आज हम एक ऐसी दुनिया में हैं, जहां लोग अपना नाम बनाने और प्रशंसा के पीछे भाग रहे हैं, जबकि मनुष्य जीवन का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य है एक पूर्ण गुरु को खोजना। जीवन का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य हमारे सामने होने के बावजूद पूर्ण गुरु प्राप्त करने पर किसी का ज्यादा ध्यान नहीं है। इस दिशा में संत रामपाल जी महाराज द्वारा प्रस्तुत आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा यह स्पष्ट करती है कि जीवन में सही आध्यात्मिक गुरु को ढूंढना कितना महत्वपूर्ण है और वह पूर्ण गुरु कौन है।
बहुप्रसिद्ध संतों के साथ इन आध्यात्मिक वार्ताओं को संकलित करके, संत रामपाल जी महाराज ने उनकी गलत पूजा विधि को सफलतापूर्वक जगज़ाहिर कर दिया है ताकि भोले श्रद्धालुओं के सामने सत्य उजागर हो सके।
अगर हम अन्य कबीर पंथी संतों की बात करें, जिसमें प्रकाश मुनि साहेब, मधु परमहंस जी, पारखी अभिलाष दास कबीर पंथी और अन्य शामिल हैं तो उन्हें तो कबीर साहेब के परमेश्वर स्वरूप की पहचान ही नहीं है। यह लोग उन्हें अब भी केवल सतगुरु रूप में स्वीकार करते हैं। उनके साथ अलग-अलग ज्ञान चर्चाओं में संत रामपाल जी ने सतनाम, सारनाम और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग की गलत व्याख्या को उजागर किया है और संत रामपाल जी ने इन संतों के साथ हुई अलग-अलग आध्यात्मिक वार्ताओं के माध्यम से इनकी ग़लतियों को बेनक़ाब भी किया है।
इसके साथ उन्होंने राधा स्वामी पंथ जो कि एक ऐसा पंथ है जिसने लोगों को काफी समय से अपने साथ जोड़ रखा है और उनकी शाखाओं (मथुरा से जय गुरुदेव पंथ जैसी इसकी शाखाओं) की प्रकाशित पुस्तकों से उनके भ्रमित करने वाले आध्यात्मिक ज्ञान का पर्दाफाश किया है। इस पंथ के संस्थापक श्री शिवदयाल जी ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा को शुरू करने से पहले किसी को गुरु नहीं बनाया, जिससे उन्होंने आध्यात्मिकता के मौलिक सिद्धांत का उल्लंघन किया है। यदि उनका कोई गुरु शिष्य वंशावली का आधार ही नहीं है, तो कैसे उनके द्वारा दी गई पूजा पद्धति को प्रमाणिक माना जा सकता है?
अगर हम आर्य समाज के प्रवर्तक दयानंद सरस्वती जी की बात करें तो उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों से आध्यात्मिक ज्ञान में अप्रमाणिक पहलुओं को संत रामपाल जी महाराज जी ने बखूबी बेनक़ाब किया है। पवित्र वेदों के ज्ञाता के रूप में विख्यात दयानन्द जी ने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में पवित्र वेदों के ज्ञान का कोई संकेत नहीं दिया है। उनकी पुस्तकों को पढ़ कर यह भी पता चलता है कि वह नशे के आदी थे। अब यह निर्णय हमें लेना है कि जो व्यक्ति स्वयं नशे का आदी हो उसे समाज सुधारक कैसे कहा जा सकता है?
सिर्फ इतना ही नहीं संत रामपाल जी महाराज ने बहुत ज्ञानी माने जाने वाले शंकराचार्य जी और गीता मनीषी श्री स्वामी ज्ञानानंद जी को भी बेनक़ाब किया है, क्योंकि वे परमेश्वर के रूप आदि की पहचान करने में विफल रहने के बावजूद भी अपने आपको आध्यात्मिक ज्ञानी कहते हैं। जबकि स्वामी ज्ञानानंद जी को तो पवित्र गीता जी में लिखित वास्तविक मोक्ष मंत्रों के बारे में भी कोई ज्ञान नहीं है।
चूंकि ये संत अपने मान सम्मान और कमाई के साधन के उद्देश्य के लिए हमे बेवकूफ बना रहे हैं, इसलिए हमें इन संकलित आध्यात्मिक वार्ताओं को सुनना चाहिए और समझना चाहिए कि हमें ईश्वर के नाम पर कैसे गुमराह किया जा रहा है।