यह प्रश्न सदियों से मानव मन को भ्रमित करता रहा है कि क्या हम जो कर्म करते हैं उसका फल हमें भोगना ही पड़ता है? क्या ऐसी कोई भक्ति विधि है जिससे संचित कर्मों को काटा जा सकता है? इस वीडियो में, तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज कर्म, प्रारब्ध कर्म, और पूर्ण परमात्मा की भक्ति के बारे में विस्तार से बताते हैं। वे यह भी बताते हैं कि कर्मों का फल कैसे काटा जा सकता है और मोक्ष कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
श्री कृष्ण जी के अनुसार नियति को स्वयं भगवान भी नहीं बदल सकते हैं
गांधारी के श्राप "तेरा पूरा कुल तेरा पूरा यदुवंश ऐसे ही नष्ट हो जाएगा" के जवाब में भगवान कृष्ण कहते हैं कि नियति को स्वयं भगवान भी नहीं बदल सकते। युद्ध होना था और कौरवों ने अपने कर्मों का भुगतान किया। जो मिलना है वो सब प्रारब्ध में लिखा है।
प्रारब्ध कर्म
प्रारब्ध कर्म वे कर्म हैं जो हमारे पिछले जन्मों के फलस्वरूप वर्तमान जन्म में प्राप्त होते हैं। इन कर्मों को हम बदल नहीं सकते, और हमें इनका फल भोगना ही पड़ता है। हम जो भी कर्म आज करते हैं, वे हमारे भविष्य के लिए प्रारब्ध कर्म बन जाते हैं।
वेदों और गीता का दृष्टिकोण
वेदों और गीता में स्पष्ट किया गया है कि पूर्ण परमात्मा की भक्ति से घोर से घोर पाप भी नष्ट हो जाते हैं। वेदों में परमात्मा की महिमा का वर्णन है और हमें उसे स्वीकार करना चाहिए। तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, जब हम पूर्ण परमात्मा की सत्य साधना करते हैं, तो हम सभी संचित कर्मों के फल से छुटकारा पा सकते हैं। यह बात ऋग्वेद, मंडल १०, सूक्त १६३, मंत्र १ से सिद्ध हो जाती है
अक्षीभ्यां ते नासिकाभ्यां कर्णाभ्यां छुबुकादधि ।
यक्ष्मं शीर्षण्यं मस्तिष्काज्जिह्वाया वि वृहामि ते ॥१॥
परमात्मा पाप कर्म से हमारा नाश करने वाले हर कष्ट को दूर कर विषाक्त रोग को काटकर हमारे नाक, कान, मुख, जिव्हा, शीर्ष, मस्तिष्क सभी अंग-प्रत्यंगों की रक्षा कर सकते हैं।
निष्कर्ष
कर्म फल से छुटकारा संत रामपाल जी महाराज से सतज्ञान और सतभक्ति लेकर संभव है। इससे हमें प्रारब्ध कर्मों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति में सहायता मिलेगी। अतः अतिशीघ्र उनकी शरण में जाकर नाम दीक्षा लेकर सतभक्ति करके संचित कर्म समाप्त कर सर्व सुख और पूर्ण मोक्ष प्राप्ति के अधिकारी बनें। संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा प्राप्त करने के लिए कॉल करे 8222 88 0541
FAQs : "क्या कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है?"
Q.1 इस वाक्य से क्या तात्पर्य है कि "हम जो बोते हैं, वही काटते हैं?
यह वाक्य बिल्कुल सत्य है कि हम "जो बोते हैं, वही काटते हैं" क्योंकि मनुष्य को अपने किए गए कार्यों/कर्मों (बोने) के परिणाम भुगतने (काटना) पड़ते हैं। यह चक्र पिछले जन्मों में किए गए कर्मों के आधार पर चलता रहता है।
Q.2 इस लेख के अनुसार लोग "जो बोते हैं, वही क्यों काटते हैं?
लोग "जो बोते हैं, वही काटते हैं" क्योंकि यही ईश्वर का नियम है कि मनुष्य को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक किए गए कर्म का एक परिणाम अवश्य प्राप्त होता है, वह परिणाम सकारात्मक यानि कि सुख पहुंचाने वाला या नकारात्मक यानि कि दुख देने वाला हो सकता है। हमारे किए गए कर्मों के आधार पर ही हमारा वर्तमान और भविष्य निर्धारित होता है।
Q. 3 आप जो बोते हैं, वही काटते हैं, यह विचार कहां से आया?
इस लेख में कर्मों के आधार पर निर्धारित सुख और दुखों का उल्लेख है। इसी नियम के अनुसार मनुष्य को अपने कर्म भोगने होते हैं।
Q.4 इस लेख में वर्णित कर्म के दो प्रकार कौन से हैं?
इस लेख में वर्णित कर्म के दो प्रकार हैं, प्रारब्ध कर्म और संचित कर्म। इनसे ही हमारा वर्तमान और भविष्य तय होता है।
Q.5 वीडियो के अनुसार भाग्य को कैसे बदला जा सकता है?
हमारे पवित्र आध्यात्मिक शास्त्रों के अनुसार तत्वदर्शी संत से सतभक्ति प्राप्त करके और उनके द्वारा बताए नियमों व मर्यादा का पालन करने से हम हमारा भाग्य बदल सकते हैं। लेकिन हमें नकली गुरुओं द्वारा बताई गई शास्त्र विरूद्ध साधना को नहीं करना चाहिए।
Q.6 पवित्र वेद और श्रीमद्भागवत गीता जी के अनुसार कर्मों पर विजय कैसे प्राप्त की जा सकती है?
हमारे पवित्र वेद और श्रीमद्भागवत गीता जी में कर्मों के चक्र से मुक्त होने के लिए सर्वोच्च ईश्वर कबीर साहेब जी की भक्ति करनी चाहिए।
Q.7 क्या आप ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 163 मंत्र 1 के अनुसार कर्मों से मुक्ति के महत्त्व को बता सकते हैं?
ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 163 मंत्र 1 में कहा गया है कि "ईश्वर हमारे नाक, कान, मुंह, जीभ, सिर और मस्तिष्क की रक्षा कर सकता है, पाप कर्मों के कारण नष्ट करने वाले सभी कष्टों को दूर करके भयानक रोगों को काट सकता है।" ईश्वर मनुष्य को उसके घोर पाप और असाध्य बीमारियों से बचा सकता है। इससे साधक को कर्मों के चक्र से भी मुक्ति मिल जाती है।
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Jaya Thakur
यह एक कड़वी सच्चाई है कि हमें अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। तब यह बात माननी बहुत कठिन हो जाती है, जब हम अपने पिछले कर्मों के कारण दुख भोग रहे हों। ऐसे बहुत से लोग हैं जो राहत पाने के लिए आध्यात्मिक गुरुओं और विभिन्न देवी देवताओं की ओर रुख करते हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि हमारे कर्मों का प्रभाव इतना गहरा होता है कि हम इसके परिणाम से इतनी आसानी से नहीं बच सकते।
Satlok Ashram
जया जी, आप जी ने हमारे लेख को पढ़कर अपने विचार व्यक्त किए, इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद। देखिए यह सच्चाई है कि प्रत्येक मनुष्य को उसके कर्मों के फल भोगने पड़ते हैं, फिर चाहे वे प्राणी ब्रह्म काल के प्रभाव में हो या अन्य देवी देवताओं के। व्यक्ति को अपने अच्छे और बुरे दोनों कर्मों के परिणामों को भोगना पड़ता है। लेकिन सर्वशक्तिमान कबीर परमेश्वर हमारे दुखों को कम कर सकते हैं। केवल वे ही हमारे पापों को दूर करके हमें पूर्ण शांति प्रदान कर सकते हैं। इस का प्रमाण हमारे पवित्र वेदों में वर्णित है। यह तब ही संभव है जब कोई साधक सच्चे संत अर्थात तत्वदर्शी संत के बताए अनुसार कबीर साहेब जी की भक्ति करेगा। हम आप जी से निवेदन करते हैं कि आप आध्यात्मिक पुस्तक "ज्ञान गंगा" को अवश्य पढ़िए। आप संत रामपाल जी महाराज जी के प्रवचनों को विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी सुन सकते हैं।