यह वृतान्त कबीर साहेब ने धर्मदास जी को दिया
जब परमेश्वर ने सर्व ब्रह्मण्डों की रचना की और अपने लोक में विश्राम करने लगे। उसके बाद हम सभी काल के ब्रह्मण्ड में रह कर अपना किया हुआ कर्मदण्ड भोगने लगे और बहुत दुःखी रहने लगे। सुख व शांति की खोज में भटकने लगे और हमें अपने निज घर सतलोक की याद सताने लगी तथा वहां जाने के लिए भक्ति प्रारंभ की। किसी ने चारों वेदों को कंठस्थ किया तो कोई उग्र तप करने लगा और हवन यज्ञ, ध्यान, समाधि आदि क्रियाएं प्रारम्भ की, लेकिन अपने निज घर सतलोक नहीं जा सके क्योंकि उपरोक्त क्रियाएं करने से अगले जन्मों में अच्छे समृद्ध जीवन को प्राप्त होकर (जैसे राजा-महाराजा, बड़ा व्यापारी, अधिकारी, देव-महादेव, स्वर्ग-महास्वर्ग आदि) वापिस लख चौरासी भोगने लगे। बहुत परेशान रहने लगे और परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करने लगे कि हे दयालु ! हमें निज घर का रास्ता दिखाओ। हम हृदय से आपकी भक्ति करते हैं। आप हमें दर्शन क्यों नहीं दे रहे हो ?
यह वृतान्त कबीर साहेब ने धर्मदास जी को बताते हुए कहा कि धर्मदास इन जीवों की पुकार सुनकर मैं अपने सतलोक से जोगजीत का रूप बनाकर काल लोक में आया। तब इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में जहां काल का निज घर है वहां पर तप्तशिला पर जीवों को भूनकर सुक्ष्म शरीर से गंध निकाला जा रहा था। मेरे पहुंचने के बाद उन जीवों की जलन समाप्त को गई। उन्होंने मुझे देखकर कहा कि हे पुरुष ! आप कौन हो? आपके दर्शन मात्र से ही हमें बड़ा सुख व शांति का आभास हो रहा है। फिर मैंने बताया कि मैं पारब्रह्म परमेश्वर कबीर हूं। आप सब जीव मेरे लोक से आकर काल ब्रह्म के लोक में फंस गए हो। यह काल रोजाना एक लाख मानव के सुक्ष्म शरीर से गंध निकाल कर खाता है और बाद में नाना-प्रकार की योनियों में दण्ड भोगने के लिए छोड़ देता है। तब वे जीवात्माएं कहने लगी कि हे दयालु परमेश्वर ! हमारे को इस काल की जेल से छुड़वाओ। मैंने बताया कि यह ब्रह्मण्ड काल ने तीन बार भक्ति करके मेरे से प्राप्त किए हुए हैं जो आप यहां सब वस्तुओं का प्रयोग कर रहे हो ये सभी काल की हैं और आप सब अपनी इच्छा से घूमने के लिए आए हो। इसलिए अब आपके ऊपर काल ब्रह्म का बहुत ज्यादा ऋण हो चुका है और वह ऋण मेरे सच्चे नाम के जाप के बिना नहीं उतर सकता।
जब तक आप ऋण मुक्त नहीं हो सकते तब तक आप काल ब्रह्म की जेल से बाहर नहीं जा सकते। इसके लिए आपको मुझसे नाम उपदेश लेकर भक्ति करनी होगी। तब मैं आपको छुड़वा कर ले जाऊंगा। हम यह वार्ता कर ही रहे थे कि वहां पर काल ब्रह्म प्रकट हो गया और उसने बहुत क्रोधित होकर मेरे ऊपर हमला बोला। मैंने अपनी शब्द शक्ति से उसको मुर्छित कर दिया। फिर कुछ समय बाद वह होश में आया। मेरे चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगा और बोला कि आप मुझ से बड़े हो, मुझ पर कुछ दया करो और यह बताओ कि आप मेरे लोक में क्यों आए हो ? तब मैंने काल पुरुष को बताया कि कुछ जीवात्माएं भक्ति करके अपने निज घर सतलोक में वापिस जाना चाहती हैं। उन्हें सतभक्ति मार्ग नहीं मिल रहा है। इसलिए वे भक्ति करने के बाद भी इसी लोक में रह जाती हैं। मैं उनको सतभक्ति मार्ग बताने के लिए और तेरा भेद देने के लिए आया हूं कि तूं काल है, एक लाख जीवों का आहार करता है और सवा लाख जीवों को उत्पन्न करता है तथा भगवान बन कर बैठा है। मैं इनको बताऊंगा कि तुम जिसकी भक्ति करते हो वह भगवान नहीं, काल है। इतना सुनते ही काल बोला कि यदि सब जीव वापिस चले गए तो मेरे भोजन का क्या होगा ? मैं भूखा मर जाऊंगा। आपसे मेरी प्रार्थना है कि तीन युगों में जीव कम संख्या में ले जाना और सबको मेरा भेद मत देना कि मैं काल हूं, सबको खाता हूं। जब कलियुग आए तो चाहे जितने जीवों को ले जाना। ये वचन काल ने मुझसे प्राप्त कर लिए। कबीर साहेब ने धर्मदास को आगे बताते हुए कहा कि सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग में भी मैं आया था और बहुत जीवों को सतलोक लेकर गया लेकिन इसका भेद नहीं बताया। अब मैं कलियुग में आया हूं और काल से मेरी वार्ता हुई है। काल ब्रह्म ने मुझ से कहा कि अब आप चाहे जितना जोर लगा लेना, आपकी बात कोई नहीं सुनेगा। प्रथम तो मैंने जीव को भक्ति के लायक ही नहीं छोड़ा है। उनमें बीड़ी, सिगरेट, शराब, मांस आदि दुर्व्यसन की आदत डाल कर इनकी वृत्ती को बिगाड़ दिया है। नाना-प्रकार की पाखण्ड पूजा में जीवात्माओं को लगा दिया है। दूसरी बात यह होगी कि जब आप अपना ज्ञान देकर वापिस अपने लोक में चले जाओगे तब मैं (काल) अपने दूत भेजकर आपके पंथ से मिलते-जुलते बारह पंथ चलाकर जीवों को भ्रमित कर दूंगा। महिमा सतलोक की बताएंगे, आपका ज्ञान कथेंगे लेकिन नाम-जाप मेरा करेंगे, जिसके परिणामस्वरूप मेरा ही भोजन बनेंगे। यह बात सुनकर कबीर साहेब ने कहा कि आप अपनी कोशिश करना, मैं सतमार्ग बताकर ही वापिस जाऊंगा और जो मेरा ज्ञान सुन लेगा वह तेरे बहकावे में कभी नहीं आएगा।
सतगुरु कबीर साहेब ने कहा कि हे निरंजन ! यदि मैं चाहूं तो तेरे सारे खेल को क्षण भर में समाप्त कर सकता हूं परंतु ऐसा करने से मेरा वचन भंग होता है। यह सोच कर मैं अपने प्यारे हंसों को यथार्थ ज्ञान देकर शब्द का बल प्रदान करके सतलोक ले जाऊंगा और कहा कि -
सुनो धर्मराया, हम संखों हंसा पद परसाया।
जिन लीन्हा हमरा प्रवाना, सो हंसा हम किए अमाना।।
(पवित्र कबीर सागर में जीवों को भूल-भूलइयां में डालने के लिए तथा अपनी भूख को मिटाने के लिए तरह-2 के तरीकों का वर्णन)
द्वादस पंथ करूं मैं साजा, नाम तुम्हारा ले करूं अवाजा।
द्वादस यम संसार पठहो, नाम तुम्हारे पंथ चलैहो।।
प्रथम दूत मम प्रगटे जाई, पीछे अंश तुम्हारा आई।।
यही विधि जीवनको भ्रमाऊं, पुरुष नाम जीवन समझाऊं।।
द्वादस पंथ नाम जो लैहे, सो हमरे मुख आन समै है।।
कहा तुम्हारा जीव नहीं माने, हमारी ओर होय बाद बखानै।।
मैं दृढ़ फंदा रची बनाई, जामें जीव रहे उरझाई।।
देवल देव पाषान पूजाई, तीर्थ व्रत जप-तप मन लाई।।
यज्ञ होम अरू नेम अचारा, और अनेक फंद में डारा।।
जो ज्ञानी जाओ संसारा, जीव न मानै कहा तुम्हारा।।
(सतगुरु वचन)
ज्ञानी कहे सुनो अन्याई, काटो फंद जीव ले जाई।।
जेतिक फंद तुम रचे विचारी, सत्य शबद तै सबै बिंडारी।।
जौन जीव हम शब्द दृढावै, फंद तुम्हारा सकल मुकावै।।
चौका कर प्रवाना पाई, पुरुष नाम तिहि देऊं चिन्हाई।।
ताके निकट काल नहीं आवै, संधि देखी ताकहं सिर नावै।।
उपरोक्त विवरण से सिद्ध होता है कि जो अनेक पंथ चले हुए हैं। जिनके पास कबीर साहेब द्वारा बताया हुआ सतभक्ति मार्ग नहीं है, ये सब काल प्रेरित हैं। अतः बुद्धिमान को चाहिए कि सोच-विचार कर भक्ति मार्ग अपनाएँ क्योंकि मनुष्य जन्म अनमोल है, यह बार-बार नहीं मिलता। कबीर साहेब कहते हैं कि --
कबीर मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार।
तरूवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर न लगता डारि।।
कबीर साहेब जी की पूजा करने की सही विधि जानने के लिए आधिकारी संत यानि की तत्वदर्शी संत की खोज करनी चाहिए। उसके बाद वह आधिकारी संत नाम दीक्षा में मोक्ष मंत्र प्रदान करेगा और इस का प्रमाण कबीर साहेब की बाणी में भी मिलता है।
कबीर साहेब जी के अनुसार पूर्ण संत या गुरु के बताए अनुसार भक्ति करने से ही ईश्वर की प्राप्ति की जा सकती है। केवल तत्वदर्शी संत ही मोक्ष मंत्र और सच्ची भक्ति प्रदान कर सकता है और सतभक्ति करने से ही साधक मोक्ष का अधिकारी बनता है।
कबीर साहेब जी ने बहुत सी शिक्षाएं दी थीं जिनका वर्णन यहां कुछ शब्दों में नहीं किया जा सकता। कबीर साहेब जी ने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर ज्ञान प्रदान किया था और उनकी मुख्य शिक्षाएं ईश्वर, अध्यात्म, सतभक्ति और मोक्ष के बारे में ही होती थीं।वर्तमान में केवल संत रामपाल जी महाराज जी ही कबीर साहेब जी की शिक्षाओं को विस्तार से समझा रहे हैं।
कबीर साहेब जी से ब्रह्म काल ने वचन लिया था कि सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग में ज्यादा आत्माएं सतलोक यानि कि अमरलोक न लेकर जाएं। उसके बाद ब्रह्म काल ने कबीर साहेब जी से यह भी कहा था कि कलयुग में जितने चाहे मर्जी जीव यानि कि आत्माएं ले जाना। इसके अलावा इन तीन युगों के दौरान मनुष्यों को सभी सांसारिक सुख मिलते रहते हैं। अक्षर ज्ञान व शास्त्रों के ज्ञान की कमी के कारण भी लोग सच्चे ज्ञान को नहीं समझ सके। इसी कारण कबीर साहेब जी ने सभी को अक्षर ज्ञान (शिक्षा) देने और शास्त्र अनुकुल ज्ञान (आध्यात्मिक ज्ञान) प्रदान करने के लिए कलयुग में वर्तमान समय को चुना था। इससे ही आत्माओं को मोक्ष के सच्चे मार्ग को समझने में मदद मिलेगी।
ब्रह्म काल ने कबीर साहेब जी से कहा था कि वह कबीर परमेश्वर जी के नाम पर 12 नकली पंथ स्थापित करेगा। फिर यह सभी पंथ सतलोक के बारे में गलत ज्ञान फैलाएंगे और लोगों को गुमराह किया करेंगे।
ब्रह्म काल ने कबीर परमेश्वर जी से चार वचन लिए थे। 1. पहले तीन युगों यानि कि सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग में कम जीव सतलोक लेकर जाना और फिर कलयुग में जितने मर्जी जीव ले जाना। 2. फिर ब्रह्म काल ने कहा था कि किसी जीव के साथ जबरदस्ती मत करना। केवल उन जीवों को ही सतलोक लेकर जाना जो कबीर साहेब जी (आप जी) के ज्ञान को समझे और स्वीकार करें। 3. लंका तक पहुंचने के लिए रामसेतु पुल के निर्माण में श्री राम जी की सहायता करना। 4. जगन्नाथ मंदिर के निर्माण में सहायता करना।
काल के लोक में कबीर साहेब जी अपने पुत्र जोगजीत के रूप में प्रकट हुए थे।
जब कबीर भगवान जी पहली बार अपने पुत्र जोगजीत के रुप में काल के लोक में आए थे तो उन्होंने देखा कि जीवों को भयंकर पीड़ा का सामना करना पड़ रहा था क्योंकि उन्हें तप्त शिला नामक चट्टानों (तवे) पर भुना जा रहा था। फिर वह जीव तड़फ रहे थे और उनकी पीड़ा भरी चीखें गूंज रही थीं।
कबीर परमेश्वर से सारे वचन लेने के बाद ब्रह्म काल ने कबीर साहेब जी को बताया कि वह जीवों को गुमराह करेगा। फिर वह मनुष्य को बीड़ी-सिगरेट, शराब पीने और मांस खाने जैसी बुरी आदतों में डालेगा। इसके अलावा ब्रह्म काल जीवों को नकली पूजा में लगाएगा। इस तरह कबीर साहेब जी का ज्ञान कोई भी नहीं समझेगा।
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Seema Roy
सभी धर्मों के लोग पूजा के कई तरीके अपनाते हैं और हर समुदाय अपनी पूजा को सही बताता है। यह कैसे संभव है? इसके पीछे की सच्चाई क्या है?
Satlok Ashram
सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान की कमी के कारण लोग कई तरह की पूजा करते हैं क्योंकि आत्मा को परम शांति चाहिए। जिस दिन से यह आत्मा परमात्मा से बिछड़ी है उसी दिन से यह सुख की तालाश में है। इस पृथ्वी का मालिक ब्रह्म काल है और वह भोली आत्माओं को गुमराह रखता है। फिर मनुष्य को गलत साधना में फंसाए रखता है। ब्रह्म काल ऐसा क्यों करता है? कबीर साहेब जी और ब्रह्म काल के वीच क्या बात हुई थी? ऐसे सवालों के जवाब जानने के लिए आप हमारी वेबसाइट पर जाएं और संत रामपाल जी महाराज जी के द्वारा लिखित पुस्तक ज्ञान गंगा पढ़ें।