"श्रीमद् देवी भागवत पुराण" में कलयुग के ब्राह्मणों की विशेषताओं का वर्णन जिस प्रकार किया गया है वो मन को एक बार विचलित करने मे सफल होता है।
चुकी ये तथ्य वेदों और पुराण मे प्रमाणित होने के कारण यथार्थता का बोध कराते हैं इसलिए इन्हें गलत ना समझने की स्थिति ही मन को सशंकित कर देती है।
जहा साफ तौर पर ये लिखा गया है कि सतयुग, त्रेता, द्वापर मे राक्षस माने जाने वाले कलयुग के ब्राह्मण कहे जाते हैं ।
देखें प्रमाण
श्रीमद् देवी भागवत पुराण, पृष्ठ 414, स्कन्द 6, गीता प्रैस गोरखपुर
राजन! उन प्राचीन युगों में जो राक्षस समझे जाते थे, वे कलि में ब्राह्मण माने जाते हैं, क्योंकि अब के ब्राह्मण प्राय: पाखंड करने में तत्पर रहते हैं। दूसरों को ठगना, झूठ बोलना और वैदिक धर्म-कर्मों से अलग रहना --- कलियुगी ब्राह्मणों का स्वाभाविक गुण बन गया है।
श्रीमद् देवी भागवत स्कंद ६, पृष्ठ ४१४, गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित ग्रंथ मे जनमेजय द्वारा 4 युगों मे धर्म की स्थिति से संबंधित प्रश्न मे जो व्यास जी से पुछा उसमे बताया गया है कि जिन्हें पिछले युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर में राक्षस माना जाता था, उन्हें कलयुग (वर्तमान युग) में ब्राह्मण माना जाता है।
वे हमेशा सभी को धोखा देने और अपने अनुयायियों के लिए झूठी व पाखंड पूजाओं को पक्षपोषित करने के लिए आतुर रहते हैं, जो वेदों के अनुकूल नहीं यानि शास्त्र विरुद्ध है।
जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज अपने सत्संग में ब्राह्मण की पहचान को प्रमाणित करके बताते हैं
ब्राह्मण सोए, जो ब्रह्म पहचाने
अर्थात
असली ब्राह्मण वही है जो पूर्ण ब्रह्म को समाज़ में प्रचलित कथाओ से ना पहचानकर धर्मग्रन्थो के आधार पर पहचाने और शस्त्रअनुकूल भक्ति पद्धति का ही अनुसरण करे और कराये।
इस मूल तथ्य को,परमात्मा और धर्म की स्थिति की वास्तविकता को असंख्य धरमगरुओ के विस्तार के बीच सदग्रंथो के यथार्थ ज्ञान से उजागर केवल तत्वादर्शी संत रामपाल जी महाराज ही कर सके है।
निष्कर्ष
"श्रीमद् देवी भागवत पुराण" जैसा बड़ा प्रमाण समाज के सामने होने के बाद ब्राह्मणों की स्थिति के बारे में कुछ कहने को बाकी नहीं रह जाता, जिसमें साफ तौर पर उनकी कलियुगी मानसिकता उस समय से प्रचलित रही जब किसी भी धर्म का सत्यापन नहीं हुआ था, क्योंकि इन पंडितों, ब्राह्मणों, विद्वानों ने सनातन धर्म के समय ही मूर्ति उपासना को प्रचलित कर दिया जबकि देवी दुर्गा स्वयं अन्य भगवान की पूजा की तरफ संकेत करती हैं।
पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 16 श्लोक 23, 24 में मूर्ति पूजा शास्त्र विरुद्ध आचरण होने के कारण मनमाना आचरण बतायी गयी है ।
अतः भक्त समाज के लिये ये बेहद जरूरी हो जाता है कि वो पंडितों द्वारा बतायी गयी दंतकथा पर नहीं सदग्रंथो में वर्णित सत्यकथा को प्रमाण आधार से समझें ताकि पाखंडवाद के भयंकर दुष्परिणामों से बचकर पूर्ण ब्रह्म की प्राप्ति कर सके और मानव जीवन का कल्याण सुनिश्चित हो ।
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी प्रत्येक युग में आते हैं और केवल वे ही पूजनीय हैं। कबीर साहेब जी हमें सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान देने के लिए इस पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। वे कलियुग के आरंभ में अपने असली नाम कबीर नाम से आए थे और वर्तमान में कबीर साहेब भारत के हरियाणा में संत रामपाल जी महाराज जी के रूप में अवतरित हुए हैं।
कलियुग चौथा और अंतिम युग है। चार युगों में सबसे पहले सतयुग आता है, फिर त्रेतायुग, उसके बाद द्वापरयुग और चौथा युग कलियुग होता है।
जैसे सृष्टिकर्ता पूर्ण परमात्मा एक कबीर साहेब जी हैं, ठीक उसी प्रकार 21 ब्रह्माण्ड का मालिक ब्रह्म काल एक राक्षस है।
कलियुग चौथा युग है और यह तीसरे युग त्रेता युग के बाद आता है। पांचवें वेद सूक्ष्म वेद में यह प्रमाण है कि कलियुग के 5505 वर्ष बीतने के बाद कबीर परमेश्वर स्वयं प्रकट होते हैं और मोक्ष मंत्र प्रदान करते हैं। ऐसा प्रत्येक कलयुग में होता है और इस समय में जन्म लेने वाले प्राणियों को भाग्यशाली माना जाता है।
केवल कबीर साहेब जी परमात्मा हैं। इतना ही नहीं पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब अविनाशी, अजेय और दयालु भी हैं। कबीर साहेब जी ही आज से लगभग 625 साल पहले उत्तर प्रदेश के वाराणसी की पवित्र भूमि पर आए थे। इसका प्रमाण हमारे सभी पवित्र धर्म के शास्त्रों में मिलता है। कबीर साहेब से ज़्यादा कोई भी देवता शाक्तिशाली नहीं है.
ब्रह्म काल को ही काला देवता कहा जाता है क्योंकि यह प्रत्येक धर्म के लोगों को सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष मंत्र से वंचित रखा है। ब्रह्म काल को परमेश्वर कबीर जी ने श्राप दिया था कि यह सूक्ष्म मानव शरीर से निकले गंद को हर रोज़ खाया करेगा।यही कारण है कि यह हर रोज़ एक लाख मारता है और सवा लाख उत्पन्न करता है और हमें इस पृथ्वी लोक में फंसाए रखता है।
ब्रह्म काल को सबसे ज़्यादा खतरनाक देवता कहा जाता है क्योंकि कबीर साहेब जी द्वारा इसे दिए श्राप के कारण वह हमें इस पृथ्वी लोक में अपने स्वार्थ के लिए फंसाए रखता है।
पूर्ण परमात्मा केवल एक ही है और उनका नाम कबीर साहेब जी है। केवल कबीर साहेब जी हमारी हर समस्या को दूर और हमारी रक्षा कर सकते हैं। इतना ही नहीं केवल कबीर साहेब ही हमें सच्चा ज्ञान देकर मोक्ष प्रदान कर सकते हैं।
दुर्गा जी के श्राप के कारण ब्रह्मा जी की पूजा नहीं की जाती क्योंकि वह अपने पिता ब्रह्म काल की खोज में गए थे और फिर वापस आकर अपनी मां दुर्गा जी को झूठ बोला था। ब्रह्मा जी ने कहा था कि उन्होंने अपने पिता यानि कि ब्रह्म काल के दर्शन किए हैं तो दुर्गा जी ने क्रोध में आकर उन्हें यह दंड दिया था कि विश्व में कहीं तेरी पूजा नहीं होगी और तेरे वंशज तेरे जैसे झूठ बोलने वाले ब्राह्मण होंगे। पवित्र गीता जी अध्याय 7 श्लोक 25 में भी यही प्रमाण है।
यदि उपरोक्त सामग्री के संबंध में आपके कोई प्रश्न या सुझावहैं, तो कृपया हमें [email protected] पर ईमेल करें, हम इसे प्रमाण के साथ हल करने का प्रयास करेंगे।
Subhash Gupta
ब्राह्मण समाज को सदियों से पवित्र शास्त्रों का ज्ञाता और धार्मिक अनुष्ठानों को करने का आधिकारी माना जाता है, क्यों?
Satlok Ashram
मोक्ष और ईश्वर की प्राप्ति ही मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य है। हमें हमारे पवित्र शास्त्रों के अनुसार भक्ति करनी चाहिए। इसलिए पहले यह महत्त्वपूर्ण कार्य ब्राह्मण समुदाय को सौंपा गया था और बहुत कम लोग शिक्षित हुआ करते थे। लेकिन अब लगभग सभी लोग शिक्षित हैं और सभी अपने धर्मग्रंथ स्वयं पढ़ सकते हैं। इसके अलावा पूजा करने की सही विधि क्या है? भगवान को कैसे प्राप्त किया जा सकता है जैसे सवालों के उत्तर भी स्वयं ही पता लगा सकते हैं। अब हमें किसी ब्राह्मण पर निर्भर रहने की भी जरूरत नहीं है। व्यक्ति को एक सच्चे आध्यात्मिक गुरु की खोज करनी चाहिए और सच्चे मोक्ष मंत्र प्राप्त करने चाहिए। वर्तमान में इस पृथ्वी पर केवल संत रामपाल जी महाराज ही तत्वदर्शी संत हैं जो हमें मोक्ष मंत्र प्रदान कर सकते हैं।