उन्होंने (सीता ने) यह कहते हुए उसका (हनुमान का) अपमान किया कि “हे मूर्ख! तूने बंदर की तरह ही व्यवहार किया है। मेरी नजरों से दूर चले जा''। इस अनादर ने वफादार भक्त हनुमान का दिल तोड़ दिया और इसके बाद उसने अयोध्या त्याग दी।
सर्वशक्तिमान कबीर, जो त्रेता युग में अवतरित हुए थे और ऋषि मुनिंदर जी लीला कर रहे थे हनुमान जी से मिले और उन्हें सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया और सच्चे मोक्ष मंत्रों दिए जिसका जाप करके श्री हनुमान जी मोक्ष प्राप्ति के योग्य हो गए। उन्होंने श्री रामचंद्र जी की पूजा बंद कर दी और ब्रह्मांड के रचियता यानी भगवान कबीर के प्रति समर्पण दिखाया।
मेहंदीपुर बालाजी में पूजनीय भगवान हनुमान सर्वशक्तिमान कविर्देव को मानते हैं।
हनुमान जी ने सतभक्ति की परन्तु उस समय मुक्ति नहीं मिली थी, हालांकि सतभक्ति का बीज बो दिया गया था। विचार करने की बात यह है कि जब हनुमान जी को मोक्ष प्राप्त नहीं हुआ तो क्या उनके भक्तों को मुक्ति मिलेगी?
क्या मेहंदीपुर बालाजी की भक्ति मोक्ष प्रदान कर सकती है?
जवाब है: "नहीं", मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में हनुमान जी की पूजा आत्माओं को मोक्ष नहीं दिला सकती। उपरोक्त, प्रमाणित करता है कि भगवान हनुमान जी सर्वशक्तिमान कबीर की पूजा करते हैं जो मोक्ष के प्रदाता हैं। हनुमान जी स्वयं जन्म और पुनर्जन्म के चक्र में है। वे मोक्ष नहीं दे सकते जो इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि उनके भक्तों को भी मुक्त नहीं मिलेगी। इसलिए, भोले और अज्ञानी साधकों द्वारा मेहंदीपुर बालाजी में बुरी आत्माओं से राहत पाने के लिए और सुख प्राप्त करने के लिए की गई पूजा एक गलत धारणा है। भक्तों को गुमराह किया गया है और उस परम शक्ति की पूजा करनी चाहिए, जिसे हनुमान जी पूजते हैं और मेहंदीपुर बालाजी में पूजा के मनमाने आचरण को छोड़ दो।
अंत में, वह परम शक्ति कौन है जिसकी भक्ति आत्मा को मुक्ति प्रदान करती है?
पवित्र गीता के अनुसार सर्वोत्तम परमात्मा कौन है?
मानव जन्म का मुख्य उद्देश्य सतभक्ति करना और मोक्ष प्राप्त करना है। उपरोक्त, तथ्य प्रमाणित करते हैं कि मेहंदीपुर बालाजी में पूजनिय भगवान हनुमान मोक्ष प्रदान नहीं कर सकते। आत्मा के वास्तविक धार्मिक उपचार, यानी, मोक्ष प्राप्ति मोहंदीपुर बालाजी, अर्थात, भगवान हनुमान, भगवान भैरव और प्रेतराज की भक्ति से नहीं हो सकती। भक्तों को बस गुमराह किया गया है। तो वह परम शक्ति कौन है जिसकी भक्ति आत्मा को वास्तविक मोक्ष प्रदान करती है? वह सतभक्ति क्या है और सच्चे मोक्षदायक मंत्र कौन देता है?
गीता अध्याय 15 श्लोक 16 और 17 दो प्रकार के भगवानों का उल्लेख करते है, 'विनाशकारी और अविनाशी और स्पष्ट करते है कि सर्वोत्तम भगवान, हालांकि, उपरोक्त दोनों भगवानों, क्षर पुरुष और अक्षर पुरुष के अलावा कोई और है, जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है और अविनाशी परमात्मा कहलाता है।
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 कहता है कि उपरोक्त उल्लिखित विभिन्न प्रकार की साधनाये मनमानी साधनाये हैं। गीता ज्ञान कहने वाला भगवान परमपिता भगवान के पूर्ण मोक्ष मार्ग से अनजान है। एक तत्वदर्शी संत सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान के सार को जानता है। उस तत्वदर्शी सन्त को दण्डवत प्रणाम करके और विनम्रता से पूछकर साधक पूजनीय भगवान, जो मोक्ष का प्रदाता है, की जानकारी प्राप्त कर सकता है। गीता अध्याय 2 श्लोक 15-16 में भी यही प्रमाण उल्लिखित है।
गीता अध्याय 17 श्लोक 23 सच्चे मोक्ष मन्त्रों के बारे में बताता है "ओम-तत-सत" (सांकेतिक) जो परम अक्षर पुरूष यानी, सर्वशक्तिमान कबीर, जिन्हें मेहंदीपुर बालाजी के देवता भगवान हनुमान जी पूजते हैं, का है। मोक्ष केवल इस (सांकेतिक) मंत्र का जप करके प्राप्त किया जा सकता है। यह मंत्र पूर्ण परमात्मा कविर्देव का है जो आत्मा को जन्म और पुनर्जन्म के रोग से हमेशा के लिए मुक्त कर देता है और आत्मा अविनाशी स्थान 'सतलोक' प्राप्त करती है। मेहंदीपुर बालाजी के स्थान पर यात्रा और पूजा भी ये नहीं कर सकती।
इसलिए, आत्मा के वास्तविक अनुष्ठानिक उपचार, यानी, मोक्ष प्राप्ति केवल पूर्ण गुरु, तत्वदर्शी संत से दीक्षा लेने के बाद सर्वशक्तिमान कविर्देव की अंतिम श्वांस तक मर्यादा में रहते हुए सतभक्ति करने से संभव है।
निष्कर्ष
मेहंदीपुर बालाजी राजस्थान प्रांत में एक भूतगाह है। वहाँ केवल भूत भगाने का काम होता है। अनगिनत लोग वहां जाते हैं। किसी के लिए कोई मोक्ष नहीं है क्योंकि सतगुरु से दीक्षा लेने और पूरा जीवन मर्यादा में बने रहने और भक्ति सेवा दान करके मोक्ष प्राप्त किया जाता है। गुरु भी पूरा होना चाहिए।
भगवान कबीर सच्चिदानंदघनब्रह्म की वाणी में कहते हैं
कबीर, एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
माली सींचे मूल को, फूले फले आघाय।।
साधकों को मोक्ष प्राप्त करने का उद्देश्य रखना चाहिए जो मानव जन्म का मुख्य उद्देश्य है और केवल परम अक्षर ब्रह्म, भगवान कबीर देव जो पूरे ब्रह्मांड की जड़ (निर्माता) है की पूजा करनी चाहिए। सर्वशक्तिमान कविर्देव पृथ्वी पर अवतरित हो चुके हैं और जगतगुरु तात्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज के रूप में लीला कर रहे हैं जो गारंटी देते हैं कि उनसे (रामपाल दास से) नाम दीक्षा लेकर और सतभक्ति करके 'तीन ताप' की पीड़ाएँ, यानी, भूत/प्रेत बाधा, पितर बाधा और अन्य ऐसी पीड़ाएँ हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगी और साधक सतलोक, अविनाशी स्थान, को प्राप्त होगा, अर्थात पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति। मेहंदीपुर बालाजी में भक्ति साधकों को मोक्ष प्रदान नहीं कर सकती है।