भक्त ध्रुव: एक बच्चे से राजा बनने तक की यात्रा


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काल ब्रह्म के लोक में साधकों द्वारा अज्ञानता के परिणामस्वरूप ईश्वर को प्राप्त करने के लिए हठ योग यानी कठिन तपस्या की जाती है। लेकिन 'हठ योग' से साधक को मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। साधक केवल कुछ सिद्धियाँ प्राप्त कर लेते हैं जो व्यर्थ हैं जबकि मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य परमात्मा की सच्ची भक्ति करके मोक्ष प्राप्त करने का है। इतिहास साक्षी है कि कठिन तपस्या से कई श्रद्धालुओं ने शक्तियां तो हासिल की लेकिन वे भगवान को पाने में असफल रहे।

यह लेख ध्रुव नाम के एक ऐसे ऐतिहासिक चरित्र के बारे में हैं, जिसने मनमाना अभ्यास किया और कठोर तपस्या की जिसके परिणामस्वरूप उसे पृथ्वी पर राज्य प्राप्त हुआ, वह राजा बना और फिर भगवान के वरदान के रूप में स्वर्ग में जगह मिली। लेकिन मुक्ति पाने से वंचित रहे।

निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर भक्त ध्रुव के बारे में विस्तार से जाने

  • भक्त ध्रुव की कथा का सार
  • भक्त ध्रुव का जन्म
  • ध्रुव के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़
  • ध्रुव ने हठयोग किया
  • ध्रुव की कठोर तपस्या कैसे हुई सफल?
  • संत गरीबदास जी ने ध्रुव की महिमा बताई

भक्त ध्रुव की कथा का सार

संदर्भ: 'मुक्ति बोध' पुस्तक, अध्याय 'सुमिरन का अंग', वाणी संख्या 103; लेखक जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज।

गरीब, बिना भक्ति क्या होत है, ध्रुवकूं पूछौ जाइ ।

सवा सेर अन्न पावते, अटल राज दिया ताहि।।103।।

भावार्थ:- भक्त ध्रुव और उनकी मां को प्रतिदिन खाने के लिए एक 'सेर' यानी 1.25 किलोग्राम अनाज दिया जाता था। ध्रुव के पिता उत्तानपाद राजा थे। उत्तानपाद की छोटी पत्नी और भक्त ध्रुव की मौसी ने सजा के तौर पर अपनी बड़ी बहन और ध्रुव की माँ सुनीति को एक अलग कमरे में कैद कर दिया था। उन्हें एक दिन में खाने के लिए केवल 1.25 'सेर' अनाज उपलब्ध कराया जाता था।

आइए पृष्ठ संख्या 73-75 पर वर्णित सत्य प्रसंग को विस्तार से पढ़ें

भक्त ध्रुव का जन्म

राजा उत्तानपाद को अपनी पत्नी सुनीति से विवाह के कई वर्षों के बाद भी कोई संतान नहीं हुई। एक दिन नारद जी ने रानी सुनीति से कहा कि 'जब राजा दूसरा विवाह करेंगे तब आपको तथा दूसरी नई पत्नी दोनों को संतान की प्राप्ति होगी।' सुनीति ने अपने माता-पिता से जिद करके अपनी छोटी बहन सुरीति का राजा से विवाह करा दिया। सुरीति इस बात से निराश थी कि उसकी बड़ी बहन ने एक बूढ़े आदमी से शादी कराकर उसकी जिंदगी से खिलवाड़ किया है।

नई पत्नी ने राज्य की सीमा पर पहुंचने पर राजा को यह वादा पूरा करने के लिए मजबूर किया कि 'मैं आपके महल में तभी जाऊंगी जब आप मेरी बड़ी बहन, जो आपकी पहली पत्नी है, को हमारे राजमहल पहुँचने के तुरंत बाद दूसरे घर में भेज देंगे। इसे प्रतिदिन सवा किलो अनाज खाने को देंगे और मेरे गर्भ से उत्पन्न पुत्र को राज्य प्रदान करेंगे।’

राजा ने मजबूरी में यह वादा मान लिया। कुछ वर्षों के बाद बड़ी रानी सुनीति ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम ध्रुव रखा गया। बाद में छोटी रानी सुरीति ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम उत्तम रखा गया। 

ध्रुव के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़

जब ध्रुव 5 वर्ष का था और उत्तम 4 वर्ष का तब उत्तम का जन्मदिन कुछ महीनों बाद मनाया जाना था। छोटी रानी के कहने पर राजा ने उत्तम का जन्मदिन मनाया। ईर्ष्यावश ध्रुव का जन्मदिन मनाने की अनुमति नहीं दी गई। शहर में उत्साह था। ध्रुव ने भी अपने घर से शहर में जन्मदिन समारोह में जाने की जिद की, जो बगीचे से बहुत दूर था। माता सुनीति ने कहा कि 'बेटा, उस नगर में तुम्हारे लिए कोई स्थान नहीं है।' लेकिन ध्रुव बच्चा था इसलिए वह जिद करके चला गया।

राजा सिंहासन पर बैठा था। रानी उसके पास बैठी थी। उत्तम अपनी माँ की गोद में बैठा था। ध्रुव अपने पिता के पास गये और सिंहासन पर उनकी गोद में बैठ गये। सुरीति को पहले से ही ईर्ष्या हो रही थी, वह खड़ी हुई और ध्रुव का हाथ पकड़ लिया और उसे सिंहासन से नीचे फेंक दिया। उसने उसे लात मारी और कहा कि यह जगह दूसरी पत्नी के बेटे के लिए नहीं है। इस पर उत्तम का अधिकार है। ध्रुव रोने लगा और अपने पिता की ओर देखने लगा। उसने सोचा कि पिता उसे बुलाएँगे और फिर अपने साथ बिठाएँगे। पर ऐसा नहीं हुआ।

बाकी मंत्री भी आसपास बैठे थे। वहाँ नाच-गाना चल रहा था। इस घटना को हर कोई देख रहा था। ध्रुव रोता हुआ अपनी माँ के पास गया। मां को पहले से ही पता था कि उसके बेटे के साथ क्या होगा। आते ही उसने अपने बेटे को गले से लगा लिया और बोली, 'बेटा! इसलिए मैंने तुम्हें वहां जाने से मना किया था। ध्रुव ने अपनी माँ से पूछा, "माँ, राजा कौन बनता है?” माँ ने कहा, "बेटा! भगवान राजा बनाता है।” उन्होंने पूछा, 'भगवान कहां हैं? उनकी प्राप्ति कैसे होती है?’ माता ने सहज भाव से कहा कि ‘जंगल में तपस्या करने से भगवान मिलते हैं।’ ध्रुव ने कहा, 'माँ! मैं वन में जाकर तपस्या करके भगवान को प्राप्त करूँगा और राजा बनूँगा।’ यह कहकर उन्होंने घर त्यागने का निश्चय कर लिया और जंगल जाने के लिए तैयार हो गये।

उसी समय रानी ने एक सेवक के माध्यम से राजा को संदेश भेजा कि 'ध्रुव जंगल जाने की जिद कर रहा है, उसका ख्याल रखना।' राजा तुरंत वहां आये और ध्रुव से बोले 'बेटा! ऐसा मत करो।  मैं तुम्हें राज्य का आधा हिस्सा दूंगा।’ ध्रुव ने कहा 'नहीं, तुम्हें छोटी माँ से डर लगता है। तुम नहीं दे पाओगे। मैं परमेश्वर से राज्य प्राप्त करूंगा।’ यह कहकर वह घर छोड़कर रोता हुआ चला गया।

ध्रुव ने हठ योग किया

रास्ते में ध्रुव की मुलाकात नारद जी से हुई। उन्होंने पूछा, 'तुम कहां जा रहे हो?’ ध्रुव ने कहा, 'मेरी मौसी ने मुझे ठेस पहुंचाई (लात मारी) है और मुझे मेरे पिता से दूर कर दिया और कहा कि तुम्हें इस राज्य का अधिकार नहीं है, उत्तम का अधिकार है। मेरी माँ ने मुझसे कहा कि ईश्वर राज्य प्रदान करता है। ऋषि! मैं तप करके भगवान को प्राप्त करूंगा और राज्य की मांग करूंगा।' ऋषि नारद जी ने कहा, 'पहले एक गुरु बनाओ। गुरु के बिना धार्मिक आचरण व्यर्थ है।’ ध्रुव ने कहा, 'आप मेरे गुरु बनें।' नारद जी ने स्वीकार कर लिया और ध्रुव को दीक्षा दे दी।

ध्रुव ने एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की, उन्होंने कठोर तपस्या/हठ योग किया। उसने न खाया न पिया। बालक की जिद और पूर्व जन्म की भक्ति की शक्ति से भगवान ने छठे महीने में उसे दर्शन दिये और ध्रुव से कहा कि माँगो बालक! क्या माँगते हो? ध्रुव ने कहा कि ‘भगवन्! मुझे अटल राज्य दे दो। भगवान ने कहा कि तेरे को स्वर्ग में राज्य दूँगा। जीवन भर भक्ति कर, घर पर जा।’ जिसके बाद ध्रुव घर आ गए। ध्रुव की भक्ति के कारण छोटी माँ विनम्र हो गई और उसने अपनी बड़ी बहन को सामान्य जीवन जीने की अनुमति दे दी। उत्तम की शादी हो गई। राज्य उत्तम को दे दिया गया। ध्रुव का विवाह भी हो गया।

ध्रुव की कठोर तपस्या सफल हुई

एक बार उत्तम और गंधर्वों के बीच युद्ध हुआ। युद्ध में उत्तम की मृत्यु हो गई। जब ध्रुव को यह जानकारी मिली तो उसने गंधर्वों से युद्ध किया और युद्ध जीत लिया। उत्तम की मृत्यु के बाद ध्रुव को पृथ्वी का राज्य प्राप्त हुआ, उत्तम की पत्नी भी ध्रुव को दे दी गई। इस प्रकार भक्त ध्रुव ने कठिन भक्ति करके स्वर्ग का राज्य प्राप्त किया तथा पृथ्वी का राज्य भी प्राप्त किया।

सुरीति को उसके कर्मों के लिए दंड मिला क्योंकि उसने अपनी बड़ी बहन के साथ दुर्व्यवहार किया था। वह अपने बेटे को राजा के रूप में देखना चाहती थी। वह पुत्र भी जीवित नहीं रहा। उसका जीवन नर्क बन गया।

वाणी का अर्थ यह है कि 'भक्ति के बिना जीवन कैसा?' भक्त ध्रुव की कथा इसी बात की साक्षी है। मां-बेटे को 1.25 किलो अनाज (1250 ग्राम) मिलता था। वे बस सूखी कच्ची रोटी खाते थे। भक्ति करके उसने पृथ्वी तथा स्वर्ग दोनों का राज्य प्राप्त कर लिया। जब तक वह जीवित रहे तब तक उन्होंने पृथ्वी पर राज्य किया। मृत्यु के बाद स्वर्ग में एक ध्रुव मण्डल बनाया गया, उस नगरी पर ध्रुव ने राज्य किया।

व्याख्या:- जब ध्रुव बूढ़े हो गये तो उन्हें शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त हुआ तब उन्होंने शास्त्रों के आधार पर भक्ति की। इसका फल उसे किसी अन्य जन्म में मिलेगा। सबसे पहले ध्रुव स्वर्ग के राज्य की अवधि पूरी करेगा। फिर पृथ्वी पर मनुष्य जन्म प्राप्त होगा। फिर यदि उसे सतलोक का कोई मार्गदर्शक (तत्वदर्शी सन्त) मिल जायेगा तो उसकी मुक्ति हो जायेगी; अन्यथा उसे 84 लाख योनियों के प्राणियों का जीवन प्राप्त होगा। (103)

संत गरीबदास जी ने ध्रुव की महिमा बताई

संदर्भ: जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित 'यथार्थ भक्ति बोध' पुस्तक पृष्ठ 147-148, वाणी संख्या 73

ध्रुव प्रहलाद और जनक विदेही |

सुखदेव संगी परम स्नेही ||73||

पूज्य संत गरीबदास जी महाराज की अमृतवाणी, 'अमरग्रंथ' में संकलित है जिसमें ब्रह्म काल के लोक में कठिन तपस्या करके सिद्धियाँ प्राप्त करने वाले कुछ ऋषिओ के नाम हैं जैसे ऋषि विश्वामित्र, ऋषि दुर्वासा, ऋषि कपिल, गोरखनाथ, भक्त ध्रुव, प्रहलाद, राजा जनक, ऋषि सुखदेव आदि। वह उन सभी का महिमामंडन करते हुए कहते हैं कि ये महापुरुष सम्मान और प्रशंसा के पात्र हैं क्योंकि वे भक्तों के सभी कार्य सम्पूर्ण कर देते हैं जो इनकी क्षमता के अंतर्गत आते हैं।

निष्कर्ष:- ध्रुव को पृथ्वी पर तत्पश्चात स्वर्ग पर राज्य की प्राप्ति आज तक भक्त समाज के बीच एक प्रेरणादायक कहानी रही है। लेकिन सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान के प्रकाश में अब यह स्पष्ट है कि स्वर्ग में जगह की तलाश करना, जो एक अस्थायी निवास स्थान है, मानव का मुख्य उद्देश्य नहीं है। शाश्वत लोक यानी स्थाई स्थान की तलाश ही मानव जन्म का एकमात्र उद्देश्य है। वह अविनाशी लोक सतलोक है जो तत्वदर्शी संत की शरण में जाकर सतपुरुष कबीर साहेब की सच्ची भक्ति करने से प्राप्त होता है। ध्रुव की आत्मा को भी मुक्ति मिल सकती है, बशर्ते उसे भक्ति काल के वर्तमान समय में तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज की शरण में मानव जन्म प्राप्त करने का सौभाग्य मिले, जो स्वयं भगवान कबीर हैं जो संपूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं।


 

FAQs : "भक्त ध्रुव: एक बच्चे से राजा बनने तक की यात्रा"

Q.1 इस लेख में वर्णित ध्रुव कौन थे?

ध्रुव एक पुण्य आत्मा थे जिनकी ईश्वर में बहुत गहरी आस्था थी। ध्रुव के पिता का नाम उत्तानपाद और माता का सुनीति था। ध्रुव ने बचपन में ही राज्य प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की जिसके परिणामस्वरूप उसे पृथ्वी पर राज्य प्राप्त हुआ, वह राजा बना और फिर स्वर्ग में भी जगह मिली।

Q.2 ध्रुव को आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा किसने दी थी?

ध्रुव की सौतेली मां, उनकी मां और उनके साथ दुर्व्यवहार किया करती थी और उन्हें राज्य से और पिता के प्रेम से भी वंचित रखती थी। ऐसे समय में ध्रुव की मां ने ही उन्हें ईश्वर की भक्ति करने की प्रेरणा दी थी। उसके बाद ध्रुव ने दृढ़ आस्था के साथ ईश्वर की भक्ति की।

Q. 3 इस लेख के अनुसार ध्रुव ने ईश्वर की प्राप्ति के लिए अपनी खोज कैसे शुरू की थी?

ध्रुव ने ऋषि नारद जी से आध्यात्मिक मार्गदर्शन मांगा था। उन्होंने ध्रुव को जीवन में गुरु का महत्व समझाया। उसके बाद नारद जी ध्रुव के गुरु बने और उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करके उसके अनुसार चलने की प्रेरणा दी।

Q.4 इस लेख के अनुसार ध्रुव ने किस प्रकार की तपस्या और कितने समय तक की थी?

ध्रुव ने एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की, उन्होंने कठोर तपस्या/हठ योग किया। उसने न खाया न पिया। बालक की ज़िद और पूर्व जन्म की भक्ति की शक्ति से भगवान ने छठे महीने में उसे दर्शन दिये।

Q.5 ध्रुव की तपस्या करने का उन्हें क्या लाभ प्राप्त हुआ?

भगवान ने छठे महीने में ध्रुव को दर्शन दिये और ध्रुव से कहा कि माँगो बालक! क्या माँगते हो? ध्रुव ने कहा कि ‘भगवन्! मुझे अटल राज्य दे दो। भगवान ने कहा कि तुझे स्वर्ग में राज्य दूँगा। जीवन भर भक्ति कर, घर पर जा।’ जिसके बाद ध्रुव घर आ गए।

Q.6 ईश्वर से वरदान प्राप्त करने के बाद ध्रुव के जीवन में क्या बदलाव आए?

ध्रुव की भक्ति के कारण उसकी छोटी माँ सुरीति विनम्र हो गई और उसने अपनी बड़ी बहन को सामान्य जीवन जीने की अनुमति दे दी। उसके छोटे भाई उत्तम की शादी हो गई। राज्य उत्तम को दे दिया गया। ध्रुव का भी विवाह हो गया।

Q.7 ध्रुव को पृथ्वी और स्वर्ग दोनों राज्यों की प्राप्ति हुई थी, इसमें भक्ति की क्या महत्ता है?

उत्तम की मृत्यु के बाद ध्रुव को पृथ्वी का राज्य प्राप्त हुआ, उत्तम की पत्नी भी ध्रुव को दे दी गई। इस प्रकार भक्त ध्रुव ने कठिन भक्ति करके पृथ्वी तथा स्वर्ग का राज्य भी प्राप्त किया।


 

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Diksha Rastogi

ध्रुव जैसे भक्तों की अमर कथा पढ़कर मुझे भी ईश्वर में दृढ़ आस्था की प्रेरणा मिलती है। मेरा भी मन करता है कि मैं भी इनकी तरह दृढ़ आस्था से भक्ति करूं। बचपन से ही मेरे मन में स्वर्ग जाने की इच्छा रही है। मैंने भी स्वयं का जीवन ईश्वर की भक्ति करके स्वर्ग प्राप्ति करने के लिए समर्पित कर दिया है।

Satlok Ashram

दीक्षा जी, आप जी ने हमारे लेख को पढ़ा और और अपने विचार व्यक्त किए, इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद। हमें यह जानकर बहुत अच्छा लगा कि आप ईश्वर में दृढ़ आस्था रखती हैं और स्वर्ग प्राप्ति के लिए प्रयासरत हैं। लेकिन आपके लिए यह जानना ज़रूरी है कि श्रीमद्भगवद्गीता जी में वर्णित स्वर्ग, एक नाशवान स्थान है। वहां जाने के बाद भी साधक जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसे रहते हैं। गीता अध्याय 18:62 में वर्णित केवल 'सतलोक' ही ऐसा स्थान है, जहां जाने के बाद साधक पुनर्जन्म के चक्र में नहीं फंसते और मोक्ष की प्राप्ति करते हैं। हम आप जी से निवेदन करते हैं कि आप तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखित पुस्तक "ज्ञान गंगा" को अवश्य पढ़िए। साथ ही आप संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों को यूट्यूब चैनल पर भी सुनते रहें और हमारे पवित्र शास्त्रों से उनके बताए ज्ञान का मिलान भी कर सकते हैं।

Surjit Tyagi

आप जी के लेख में ध्रुव जी की अमर कथा बहुत ही दिलचस्प ढंग से लिखी गई है। लेकिन इस लेख में पूजा और ध्यान लगाने को व्यर्थ बताया गया है। इसमें ‘सतलोक’ नामक स्थान का ज़िक्र किया गया है और मुझे इस स्थान की जानकारी नहीं है क्योंकि अब तक तो मैंने स्वर्ग, श्री शिव जी, श्री विष्णु जी और देवी दुर्गा जैसे देवताओं की पूजा के बारे में सुन रखा था।

Satlok Ashram

सुरजीत जी, आप जी ने हमारे लेख को पढ़कर अपने विचार व्यक्त किए, उसके लिए आपका हार्दिक आभार। देखिए हमारा उद्देश्य लोगों को हमारे पवित्र शास्त्रों में लिखे गूढ़ ज्ञान से अवगत कराना है। सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान से ही साधक जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर अपने मानव जीवन को सफल कर सकता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करने के लिए सच्चे आध्यात्मिक गुरु और ज्ञान का होना आवश्यक है। इस लेख में वर्णित जानकारी हमारे सभी पवित्र शास्त्रों के अनुकूल है। गीता अध्याय 6:16-17 के अनुसार भक्ति शास्त्र अनुकूल करने से ही सफल होती है। गीता अध्याय 16:23 के अनुसार ध्यान लगाने जैसी क्रियाओं को मनमानी पूजा कहा गया है जिसे करने से साधक को कोई लाभ नहीं मिलता है। देखिए सतलोक एक शाश्वत स्थान है जहां जाने के बाद साधक फिर लौटकर इस संसार में कभी नहीं आता और रही बात श्री शिव जी, श्री विष्णु जी और देवी दुर्गा जैसे देवताओं की पूजा करने की तो इनकी पूजा करने वालों को गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में मनुष्यों में नीच कहा गया है। वर्तमान में केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ही मोक्ष प्राप्त करने का सही मार्ग बताते हैं। हम आपसे निवेदन करते हैं कि आप "ज्ञान गंगा" पुस्तक का अध्ययन करें और संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचन सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर सुनें।