कबीर साहेब चारों युगों में आते हैं


कबीर परमात्मा का चारों युगों में आगमन

सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान।

झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।।

 

तत्वज्ञान के अभाव से श्रद्धालु शंका व्यक्त करते हैं कि जुलाहे रूप में कबीर जी तो वि. सं. 1455 (सन् 1398) में काशी में आए हैं। वेदों में कविर्देव यही काशी वाला जुलाहा (धाणक) कैसे पूर्ण परमात्मा हो सकता है?

इस विषय में दास (सन्त रामपाल दास) की प्रार्थना है कि यही पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पूर्व सतलोक में विद्यमान थे तथा अपना वास्तविक ज्ञान (तत्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में भी स्वयं प्रकट हुए हैं। सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिन्द्र नाम से, द्वापर युग में करूणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से प्रकट हुए हैं। इसके अतिरिक्त अन्य रूप धारण करके कभी भी प्रकट होकर अपनी लीला करके अंतर्ध्यान हो जाते हैं। उस समय लीला करने आए परमेश्वर को प्रभु चाहने वाले श्रद्धालु नहीं पहचान सके क्योंकि सर्व महर्षियों व संत कहलाने वालों ने प्रभु को निराकार बताया है। वास्तव में परमात्मा आकार में है। मनुष्य सदृश शरीर युक्त हैं। परंतु परमेश्वर का शरीर नाड़ियों के योग से बना पांच तत्व का नहीं है। एक नूर तत्व से बना है। पूर्ण परमात्मा जब चाहे यहाँ प्रकट हो जाते हैं वे कभी मां से जन्म नहीं लेते क्योंकि वे सर्व के उत्पत्ति करता हैं।

  • सतयुग में कविर्देव (कबीर साहेब) का सत्सुकृत नाम से प्राकाट्य
  • यजुर्वेद अध्याय 12 मंत्र 4
  • यजुर्वेद के अध्याय नं. 29 के श्लोक नं. 25
  • संख्या नं. 1400 सामवेद उतार्चिक अध्याय नं. 12 खण्ड नं. 3 श्लोक नं. 5
  • ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 तथा सूक्त 96 मंत्र 17.18

सतयुग में कविर्देव (कबीर साहेब) का सतसुकृत नाम से प्राकाट्य

पूर्ण प्रभु कबीर जी (कविर्देव) सतयुग में सतसुकृत नाम से स्वयं प्रकट हुए थे। उस समय गरुड़ जी, श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी आदि को सतज्ञान समझाया था। श्री मनु महर्षि जी को भी तत्वज्ञान समझाना चाहा था। परन्तु श्री मनु जी ने परमेश्वर के ज्ञान को सत न जानकर श्री ब्रह्मा जी से सुने वेद ज्ञान पर आधारित होकर तथा अपने द्वारा निकाले वेदों के निष्कर्ष पर ही आरूढ़ रहे। इसके विपरीत परमेश्वर सतसुकृत जी का उपहास करने लगे कि आप तो सर्व विपरीत ज्ञान कह रहे हो। इसलिए परमेश्वर सतसुकृत का उर्फ नाम वामदेव निकाल लिया (वाम का अर्थ होता है उल्टा, विपरीत जैसे बायां हाथ को बामा अर्थात् उलटा हाथ भी कहते हैं। जैसे दायें हाथ को सीधा हाथ भी कहते हैं)।

इस प्रकार सतयुग में परमेश्वर कविर्देव जी जो सतसुकृत नाम से आए थे उस समय के ऋषियों व साधकों को वास्तविक ज्ञान समझाया करते थे। परन्तु ऋषियों ने स्वीकार नहीं किया। सतसुकृत जी के स्थान पर परमेश्वर को ‘‘वामदेव‘‘ कहने लगे।

यजुर्वेद अध्याय 12 मंत्र 4

इसीलिए यजुर्वेद अध्याय 12 मंत्र 4 में विवरण है कि यजुर्वेद के वास्तविक ज्ञान को वामदेव ऋषि ने सही जाना तथा अन्य को समझाया। पवित्र वेदों के ज्ञान को समझने के लिए कृपया विचार करें - जैसे यजुर्वेद है, यह एक पवित्र पुस्तक है। इस के विषय में कहीं संस्कृत भाषा में विवरण किया हो जहां यजुः या यजुम् आदि शब्द लिखें हो तो भी पवित्र पुस्तक यजुर्वेद का ही बोध समझा जाता है। इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव है। इसी को भिन्न-भिन्न भाषा में कबीर साहेब, कबीर परमेश्वर कहने लगे। कई श्रद्धालु शंका व्यक्त करते हैं कि कविर् को कबीर कैसे सिद्ध कर दिया। व्याकरण दृष्टिकोण से कविः का अर्थ सर्वज्ञ होता है। दास की प्रार्थना है कि प्रत्येक शब्द का कोई न कोई अर्थ तो बनता ही है। रही बात व्याकरण की। भाषा प्रथम बनी क्योंकि वेद वाणी प्रभु द्वारा कही है तथा व्याकरण बाद में ऋषियों द्वारा बनाई है। यह त्रुटि युक्त हो सकती है। वेद के अनुवाद (भाषा-भाष्य) में व्याकरण व्यतय है अर्थात् असंगत तथा विरोद्ध भाव है क्योंकि वेद वाणी मंत्रों द्वारा पदों में है। जैसे पलवल शहर के आस-पास के व्यक्ति पलवल को परवर बोलते हैं। यदि कोई कहे कि पलवल को कैसे परवर सिद्ध कर दिया। ऐसे ही कविर् को कबीर कैसे सिद्ध कर दिया है। जैसे क्षेत्रिय भाषा में पलवल शहर को परवर कहते हैं। इसी प्रकार कविर् को कबीर बोलते हैं, प्रभु वही है। महर्षि दयानन्द जी ने ‘‘सत्यार्थ प्रकाश’’ समुल्लास 4 पृष्ठ 100 पर (दयानन्द मठ दीनानगर पंजाब से प्रकाशित पर) ‘‘देवृकामा’’का अर्थ देवर की कामना करने किया है देवृ को पूरा ‘‘ र ’’ लिख कर देवर किया है। कविर् को कविर फिर भाषा भिन्न कबीर लिखने व बोलने में कोई आपत्ति या व्याकरण की त्रुटि नहीं है।

पूर्ण परमात्मा कविर्देव है, यह प्रमाण यजुर्वेद अध्याय 29 मंत्र 25 तथा सामवेद संख्या 1400 में भी है जो निम्न है:-

यजुर्वेद के अध्याय नं. 29 के श्लोक नं. 25

(संत रामपाल दास द्वारा भाषा-भाष्य):-

समिद्धोऽअद्य मनुषो दुरोणे देवो देवान्यजसि जातवेदः।

आ च वह मित्रामहश्चिकित्वान्त्वं दूतः कविरसि प्रचेताः।।25।।

समिद्धः-अद्य-मनुषः-दुरोणे-देवः-देवान्-यज्-असि-जातवेदः- आ- च-वह-

मित्रामहः-चिकित्वान्-त्वम्-दूतः-कविर्-असि-प्रचेताः

अनुवाद:- (अद्य) आज अर्थात् वर्तमान में (दुरोणे) शरीर रूप महल में दुराचार पूर्वक (मनुषः) झूठी पूजा में लीन मननशील व्यक्तियों को (समिद्धः) लगाई हुई आग अर्थात् शास्त्रविधि रहित वर्तमान पूजा जो हानिकारक होती है, उसके स्थान पर (देवान्) देवताओं के (देवः) देवता (जातवेदः) पूर्ण परमात्मा सतपुरूष की वास्तविक (यज्) पूजा (असि) है। (आ) दयालु (मित्रामहः) जीव का वास्तविक साथी पूर्ण परमात्मा ही अपने (चिकित्वान्) स्वस्थ ज्ञान अर्थात यथार्थ भक्ति को (दूतः) संदेशवाहक रूप में (वह) लेकर आने वाला (च) तथा (प्रचेताः) बोध कराने वाला (त्वम्) आप (कविरसि) कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर हैं।

भावार्थ - जिस समय पूर्ण परमात्मा प्रकट होता है उस समय सर्व ऋषि व सन्त जन शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् पूजा द्वारा सर्व भक्त समाज को मार्ग दर्शन कर रहे होते हैं। तब अपने तत्वज्ञान अर्थात् स्वस्थ ज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं ही कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु ही आता है।

संख्या नं. 1400 सामवेद उतार्चिक अध्याय नं. 12 खण्ड नं. 3 श्लोक नं. 5

            (संत रामपाल दास द्वारा भाषा-भाष्य):-

भद्रा वस्त्र समन्या३वसानो महान् कविर्निवचनानि शंसन्।

आ वच्यस्व चम्वोः पूयमानो विचक्षणो जागृविर्देववीतौ।।5।।

भद्रा-वस्त्र-समन्या-वसानः-महान्-कविर्-निवचनानि-शंसन्- आवच्यस्व-चम्वोः-

पूयमानः-विचक्षणः- जागृविः-देव-वीतौ

अनुवाद:- (विचक्षणः) चतुर व्यक्तियों ने (आवच्यस्व) अपने वचनों द्वारा कहा होता है कि जो हम प्रवचन करते हैं इन का अनुसरण करो। उन चतुर व्यक्तियों ने पूर्णब्रह्म की पूजा को न बताकर आन उपासना का मार्ग दर्शन करके अमृत के स्थान पर (पूयमानः) आन उपासना रूपी मवाद {जैसे भूत-प्रेत पूजा, पितृ पूजा, तीनों गुणों (रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शिव शंकर) तथा ब्रह्म-काल तक की पूजा} को (चम्वोः) आदर के साथ आचमन करा रहे अर्थात् शास्त्र विरुद्ध गलत ज्ञान को समाप्त करने के लिए (भद्रा) परमसुखदायक (महान् कविर्) महान कविर अर्थात् पूर्ण परमात्मा कबीर (वस्त्र) सशरीर साधारण वेशभूषा में ‘‘अर्थात् वस्त्र का अर्थ है वेशभूषा, संत भाषा में इसे चोला भी कहते हैं, चोला का अर्थ है शरीर। यदि किसी संत का देहान्त हो जाता है तो कहते हैं कि "चोला छोड़ गए" (समन्या) अपने सतलोक वाले शरीर के सदृश अन्य शरीर हल्के तेजपुंज का धारकर (वसानः) आम व्यक्ति की तरह जीवन जी कर कुछ दिन संसार में अतिथि की तरह वस कर (निवचनानि) अपनी शब्दावली कबीर वाणी आदि के माध्यम से सतज्ञान (शंसन्) वर्णन करके (देव) पूर्ण परमात्मा के (वीतौ) छिपे हुए सर्गुण-निर्गुण ज्ञान रूपी धन को (जागृविः) जाग्रत करते हैं।

भावार्थ:- जैसे यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र एक में कहा है कि ‘अग्नेः तनु असि = परमेश्वर सशरीर है। विष्णवे त्वा सोमस्य तनुः असि = उस अमर प्रभु का पालन पोषण करने के लिए अन्य शरीर है जो अतिथि रूप में कुछ दिन संसार में आता है। तत्वज्ञान से अज्ञान निंद्रा में सोए प्रभु प्रेमियों को जगाता है। वही प्रमाण इस मंत्र में है कि कुछ समय के लिए पूर्ण परमात्मा कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु अपना रूप बदलकर सामान्य व्यक्ति जैसा रूप बनाकर पृथ्वी मण्डल पर प्रकट होता है तथा कविर्निवचनानि शंसन् अर्थात् कविर्वाणी बोलता है। जिसके माध्यम से तत्वज्ञान को जगाता है तथा उस समय महर्षि कहलाने वाले चतुर प्राणी मिथ्याज्ञान के आधार पर शास्त्र विधि अनुसार सत्य साधना रूपी अमृत के स्थान पर शास्त्र विधि रहित पूजा रूपी मवाद को श्रद्धा के साथ आचमन अर्थात् पूजा करा रहे होते हैं। उस समय पूर्ण परमात्मा स्वयं प्रकट होकर तत्वज्ञान द्वारा शास्त्र विधि अनुसार साधना का ज्ञान प्रदान करता है।

यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 1

अग्नेः तनूः असि। विष्णवे त्वा सोमस्य तनूः असि। विष्णवे त्वा अतिथेः अतिथ्यम् असि। विष्णवे त्वा श्येनाय, त्वा सोम भृते विष्णवे त्वा अग्नये त्वा रायः पोषदे विष्णवे त्वा।(1)

अनुवाद:- इस मंत्र में परमेश्वर की दो स्थितियों का वर्णन है। एक स्थिति में परमेश्वर ऊपर के लोकों में तेजोमय शरीर युक्त है। दूसरी स्थिति में परमेश्वर ऋषि या संत की वेशभूषा में साधारण व्यक्ति की तरह शरीर धारण करके सर्व आत्माओं को संभालता है। जैसे अतिथि अर्थात् मेहमान आता है। अतिथि का भावार्थ है कि जिसके आने की तिथी पूर्व निर्धारित न हो। उस परमात्मा के अतिथि रूप में आने की भी दो स्थिति हैं जैसे:-

1- परमात्मा कुछ समय संसार में रहकर आम व्यक्ति की तरह जीवन जीकर अपना तत्वज्ञान प्रचार करता है जैसे परमेश्वर कबीर रूप से प्रकट होकर बनारस (काशी) शहर में 120 वर्ष रहे। अचानक कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए फिर लीलावत् बड़े हुए 120 वर्ष संसार में अतिथि रूप में रहकर सशरीर सतलोक में {अपने निज स्थान में} चले गए। दूसरी स्थिति है कि ‘‘परमात्मा अचानक संत या ऋषि रूप में या अन्य साधारण मानव रूप में प्रकट होकर अपने विशेष भक्त को दर्शन देते हैं। उसको तत्वज्ञान समझाते हैं तथा अपने सत्यलोक के दर्शन करवा के वापिस छोड़ देते हैं। फिर वह परम भक्त उस पूर्ण परमात्मा की आँखों देखी महिमा का वर्णन करता है।

इसको बाज पक्षी या अलल पक्षी की तरह क्रिया बताई है। जैसे बाज पक्षी अति शीघ्रता से अन्य पक्षी पर झपटता है उसे लेकर शीघ्र चला जाता है। इसी प्रकार एक अलल (वायु में आकाश में रहने वाला) पक्षी से तुलना की है। जो शीध्र नीचे आता है तथा हाथियों को उठाकर शीघ्र वापिस आकाश में चला जाता है। जैसे परमात्मा अचानक प्रकट होकर संत नानक जी को बेई नदी पर मिले। सच्चखंड अर्थात् सतलोक के दर्शन करवा के तीसरे दिन अचानक पृथ्वी पर छोड़ दिया। उसके पश्चात् संत नानक साहेब जी ने पूर्ण परमात्मा की महिमा का आँखों देखा गुणगान किया। जो उनकी अमृतवाणी में गुरू ग्रंथ साहेब में महला-पहला में विद्यमान है। इसी प्रकार सन् 1727 में संत गरीबदास जी को गाँव-छुड़ानी जिला-झज्जर (हरियाणा प्रांत) में ‘‘नला’’ नामक खेत में परमेश्वर जिंदा महात्मा (एक संत) के रूप में मिले।

सतलोक दिखाकर उसी दिन वापिस पृथ्वी पर छोड़ दिया। उसके पश्चात् संत गरीबदास साहेब जी ने परमात्मा की महिमा का आँखों देखा विवरण वर्णन किया। जो उनकी अमृतवाणी में सद्ग्रंथ ‘‘वाणी गरीबदास’’ में विद्यमान है। इसी प्रकार संत दादू साहेब जी को मिले। संत मलूक दास साहेब जी को मिले। संत धर्मदास साहेब जी को मिले। संत घीसा दास साहेब जी को मिले। हजरत मुहम्मद साहेब जी को मिले। राजा अब्राहिम अधम सुल्तान जी को मिले। अन्य बहुत से महात्माओं को पूर्ण प्रभु अतिथि रूप में दूसरी विधि से मिले तथा अपना यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान (तत्वज्ञान) का प्रचार किया तथा अपनी आत्माओं का कल्याण किया। आचार्य स्वामी रामानंद जी को मिले तथा उनको सत्यलोक के दर्शन करवाए। आचार्य स्वामी रामानंद जी ने आँखों देखकर पूर्ण परमेश्वर कबीर जी की महिमा का वर्णन किया।

दोहू ठोर है एक तू भया एक से दो। हे कबीर हम कारणे आये हो मग जोय।

स्वामी रामानंद जी ने कहा है कबीर परमेश्वर आप ऊपर तेजोमय शरीर में तथा यहाँ दोनों स्थानों पर आप ही हैं। हमारे लिए आप इतना रास्ता चल कर आए हैं।

(अग्नेः) स्वप्रकाशित परमेश्वर (तनूः) सशरीर (असि) है अर्थात् परमेश्वर तेजोमय शरीर सहित है। (विष्णवे) पालन-पोषण करने के लिए अर्थात् सर्व लोकों की आत्माओं की आवश्यकता पूर्ति के लिए (त्वा) उस (सोमस्य) अमर पुरूष का अर्थात् अविनाशी परमात्मा का (तनूः) शरीर (असि) है। सोमपुरूष अर्थात् अमर प्रभु तीनों लोकों में प्रवेश करके सर्व का पालन-पोषण करता है। वह अतिथि रूप में प्रवेश करता है। अर्थात् अचानक प्रकट होता है। {जिस किसी के आने की तिथि पूर्व निर्धारित न हो, उसको अतिथि अर्थात् मेहमान कहते हैं।} (त्वा) उस परमेश्वर का (विष्णवे) तीनों लोकों में प्रवेश करके पालन-पोषण करने के लिए आगमन होता है। (अतिथे) अतिथि रूप में प्रकट परमेश्वर (अतिथ्यम्) अतिथियन अर्थात् पूजा के योग्य (असि) है। (त्वा) उस परमात्मा का आगमन (विष्णवे) पालन करने के लिए (सोमभृते) अमर सुख प्रदान करने के लिए अर्थात् पूर्ण मोक्ष मार्ग प्रदान करके भक्ति रूपी अमृत से परिपूर्ण करने के लिए दो प्रकार से होता है। एक तो (त्वा) उस परमात्मा का आगमन (विष्णवे) कुछ समय संसार में व्यापक होने के लिए अर्थात् संसार में मानव की तरह लीला करके जीवन जीकर पुण्यात्माओं को तत्वज्ञान प्रदान करने के लिए तथा सर्व सुविधाएँ प्रदान करने के लिए होता है। जैसे परमेश्वर चारों युगों में लीला करने के लिए शिशु रूप से प्रकट होकर समय अनुसार साधारण व्यक्ति की तरह वृद्धि को प्राप्त हो करके कुछ समय संसार में रहता है। कलयुग में पूर्ण परमात्मा कबीर नाम से काशी शहर में कमल के फूल पर सन् (इ.स.) 1398 को प्रकट हुए तथा 120 वर्ष तक संसार में रहे फिर सशरीर सतलोक लौट गए। दूसरी तरह (त्वा) उस परमात्मा का आगमन (श्येमान) श्येन पक्षी की तरह शीघ्र लौट जाने के लिए होता है। जैसे बाज पक्षी व अलल पक्षी अपने अहार के लिए अन्य प्राणियों पर शीध्रता से झपटता है तथा उसे दबोचकर शीघ्रता से लौट जाता है। इसी प्रकार दूसरी स्थिति में परमात्मा अज्ञान निंद्रा में सोए हूओं को जगाने के लिए अचानक प्रकट होता है।

अपने विशेष भक्त को तत्वज्ञान उपदेश देता है। उसको अपने साथ अपने निजधाम सतलोक में ले जाता है। वहाँ का सर्व दृश्य दिखाकर भक्त को पुनः पृथ्वी लोक पर छोड़ देता है। उसके पश्चात् वह परमात्मा प्राप्त भक्त परमात्मा की आँखों देखी महिमा का वर्णन करता है। जैसे संत नानक जी को बेई नदी पर मिले। उन्हें सचखंड अर्थात् सत्यलोक ले गए। तीन दिन पश्चात् उसी नदी पर वापिस छोड़ दिया। जैसे संत गरीबदास जी से गाँव छुड़ानी जिला-झज्जर हरियाणा प्रांत में मिले तथा उन्हें सत्यलोक लेकर गए तथा कुछ ही घंटों के पश्चात् पुनः पृथ्वी पर छोड़ दिया। उपरोक्त दोनों महात्माओं ने परमेश्वर की महिमा का आँखों देखा हाल वर्णन किया। जो उन दोनों संतों की अमृत वाणी में विद्यमान है। (त्वा) उस समर्थ परमेश्वर की लीलाएँ है जो वह (अग्नये) स्वप्रकाशित रहने के लिए लीला करता है। (त्वा) उसका (विष्णवे) सर्व लोकों में प्रवेश करके पालन-पोषण करने के लिए आगमन होता है। (रायः पोषदे) वह कुल मालिक ही सर्व का पालन कर्ता है। सर्व लीलाएँ अपने प्राणियों की समृद्धि के लिए ही करता है।

पवित्र ऋग्वेद के निम्न मंत्रों में भी पहचान बताई है कि जब वह पूर्ण परमात्मा कुछ समय संसार में लीला करने आता है तो शिशु रूप धारण करता है। उस पूर्ण परमात्मा की परवरिश (अध्न्य धेनवः) कंवारी गाय द्वारा होती है। फिर लीलावत् बड़ा होता है तो अपने पाने व सतलोक जाने अर्थात् पूर्ण मोक्ष मार्ग का तत्वज्ञान (कविर्गिभिः) कबीर बाणी द्वारा कविताओं द्वारा बोलता है, जिस कारण से प्रसिद्ध कवि कहलाता है, परन्तु वह स्वयं कविर्देव पूर्ण परमात्मा ही होता है जो तीसरे मुक्ति धाम सतलोक में रहता है।

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 तथा सूक्त 96 मंत्र 17.18

  • ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9
  • ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17
  • ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9

अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।

अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।

अनुवाद: -(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुख सुविधाओं द्वारा अर्थात् खाने-पीने द्वारा जो शरीर वृद्धि को प्राप्त होता है उसे (पातवे) वृद्धि के लिए (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हो अर्थात् कंवारी गाय द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।

भावार्थ - पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है उस समय कंवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17

शिशुम् जज्ञानम् हर्य तम् मृजन्ति शुम्भन्ति वह्निमरूतः गणेन।

कविर्गीर्भि काव्येना कविर् सन्त् सोमः पवित्रम् अत्येति रेभन्।।17।।

अनुवाद - पूर्ण परमात्मा (हर्य शिशुम्) मनुष्य के बच्चे के रूप में (जज्ञानम्) जान बूझ कर प्रकट होता है तथा अपने तत्वज्ञान को (तम्) उस समय (मृजन्ति) निर्मलता के साथ (शुम्भन्ति) उच्चारण करता है। (वह्नि) प्रभु प्राप्ति की लगी विरह अग्नि वाले (मरुतः) वायु की तरह शीतल भक्त (गणेन) समूह के लिए (काव्येना) कविताओं द्वारा कवित्व से (पवित्रम् अत्येति) अत्यधिक निर्मलता के साथ (कविर गीर्भि) कविर वाणी अर्थात् कबीर वाणी द्वारा (रेभन्) ऊंचे स्वर से सम्बोधन करके बोलता है, (कविर् सन्त् सोमः) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष ही संत अर्थात् ऋषि रूप में स्वयं कविर्देव ही होता है। परन्तु उस परमात्मा को न पहचान कर कवि कहने लग जाते हैं।

भावार्थ - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि विलक्षण मनुष्य के बच्चे के रूप में प्रकट होकर पूर्ण परमात्मा कविर्देव अपने वास्तविक ज्ञान को अपनी कविर्गिभिः अर्थात् कबीर बाणी द्वारा निर्मल ज्ञान अपने हंसात्माओं अर्थात् पुण्यात्मा अनुयाइयों को कवि रूप में कविताओं, लोकोक्तियों के द्वारा सम्बोधन करके अर्थात् उच्चारण करके वर्णन करता है। वह स्वयं सतपुरुष कबीर ही होता है।

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18

ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथ: पदवीः कवीनाम्।

तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।18।।

अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधी प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्‍त्राणीध:) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्ददायक होती हैं। (सन्त् सोमः) ऋषि/संत रूप से प्रकट वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष ही होता है, वह पूर्ण प्रभु (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्ति लोक अर्थात् सतलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् मानव सदृश संत रूप में (स्टुप्) गुबंद अर्थात् गुम्बज में ऊँचे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनु राजति) उज्ज्वल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश शरीर में विराजमान है।

भावार्थ - मंत्र 17 में कहा है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे कवि कहने लग जाते हैं, वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् (कबीर प्रभु) ही है। उसके द्वारा रची अमृतवाणी कबीर वाणी (कविर्गिरः अर्थात् कविर्वाणी) कही जाती है, जो भक्तों के लिए स्वर्ग तुल्य सुखदाई होती है। वही परमात्मा तीसरे मुक्ति धाम अर्थात् सतलोक की स्थापना करके एक गुबंद अर्थात् गुम्बज में सिंहासन पर तेजोमय मानव सदृश शरीर में आकार में विराजमान है।

इस मंत्र में तीसरा धाम सतलोक को कहा है। जैसे एक ब्रह्म का लोक जो इक्कीस ब्रह्माण्ड का क्षेत्र है, दूसरा परब्रह्म का लोक जो सात संख ब्रह्मण्ड का क्षेत्र है, तीसरा परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् पूर्ण ब्रह्म का ऋतधाम अर्थात् सतलोक है।


 

FAQs : "कबीर साहेब चारों युगों में आते हैं"

Q.1 कबीर साहेब जी का जन्म किस युग में हुआ था?

कबीर साहेब जी सर्वोच्च ईश्वर हैं, वे चारों युगों में प्रकट होते हैं और उनका जन्म नहीं होता। परमात्मा पुण्यात्माओं को सच्चा ज्ञान देने के लिए स्वयं इस पृथ्वी पर चारों युगों में प्रकट होते हैं। कबीर परमात्मा कलयुग में भी आज से लगभग 627 वर्ष पूर्व भारत की पवित्र भूमि काशी में लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर एक शिशु के रूप में सहशरीर प्रकट हुए थे।

Q.2 भगवान कौन है?

कबीर साहेब जी एकमात्र भगवान हैं। वे ही संपूर्ण ब्रह्मांडों के निर्माता हैं।

Q. 3 सत सुकृत कौन हैं?

कबीर साहेब जी चारों युगों में अलग-अलग नाम से प्रकट होते हैं। सतयुग में में सतसुकृत नाम से प्रकट होते हैं।

Q.4 अंतिम युग कौन सा है?

अंतिम युग कलयुग है।

Q.5 कलयुग में कौन ईश्वर प्रकट हुए हैं?

सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी स्वयं इस धरती पर भारत में हरियाणा राज्य में संत रामपाल जी महाराज जी के चोले में लीला कर रहे हैं।

Q.6 सतयुग में किस ईश्वर का जन्म हुआ था?

सतयुग में कबीर साहेब जी अवतरित हुए थे और उनका जन्म नहीं हुआ था। परमात्मा का जन्म नहीं होता वे प्रकट होते हैं। सतयुग में वे सत सुकृत नाम से प्रसिद्ध हुए थे।

Q.7 कबीर साहेब जी का जन्म कहां हुआ था?

कबीर साहेब जी का जन्म नहीं हुआ था, वे स्वयं परमेश्वर थे और हैं। कबीर साहेब जी प्रत्येक युग में इस धरती पर सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने के लिए स्वयं इस पृथ्वी पर जब चाहें कहीं भी प्रकट हो जाते हैं।

Q.8 कबीर साहेब जी के अनुसार ईश्वर की प्राप्ति कैसे हो सकती है?

पवित्र शास्त्रों के अनुसार ईश्वर की प्राप्ति सच्ची भक्ति करने से ही हो सकती है। केवल तत्वदर्शी संत ही सच्चा ज्ञान और भक्ति प्रदान कर सकता है। तत्वदर्शी संत से प्राप्त सच्चे मोक्ष मंत्रों का जाप करने से ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।

Q.9 कबीर साहेब जी की भक्ति कैसे करें?

पवित्र श्रीमद्भगवत गीता जी के अध्याय 17 श्लोक 23 में सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी की प्राप्ति के वास्तविक मंत्र बताए गए हैं। वह मंत्र केवल तत्वदर्शी संत ही प्रदान कर सकता है। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी एकमात्र सच्चे आध्यात्मिक गुरु हैं। केवल वे ही मोक्ष प्राप्ति और सतलोक प्राप्त करने का सही मार्ग बता रहे हैं।

Q.10 गुरु नानक देव जी के अनुसार कबीर साहेब जी कौन हैं?

सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी श्री गुरु नानक देव जी को बेई नदी पर मिले थे। कबीर साहेब जी ने उन्हें सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया और उन्हें सच्चखंड लेकर गए थे। कबीर साहेब जी ने ही उन्हें सच्चे मोक्ष मंत्र प्रदान किए थे। आदरणीय श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी अमृत वाणी में कबीर परमात्मा की महिमा बताई है। श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी बाणी में बताया है कि परमेश्वर कबीर साहेब जी उन्हें जिंदा महात्मा रूप में मिले थे, वही मेरे गुरु हैं और वे ही पूर्ण परमेश्वर हैं।


 

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यदि उपरोक्त सामग्री के संबंध में आपके कोई प्रश्न या सुझावहैं, तो कृपया हमें [email protected] पर ईमेल करें, हम इसे प्रमाण के साथ हल करने का प्रयास करेंगे।
Aakriti Sharma

आप यह बात इतने यकीन के साथ कैसे कह सकते हैं कि वेदों में वर्णित भगवान कबीर साहेब हैं? जबकि पवित्र वेदों में कई जगह तो श्री विष्णु जी के नाम का भी ज़िक्र है। श्री विष्णु जी ही सर्वशक्तिमान ईश्वर हैं क्योंकि कबीर साहेब तो श्री विष्णु जी के एक दृढ़ भक्त थे।

Satlok Ashram

आकृति जी, आप जी ने हमारे लेख को पढ़ा और अपने विचार बताए इसके लिए आपका आभार। पवित्र पांचों वेदों में सर्वशक्तिमान ईश्वर की विशेषताओं का, उनके गुणों का वर्णन स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है, जो केवल कबीर साहेब जी में विद्यमान हैं। कबीर साहेब जी सर्व सृष्टि और सभी आत्माओं के जनक हैं। कबीर साहेब जी विष्णु जी के दादा हैं। कबीर साहेब जी की सतह सब पर है। जबकि विष्णु जी सतोगुण युक्त, तीन लोक के मंत्री/भगवान हैं। उनकी शक्तियां और सिद्धियां बहुत सीमित हैं। जबकि कबीर साहेब जी सर्वगुण संपन्न परमेश्वर हैं। इसके प्रमाण भी इस लेख में वर्णित हैं। हम आपसे निवेदन करते हैं कि आप संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखित अनमोल पुस्तक "ज्ञान गंगा" पढ़िए। आप संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचन यूट्यूब चैनल पर भी सुन सकते हैं।

Janaki Verma

श्री विष्णु जी भी सभी युगों में आकर धर्म का निर्माण करने के लिए इस मृत लोक में अवतरित होते हैं। वह बुरे लोगों का नाश करते हैं और अच्छे लोगों की रक्षा करते हैं। वह भी तो सर्वशक्तिमान ईश्वर वाले ही काम करते हैं। इस तरह सर्वशक्तिमान ईश्वर श्री विष्णु जी ही हैं।

Satlok Ashram

जानकी जी, आप जी ने हमारे लेख को पढ़कर अपने विचार व्यक्त किए, इसके लिए आपका धन्यवाद। केवल कबीर साहेब जी ही सभी युगों में प्रकट होते हैं और उनकी सभी लीलाएं और विशेषताएं वेदों में वर्णित हैं। विष्णु जी की लीलाएं, सर्वशक्तिमान ईश्वर की लीलाओं के साथ मेल नहीं खाती। वहीं दूसरी ओर, सर्वशक्तिमान कबीर साहेब जी चारों युगों में इस धरती पर प्रकट होते हैं और विष्णु जी की भी मदद वे ही करते हैं और सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं। केवल पूर्ण परमेश्वर ही सृष्टि रचना का वास्तविक ज्ञान प्रदान करते हैं, जो कि निर्माता के बिना कोई अन्य बता नहीं सकता। सच्चा ज्ञान देने के उद्देश्य से ही सर्वशक्तिमान ईश्वर कबीर साहेब जी आज से लगभग 627 वर्ष पहले काशी में प्रकट हुए थे। पाप का नाश और धर्म का विकास भी कबीर साहेब जी स्वयं ही करते हैं,भले इसका श्रेय विष्णु जी को देते हैं। इस गूढ़ रहस्य को गहराई से जानने के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को यूट्यूब चैनल पर सुनिए। इसके अलावा आप अनमोल पुस्तक "ज्ञान गंगा" भी पढ़ सकते हैं।