इस लेख के माध्यम से हम संत गरीबदास जी महाराज के जीवन और उपदेशों का एक विस्तृत विवरण प्रदान करने की कोशिश करेंगे जिससे आज तक भक्त समाज अज्ञात है। संत गरीबदास जी को परमेश्वर कबीर साहेब जी ने जो उनके गुरु भी थे, उनकी कृपा से सतज्ञान मिला और लगभग 250 साल पहले संत गरीबदास जी ने अमर ग्रंथ रूप में वाणियों के माध्यम से अपना अनुभव साझा किया तथा जो सभी पवित्र शास्त्रों में लिखित प्रमाणों के अनुसार है। मानव जन्म का एकमात्र उद्देश्य सत भक्ति कर पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करना है। संत गरीबदास जी की जीवनी के अध्ययन से यह पता चलता है कि उन्होंने समाज में प्रचलित मनमानी साधना का कड़ा विरोध किया और यह भी शिक्षा दी कि छुआछूत, जातिवाद, साम्प्रदायिकता आदि सामाजिक कुरीतियों को त्याग देना चाहिए। उपरोक्त सभी गुप्त तथ्यों का खुलासा महान संत रामपाल जी महाराज ने किया है।
महान संत गरीबदास जी महाराज की जीवनी और शिक्षाओं का विश्लेषण
- संत गरीबदास जी महाराज कौन थे ?
- संत गरीबदास जी महाराज का जन्म कब हुआ था?
- संत गरीब दास जी की कबीर साहेब से मुलाकात
- आदरणीय संत गरीबदास जी की सतलोक यात्रा
- संत गरीबदास जी महाराज के गुरु कौन थे?
- संत गरीबदास जी महाराज द्वारा सत ग्रंथ की रचना
- सतग्रंथ से संत गरीबदास जी की पवित्र वाणी में कबीर परमेश्वर का प्रमाण
- संत गरीबदास जी महाराज की मृत्यु कब हुई थी?
- महान संत रामपाल जी महाराज गरीबदास पंथ (संप्रदाय) से हैं
संत गरीबदास जी महाराज कौन थे?
आदरणीय गरीबदास जी महाराज गरीबदास पंथ के संस्थापक होने के साथ साथ एक आध्यात्मिक सुधारक भी थे। संत गरीबदास जी महाराज एक आचार्य भी थे जो संतों को सत भक्ति उपदेश देते हैं। संत गरीबदास जी महाराज ने मनुष्य जीवन के एकमात्र उद्देश्य प्रभु प्राप्ति के लिए सत ग्रन्थों से प्रमाणित विधि का ज्ञान दिया है।
संत गरीबदास जी महाराज का जन्म कब हुआ था?
आदरणीय संत गरीबदास जी महाराज का जन्म धनखड़ जाट परिवार में वैशाख के उत्तरार्ध की पूर्णिमा के दिन सन् 1717 ई. (विक्रमी संवत 1774) में ग्राम छुड़ानी, जिला झज्जर, हरियाणा में हुआ था। उनके पिता श्री बलराम जी थे और उनकी माता श्रीमती रानी देवी थीं।
संत गरीबदास जी महाराज की परमात्मा कबीर साहेब जी से मुलाकात
जब आदरणीय गरीबदास जी 10 वर्ष की आयु के थे तब एक दिन वह अपने अन्य ग्वाले मित्रों के साथ कबलाना गाँव की सीमा से सटे लगभग 1.5 किलोमीटर दूर नला खेत में अपने मवेशियों को चरा रहे थे। पवित्र वेदों में उल्लेखित है कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब अपने विधान अनुसार सतलोक से पृथ्वी लोक पर अवतरित होते हैं और अपनी पुण्य आत्माओं को मिलते हैं। इसी प्रकार परमेश्वर कबीर जी सतलोक (यानी सचखंड, सनातन,शाश्वत स्थान ) से चलकर नला मैदान में प्रकट हुए और साकार जिन्दा महात्मा (संत का एक प्रकार) के रूप में बालक गरीबदास जी से मिले। साथी चरवाहों ने जिंदा महात्मा के रूप में प्रकट हुए परमेश्वर कबीर जी से भोजन करने का अनुरोध किया। भगवान कबीर जी ने कहा कि मैं अपने सतलोक से भोजन करके आया हूं। इस पर ग्वाल बालों ने कहा कि यदि आप भोजन नहीं करना चाहते तो दूध तो आपको पीना ही पड़ेगा। तब परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा कि मैं केवल कुँवारी गाय का दूध ही पीता हूँ। साथी ग्वाले यह सुनकर हैरान रह गए कि कुँवारी गाय दूध कैसे दे सकती है? परमेश्वर कबीर जी ने उन्हें कुंवारी गाय और एक साफ बर्तन लाने को कहा जिसमें दूध रखा जा सके।
तब बालक गरीबदास जी एक खाली बर्तन और एक कुँवारी गाय परमेश्वर कबीर जी के पास ले आए और बोले, 'बाबाजी, यह कुँवारी गाय है परंतु ये दूध कैसे दे सकती है?' कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने उस कुँवारी बछड़े की पीठ थपथपाई और बछड़े के थनों से स्वत: ही दूध बहने लगा और घड़ा भर जाने पर रुक गया। परमेश्वर कबीर जी ने उस दूध को पिया और बचा हुआ दूध अन्य ग्वालों को पीने को दिया लेकिन उन्होंने शंका की और यह कहकर नहीं पिया कि यह दूध 'जंतर-मंतर का है, हम नहीं पियेंगे'। परंतु पुण्य आत्मा बालक गरीबदास जी ने प्रसाद के रूप में बचे हुए दूध को पी लिया। वास्तव में यह सारी लीला कबीर परमेश्वर ने ही की थी।
आदरणीय संत गरीबदास जी की सतलोक यात्रा
कबीर परमेश्वर ने गरीबदास जी को सतलोक के बारे में बताया। सतलोक के बारे में सुनकर गरीबदास जी ने कबीर परमेश्वर से उन्हें अपना सतलोक दिखाने की प्रार्थना की। परमेश्वर कबीर जी ने गरीबदास जी को दीक्षा (मंत्र) दी और गरीबदास जी की आत्मा को शरीर से निकाल कर सतलोक ले गए। रास्ते में कबीर परमेश्वर ने गरीबदास जी को ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इन्द्र का लोक व स्वर्ग लोक भी दिखाए। बालक गरीबदास जी ने सतलोक पहुँचने पर कबीर परमेश्वर को तख्त पर बैठे देखा। फिर परमेश्वर कबीर जिंदा महात्मा रूप में जो गरीबदास जी के साथ थे, सिंहासन पर बैठे परमेश्वर कबीर जी के ऊपर चंवर डुलाने लगे। फिर जिंदा महात्मा रूप में भगवान कबीर सिंहासन पर बैठे और परमेश्वर कबीर जो पहले से ही सिंहासन पर बैठे हुए थे खड़े हो गए और जिंदा महात्मा रूप में भगवान कबीर जी के ऊपर चंवर डुलाने लगे। क्षण भर बाद दोनों रूप एक दूसरे में विलीन हो गए और केवल परमेश्वर कबीर साहेब जिंदा महात्मा रूप में सिंहासन पर बैठे रहे और चंवर अपने आप चलता रहा।
सतलोक में अपने दो रूप दिखाने के बाद जिंदा रूप में सिंहासन पर सबके मालिक रूप में बैठे कबीर परमेश्वर ने कहा कि मैं स्वयं काशी (वाराणसी / बनारस) में 120 वर्ष तक जुलाहे (धाणक) की भूमिका कर के आया था। मैं पहले भी पैगंबर मुहम्मद से मिला था। कुरान शरीफ में कबीरा, कबीरन, खबिरा, खबिरन, अल्लाहु अकबर आदि शब्द मेरी ओर ही इशारा करते हैं। मैं ही श्री नानक जी से जिंदा महात्मा के रूप में बेई नदी के तट पर मिला था {मुसलमानों में जिंदा महात्मा होते हैं, जो घुटनों तक काला लबादा (ओवरकोट की तरह) पहनते हैं और सिर पर शंक्वाकार टोपी पहनते हैं}, और मैं ही सुल्तान इब्राहीम अधम और श्री दादू जी से मिला था और चारों वेदों में कविर्, कविर्देव (कविरंघारिः) आदि नाम मेरी ओर ही संकेत कर रहे हैं।
कबीर वेद हमारा भेद है, मैं मिलूँ वेदों से नाहीं ।
जौन वेद से मैं मिलूँ, वो वेद जानते नाहीं ॥
कबीर परमेश्वर ने बताया कि मैं वेदों से पहले भी सतलोक में था।
बाद में परमेश्वर कबीर जी ने संत गरीबदास जी को सतलोक दिखाकर उनकी आत्मा को वापस शरीर में छोड़ दिया।
संत गरीबदास जी महाराज के गुरु कौन थे?
सतपुरुष पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी संत गरीबदास जी महाराज के गुरु थे, जिन्होंने संत गरीबदास जी को सतलोक दर्शन कराने के बाद उनमें संपूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान समाहित किया। तत्पश्चात् गरीबदास जी ने ईश्वर की प्रत्यक्षदर्शी महिमा का गुणगान किया और सतग्रंथ (गरीब दास जी की वाणी का संग्रह) की रचना की।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, यह चारों युग परवान |
यह झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान ||
संत गरीबदास जी महाराज द्वारा सदग्रंथ साहेब (अमरग्रंथ साहेब) की रचना करना
(ग्राम छुड़ानी, जिला झज्जर, हरियाणा में आज भी उस जंगल में एक यादगार मौजूद है जहाँ सन्त गरीबदास जी को पूर्ण परमात्मा-कबीर साहेब जी सह शरीर मिले थे।) जब आदरणीय गरीबदास जी की आत्मा बंदी छोड़ कबीर साहेब जी के साथ सतलोक दर्शन के लिए चली गई थी तब पीछे से गाँव वालों ने उन्हें मरा हुआ समझकर चिता पर रख दिया और दाह-संस्कार करने की तैयारी करने लगे। उसी समय आदरणीय गरीबदास जी की आत्मा को कबीर परमेश्वर ने उनके शरीर में पुनः प्रवेश किया। दस वर्ष का बालक गरीबदास एकाएक जीवित हो उठा। तत्पश्चात् उस पूर्ण परमात्मा (बंदी छोड़ कबीर साहेब) के चश्मदीद वृत्तांत पर अपनी अमृतवाणी से “सदग्रंथ साहेब” नामक ग्रंथ की रचना की।
उस समय दादूपंथी संत गोपाल दास जी ग्राम छुड़ानी में भ्रमण कर रहे थे और गरीब दास जी महाराज से मिले। गरीब दास जी के मुख से पवित्र वाणी सुनकर गोपाल दास जी ने गरीब दास जी से आग्रह किया कि वे पूरी वाणी लिखवा दें ताकि वे इसे लिख सकें। तीन दिन तक गोपाल दास जी के बार-बार आग्रह करने के बाद गरीब दास जी महाराज मान गए और फिर पूरा सतग्रंथ लिखा गया जिसे पूरा करने में छह महीने लगे।
सतग्रन्थ साहिब में लगभग 24000 वाणियाँ हैं जिनमें विभिन्न भाषाओं जैसे गुजराती, अरबी आदि के शब्द हैं, जो उस समय अफगानिस्तान और हिमालय की घाटियों में विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाती थीं। इस शास्त्र को 'गरीबदासी ग्रन्थ' भी कहा जाता है जिसमें भक्ति और साधना का ज्ञान है जो अभी भी कई कबीर पंथियों और गरीबदास पंथियों द्वारा अनुसरण किया जाता है।
फिर भी, दोनों संप्रदायों (कबीर पंथी और गरीबदास पंथी) के अनुयायियों को सलाह दी जाती है कि सतगुरु की अनुपस्थिति में इस सतग्रंथ के पाठ मात्र से उन्हें कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं होगा, इसलिए सभी पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे महान संत रामपाल जी महाराज जी की शरण लें, जो पवित्र शास्त्रों में छुपे हुए गूढ़ रहस्यों तथा आध्यात्मिक तथ्यों के आधार पर सतभक्ति प्रदान कर रहे हैं।
आइए पूज्य संत गरीबदास जी द्वारा गाई गई और सतग्रंथ में लिखित कुछ वाणियों का अध्ययन करते हैं।
संत गरीबदास जी की पवित्र वाणी में कबीर परमेश्वर का प्रमाण
अजब नगर में ले गया, हमकूं सतगुरु आन। झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान।।
अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का एक रति नहीं भार। सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सृजनहार।।
गैबी ख्याल विशाल सतगुरु, अचल दिगम्बर थीर है। भक्ति हेत काया धर आये, अविगत सत् कबीर हैं।।
हरदम खोज हनोज हाजर, त्रिवैणी के तीर हैं। दास गरीब तबीब सतगुरु, बन्दी छोड़ कबीर हैं।।
हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया। जात जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्धि हैं तीर। दास गरीब सतपुरुष भजो, अविगत कला कबीर।।
जिंदा जोगी जगत् गुरु, मालिक मुरशद पीर। दहूँ दीन झगड़ा मंड्या, पाया नहीं शरीर।।
गरीब जिस कूं कहते कबीर जुलाहा। सब गति पूर्ण अगम अगाहा।।
उपरोक्त वाणीओ में आदरणीय गरीबदास जी महाराज ने स्पष्ट कर दिया है कि काशी नगरी के जुलाहे (धाणक) ने मुझे भी नाम दिया और पार किया अर्थात सतलोक पहुँचाया। यह काशी का जुलाहा (धाणक) ही (सतपुरुष) पूर्णब्रह्म (परमात्मा) है।
परमेश्वर कबीर साहेब ही सतलोक से जिंदा रूप में आकर मुझे अजब नगर (अद्भुत शहर सतलोक) ले गए। जहाँ सुख ही सुख है, वहाँ कोई दुख या चिन्ता नहीं; अन्य जीवों के शरीर में होने वाले कष्ट भी नहीं हैं। वही परम शाश्वत स्थान है।
इसी सतपुरुष ने काशी नगरी में जुलाहे के रूप में अलग-अलग समय पर प्रकट होकर सुल्तान इब्राहिम अधम और आदरणीय दादू जी तथा आदरणीय नानक जी को भी सतनाम देकर पार किया था। वही कविर्देव (कबीर परमेश्वर) जिनके एक रोम कूप में करोड़ों सूर्यों के समान तेज है और मनुष्य के रूप में दिखाई देता है, अपने वास्तविक तेजोमय शरीर को हल्का तेजपुंज का कर हमें इस नश्वर संसार में मिलता है क्योंकि उस परमात्मा के साकार रूप का प्रकाश आंखे सहन नहीं कर सकती ।
अनंत लोक ताना तनया, गूढ़ी गांठी तू बीनि | गरीबदास केशव कहे ||
उपरोक्त वाणी सतपुरूष कबीर साहेब और उन्हीं के अवतार केशव के बीच की बातचीत है। इस वाणी में संत गरीबदास जी सर्वशक्तिमान कबीर की महिमा करते हुए कहते हैं कि 'वही सारे जगत का रचयिता है'।
उत्तर दक्षिण, पूर्व पश्चिम, फिरदा दाने दाने नू |
सर्व कला सतगुरु साहेब कीहरि आये हरियाणा नूं ll
तात्पर्य यह है कि जिस क्षेत्र में परमेश्वर कबीर हरि (कविर्देव) आए, उसका नाम 'हरियाणा' पड़ा अर्थात् 'एक पवित्र स्थान जहाँ परमात्मा (भगवान) आए' हैं। जिसके कारण आस-पास के प्रदेशों को 'हरिआना' (हरियाणा) कहने लगे। सन् 1966 में पंजाब राज्य के विभाजन में इस क्षेत्र को 'हरिआना' (हरियाणा) नाम मिला। लगभग 236 वर्ष पूर्व कही गई वाणी 1966 में सही सिद्ध हुई कि समय आने पर यह क्षेत्र हरियाणा राज्य के रूप में प्रसिद्ध होगा, जो आज स्पष्ट है।
600 वर्ष पूर्व कबीर परमेश्वर द्वारा अपने प्रिय भक्त धर्मदास जी के माध्यम से किये गए कबीर सागर के संकलन के बाद; परमात्मा जानते थे कि समय के साथ काल के एजेंट पवित्र शास्त्र कबीर सागर से कुछ वाणी को तोड़-मरोड़ कर पेश करेंगे। इसलिए उसकी पूर्ति के लिए कबीर परमेश्वर ने गरीबदास जी को अपना ज्ञान फैलाने के लिए सत ज्ञान प्रदान किया। गरीबदास जी ने सर्वशक्तिमान कबीर साहेब से मिलने के बाद कई वाणियां बोलीं जो एक ग्रंथ साहिब में संकलित हैं। गरीबदास जी द्वारा कही गई वाणियों का सार परमेश्वर कबीर साहेब द्वारा दिया गया ज्ञान है।
आइये कुछ वाणियों को पढ़ते हैं और संत गरीबदास जी महाराज ने जो ज्ञान दिया है उसे समझने की कोशिश करते हैं।
- आदरणीय गरीबदास जी की अमर वाणी में कबीर परमात्मा की महिमा
- आदरणीय गरीबदास जी की वाणी में सृष्टि रचना का प्रमाण
- संत गरीबदास जी की वाणी में सतगुरु की महिमा
- पैगंबर मोहम्मद पर संत गरीबदास जी की पवित्र वाणी
- काफिरों पर संत गरीबदास जी की पवित्र वाणी
- इब्राहीम अधम सुल्तान पर संत गरीबदास जी की पवित्र वाणी
- पवित्र मुस्लिम भक्त राबिया बसरी पर संत गरीबदास की पवित्र वाणी
- संत गरीबदास जी की वाणी है- भक्ति मार्ग में लोभ पाप है
- 'पारख का अंग' में संत गरीबदास जी की वाणी
- संत गरीबदास जी की अमृतवाणी 'अचला का अंग' (97-113)
- अच्छी और बुरी महिलाओं पर संत गरीबदास जी की वाणी
आदरणीय गरीबदास जी की अमर वाणी में कबीर परमात्मा की महिमा
गरीब, महिमा अबिगत नाम की, जानत बिरले संत आठ पहर धुनि ध्यान है, मुनि जन अनंत।77||
गरीब, चन्द सूर पानी पवन, धरनी धौल अकास पांच तत्त हाजरि खड़े, खिजमतिदार खवास।।78।।
गरीब, काल करम करै बदंगी, महाकाल अरदास । मन माया अरु धरमराय, सब सिर नाम उपास।I79 ।।
गरीब, काल डरे करतार सै, मन माया का नास। चंदन अंग पलटे सबै, एक खाली रह गया बांस I80 ।।
गरीब, सजन सलौना राम है, अबिगत अन्यत न जाई। बाहिर भीतर एक है, सब घट रह्या समाई। 181 ।।
गरीब, सजन सलौना राम है, अंचल अभंग एका आदि अंत जाके नहीं, ज्यूं का त्यूही देख। 182||
गरीब, सजन सलौना राम है, अचल अभंग ऐंन । महिमा कही न जात है, बोले मधुरै बैन। 183 ||
गरीब, सजन सलौना राम है, अचल अभंगी आदि। सतगुरु मरहम तासका, साखि भरत सब साध |I 184 ।।
गरीब, सजन सलौना राम है, अचल अभंगी पीर चरण कमल हंसा रहे, हम हैं दामनगीर || 185 ||
गरीब, सजन सलौना राम है, अचल अभंगी आप। हद बेहद सें अगम है, जपो अजपा जाप ।| 186 ।।
गरीब, ऐसा भगली जोगिया, जानत है सब खेल। बीन बजावें मोहिनी, जुग जंत्र सब मेल ।| 187 |।
भावार्थ:- संत गरीबदास जी ने उपरोक्त वाणी में उस सनातन कबीर परमेश्वर की महिमा की है, जो सभी देवताओं द्वारा पूजे जाते हैं। यहां तक धर्मराय ब्रह्म-काल और माया भी उस परमपिता परमात्मा से डरते हैं और दिन-रात उनकी पूजा करते हैं। भगवान की महिमा अलौकिक है।
आदरणीय गरीबदास जी की पवित्र वाणी में सृष्टी रचना का प्रमाण
सन्दर्भ: आदि रमैनी- सतग्रंथ, पृष्ठ नं. 690 - 692
प्रत्यक्षदर्शी आदरणीय गरीबदास जी ने 'सतग्रंथ' में विस्तार से बताया हैः
- सतपुरुष कबीर ने सृष्टि की रचना कैसे की?
- ज्योति निरंजन ब्रह्म-काल और दुर्गा की रचना कैसे हुई?
- ब्रह्म-काल के 21 ब्रह्मांड कैसे अस्तित्व में आए और ब्रह्म-काल और दुर्गा को सतलोक से क्यों निकाला गया?
- सतपुरुष ने ब्रह्म-काल को क्यों दिया श्राप और श्राप क्या था?
- काल के जाल से आत्मा कैसे मुक्त हो सकती है?
संदर्भ: गरीबदास जी महाराज की वाणी-सतग्रंथ साहिब से अंश, पृष्ठ नं. 690
ब्रह्म-काल के लोक की व्यवस्था गरीबदास जी महाराज द्वारा अच्छी तरह से समझाई गई है।
- तीन देवता-ब्रह्मा, विष्णु, शिव जीवों को इस संसार के समुद्र में स्वर्ग और नरक में भटकने के लिए कैसे भटकाते हैं (चौरासी लाख जीवों में आत्माएं पीड़ित हैं)?
- 21 ब्रह्माण्डों में शैतान ब्रह्म-काल और माया / देवी दुर्गा की क्या भूमिका है?
- ज्योति निरंजन के 21 ब्रह्मांडों में भोली-भाली आत्माएं कैसे फंसी रहती हैं?
- ब्रह्म-काल के इक्कीस ब्रह्माण्ड नाशवान हैं
- मनमानी पूजा क्यों व्यर्थ है?
- सतभक्ति क्या है?
- सतपुरुष की सतभक्ति कैसे आत्माओं को काल के जाल से मुक्त करने में मदद करती है?
संदर्भ: गरीबदास जी महाराज की वाणी-भक्ति बोध-अथ ब्रह्म वेदी, कबीर सागर में पृष्ठ 34 व पृष्ठ 451
ईश्वर सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी है। कबीर परमेश्वर स्वयं इस नाशवान संसार में आकर अपनी महिमा बताते हैं इसलिए उन्हें 'ब्रह्म ज्ञानी' कहा जाता है। पूर्ण परमात्मा सभी प्राणियों के हितैषी हैं और अपने भक्तों के गंभीर पापों को भी क्षमा कर देते हैं। संत गरीबदास जी ने सतग्रंथ में कबीर परमेश्वर की महिमा विस्तार से 'ब्रह्म वेदी' में बताई है। उन्होंने चैनलों, 'कमल-चक्रों' की भी व्याख्या की है जो प्रत्येक मनुष्य के शरीर के भीतर मौजूद हैं जो कशेरुक स्तंभ की लंबाई के साथ-साथ फैले हुए हैं और इसके पीछे स्थित हैं।
संत गरीबदास जी ने बताया है कि कमल चक्रों को सक्रिय करने के मंत्र कौन-कौन से हैं? मानव शरीर में सात 'चक्र' होते हैं और प्रत्येक चक्र एक विशेष देवता द्वारा शासित होता है जिनके मंत्रों का जाप करने से जब आत्मा शरीर छोड़ कर त्रिकुटी की ओर जाती है सभी देवता ऋण समाप्त कर रास्ता देते हैं। बाद में आत्मा परब्रह्म-अक्षर पुरुष के क्षेत्र के माध्यम से 'सतलोक' के लिए जाती है । इस प्रकार जीवात्मा को पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- मूल चक्र / कमल में भगवान गणेश का वास है। इस कमल की चार पंखुड़ियाँ हैं।
- स्वाद चक्र / कमल में भगवान ब्रह्मा और देवी सावित्री का वास है। इस कमल की छह पंखुड़ियाँ हैं।
- नाभि चक्र/ कमल में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का वास होता है। इस कमल की आठ पंखुड़ियाँ हैं।
- हृदय चक्र/ कमल में भगवान शंकर और देवी पार्वती का वास है। इस कमल की बारह पंखुड़ियाँ हैं।
- कंठ चक्र/ कमल में देवी दुर्गा का वास है। इस कमल में सोलह दल हैं।
- संगम चक्र में 72 करोड़ अन्य सुंदर महिलाओं के साथ देवी सरस्वती (दुर्गा का दूसरा रूप) निवास करती हैं। इस कमल की तीन पंखुड़ियाँ हैं। एक पंखुड़ी में देवी सरस्वती ने 72 करोड़ अन्य महिलाओं के साथ भक्त पुरुषों को आकर्षित करने के लिए जाल बिछाया है। दूसरी पंखुड़ी में, ब्रह्म-काल करोड़ पुरुषों के साथ रहता है ताकि महिला भक्तों को आकर्षित किया जा सके और उन्हें ब्रह्म के नाशवान लोक में फंसाया जा सके। तीसरी पंखुड़ी में सर्वशक्तिमान कबीरदेव अपने भक्तों को ब्रह्म-काल और दुर्गा के जाल से सचेत करने और बचाने के लिए निवास करते हैं।
- त्रिकुटी में सतगुरु ब्रह्म-काल सहित रहते हैं। इस कमल की दो पंखुड़ियाँ हैं। काली पंखुड़ी में ब्रह्म-काल का वास है और सफेद पंखुड़ी में पूर्ण परमात्मा का वास है।
- अष्ट चक्र - इस कमल में एक हजार पंखुड़ियाँ होती हैं।
- नौवां चक्र मिनी सतलोक में है, सूक्ष्म शरीर में विराजमान है।
संत गरीबदास जी ने 'ब्रह्म वेदी' में परब्रह्म का गुप्त दो अक्षर का परम शक्तिशाली मन्त्र 'सतनाम' बताया है। इसे 'अजप्पा जाप' कहा जाता है और यह सांस के द्वारा किया जाता है। अन्य मन्त्र जाप करने की विधि भी संत गरीबदास जी ने बखूबी बताई है कि कौन से मन्त्र हर भक्त को अंतिम सांस तक जपने हैं। सतलोक जाने के मार्ग का पूरा विवरण सतग्रंथ में अच्छी तरह से वर्णित है कि आत्मा को मोक्ष कैसे प्राप्त होगा? यह हर भक्त द्वारा प्रतिदिन सुबह की प्रार्थना 'नित्यनियम', दोपहर की प्रार्थना 'रमेनी' और शाम की प्रार्थना 'संध्या आरती' में की जाती है ।
संत गरीबदास जी महाराज दो अक्षर के शक्तिशाली मंत्र की महिमा करते हुए कहते हैंः
सतनाम पालड़े रंग होरी हो, चौदह लोक चढ़ावे राम रंग होरी हो l
तीन लोक पासंग धरे रंग होरी हो, तो ना तुले तुलाया राम रंग होरी हो ll
संत गरीबदास जी द्वारा सतगुरु की महिमा
भक्ति मार्ग में गुरु की अहम भूमिका होती है। सर्वशक्तिमान कबीर जी संत गरीबदास जी से तब मिले थे जब वे दस वर्ष के बालक थे। परमात्मा उन्हें सनातन स्थान 'सतलोक' ले गए और ब्रह्मांड के सभी क्षेत्रों से परिचित कराया। प्रत्यक्षदर्शी संत गरीबदास जी सतगुरु रूप में सतपुरुष की लीला करते हैं जिसका उल्लेख सतग्रंथ में किया गया है।
सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद।
चार वेद षट शास्त्र, कहै अठाराह बोध||
सतगुरु गरीबदास जी महाराज पूर्ण संत की पहचान बताते हैं कि चारों वेदों, छ: शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि का ज्ञाता सतगुरु होता है।
- सतपुरुष पूर्ण परमात्मा कबीर आत्माओं के कल्याण के लिए ऊपरी क्षेत्र 'सतलोक' से अवतरित होते हैं।
- सतगुरु के बिना भक्तों के लिए भक्ति का मार्ग अज्ञात रहता है।
- सतगुरु मानव सदृश हैं और वे ही सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं।
- सतगुरु ही रक्षक तथा मुक्तिदाता है।
- सतगुरु एक तत्वदर्शी संत की लीला करते हैं और सत ज्ञान प्रदान करते हुए है खुद को भगवान (दास) का सेवक कहते हैं।
- सतगुरु ही सब प्राणियों के हितैषी हैं।
- सतगुरु का अत्यधिक तेजोमय शरीर है। उनके एक रोमकूप की चमक करोड़ों सूर्य और चन्द्रमाओं के योग से भी अधिक है।
- परमात्मा 'सतलोक' में सम्राट की तरह विराजमान हैं।
- सतगुरु के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। वह सर्वशक्तिमान है।
- सतगुरु अपने सच्चे भक्त के पापों को क्षमा कर देते हैं और उसके भाग्य को बदल सकते हैं और सभी पापों से मुक्त कर उसे एक नया जीवन प्रदान कर सकते हैं।
- सतगुरु अपने भक्त की उम्र बढ़ा सकते हैं। यमदूत भी सतगुरु से डरते हैं।
- सतगुरु दयालु हैं। वे मोक्ष मंत्र प्रदान कर फंसी हुई आत्माओं को ब्रह्म-काल के जाल से बचाते हैं।
पैगंबर मोहम्मद पर संत गरीबदास जी की पवित्र वाणी
संदर्भ: पृष्ठ 576-577 पर सतग्रंथ अध्याय मोहम्मद बोध में भाषण और पृष्ठ 707 पर मोहम्मद रमेनी
पूर्ण परमात्मा के प्रत्यक्षदर्शी संत गरीबदास जी महाराज ने सतग्रन्थ के 'मोहम्मद बोध' और 'मोहम्मद रमेनी' अध्याय में पैगंबर मोहम्मद और इस्लाम धर्म के बारे में अब तक अज्ञात विवरण का उल्लेख किया है।
ईसा-मसीह' के 600 साल बाद हजरत मोहम्मद का जन्म' 'यहूदी' समुदाय में हुआ था। उस समय उस समुदाय के सभी लोग मूर्ति पूजा करते थे। मोहम्मद का जन्म एक देवदूत (सूक्ष्म रूप में) के मिलन से हुआ था, जब उनकी मां सो रही थी। उस फरिश्ते या फकीर (संत) का नाम बिल्ला रहमान था। यह उसी तरह हुआ जैसे 'ईसा जी' का जन्म एक देवदूत तथा माता 'मरियम' से मिलन से हुआ था। दुनिया के लोगों के लिए अब्दुल्ला हजरत मोहम्मद के पिता थे और अब्दुल मुआतिल उनके दादा थे।
इसका उल्लेख 'सतग्रंथ' में किया गया हैः
मुसलमान बिस्तार बिल्ला का, नोज उदर घर संजम जाका ll
जाके भोग मोहम्मद आया, जिसने यह धर्म चलाया ll
जैसा कि सतग्रंथ में बताया गया है; संत गरीबदास जी ने जीव हत्या का कड़ा विरोध किया है और यह हजरत मोहम्मद का आदेश नहीं था जबकि मुस्लिम धर्म के अनुयायी जीव हिंसा करते हैं।
इच्छा रूपी वहां नहीं रहो, उलट मोहम्मद महल पठाया, गुज बीरज एक कलमा ले आया l
रोजा बंग नमाज दई रे, बिस्मिल की नहीं बात कही रे l
मारी गऊ शब्द के तीरम, ऐसे होते मोहम्मद पीरम और शब्द फिर जीवाई ll
हजरत मोहम्मद एक नेक आत्मा थे। उनके पास आध्यात्मिक शक्तियां थीं। एक बार अपनी शब्द शक्ति से मोहम्मद ने कई लोगों के सामने एक गाय को मार डाला और फिर उसे जीवित कर दिया। लेकिन न तो उन्होंने गाय का मांस खाया और न ही दूसरों को ऐसा करने का आदेश दिया बल्कि उन्होंने उस गाय की आत्मा की रक्षा की।
ऐसा ज्ञान मुहम्मद पीरं, जिन मारी गौ शब्द के तीरं शब्दै फेर जिवाई |
जिन गोसत नहीं भाख्या, हंसा राख्या, ऐसा पीर मुहम्मद भाई |2|
ऐसे थे मोहम्मद पीर कि उन्होंने अपने वचन के बल पर एक गाय को मार दिया फिर अपने वचन की शक्ति से फिर से जीवित कर दिया परंतु वे इतने महान व्यक्ति थे कि उन्होंने कभी भी मांस का सेवन नहीं किया।
इस्लाम धर्म के पथभ्रष्ट और अज्ञानी अनुयायी जीव हिंसा करते हैं और मांस खाते हैं। उनके धार्मिक गुरु; काजि़यों ने अज्ञानता के कारण मुस्लिम समुदाय को गुमराह किया है। वे बकरीद मनाने जैसी गलत प्रथाओं और 'सुन्नत' जैसी रस्मों का प्रचार करते हैं।
हज़रत मोहम्मद ने दूसरी बार फिर गाय को मारा लेकिन वह गाय को जीवित नहीं कर सके। परेशान मोहम्मद ने फिर अल्लाह उ अकबर, पूर्ण भगवान "पूर्ण परमात्मा" को याद किया। अल्लाह उ अकबर सूक्ष्म रूप में वहां प्रकट हुए। वह 'जिंदा संत' के रूप में अवतरित हुए और केवल हज़रत मोहम्मद को ही दिखाई दे रहे थे और किसी को नहीं। कबीर परमेश्वर ने उसी समय गाय को पुनः जीवित किया। परमात्मा कहते हैं-
मूई गऊ हमने तुरंत जीवाई, जब मोहम्मद के निश्चय आई l
तुम कबीर अल्लाह दिर्वेशा, मोहम्मद मोम्मन का जब गया अंदेशा ll
पीर मुंहमद नहीं बहिश्त सिधाना, पीछे भूल्या है तुरकाना।
गोसत खांहि नमाज़ गुज़ारे, सो कहो क्यूँ कर बहिश्त सिधारें।|
हजरत मोहम्मद ने अल्लाह की ताकत को पहचाना था और उनसे सतलोक ले जाने के लिए प्रार्थना भी की थी लेकिन अल्लाह ने उन्हें साथ नहीं लिया क्योंकि उन्होंने भगवान के आदेश की अवहेलना की थी। पीर मोहम्मद जन्नत में नहीं पहुंचे थे फिर भी उनके पीछे सारी मुस्लिम कौम गुमराह है। ये व्रत रखते हैं और मांसाहार भी करते हैं। वे किसी भी तरह से स्वर्ग / जन्नत तक नहीं पहुँच सकते। ऐसे सभी कृत्य जघन्य हैं और ईश्वर के संविधान में वर्जित हैं। जो ऐसा काम करते हैं वे परमेश्वर के पापी हैं। वे नरक में पीड़ित होंगे।
काफिर के विषय में संत गरीबदास जी की पवित्र वाणी
सन्दर्भ: संत गरीबदास जी की वाणी में सतग्रन्थ के अध्याय काफ़िर बोध के पृष्ठ 577-578 पर
संत गरीबदास जी महाराज ने सतग्रंथ में 'काफिर' शब्द का सजीव वर्णन किया है।
काफिर कौन है?
काफिर, मुस्लिम धर्म के अनुयायियों के बीच एक अत्यधिक प्रचलित शब्द है जिसे इस्लाम में एक नास्तिक के लिए प्रयोग किया जाता है। मुसलमान हिंदुओं को काफिर कहते हैं क्योंकि वे देवताओं की पूजा करते हैं, मूर्ति पूजा करते हैं। वे सूअर का मांस खाते हैं। जबकि हिन्दू मुसलमानों को काफिर कहते हैं क्योंकि वे गाय, बकरी, ऊँट, मुर्गा आदि की हत्या करते हैं और उनका मांस खाते हैं।
जैसा कि संत गरीबदास जी ने समझाया 'काफ़िर' शब्द वास्तव में समुदाय विशेष नहीं है। काफिर वास्तव में एक ऐसा व्यक्ति है जो स्वभाव से नीच, दुष्ट और परमात्मा के वचनों का उल्लंघन करने वाला है । ऐसा नीच, निकम्मा व्यक्ति 'काफिर' होता है।
- काफिर वह है जो व्यभिचार, डकैती, चोरी, जैसे नीच कर्म करता है।
- काफिर वह है जो शराब पीता है, हुक्का पीता है, पान खाता है और जीवन में हर तरह के उपद्रव करता है।
- काफ़िर, नीच व्यक्ति अपनी माँ को गाली देता है।
- काफिर अपने पिता की बात का उल्लंघन करता है।
- काफिर अपनी पत्नी की बहन के साथ दुर्व्यवहार करता है।
- काफ़िर धर्मी नहीं होता, वह दान नहीं करता।
- काफिर वह है जो संतों के साथ दुर्व्यवहार करता है।
- काफिर वह है जो महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करता है। वह लड़कियों को बेचकर कमाता है, वेश्याओं से संबंध रखता है और कन्या भ्रूण हत्या का जघन्य पाप करता है।
- काफिर वह है जो निरीह पशुओं का वध करे।
- काफिर वह है जो सत भक्ति नहीं करता, बल्कि मनमानी पूजा में लगा रहता है।
संत गरीबदास जी अपनी वाणी में कहते हैं:-
सुरापान मद्य मांसाहारी, गवन करै भोगै पर नारी ।
सत्तर जन्म कटत है शीशम, साक्षी साहेब है जगदीशम ।।
अर्थ: जो व्यक्ति शराब पीता है, मांस खाता है और पराई स्त्रियों से सम्बन्ध रखता है, परमात्मा साक्षी है उस व्यक्ति के पाप के कारण सत्तर जन्मों तक सिर कटते हैं ।
मदिरा पीवे कड़वा पानी, सत्तर जन्म स्वान के जानी।
अर्थ: कड़वी शराब पीने वाला मनुष्य सत्तर जन्म कुत्ता बनता है।
भांग तम्बाकू छोतरा आफु और शराब | गरीबदास कौन करे बंदगी ये तो करे खराब ||
अर्थ: भांग, तम्बाकू, नाना प्रकार के मादक द्रव्य, मदिरा आदि भक्ति का नाश करती है। इन्हें त्याग देना ही अच्छा है।
अमल आहारी आत्मा, कबहु न उतरे पार।
अर्थ: शराब/नशे का सेवन करने वाला व्यक्ति कभी भी मोक्ष को प्राप्त नहीं होता है।
इब्राहिम अधम सुल्तान पर संत गरीबदास जी की वाणी
सन्दर्भ: कबीर सागर, अध्याय 16 'सुल्तान बोध' पृष्ठ नं. 37 (757) एवं संत गरीबदास जी की वाणी (2-72) पृष्ठ नं. 301-303
चूंकि आत्मा, सतपुरुष से अलग हो चुकी है, इसलिए वह परम शांति की तलाश में है जो कि इस ब्रह्म-काल की भौतिकवादी (नकली) दुनिया में नहीं मिल सकती। ऐसे ही एक भक्त आत्मा सुलतान इब्राहिम अधम का वर्णन सन्त गरीबदास जी ने सतग्रंथ में किया है। वह धर्मनिष्ठ था जो किसी पूर्व मानव जन्म में सर्वशक्तिमान कविर्देव की शरण में था लेकिन नकली धर्मगुरुओं के बहकावे में आकर सत्य साधना के मार्ग से भटक गया था। ब्रह्म-काल अपने नकली दूतों के माध्यम से भोली आत्माओं को गुमराह करता है और उन्हें अपने जाल में फंसाए रखता है।
आदरणीय संत गरीबदास जी ने कहा है कि कबीर साहेब ने इब्राहिम सुलतान को बताया कि 'वह सर्वशक्तिमान हैं और उन्होंने संपूर्ण सृष्टि की रचना की है । लेकिन निर्दोष और अज्ञानी आत्मा उनको ना पहचान करके सतभक्ति से वंचित ब्रह्म-काल के जाल में फंसे हुए हैं और यहाँ मैं (भगवान) बेबस हो जाता हूँ'।
अनंत कोटि बाजी तहां, रचे सकल ब्रह्मांड l
गरीबदास मैं क्या करूं, काल करें जीव खंड ||
दयालु सर्वशक्तिमान पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी जीवन में एक बार भी उनकी शरण में आने वाले प्रत्येक भक्त को आशीर्वाद और पूर्ण मोक्ष प्रदान करते हैं। संत गरीबदास जी बताते हैं कि इब्राहिम अधम सुल्तान शासक था। परमेश्वर कबीर जी सुलतान इब्राहिम को उसके पिछले सभी मानव जन्मों में मिले थे। उसका पहला जन्म 'सम्मन' के रूप में हुआ था, बाद में 'नौशेर खान' आदि के रूप में। उसके बाद इब्राहिम अधम सुल्तान ने मानव जीवन के सभी भौतिक सुखों को त्याग दिया और सतगुरु से नाम दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त किया और सतभक्ति की।
पवित्र मुस्लिम भक्त राबिया बसरी पर संत गरीबदास जी की वाणी
संदर्भ: मुक्तिबोध अध्याय 'पारख के अंग का सरलार्थ' पृष्ठ 205-209 और 'अचला का अंग' वाणी 363-368 पर
गरीबदास जी ने राबिया बसरी नाम की एक मुस्लिम भक्त की सत्य कथा का उल्लेख भी सतग्रंथ में किया है जो इराक के बसरी में एक कबीले में पैदा हुई थी। राबिया बसरी पर सर्वशक्तिमान कविर्देव की विशेष कृपा थी जिन्होंने उसे सतभक्ति प्रदान की। वह एक धर्मपरायण, नेक आत्मा थी जिसने एक कुतिया और उसके पिल्लों की प्यास बुझाने के लिए अपने बाल उखाड़ दिए थे, जब वह 'हज' के लिए गई थी। परमेश्वर कबीर जी ने पवित्र आत्मा-राबिया के लिए एक चमत्कार भी किया था। जब राबिया ने अपने बाल उखाड़े थे तब मक्का मस्जिद राबिया से लगभग 60 मील दूर था परंतु पूर्ण परमात्मा की भक्ति के कारण मक्का का मस्जिद अपने मूल स्थान से उड़ कर उसके पास खड़ा हो गया और एक आकाशवाणी सुनाई दी की "हे भक्त! मक्का ने आकाश के माध्यम से 60 मील की यात्रा की है, सिर्फ तुम्हारे लिए। कृपया अंदर प्रवेश करें"।
राबिया मस्जिद में प्रवेश कर गई फिर मस्जिद राबिया को लेकर अपने मूल स्थान पर वापस चली गई। इस्लाम धर्म में 1,80,000 पैगंबर हुए लेकिन अल्लाह कबीर ने केवल पवित्र आत्मा राबिया के लिए चमत्कार किया और किसी के लिए नहीं। उसी आत्मा राबिया को कुछ जन्म पश्चात कमाली के रूप में जन्म प्राप्त हुआ था तथा सर्वशक्तिमान कबीर जी ने कमाली को पुनः जीवित कर उपदेश दिया था। गरीबदास जी ने सदग्रंथ साहेब में वर्णन किया है कि सच्ची भक्ति से ही मोक्ष संभव है, मनमानी पूजा बेकार है और मुसलमानों की यह गलत धारणा कि पुनर्जन्म नहीं होता बिल्कुल ही निराधार है।
संत गरीबदास जी वाणी- भक्ति मार्ग में लोभ पाप है
संत गरीबदास जी ने एक लोभी पंडित मनीराम को उपदेश दिया कि मनमानी पूजा का फल नहीं मिलता बल्कि साधक पर भारी कर्ज चढ़ जाता है। लालच में आकर पं. मनीराम ने अधिक धन कमाने के उद्देश्य से ग्यारह से तीस दिनों तक रामायण पाठ किया, लेकिन यह जानकर उदास हो गया कि 'चंपाकली' नाम की एक नर्तकी ने दो घंटे में पाँच सौ रुपये कमाए, जबकि उसने कथा करके तीस दिनों में केवल तीस रुपये कमाए। संत गरीबदास जी महाराज ने मनीराम को समझाया कि वह तो कथा-पाठ करने के भी अधिकृत नहीं है । वैष्णव संप्रदाय के प्रतीक 'कंठी' धारण कर लेने मात्र से या 'साधु' के बाहरी आडंबर करने मात्र से यह साबित नहीं होता कि वे संत हैं अगर उनके पास सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है ।
कंठी माला सुमरनी पहरे से क्या होय, ऊपर ढूंढा साधु का अंतर राखे खोए ||
गरीबदास जी ने पुजारी मनीराम से कहा कि भक्ति मार्ग में लोभ पाप है। उसे आत्म कल्याण पर ध्यान देना चाहिए और मनमानी पूजा बंद करनी चाहिए। उसे पूर्ण संत की शरण लेनी चाहिए और सत भक्ति करनी चाहिए।
पारख का अंग में संत गरीबदास जी की पवित्र वाणी
संदर्भ: पृष्ठ संख्या 781-782 पर सतग्रंथ अध्याय 'पारख का अंग'
सत भक्ति आत्मा को मोक्ष प्राप्त करने में मदद करती है
संत गरीबदास जी से 600 वर्ष पूर्व काशी-वाराणसी में जब पूर्ण परमात्मा सत पुरुष कबीर साहेब का अवतरण हुआ था और परमात्मा ने जुलाहे की लीला की थी , यह उस समय का वर्णन है। उन्होंने कविताओं और छंदों के माध्यम से भगवान की महिमा का गुणगान कर सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया है। 600 साल पूर्व परमात्मा के 64 लाख शिष्य हुए थे। जाति व्यवस्था, छुआछूत और हिंदू-मुस्लिम प्रतिद्वंद्विता अपने चरम पर थी। नकली धार्मिक गुरू तथा काज़ी परमात्मा कबीर का यह कहकर कड़ा विरोध करते थे कि वह अनपढ़ हैं और पवित्र शास्त्रों के बारे में कुछ नहीं जानते बल्कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव की पूजा न करने का उपदेश देते हैं।
संत गरीबदास जी अपनी अमृतवाणी में उल्लेख करते हैंः
तुम कौन राम का जपते जापम, ताते कटे ना यह तीनों तापम ||
उस समय फर्जी धर्मगुरुओं ने यह अफवाह फैला रखी थी कि काशी में मरने वाले को स्वर्ग मिलता है और मगहर में मरने वाले को नर्क में जाना पड़ता है। इस मिथक को दूर करने के लिए और यह सिद्ध करने के लिए कि सच्ची उपासना से शाश्वत लोक की प्राप्ति होती है, स्थान कोई मायने नहीं रखता। परमेश्वर कबीर जी अपने अंतिम दिनों में मगहर गए और घोषणा की कि वे इस दुनिया को छोड़ कर जा रहे हैं उनके दोनों समुदाय के शिष्य; मुस्लिम शासक 'बिजली खान पठान' और हिंदू राजा 'बीर सिंह बघेल' अपनी अपनी धार्मिक प्रथा के अनुसार कबीर जी के शरीर का अंतिम संस्कार करने के लिए अपनी सेना के साथ मगहर में एकत्रित हुए। परमेश्वर कबीर जानते थे कि वे उनके मृत शरीर के लिए लड़ जायेंगे। इसलिए उन्होंने लीला की और मगहर से सशरीर सतलोक गए। उनके शव के स्थान पर केवल सुगन्धित पुष्प ही पाए गए। दोनों शासकों ने फूल बांट लिए और अपने दुर्व्यवहार पर खेद व्यक्त किया। इस प्रकार कबीर जी ने बहुत बड़े और भयानक साम्प्रदायिक युद्ध को टाल दिया जिसकी भविष्यवाणी की गई थी। साथ ही, यह मिथक भी गलत साबित हुआ कि जो मगहर में मरता है वह नरक में जाता है। सर्वशक्तिमान कबीर जी ने आकाशवाणी की और वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने उन्हें सशरीर आकाश मार्ग से अपने परम धाम 'सतलोक' की ओर जाते हुए देखा।
सतग्रन्थ के रचयिता आदरणीय गरीबदास जी महाराज ने अपनी वाणी 'पारख का अंग' अध्याय में कबीर साहेब की विभिन्न लीलाओं और सत्य साधना के महत्व का सजीव वर्णन किया है जो आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति कराती है।
सर्वशक्तिमान कबीर और देवी दुर्गा के बीच संवाद
संत गरीबदास जी ने सतग्रन्थ में पूर्ण ब्रह्म कबीर जी और देवी दुर्गा के बीच हुए संवाद के माध्यम से ब्रह्म - काल के जाल को अच्छी तरह से समझाया है कि किस प्रकार माया (अष्टंगी/दुर्गा) भोली-भाली आत्माओं को अपने भौतिक सुखों के भ्रम में फंसाती है? जब परमेश्वर कबीर जी 'सतलोक' की ओर जा रहे थे, रास्ते में देवी दुर्गा उनसे मिली और उन्हें अपनी सुंदरता से प्रभावित करने की कोशिश की। देवी दुर्गा ने कबीर जी की आत्मा को ब्रह्म-काल के इक्कीस ब्रह्मांडों को न छोड़ने के लिए सभी कुटिल प्रयास किए लेकिन सब व्यर्थ थे।
संत गरीबदास जी की पवित्र वाणी 'अचला का अंग' से (97-113)
एक अन्य लेख में संत गरीबदास जी ने पांडवों में सबसे बड़े 'युधिष्ठिर' के बारे में बताया है। जिसे महाभारत के युद्ध में मारे गए योद्धाओं की मृत्यु के पापों के कारण बुरे बुरे स्वप्न आने लगे थे। पांडवों ने श्री कृष्ण जी से मदद मांगी। उस समय सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी 'करुणामय' नाम से एक ऋषि की लीला भी कर रहे थे। श्री कृष्ण जी ने सुझाव दिया की पांडव एक यज्ञ का आयोजन करें और सभी देवताओं, ऋषियों, महान संतों, शासकों और आम लोगों को उस भोज में भोजन करने के लिए आमंत्रित करें। कृष्ण जी ने बताया कि सभी सम्मानित अतिथियों को भोजन कराने के बाद शंख ज़ोर से स्वतः बजेगा जो इस बात का संकेत होगा कि पांडवों के सभी पाप कम हो गए हैं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि सुपच सुदर्शन नहीं आए थे।
पूछने पर, जब यह बात श्री कृष्ण जी की जानकारी में आई तब वह पांडवों के साथ ऋषि 'सुपच' को आमंत्रित करने स्वयं गए, जो अभिमानी 'भीम' के दुर्व्यवहार के कारण यज्ञ में नहीं आए थे। लेकिन भगवान दयालु हैं, इसलिए, ऋषि सुपच ( ऋषि सुपच रूप में कबीर परमेश्वर स्वयं आए अपने भक्त की लाज रखने के लिए) यज्ञ में शामिल होने के लिए तैयार हो गए। द्रौपदी ने ऋषि जी के लिए स्वादिष्ट भोजन स्वयं तैयार किया और उनकी सेवा भी की लेकिन उसमें श्रद्धा भाव नहीं था। सुपच सुदर्शन नाम से उपस्थित हुए करुणामय रूपी भगवान ने भोजन तो किया पर शंख एक बार ही बजा और शांत हो गया । जिससे यह स्पष्ट था कि 'सुपच सुदर्शन' जी परम शक्ति हैं जिनसे शंख बज सकता है लेकिन लगातार नहीं बजा और ऐसा क्यों हुआ? कृष्ण जी ने द्रौपदी से पूछा संत को भोजन परोसते समय आपके मन में क्या विचार आया था? द्रौपदी ने बताया, ऋषि जिस तरह से सब कुछ मिलाकर भोजन कर रहे थे, वह उसे पसंद नहीं आया। द्रौपदी का यही दोष ईश्वर की पूर्ण कृपा न पाने का कारण बना। बाद में उन सभी ने ऋषि सुपच से माफी मांगी, द्रौपदी ने भगवान के पैर धोए और चरणामृत को 'प्रसाद' रूप में पिया। ऐसा ही श्री कृष्ण और पांडवों ने भी किया। तब वह शंख ज़ोर से अखंड बजा जिसकी आवाज स्वर्ग तक सुनाई दी। सतपुरुष कबीर जी ने उन सभी को आशीर्वाद दिया।
इसका उल्लेख सतग्रंथ में भी किया गया है :
तैतीस कोटि यज्ञ में आए, सहस अट्ठासी सारे |
द्वादश कोटी वेद के वक्ता, सुपच का शंख बजा रे ||
अच्छी और बुरी महिलाओं पर संत गरीबदास जी की वाणी
इतिहास इस बात का प्रमाण देता है कि महिलाओं की सुंदरता में फंसकर बहुत से शासक दिवालिया हो गए और उन्होंने अपना राज्य खो दिया बाद में प्रतिष्ठा भी गंवा बैठे। गलत इरादे रखने वाली एक चालाक महिला एक आदमी को दयनीय जीवन जीने के लिए मजबूर कर सकती है। इतिहास में ऐसी घटनाएँ भी दर्ज हुई हैं जहाँ देवियाँ कई ऋषियों के भक्ति मार्ग में बाधा बनीं और उनके जीवन को बर्बाद कर दिया। संत गरीबदास जी के सदग्रन्थ में वर्णित पवित्र वाणी में ऐसी कुत्सित (नीच) महिलाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है जो पुरुषों को अपने रूप के जाल में फंसाकर उनका जीवन बर्बाद कर देती हैं। संत गरीबदास जी ने अपनी वाणी में ऐसी बद नारीओ से सावधान रहने की चेतावनी दी है।
दूसरी ओर, संत गरीबदास जी महाराज ने ध्रुव, प्रहलाद, भर्तरी, गोपीचंद, सुखदेव, रविदास, बाजिद और शेख फरीद जैसे भक्तों को जन्म देने वाली गुणी महिलाओं की महिमा करते हैं जिन्होंने सतभक्ति की और सर्वशक्तिमान कविर्देव का आशीर्वाद प्राप्त किया।
संत गरीबदास जी महाराज की मृत्यु कब हुई थी?
पूज्य गरीबदास जी महाराज विक्रमी संवत् 1835 में सतलोक गए। वर्ष 1778 ई. में 'शुक्ल पक्ष' के दूसरे दिन (दूज) पर (महीने का अंतिम भाग-नए से पूर्णिमा तक) 'भादव मास-भाद्र' (भारतीय कैलेंडर का छठा महीना यानी मध्य अगस्त से मध्य सितंबर)। गरीबदास जी के शव का अंतिम संस्कार गांव छुड़ानी में किया गया। उस स्थल के ऊपर एक स्मारक 'छत्री साहिब' भी बनाया गया है। संत गरीबदास जी के छ: बच्चे थे जिसमें चार लड़के और दो बेटियाँ थीं।
इसके बाद आदरणीय गरीबदास जी सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में प्रकट हुए, उसी शरीर में (समान आयु 61 वर्ष में) और 35 वर्ष तक वहां रहे। सहारनपुर में उनके नाम पर एक स्मारक 'छत्री साहिब' भी बनाई गयी है। चिलकाना रोड से एक सड़क निकलती है जिसे कलसिया रोड कहा जाता है, उस सड़क पर 12 किलोमीटर आगे बाईं ओर उनका स्मारक बना हुआ है। पास में ही श्री लालदास जी महाराज का प्रसिद्ध बाड़ा है, जो संसार में इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि भगवान बिना माँ के गर्भ से जन्म लिए पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। वास्तव में संत गरीबदास जी स्वयं सर्वशक्तिमान कविर्देव ही थे यह सब उनकी ही लीला थी।
जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज गरीबदास पंथ से हैं
सन्दर्भ: कबीर सागर अध्याय कबीर चरित्र बोध पृष्ठ 1870 पर
पवित्र कबीर सागर में कहा गया है कि 12वाँ पंथ गरीबदास जी का होगा जिसमें स्वयं कबीर परमात्मा अवतरित होंगे और सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान को सारे विश्व में फैलायेंगे। नीचे जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी की गुरु परंपरा का उल्लेख किया गया है।
संत रामपाल जी महाराज जी की गुरु परंपरा
- बन्दी छोड़ कबीर साहिब जी महाराज, काशी (उत्तर प्रदेश)
- बन्दी छोड़ गरीबदास जी महाराज, गांव-छुड़ानी, झज्जर (हरियाणा)
- संत शीतलदास जी महाराज गांव-बरहाना, जिला-रोहतक (हरियाणा)
- संत ध्यानदास जी महाराज
- संत रामदास जी महाराज
- संत ब्रह्मानन्द जी महाराज गांव-करौंथा, जिला-रोहतक (हरियाणा)
- संत जुगतानन्द जी महाराज
- संत गंगेश्वरानन्द जी महाराज, गांव-बाजीदपुर (दिल्ली)
- संत चिदानन्द जी महाराज, गांव-गोपालपुर धाम, सोनीपत (हरियाणा)
- संत रामदेवानन्द जी महाराज, (तलवंडी भाई, फिरोजपुर (पंजाब)
- संत रामपाल दास जी महाराज
निष्कर्ष
संत रामपाल जी सर्वशक्तिमान पूर्ण परमात्मा सत पुरुष कविर्देव ही हैं जो तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के रूप में लीला कर रहे हैं। सभी पाठकों से निवेदन है कि परमात्मा को अतिशीघ्र पहचानें तथा उनकी शरण ग्रहण करें।
FAQs : "संत गरीबदास जी महाराज की जीवनी तथा मोक्ष कथा"
Q.1 संत गरीबदास जी महाराज जी कौन थे?
संत गरीबदास जी महाराज जी, बारहवें पंथ गरीबदास पंथ के संस्थापक थे। वह एक आध्यात्मिक गुरु और सुधारक थे जो परमात्मा कबीर साहेब जी की सच्ची भक्ति का मार्ग बताते थे।
Q.2 संत गरीबदास जी महाराज का जन्म कब और कहां हुआ था?
संत गरीबदास जी महाराज जी का जन्म 1717 ई. (विक्रमी संवत 1774) में गांव छुड़ानी, जिला झज्जर, हरियाणा में एक धनखड़ जाट परिवार में हुआ था।
Q. 3 संत गरीबदास जी महाराज के माता – पिता कौन थे?
उनके पिता श्री बलराम जी और माता श्रीमती रानी जी थीं।
Q.4 संत गरीबदास जी महाराज जी के गुरु कौन थे?
संत गरीबदास जी महाराज जी के गुरु कबीर साहेब जी थे। उन्होंने ही गरीबदास जी को सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान और सच्चे मोक्ष मंत्र प्रदान किए थे।
Q.5 परमेश्वर कबीर साहेब जी संत गरीबदास जी महाराज जी से कब मिले थे?
कबीर साहेब जी संत गरीबदास जी महाराज जी से सन् 1727 में सुबह के लगभग 10 बजे सतलोक से आकर मिले थे। उस समय गरीबदास जी 10 वर्ष के बालक थे और लगभग 1.5 किमी दूर अपने नला के खेत में मवेशी चरा रहे थे। वह खेत गांव कबलाना की सीमा से लगा हुआ था।
Q.6 संत गरीबदास जी महाराज ने कौन सी रचनाएं की थीं?
परमेश्वर कबीर साहेब जी ने गरीबदास जी को सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया था। जिसके बाद संत गरीबदास जी महाराज ने "सत ग्रंथ साहेब" नामक एक पुस्तक की रचना की थी। जिसमें उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान के बहुत से गूढ़ रहस्य लिखे थे। इस ग्रंथ में कुल मिलाकर 24000 शब्द हैं और 7000 वाणियां कबीर साहेब जी की हैं।
Q.7 संत गरीबदास जी महाराज जी क्या काम किया करते थे?
वह एक संत थे और 1400 एकड़ जमीन के मालिक थे। इसके अलावा वह किसान भी थे।
Q.8 संत गरीबदास जी महाराज को महान संत क्यों माना जाता है?
संत गरीबदास जी महाराज को उनके ज्ञान, शिक्षाओं और चमत्कारों के कारण एक महान संत माना जाता है। आज भी भक्त समाज उनकी शिक्षाओं पर चलता है।
Q.9 संत गरीबदास जी महाराज क्या शिक्षाएं देते थे?
संत गरीबदास जी महाराज जी द्वारा दी गई कुछ शिक्षाएं इस प्रकार हैं: • उन्होंने सच्ची भक्ति और सत्संग का महत्व बताया था। • उन्होंने गुरु के द्वारा दी गई शिक्षाओं का पालन करने पर ज़ोर दिया था। • उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों दोनों की गलत धार्मिक प्रथाओं की निंदा की था। इसके अलावा उन्होंने हमारे धार्मिक ग्रंथों के अनुकुल पूजा करने को कहा था। •उन्होंने तंबाकू की खेती करने और प्रयोग करने को मना किया था।
Q.10 संत गरीबदास जी महाराज के बारे में और अधिक जानकारी कहां से प्राप्त कर सकते हैं?
संत गरीब दास जी महाराज के बारे में संपूर्ण जानकारी संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक सत्संगों से प्राप्त हो सकती है।
Q.11 संत गरीबदास जी महाराज का बोध दिवस कब मनाया जाता है?
संत गरीब दास जी महाराज के बोध दिवस का वार्षिक उत्सव हिंदू कैलेंडर के अनुसार मनाया जाता है। विक्रम संवत 2079 में संत गरीब दास जी का बोध दिवस फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को होता है।
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Ramesh Singh
क्या कोई ऐसा धार्मिक गुरु है जिसकी बताई भक्ति विधि करने से मोक्ष यानि ईश्वर प्राप्ति हो सकती है? क्या ऐसा कोई गुरु है जो मोक्ष की गारंटी देता हो?
Satlok Ashram
जी हां, सतग्रंथ साहिब में लिखी संत गरीबदास जी महाराज की वाणी में यह प्रमाण है कि जो इसमें लिखे अनुसार भक्ति करता है उसे मोक्ष यानि कि ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी एकमात्र सच्चे आध्यात्मिक संत हैं जो मोक्ष की गारंटी देते हैं।