इस संसार में अनेकों धर्म प्रचलित हैं और प्रत्येक धर्म में कई धार्मिक मान्यताएं की जाती हैं और सभी मनुष्य अपनी धार्मिक क्रियाओं को सही मानकर उस पर आरूढ़ रहते हैं इसलिए यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि पूजा का सही तरीका क्या है और सभी धर्मों के लिए एकमात्र पूज्यनीय भगवान कौन है?
प्रत्येक भक्त की पूजा का उद्देश्य जीवन में सभी प्रकार के सांसारिक लाभ, सुख समृद्धि और मोक्ष प्राप्ति है जिसके लिए वे अपने इष्ट भगवान या देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं। ऐसी ही एक देवी हैं जिनसे लोग धन तो नहीं परंतु विद्या, ज्ञान और बुद्धि मांगते हैं। वह देवी हैं ब्रह्मा जी की पुत्री देवी सरस्वती। लेकिन क्या वास्तव में उनकी पूजा करने से विद्या, ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है? आइए जानते हैं इस लेख के माध्यम से।
देवी सरस्वती को लोकोक्तियों के आधार पर ज्ञान और बुद्धि की देवी के रूप में जाना जाता है, जो संगीत, कला, बुद्धि, भाषण ,विद्या और कला से जुड़ी मानी जाती हैं। इन्हें माता सरस्वती भी कहकर पुकारते हैं। सरस्वती का वाग्देवी, शारदा, वीणावादिनी आदि नामों से भी अभिवादन किया जाता है। ज्ञान की वैदिक देवी सरस्वती को मूर्तियों और चित्रों में एक हाथ में वीणा (संगीत वाद्ययंत्र), पवित्र जल का एक बर्तन (शक्तियों की शुद्धि का प्रतीक) धारण करने वाली चित्रित किया गया है। एक हाथ में आध्यात्मिकता की शक्ति का प्रतीक माला और एक छोटे आकार की किताब उन्हें ज्ञान का प्रतीक बनाती है। हंस और मोर से घिरे कमल के फूल पर विराजमान सरस्वती देवी विद्या, बुद्धि और शिक्षा की प्रतीक मानी गई हैं।
हिन्दू धर्म में प्रतिवर्ष बसंत पंचमी के दिन छात्रों और विद्वानों द्वारा माता सरस्वती की पूजा की जाती है। आमतौर पर शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी कार्यालयों में बसंत पंचमी के दिन ज्ञान प्राप्ति के उद्देश्य और देवी से आशीर्वाद प्राप्त करने के हेतु इसे त्योहार रूप में मनाया जाता है ।
सरस्वती माता के जन्म के संबंध में लोककथाओं और दंतकथाओं में कई तथ्य वर्णित हैं। एक मान्यता अनुसार वह श्री ब्रह्मा के मुख से निकली थीं। यह भी कहा जाता है कि वह देवी शक्ति दुर्गा/प्रकृति/अष्टांगी के शरीर से प्रकट हुईं। हिंदू धर्म की विभिन्न धार्मिक पुस्तकों में उनके जन्म से संबंधित अनेकों तथ्य कहे गए हैं। हालांकि, वास्तविकता यह है कि देवी सरस्वती भगवान ब्रह्मा और देवी सावित्री की बेटी हैं।
एक दिन श्री ब्रह्मा जी के दरबार में युवा देवता ज्ञान सुनने के लिए उपस्थित हुए थे। श्री ब्रह्मा और देवी सावित्री की बेटी देवी सरस्वती को उनकी सहेलियों (देव स्त्रियों) ने विवाह करने के लिए प्रेरित किया और कहा कि आज सुअवसर है आपके पिता के दरबार में सर्व देव मौजूद हैं। आज ही अपने लिए अपना मनपसंद वर चुन लो। अपने लिए वर चुनने की इच्छा से देवी सरस्वती पूरा हार श्रृंगार और सुंदर वस्त्र धारण करके श्री ब्रह्मा जी की सभा में पहुंची। अपनी सभा में सुंदरता की देवी का मनमोहक रूप सजाकर आई सरस्वती को देख ब्रह्मा जी ने अपना आसन छोड़ कर अपनी ही बेटी की सुंदरता पर मोहित होकर कामवासना वश उसे दोनों भुजाओं में जकड़ लिया। ब्रह्मा जी कामवासना वश (विकार वश ) होकर दुष्कर्म करने पर आमदा हुआ ही था कि इतने में भगवान शिव ने वहां प्रकट होकर ब्रह्मा जी के सिर पर थप्पड़ मारा और कहा कि क्या कर रहे हो ब्रह्मा? ब्रह्मा जी को अपनी गलती का एहसास हुआ। भगवान ब्रह्मा ने जल्द ही अपना वह शरीर त्याग दिया। तब उनकी मां देवी दुर्गा ब्रह्म-काल की पत्नी वहां प्रकट हुईं और अपनी शब्द शक्ति से ब्रह्मा जी को उसी उम्र का एक नया शरीर प्रदान किया। संत गरीब दास जी महाराज ने कहा है-
गरीब, बीजक की बातां कहैं, बीजक नाहीं हाथ।
पृथ्वी डोबन उतरे, कह-कर मीठी बात।।
कहन सुनन की करते बाता। कोई न देखा अमृत खाता।।
ब्रह्मा पुत्री देख कर, हो गए डामा डोल।।
हिन्दू धर्म में प्रचलित कथाओं के अनुसार देवी सरस्वती, देवी गायत्री और देवी सावित्री को एक ही माना जाता है। यहाँ तक गलत मान्यता है कि देवी सरस्वती, भगवान ब्रह्मा की पत्नी हैं। लेकिन सच्चाई तो यह है कि तीनों देवियाँ अलग-अलग हैं। देवी सरस्वती, भगवान ब्रह्मा की बेटी है और देवी सावित्री, श्री ब्रह्मा जी की पत्नी हैं और देवी गायत्री को माता दुर्गा ने ब्रह्मा जी को वापिस बुलवाने के लिए अपनी शब्द शक्ति से उत्पन्न किया था।
पवित्र कबीर सागर के अध्याय "अनुराग सागर" पृष्ठ 30 (154) - 37 (161) में प्रमाण मिलता है कि एक बार श्री ब्रह्मा जी हठ करके अपने पिता की खोज के लिये चले गए और उन्होंने तपस्या (हठ योग) प्रारंभ कर दी। लेकिन ब्रह्मा जी को अपने पिता के दर्शन नहीं हुए। ब्रह्मा जी के सृष्टि रचना के कार्य को छोड़कर तपस्या करने चले जाने से काल ब्रह्म के लोक में सृष्टि रचना का कार्य बंद हो गया। काल ब्रह्म के निर्देश पर देवी दुर्गा ने श्री ब्रह्मा को वापिस बुलवाने के लिए अपनी शब्द शक्ति से गायत्री नाम की एक लड़की बनाई और उसे ब्रह्मा को वापस लाने का आदेश दिया। लेकिन गायत्री ने माता दुर्गा के सामने ब्रह्मा की झूठी गवाही देने में साथ दिया और बदले में ब्रह्मा के कहने पर उनके साथ शारीरिक संबंध बनाया और झूठी गवाही देने के लिए भी तैयार हो गई (गवाही ये थी कि ब्रह्मा को पिताजी काल ने दर्शन दिए हैं जबकि काल ने यह प्रतीज्ञा कर रखी है कि वह कभी किसी के सामने नहीं आएगा, ब्रह्मा ने गायत्री से कहा मैं इसी शर्त पर तेरे साथ चलूंगा जब तू मां के सामने मेरी झूठी गवाही देगी)। झूठी गवाही की सच्चाई सामने आने पर माता दुर्गा ने ब्रह्मा और गायत्री दोनों को श्राप दिया।
पवित्र कबीर सागर अध्याय "अनुराग सागर" के पृष्ठ 28 (152) में लिखा है कि माता दुर्गा ने श्री ब्रह्मा का विवाह माता सावित्री से, श्री विष्णु का विवाह माता लक्ष्मी से और श्री शिव का विवाह माता पार्वती से किया।
"श्री ब्रह्मा पुराण" के पृष्ठ 172-173 पर लिखा है कि एक दिन राजा पुरूरवा, श्री ब्रह्मा की सभा में गये। राजा पुरूरवा ने ब्रह्मा जी की पुत्री सरस्वती के सुंदर रूप को देखकर उनसे मिलने की इच्छा व्यक्त की। सरस्वती ने भी हाँ कर दी। सरस्वती नदी के तट पर सरस्वती और पुरूरवा ने अनेकों वर्षों तक पति पत्नी व्यवहार किया अर्थात रति क्रिया की। एक दिन ब्रह्मा जी ने दोनों को विलास करते हुए देख लिया। ब्रह्मा जी ने अपनी बेटी सरस्वती को श्राप दे दिया जिससे सरस्वती, नदी रूप में समा गई और जहाँ पुरूरवा और सरस्वती ने संभोग किया वह पवित्र तीर्थ सरस्वती संगम तीर्थ के रूप में विख्यात हुआ और जहां पुरूरवा ने सरस्वती की व्याकुलता में भगवान शिव की भक्ति की, वह स्थान पुरूरवा तीर्थ के रूप में विख्यात हुआ।
लोक प्रचलित मान्यता है कि देवी सरस्वती ज्ञान और विद्या की दाता हैं। जबकि वेद, गीता और शास्त्रों के अनुसार विद्या, ज्ञान ,सदबुद्धि और सर्व प्रकार के सुखों के प्रदाता केवल और केवल पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी हैं। उनकी भक्ति करने से ही सब प्रकार के सुख , विद्या और ज्ञान भी प्राप्त होता है।
श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 के अनुसार यदि कोई साधक भक्ति , पूजा शास्त्र विरुद्ध अर्थात वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और सूक्ष्म वेद), गीता और धार्मिक ग्रथों को तत्वदर्शी संत से समझे बिना और इनके विपरीत करता है तो यह शास्त्र विरुद्ध साधना और मनमाना आचरण होता है। ऐसी स्थिति में साधक को न सुख प्राप्त होता है, न सिद्धि प्राप्त होती है, न परम गति अर्थात मोक्ष प्राप्त होता है अर्थात् ऐसी साधना करना व्यर्थ है। श्रीमद्भागवत गीता, पांचों वेदों और ग्रंथों में माता सरस्वती की पूजा करने का कोई प्रमाण नहीं मिलता, जिससे सरस्वती जी की पूजा करना शास्त्र विरुद्ध साधना है।
संक्षिप्त श्रीमद् देवी भागवत पुराण, तीसरा स्कन्ध पृष्ठ 123 पर, श्री विष्णु जी, अपनी माता दुर्गा की स्तुति करते हुए कहते हैं मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर हम सभी आपकी कृपा से विद्यमान हैं। हमारा आविर्भाव (जन्म) और तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है अर्थात हम अविनाशी नहीं हैं। जब सरस्वती जी के पिता श्री ब्रह्मा जी (रजोगुण, उत्पत्ति/सृष्टि कर्ता), विष्णु ( सतोगुण , पालन कर्ता) और शिव (तमोगुण, संहार कर्ता) ही अमर नहीं हैं तो उनकी पुत्री अमर कैसे हो सकती है। श्रीमद्भागवत गीता, अध्याय 8 श्लोक 16 में लिखा है कि ब्रह्मलोक तक सब लोक पुनरावृत्ति अर्थात जन्म मरण के चक्र में आते हैं।
संक्षिप्त श्रीमद देवीभागवत पुराण, छठा स्कन्ध अध्याय 10,पृष्ठ - 417 में व्यास जी, जनमेजय राजा को कहते हैं कि यह निश्चय है कि तीर्थ देह सम्बन्धी मैल को साफ कर देते हैं, किन्तु मन के मैल को धोने की शक्ति तीर्थों में नहीं है। चितशुद्ध तीर्थ गंगा आदि तीर्थों से भी अधिक पवित्र माना जाता है। यदि भाग्यवश चितशुद्ध तीर्थ सुलभ हो जाए अर्थात् तत्वदर्शी संतों का सत्संग रूपी तीर्थ प्राप्त हो जाए तो मानसिक मैल के धुल जाने में कोई संदेह नहीं। परन्तु राजन्! इस चितशुद्ध तीर्थ को प्राप्त करने के लिए ज्ञानी पुरूषों अर्थात् तत्वदर्शी सन्तों के सत्संग की विशेष आवश्यकता होती है। अकेले वेद, शास्त्र, व्रत, तप, यज्ञ और दान से चितशुद्ध होना बहुत कठिन है।
श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 15 श्लोक 4, अध्याय 18 श्लोक 64, अध्याय 15 श्लोक 17 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है उत्तम भगवान तो उपरोक्त दोनों प्रभुओं क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरुष से अन्य ही है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है एवं अविनाशी परमेश्वर परमात्मा इस प्रकार कहा गया है उसी की मैं शरण में हूँ और वही मेरा पूज्य देव है। जिसे गीता अध्याय 8 श्लोक 3 में परम अक्षर ब्रह्म कहा गया है। जिसे वेदों में कविर्देव (कबीर साहेब), कुरान में अल्लाह कबीर के नाम से जाना जाता है। जिन्हें आदरणीय संत गरीबदास जी ने बन्दीछोड़ कबीर कहा है।
अनन्त कोटि ब्रह्मांड का, एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सृजन हार।।
हरदम खोज हनोज हाजर, त्रिवैणी के तीर हैं।
दास गरीब तबीब सतगुरु, बन्दी छोड़ कबीर हैं।।
हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया।
जात जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 29 मंत्र 25:-
समिद्धोऽअद्य मनुषो दुरोणे देवो देवान्यजसि जातवेदः।
आ च वह मित्रमहश्चिकित्वान्त्वं दूतः कविरसि प्रचेताः।।25।।
समिद्धः-अद्य-मनुषः-दुरोणे-देवः-देवान्-यज्-असि- जात-वेदः-आ- च-वह-मित्रमहः-चिकित्वान्-त्वम्-दूतः- कविर्-असि-प्रचेताः।
अनुवाद - (अद्य) आज अर्थात् वर्तमान में (दुरोणे) शरीर रूप महल में दुराचार पूर्वक (मनुषः) झूठी पूजा में लीन मननशील व्यक्तियों को (समिद्धः) लगाई हुई आग अर्थात् शास्त्र विधि रहित वर्तमान पूजा जो हानिकारक होती है, अग्नि जला कर भस्म कर देती है ऐसे साधक का जीवन शास्त्रविरूद्ध साधना नष्ट कर देती है। उसके स्थान पर (देवान्) देवताओं के (देवः) देवता (जातवेदः) पूर्ण परमात्मा सतपुरुष की वास्तविक (यज्) पूजा (असि) है। (आ) दयालु , (मित्रमहः) जीव का वास्तविक साथी पूर्ण परमात्मा के (चिकित्वान्) स्वस्थ ज्ञान अर्थात् यथार्थ भक्ति को (दूतः) संदेशवाहक रूप में (वह) लेकर आने वाला (च) तथा (प्रचेताः) बोध कराने वाला (त्वम्) आप (कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर) कबीर (असि) है।
भावार्थ:- जिस समय भक्त समाज को शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण (पूजा) कराया जा रहा होता है उस समय कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्व ज्ञान को प्रकट करते हैं।
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देवी सरस्वती को हिंदू धर्म में बुद्धि और ज्ञान की देवी के रूप में जाना जाता है, जो संगीत, कला, बुद्धि, वाणी और सीखने से भी जुड़ी हैं। देवी सरस्वती को वाग्देवी, शारदा, वीणावादिनी आदि नामों से भी जाना जाता है।
भगवान ब्रह्मा जी देवी सरस्वती के पिता हैं और देवी सावित्री उनकी माता हैं।
नहीं, देवी दुर्गा और देवी सरस्वती एक नहीं हैं। यह दो अलग-अलग देवियां हैं।
वसंत पंचमी/सरस्वती वंदना/सरस्वती पूजा देवी सरस्वती जी की पूजा करने का त्योहार है।
यह एक बहुत बड़ा मिथक है। देवी सरस्वती जी किसी को पूर्ण ज्ञान और बुद्धि प्रदान नहीं करती हैं। देवी सरस्वती जी की पूजा एक मनमाना आचरण है। इसका प्रमाण हमारे किसी भी पवित्र धार्मिक शास्त्र में उपलब्ध नहीं है।
देवी सरस्वती जी स्वयं जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं। इनकी पूजा करने से कदापि मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती।
देवी सरस्वती जी की पूजा करने से किसी को किसी प्रकार का कोई लाभ प्राप्त नहीं होता। केवल तत्वदर्शी संत ही सभी देवी-देवताओं की पूजा करने की सही भक्ति विधि बता सकता है। वे साधक को हमारे पवित्र शास्त्रों के अनुकूल मोक्ष मंत्र प्रदान करता है, जिससे साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्री ब्रह्मा जी देवी सरस्वती के पिता हैं।
'सरस्वती संगम तीर्थ' की स्थापना के बारे में ब्रह्म पुराण में लिखा है कि राजा पुरुरवा और देवी सरस्वती जी के बीच अवैध संबंध बन गए थे। इसी कारण देवी सरस्वती जी के पिता श्री ब्रह्मा जी ने उन्हें श्राप दे दिया था। पिता द्वारा शर्मनाक स्थिति में पकड़े जाने पर देवी सरस्वती जी बहुत शर्मिंदा हुई और नदी में छलांग लगा कर मर गईं। उसके बाद राजा पुरुरवा ने देवी सरस्वती जी के दुख में नदी के तट पर बैठ कर तपस्या की थी। देवी सरस्वती की मृत्यु और पुरूरवा राजा के वहां बैठ कर तपस्या करने के कारण अज्ञानी और महामूर्ख लोगों ने उस स्थान को 'सरस्वती संगम तीर्थ' का नाम दे दिया। फिर सांसारिक सुखों और मोक्ष प्राप्ति के लिए वहां जाने लगे। जबकि ऐसा करना शास्त्र विरुद्ध और भ्रामक है।
देवी सरस्वती जी की पूजा करना मनमाना आचरण है। इनकी पूजा करने के बारे में हमारे किसी भी पवित्र शास्त्र में कोई प्रमाण नहीं है। देवी सरस्वती जी की पूजा करने से साधक को किसी प्रकार का कोई भी लाभ प्राप्त नहीं होता। लेकिन भोले भाले भक्त लोकवेद के आधार पर मनमानी पूजा करते हैं।
यदि उपरोक्त सामग्री के संबंध में आपके कोई प्रश्न या सुझावहैं, तो कृपया हमें [email protected] पर ईमेल करें, हम इसे प्रमाण के साथ हल करने का प्रयास करेंगे।
Smriti Rajput
मैं तो बचपन से सुनती आ रही हूं कि देवी सरस्वती जी हमें ज्ञान और बुद्धि प्रदान करती हैं। यहां तक कि हमारे स्कूल में भी देवी सरस्वती जी की पूजा की जाती है। मैं स्वयं भी पढ़ाई में सफलता हासिल करने और व्यवसाय में कामयाबी हासिल करने के लिए प्रतिदिन देवी सरस्वती जी की पूजा करती हूं। लेकिन इतनी मेहनत करने के बावजूद भी मुझे कोई लाभ नहीं मिल रहा। मेरे सहपाठी तो देवी सरस्वती जी की पूजा भी नहीं करते, फिर भी वह अच्छे अंकों से पास होते हैं। कृपा करके मुझे मेरे करियर में आगे बढ़ने का मार्ग बताएं।
Satlok Ashram
स्मृति जी, आप जी ने हमारे लेख को पढ़ा और अपने विचार हमसे साझा किए इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद। देखिए पूरे हिंदू समाज में शास्त्र विरुद्ध और मनमानी पूजा करने का बोलबाला है। हिंदू विद्वान ब्राह्मणों द्वारा वेद शास्त्रों में लिखित ज्ञान का अनर्थ करके भोले-भाले लोगों को बताया गया और उन्हें मूर्ख बनाया गया है। इन्होंने पूर्ण परमात्मा की भक्ति के बारे में न बता कर 33 कोटि देवी देवताओं को भगवान बना कर पूजा करवा दी। देवी सरस्वती जी हों या अन्य देव इनकी पूजा करना गलत है और ऐसा करना मनुष्य जीवन के साथ खिलवाड़ भी है। शास्त्र विरुद्ध और लोकवेद पर आधारित साधना करने से साधक को किसी प्रकार का कोई लाभ प्राप्त नहीं होता। हमारे पवित्र शास्त्रों में देवी सरस्वती जी की पूजा वंदना करने का कोई प्रमाण विद्यमान नहीं है। सत्य आध्यात्मिक ज्ञान की आज समाज को बेहद ज़रूरत है। सभी स्कूलों, कॉलेजों, संस्थानों, दफ्तरों और घरों में सरस्वती जी की पूजा नहीं बल्कि एक पूर्ण ब्रह्म परमात्मा की पूजा और आरती करनी चाहिए जिससे सभी बच्चों में अच्छे संस्कार आएंगे और वह मन लगाकर पढ़ाई और भक्ति करेंगे और यही बच्चे एक नया और बेहतर समाज तैयार करेंगे। हम आपसे निवेदन करते हैं कि जीवन में लाभ और अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए आप तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेकर पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी की भक्ति करें। आप संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को यूट्यूब चैनल पर भी सुनिए।