जब तीर्थ यात्रा की बात आती है तो चार धाम की यात्रा करने को मन अवश्य करता है। भारत में चार प्रमुख धाम हैं जिसमें यमुनोत्री धाम, गंगोत्री धाम, बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ धाम शामिल हैं। इनमें केदारनाथ बहुत प्रसिद्ध धाम है और यह भगवान शिव को समर्पित स्थान है। कहा जाता है कि केदारनाथ मंदिर 1,200 साल से भी अधिक पुराना है। यह आदि शंकराचार्य द्वारा बनाया गया था और यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से भी एक है। केदारनाथ मंदिर की यात्रा उत्तराखंड में प्रसिद्ध चार धाम यात्रा का एक अभिन्न अंग है।
तीर्थस्थल के साथ पर्यटन के लिए भी प्रसिद्ध है केदारनाथ धाम
यह उत्तर भारत के पवित्र स्थानों में से एक है, केदारनाथ उत्तराखंड में स्थित है। यह मंदाकिनी नदी के शीर्ष के पास समुद्र तल से 3,584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। केदारनाथ मंदिर हिंदू कार्तिक महीने के (अक्टूबर-नवंबर) पहले दिन बंद हो जाता है और वैशाख (अप्रैल-मई) में हर साल मई से जून और सितंबर से अक्टूबर तक फिर से खुलता है और ये महीने केदारनाथ यात्रा के लिए सबसे अच्छे माने जाते हैं। मानसून के दौरान मंदिर की ओर जाने वाला मार्ग अत्यधिक खतरनाक हो जाता है क्योंकि इस समय भूस्खलन होना और बाढ़ आना बहुत आम हैं।
केदारनाथ मंदिर द्वापर युग से अस्तित्व में आया
केदारनाथ स्थल द्वापर युग से अस्तित्व में आया था। केदारनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और केदारनाथ मंदिर की यात्रा शिव भक्तों के लिए एक रोमांचकारी अनुभव होता है। एक पौराणिक घटना के अनुसार पांडव भाइयों को केदारनाथ मंदिर के निर्माण का श्रेय जाता है । इस लेख में पाठकजन पढ़ेंगे कि शास्त्रों के विपरीत जाकर भगवान शिव की पूजा करना और केदारनाथ की तीर्थ यात्रा करने से साधकों को कोई लाभ होता है या नहीं।
केदारनाथ मंदिर का इतिहास
महाभारत से जुड़ी कथाओं के अनुसार पांडवों ने अपने सगे संबंधियों की हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की थी।
हालाँकि, सदाशिव (ब्रह्मा, विष्णु और शिव के पिता) ने हिमालय में घूमने के लिए, खुद को एक दुधारू भैंस का रूप धारण किया और पांडवों द्वारा पकड़े जाने पर, सदाशिव भूमिगत हो गए। जब भीम दूध प्राप्त के उद्देश्य से भैंस को पकड़ने दौड़ा तभी भैंसा धरती में घुसने लगा। भीम ने भैंस की पीठ को मजबूती से पकड़ लिया
फिर भी भीम केवल उसके कूबड़ को ही पकड़ पाया था। भैंस के शरीर के अन्य अंग अलग-अलग जगहों पर दिखाई दिए। भैंस का कूबड़ केदारनाथ में, नाभि मध्य-महेश्वर में, दो अग्रपाद तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में और बाल कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इन्हें सामूहिक रूप से पंच केदार - पाँच पवित्र स्थान कहा जाता है। केदार का शाब्दिक अर्थ दलदल होता है।
हिमालय में ऐसे सात केदार हैं। काठमांडू में भैंसे का सिर निकला, जिसे पशुपतिनाथ कहा गया। हर हिस्से पर एक मंदिर बनाया गया था। ये सभी मंदिर पौराणिक घटना को सच साबित करने के लिए बनाए गए थे। यद्यपि ये मंदिर किसी न किसी कथा के साक्षी हैं, फिर भी तीर्थ यात्रा का उद्देश्य निरर्थक ही रह जाता है। लगभग सौ वर्ष पूर्व केदारनाथ में अत्यधिक वर्षा के कारण दलदल हो गया था। लगभग साठ (60) वर्षों तक उस स्थान को न तो कोई देखने गया था और न ही वहाँ कोई पूजा-आरती हुई थी। हालाँकि, तीस से चालीस साल बाद, आगंतुक वहाँ पूजा करने जाने लगे हैं।
2013 की दुखद बाढ़ में, केदारनाथ के नष्ट हुए थे हिस्से
17 जून, 2013 को उत्तराखंड में चौराबाड़ी झील के उफनते किनारों पर अचानक बाढ़ आ गई थी और अपने साथ ढेर सारी गंदगी और पत्थर बहा लाई जिसने अपने रास्ते में आने वाले जीव जंतुओं और मनुष्यों के जीवन, घरों और हर चीज को नष्ट कर दिया था। केदारनाथ मंदिर में पूजा करने गए लाखों लोग बाढ़ में बह गए। अंध भक्ति और विश्वास के कारण हजारों लोग मारे गए। केदारनाथ में आई बाढ़ से हजारों लोगों की मौत हो गई। सच तो यह है कि शिव अपने भक्तों को मृत्यु से नहीं बचा सकते, उनके जीवन को बढ़ाने या उन्हें किसी भी आपदा से बचाने की शक्ति उनके पास नहीं है।
वह सदाशिव (काल ब्रह्म) की शक्तियों से शासित हैं , जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव के पिता हैं और इन चारों की शास्त्र विपरीत भक्ति पूजा करने का वर्णन पवित्र गीता जी में नहीं है, लेकिन जो लोग ऐसी शास्त्रविरूद्ध भक्ति करते-करते मर गए, उनका जीवन नष्ट हो गया और यह मनमानी पूजा से होने वाले नुकसान का एक भयंकर उदाहरण है इसलिए भक्तों को सदाशिव और तीन देवताओं के बारे में अवश्य जानना चाहिए।
शिव, सदाशिव (काल ब्रह्म) के सबसे छोटे पुत्र हैं
शिवपुराण (पृष्ठ 86) में लिखा है, "हमने सुना है कि भगवान सदाशिव (ज्योति निरंजन/काल ब्रह्म) शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। वह कल्याणकारी हैं। भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान महेश इन तीनों देवताओं की उत्पत्ति सदाशिव के अंश से हुई है।" ब्रह्मा, सदाशिव जिसे काल भी कहते हैं के ज्येष्ठ पुत्र हैं ,मझोले विष्णु जी और सबसे छोटे पुत्र शिव जी हैं।
क्या भगवान शिव अमर और निराकार हैं?
हिंदू भक्तों का मानना है कि भगवान शिव अमर और निराकार हैं। आइए हम कुछ और स्थायी प्रश्नों का विश्लेषण करें जो शास्त्र आधारित भक्ति करने में मदद करेगी।
भगवान शिव की आयु कितनी है?
भगवान ब्रह्मा की आयु 720000 × 100 चतुर्युग = 7,20,00000 (सात करोड़ बीस लाख) चतुर्युग एक चौकरी (चतुर्युग) चार युगों से बनी है। भगवान विष्णु की आयु भगवान ब्रह्मा से सात गुना है और भगवान शिव की आयु भगवान विष्णु से सात गुना है।
क्या भगवान शिव की भी मृत्यु होती है?
त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) भी जन्म-मरण के चक्र में हैं तथा गीता अध्याय 4 श्लोक 5 से 9 प्रमाणित करता है कि सदाशिव (ब्रह्म-काल) तथा देवी दुर्गा भी अजर अमर नहीं हैं इनकी भी मृत्यु होती है। इसलिए यह गलत धारणा है कि भगवान शिव अमर हैं। भगवान शिव की मृत्यु होती है तथा भगवान शिव साकार रूप में हैं। भगवान शिव तमोगुण युक्त हैं तथा जीवों का संहार करने का कार्य करते हैं और अपने पिता सदाशिव / ब्रह्म - काल के लिए भोजन तैयार करते हैं।
अपना कार्यकाल पूरा करने पर इन त्रिलोकी देवताओं भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव की भी मृत्यु हो जाती है। क्योंकि गीता अध्याय 4 श्लोक 16-22 के अनुसार सभी मनुष्यों की तरह ये भगवान भी कर्मों के बंधन में बँधे हुए हैं ।
क्या शिव, शंकर, महेश और रुद्र एक ही हैं?
सतयुग में सतसुकृत के अवतार परम अक्षर ब्रह्म (कविर्देव) द्वारा सतज्ञान प्रदान किया गया जोकि संपूर्ण मानवजाति के उद्धार के लिए है। जबकि भगवान ब्रह्मा द्वारा दिया गया आध्यात्मिक ज्ञान उनका व्यक्तिगत अनुभव है।
सन्दर्भ: - संक्षिप्त शिवपुराण, अध्याय 9, रुद्र संहिता पृष्ठ 107-110, श्री महेश्वर जी ने कहा “मैं निर्माता, संरक्षक और विध्वंस कर्ता हूँ, मैं सगुण और निर्गुण हूँ तथा सच्चिदानंदस्वरूप परब्रह्म परमात्मा (भगवान) हूँ। विष्णु! सृजन, संरक्षण और प्रलय रूप गुणों अथवा प्रतिष्ठित कार्यों के अनुसार मैं ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र का रूप धारण करता हूं और तीन गुणों में विभाजित हूं। ब्रह्मन! इस दुनिया में आपके शरीर से मेरा ऐसा ही पूर्ण दिव्य रूप प्रकट होगा, जिसे 'रुद्र' नाम से जाना जाएगा।
मैं, तुम, ब्रह्मा और रुद्र जो प्रकट होंगे, वे सभी एक-रूप हैं। इनमें भेद नहीं है। ब्रह्मन! इस कारण से आपको ऐसा करना चाहिए। आप सृष्टिकर्ता बनो, श्री हरि पालन करेंगे और रुद्र जो मेरे अंश से उत्पन्न होंगे, वे इसका विनाश करने वाले होंगे। उमा नाम से प्रसिद्ध यह परमेश्वरी प्रकृति देवी है, उनका शक्ति रूप वाग्देवी ब्रह्मा जी का आश्रय लेंगी। बाद में इस प्रकृति देवी से जो दूसरी शक्ति प्रकट होगी वह लक्ष्मी रूप से विष्णु का आश्रय लेगी। फिर ’काली’ नाम के साथ तीसरी शक्ति जो प्रकट होगी, वह निश्चित रूप से मेरे अंश से उत्पन्न रुददेव को प्राप्त होगी।
पवित्र शिव पुराण के उपर्युक्त वर्णन से सिद्ध होता है कि शिव, शंकर, महेश और रुद्र एक हैं।
भगवान शिव (शंकर) जी का सच्चा मंत्र क्या है?
देवी पार्वती के साथ भगवान शिव हर इंसान के 'हृदय कमल' में निवास करते हैं। भगवान शिव जी का एक विशिष्ट मंत्र है जो उन्हें सर्वशक्तिमान कविर्देव जी द्वारा दिया गया था। एक सच्चे गुरु की अनुपस्थिति और सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान की कमी के कारण पहले के ऋषि अज्ञानी बने रहे और मनमानी पूजा करते रहे जिससे उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ। वे शंकर जी के सच्चे मन्त्र से अनभिज्ञ रहे और स्वयं मनमानी साधना करते रहे फलस्वरूप ब्रह्म-काल के जाल में फँसे रहे।
आइए आगे जानते हैं कि भगवान सदाशिव के पुत्र तमोगुण शंकर जी के उपासकों का अंत कैसा होता है?
रावण - भगवान सदाशिव के पुत्र तमोगुण शंकर जी के उपासक थे
त्रेतायुग में रावण एक विद्वान शासक था। उन्होंने तमोगुण भगवान शंकर जी की आराधना की। वर्तमान में रावण जैसी पूजा कोई नहीं कर सकता। उन्होंने 10 बार अपना सिर काटकर शंकर जी को अर्पित कर दिया। जैसा उसने किया, परमेश्वर ने उसे वैसा ही प्रतिफल दिया। लेकिन फिर भी मूर्खता नहीं गई। उसने जो जघन्य पाप किया था, उसके कारण उसे राक्षस कहा गया। वह अपनी माता सीता को अगवा कर लाया था , जो भगवान शंकर के बड़े भाई की पत्नी थी। भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी जिन्होंने सीता के रूप में अवतार लिया था और भगवान रामचंद्र की पत्नी थीं। रावण ने सीता को अपनी पत्नी बनाने का प्रयास किया। जैसा कि रामायण में वर्णित है, एक भीषण युद्ध लड़ा गया था। रावण कुत्ते की मौत मरा और राक्षस कहलाया। तमोगुण शंकर जी की भक्ति करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई बल्कि दर्दनाक मृत्यु हुई।
आज वर्तमान समय में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी एकमात्र पूर्ण तत्वदर्शी संत हैं जो शास्त्र आधारित भक्ति प्रदान कर रहे हैं तथा शंकर जी व अन्य देवी देवता जो हमारे शरीर में संबंधित चैनलों को नियंत्रित करते हैं तथा उनका सच्चा मंत्र भी प्रदान करते हैं इसलिए सभी पाठकों से यही निवेदन है कि संत रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा लेकर सतभक्ति कीजिए। भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान शिव, भगवान गणेश और यहां तक कि भगवान सदाशिव, देवी दुर्गा के सच्चे मंत्र को संत रामपाल जी महाराज जी से प्राप्त करें और मोक्ष प्राप्त करने के योग्य बनें।
FAQs : "केदारनाथ मंदिर की स्थापना का सच"
Q.1 केदारनाथ मंदिर की स्थापना किसने और कब करवाई थी?
लोकवेद के अनुसार केदारनाथ मंदिर का निर्माण पांडवों ने द्वापरयुग में करवाया था। लेकिन समय के साथ-साथ इसका महत्त्व खत्म हो गया। इस पवित्र स्थान से जुड़ी यादों को ताजा रखने के लिए आदि शंकराचार्य ने लगभग 1200 वर्ष पहले केदारनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया था। लेकिन मूल रूप से वहां हुई घटनाओं की याद दिलाने के लिए केदारनाथ मंदिर धीरे-धीरे तीर्थ यात्रियों को आकर्षित करने लगा। यह भी सच है कि इस तरह की यात्राएं लोकवेद पर आधारित हैं और इनसे साधकों को कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं मिल सकता।
Q.2 क्या केदारनाथ भगवान शिव जी का घर है?
शिव जी शिवलोक में रहते हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि भगवान उस भक्त का साथ अवश्य देता है जो सच्चे मंत्रों का जाप करता है। इसलिए यह एक मिथ्य है कि केदारनाथ भगवान शिव का घर है। अगर कोई भगवान शिव जी से लाभ प्राप्त करना चाहता है, तो उसे तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेनी चाहिए क्योंकि केवल पूर्ण संत ही भौतिक व आध्यात्मिक लाभ और असली मोक्ष मंत्र प्रदान कर सकता है। इसका प्रमाण पवित्र गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में भी मिलता है।
Q. 3 2013 में केदारनाथ में कौन सी घटना घटित हुई थी?
वर्ष 2013 में केदारनाथ में भंयकर बाढ़ आई थी। जिसमें कई लोगों की जान भी चली गई थी। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि हज़ारों लोगों ने मनमाने आचरण के कारण अपनी जान गंवा दी थी। हमारे पवित्र ग्रंथों में ऐसी मनमानी साधना करने की सख्त मनाही है। इसका प्रमाण पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में भी मिलता है।
Q.4 केदारनाथ किस लिए प्रसिद्ध है?
केदारनाथ भारत में कुल 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह स्थान शिव जी की पूजा के लिए प्रसिद्ध एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। ऐसा माना जाता है कि केदारनाथ के दर्शन करने वाले भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उनकी मनोकामना भी पूरी होती है। लेकिन हमारे किसी भी धार्मिक शास्त्र में ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता है कि शिव जी की पूजा मनमाने ढंग से करने से मोक्ष प्राप्त हो सकता है। जबकि पवित्र गीता अध्याय 15, श्लोक 4 में यह कहा गया है कि मोक्ष प्राप्ति के लिए तत्वदर्शी संत की खोज करनी चाहिए। उसके बताए अनुसार साधना करने से सतलोक यानि कि अमरलोक की प्राप्ति होगी और फिर मनुष्य की कभी जन्म-मृत्यु नहीं होगी।
Q.5 क्या केदारनाथ जाने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं?
केवल पवित्र शास्त्रों के अनुसार साधना करने से ही मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं ।केदारनाथ में की जाने वाली पूजाएं हमारे पवित्र शास्त्रों से मेल नहीं खाती हैं और इनको करने से कोई आध्यात्मिक लाभ प्राप्त नहीं हो सकता। इसका प्रमाण पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में भी है।
Q.6 क्या केदारनाथ में स्थापित शिव जी शक्तिशाली हैं?
पौराणिक कथाओं के अनुसार केदारनाथ भगवान शिव जी से जुड़ा स्थान है। शिव जी ने देवी पुराण स्कंध 3 में स्वयं स्वीकार किया है कि वे जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसे हुए हैं। इसलिए वह अपने साधकों को केवल उनके कर्मों के आधार पर ही फल दे सकते हैं और उनका भाग्य नहीं बदल सकते। इससे यह भी सिद्ध होता है कि केदारनाथ शिव जी सर्वशक्तिमान नहीं हैं।
Recent Comments
Latest Comments by users
यदि उपरोक्त सामग्री के संबंध में आपके कोई प्रश्न या सुझावहैं, तो कृपया हमें [email protected] पर ईमेल करें, हम इसे प्रमाण के साथ हल करने का प्रयास करेंगे।
Raveena Gupta
क्या केदरनाथ मंदिर में शिव जी स्वयं विराजमान हैं?
Satlok Ashram
ऐसा माना जाता है कि शिव जी कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। जबकि शिव जी के अन्य तीर्थ स्थान या 12 ज्योतिर्लिंग कुछ ऐतिहासिक धार्मिक घटनाओं की गवाही देते हैं। लेकिन भक्तगण अज्ञानतावश मानते हैं कि शिव जी केदारनाथ में मौजूद हैं।