विशेष:- जब ब्रह्म (ज्योति निरंजन) तप कर रहा था हम सभी आत्माऐं, जो आज ज्योति निरंजन के इक्कीस ब्रह्मण्डों में रहते हैं इसकी साधना पर आसक्त हो गए तथा अन्तरात्मा से इसे चाहने लगे। अपने सुखदाई प्रभु सत्य पुरूष से विमुख हो गए। जिस कारण से पतिव्रता पद से गिर गए। पूर्ण प्रभु के बार-बार सावधान करने पर भी हमारी आसक्ति क्षर पुरुष से नहीं हटी। {यही प्रभाव आज भी काल सृष्टी में विद्यमान है। जैसे नौजवान बच्चे फिल्म स्टारों (अभिनेताओं तथा अभिनेत्रियों) की बनावटी अदाओं तथा अपने रोजगार उद्देश्य से कर रहे भूमिका पर अति आसक्त हो जाते हैं, रोकने से नहीं रूकते। यदि कोई अभिनेता या अभिनेत्री निकटवर्ती शहर में आ जाए तो देखें उन नादान बच्चों की भीड़ केवल दर्शन करने के लिए बहु संख्या में एकत्रित हो जाती हैं। ‘लेना एक न देने दो‘ रोजी रोटी अभिनेता कमा रहे हैं, नौजवान बच्चे लुट रहे हैं। माता-पिता कितना ही समझाऐं किन्तु बच्चे नहीं मानते। कहीं न कहीं, कभी न कभी, लुक-छिप कर जाते ही रहते हैं।}
पूर्ण ब्रह्म कविर्देव (कबीर प्रभु) ने क्षर पुरुष से पूछा कि बोलो क्या चाहते हो? उसने कहा कि पिता जी यह स्थान मेरे लिए कम है, मुझे अलग से द्वीप प्रदान करने की कृपा करें। हक्का कबीर (सत् कबीर) ने उसे 21 (इक्कीस) ब्रह्मण्ड प्रदान कर दिए। कुछ समय उपरान्त ज्योति निरंजन ने सोचा इस में कुछ रचना करनी चाहिए। खाली ब्रह्मण्ड(प्लाट) किस काम के। यह विचार कर 70 युग तप करके पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर प्रभु) से रचना सामग्री की याचना की। सतपुरुष ने उसे तीन गुण तथा पाँच तत्व प्रदान कर दिए, जिससे ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने अपने ब्रह्मण्डों में कुछ रचना की। फिर सोचा कि इसमे जीव भी होने चाहिए, अकेले का दिल नहीं लगता। यह विचार करके 64 (चैसठ) युग तक फिर तप किया। पूर्ण परमात्मा कविर् देव के पूछने पर बताया कि मुझे कुछ आत्मा दे दो, मेरा अकेले का दिल नहीं लग रहा। तब सतपुरुष कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) ने कहा कि ब्रह्म तेरे तप के प्रतिफल में मैं तुझे और ब्रह्मण्ड दे सकता हूँ, परन्तु मेरी आत्माओं को किसी भी जप-तप साधना के फल रूप में नहीं दे सकता। हाँ, यदि कोई स्वेच्छा से तेरे साथ जाना चाहे तो वह जा सकता है। युवा कविर् (समर्थ कबीर) के वचन सुन कर ज्योति निरंजन हमारे पास आया। हम सभी हंस आत्मा पहले से ही उस पर आसक्त थे। हम उसे चारों तरफ से घेर कर खड़े हो गए। ज्योति निंरजन ने कहा कि मैंने पिता जी से अलग 21 ब्रह्मण्ड प्राप्त किए हैं। वहाँ नाना प्रकार के रमणीय स्थल बनाए हैं। क्या आप मेरे साथ चलोगे? हम सभी हंसों ने जो आज 21 ब्रह्मण्डों में परेशान हैं, कहा कि हम तैयार हैं यदि पिता जी आज्ञा दें तब क्षर पुरुष पूर्ण ब्रह्म महान् कविर् (समर्थ कबीर प्रभु) के पास गया तथा सर्व वार्ता कही। तब कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) ने कहा कि मेरे सामने स्वीकृति देने वाले को आज्ञा दूंगा। क्षर पुरुष तथा परम अक्षर पुरुष (कविरमितौजा) दोनों हम सभी हंसात्माओं के पास आए। सत् कविर्देव ने कहा कि जो हंस आत्मा ब्रह्म के साथ जाना चाहता है हाथ ऊपर करके स्वीकृति दे। अपने पिता के सामने किसी की हिम्मत नहीं हुई। किसी ने स्वीकृति नहीं दी। बहुत समय तक सन्नाटा छाया रहा। तत्पश्चात् एक हंस आत्मा ने साहस किया तथा कहा कि पिता जी मैं जाना चाहता हूँ। फिर तो उसकी देखा-देखी (जो आज काल (ब्रह्म) के इक्कीस ब्रह्मण्डों में फंसी हैं) हम सभी आत्माओं ने स्वीकृति दे दी। परमेश्वर कबीर जी ने ज्योति निरंजन से कहा कि आप अपने स्थान पर जाओ। जिन्होंने तेरे साथ जाने की स्वीकृति दी है मैं उन सर्व हंस आत्माओं को आपके पास भेज दूंगा। ज्योति निरंजन अपने 21 ब्रह्मण्डों में चला गया। उस समय तक यह इक्कीस ब्रह्मण्ड सतलोक में ही थे।
तत् पश्चात पूर्ण ब्रह्म ने सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को लड़की का रूप दिया परन्तु स्त्री इन्द्री नहीं रची तथा सर्व आत्माओं को (जिन्होंने ज्योति निरंजन (ब्रह्म) के साथ जाने की सहमति दी थी) उस लड़की के शरीर में प्रवेश कर दिया तथा उसका नाम आष्ट्रा (आदि माया/ प्रकृति देवी/ दुर्गा) पड़ा तथा सत्य पुरूष ने कहा कि पुत्री मैंने तेरे को शब्द शक्ति प्रदान कर दी है जितने जीव ब्रह्म कहे आप उत्पन्न कर देना। पूर्ण ब्रह्म कविर्देव (कबीर साहेब) अपने पुत्र सहज दास के द्वारा प्रकृति को क्षर पुरुष के पास भिजवा दिया। सहज दास जी ने ज्योति निरंजन को बताया कि पिता जी ने इस बहन के शरीर में उन सर्व आत्माओं को प्रवेश कर दिया है जिन्होंने आपके साथ जाने की सहमति व्यक्त की थी तथा इसको पिता जी ने वचन शक्ति प्रदान की है, आप जितने जीव चाहोगे प्रकृति अपने शब्द से उत्पन्न कर देगी। यह कह कर सहजदास वापिस अपने द्वीप में आ गया।
युवा होने के कारण लड़की का रंग-रूप निखरा हुआ था। ब्रह्म के अन्दर विषय-वासना उत्पन्न हो गई तथा प्रकृति देवी के साथ अभद्र गति विधि प्रारम्भ की। तब दुर्गा ने कहा कि ज्योति निरंजन मेरे पास पिता जी की प्रदान की हुई शब्द शक्ति है। आप जितने प्राणी कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूँगी। आप मैथुन परम्परा शुरु मत करो। आप भी उसी पिता के शब्द से अण्डे से उत्पन्न हुए हो तथा मैं भी उसी परमपिता के वचन से ही बाद में उत्पन्न हुई हूँ। आप मेरे बड़े भाई हो, बहन-भाई का यह योग महापाप का कारण बनेगा। परन्तु ज्योति निरंजन ने प्रकृति देवी की एक भी प्रार्थना नहीं सुनी तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्री इन्द्री (भग) प्रकृति को लगा दी तथा बलात्कार करने की ठानी। उसी समय दुर्गा ने अपनी इज्जत रक्षा के लिए कोई और चारा न देख सुक्ष्म रूप बनाया तथा ज्योति निरंजन के खुले मुख के द्वारा पेट में प्रवेश करके पूर्णब्रह्म कविर् देव से अपनी रक्षा के लिए याचना की। उसी समय कविर्देव (कविर् देव) अपने पुत्र योग संतायन अर्थात् जोगजीत का रूप बनाकर वहाँ प्रकट हुए तथा कन्या को ब्रह्म के उदर से बाहर निकाला तथा कहा कि ज्योति निरंजन आज से तेरा नाम ‘काल‘होगा। तेरे जन्म-मृत्यु होते रहेंगे। इसीलिए तेरा नाम क्षर पुरुष होगा तथा एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों को प्रतिदिन खाया करेगा व सवा लाख उत्पन्न किया करेगा। आप दोनों को इक्कीस ब्रह्मण्ड सहित निष्कासित किया जाता है। इतना कहते ही इक्कीस ब्रह्मण्ड विमान की तरह चल पड़े। सहज दास के द्वीप के पास से होते हुए सतलोक से सोलह संख कोस (एक कोस लगभग 3 कि. मी. का होता है) की दूरी पर आकर रूक गए।
विशेष विवरण - अब तक तीन शक्तियों का विवरण आया है।
1. पूर्णब्रह्म जिसे अन्य उपमात्मक नामों से भी जाना जाता है, जैसे सतपुरुष, अकालपुरुष, शब्द स्वरूपी राम, परम अक्षर ब्रह्म/पुरुष आदि। यह पूर्णब्रह्म असंख्य ब्रह्मण्डों का स्वामी है तथा वास्तव में अविनाशी है।
2. परब्रह्म जिसे अक्षर पुरुष भी कहा जाता है। यह वास्तव में अविनाशी नहीं है। यह सात शंख ब्रह्मण्डों का स्वामी है।
3. ब्रह्म जिसे ज्योति निरंजन, काल, कैल, क्षर पुरुष तथा धर्मराय आदि नामों से जाना जाता है, जो केवल इक्कीस ब्रह्मण्ड का स्वामी है। अब आगे इसी ब्रह्म (काल) की सृष्टी के एक ब्रह्मण्ड का परिचय दिया जाएगा, जिसमें तीन और नाम आपके पढ़ने में आयेंगे - ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव।
ब्रह्म तथा ब्रह्मा में भेद - एक ब्रह्मण्ड में बने सर्वोपरि स्थान पर ब्रह्म (क्षर पुरुष) स्वयं तीन गुप्त स्थानों की रचना करके ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव रूप में रहता है तथा अपनी पत्नी प्रकृति (दुर्गा) के सहयोग से तीन पुत्रों की उत्पत्ति करता है। उनके नाम भी ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव ही रखता है। जो ब्रह्म का पुत्र ब्रह्मा है वह एक ब्रह्मण्ड में केवल तीन लोकों (पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक तथा पाताल लोक) में एक रजोगुण विभाग का मंत्री (स्वामी) है। इसे त्रिलोकीय ब्रह्मा कहा है तथा ब्रह्म जो ब्रह्मलोक में ब्रह्मा रूप में रहता है उसे महाब्रह्मा व ब्रह्मलोकीय ब्रह्मा कहा है। इसी ब्रह्म (काल) को सदाशिव, महाशिव, महाविष्णु भी कहा है।
श्री विष्णु पुराण में प्रमाण:- चतुर्थ अंश अध्याय 1 पृष्ठ 230 - 231 पर श्री ब्रह्मा जी ने कहा:- जिस अजन्मा, सर्वमय विधाता परमेश्वर का आदि, मध्य, अन्त, स्वरूप, स्वभाव और सार हम नहीं जान पाते (श्लोक 83) जो मेरा रूप धारण कर संसार की रचना करता है, स्थिति के समय जो पुरूष रूप है तथा जो रूद्र रूप से विश्व का ग्रास कर जाता है, अनन्त रूप से सम्पूर्ण जगत् को धारण करता है। (श्लोक 86)
FAQs about "आत्माऐं काल के जाल में कैसे फंसी"
Q.1 काल कौन सा देवता है?
काल 21 ब्रह्माण्ड का स्वामी है। वह शैतान/शैतान है, जिसे ज्योति निरंजन, ब्रह्म, क्षर पुरुष भी कहा जाता है और देवी दुर्गा उनकी पत्नी हैं। वह हिंदू त्रिमूर्ति देवताओं यानि कि ब्रह्मा जी, विष्णु जी, महेश जी के पिता हैं, जो आत्माओं को जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसाने के लिए जिम्मेदार हैं। शैतान (काल) का जिक्र पवित्र गीता जी, कुरान शरीफ तथा बाइबिल, पवित्र वेदों में मिलता है। सूक्ष्मवेद में वर्णित ब्रह्मांडों की रचना का सच्चा वर्णन काल की उत्पत्ति और उसके 21 ब्रह्मांडों की स्थापना के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान करता है।
Q.2 आत्माएं काल के चक्र में कैसे फंसी?
पवित्र सद्ग्रन्थों में दिये प्रमाण के अनुसार प्रत्येक प्राणी का सच्चा घर सतलोक ही है। हालाँकि, हम सभी की गलतियों के कारण हम काल के जाल में फंस जाते हैं। जब काल सतलोक में तपस्या कर रहा था, तो हमारे पिता भगवान कबीर की चेतावनी देने के बावजूद आत्माएँ उसकी ओर आकर्षित थीं। फिर काल ने अपनी तपस्या के बदले में सर्वशक्तिमान ईश्वर से आत्माओं को मांगा और जो आत्माएं पहले से ही उसकी ओर आकर्षित थीं, उनकी सहमति से वे काल की दुनिया में फंस गईं और दिन-रात कष्ट उठा रही हैं।
Q. 3 आत्माएं काल के जाल से कैसे बच सकती हैं?
काल के चक्र से बचने के लिए आत्माओं को अपने सच्चे घर और उन्हें बनाने वाले भगवान कविर्देव या कबीर परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त करने की जरूरत है। इतना ही नहीं यह ज्ञान पूर्ण संत से दीक्षा लेकर ही प्राप्त किया जा सकता है, जिससे जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है।
Q.4 काल को समझना क्यों जरूरी है?
काल को समझना जरूरी है क्योंकि यह हमें जन्म और मृत्यु के चक्र से छुटकारा पाने में मदद करता है। काल पूर्ण परमात्मा कबीर जी से बहुत कम शक्तिशाली है और इसने हम आत्माओं को अपने स्वार्थ के लिए फंसाया है। इसी तथ्य को सही से जानकर सतभक्ति करके हम मुक्ति पा सकते हैं।
Q.5 काल से छुटकारा पाने के लिए क्या करें?
काल से छुटकारा पाने के लिए ज्ञान पवित्र गीता, पवित्र वेदों और सच्चिदानंद घन ब्रह्म (भगवान कबीर) के सूक्ष्म वेद जैसे ग्रंथों में दिया गया है। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर सतज्ञान समझ कर मर्यादा में रहकर सतभक्ति करने से काल से छुटकारा होता है।
Q.6 काल और भगवान में क्या अंतर है?
काल एक शैतान है जिसे ब्रह्म या क्षर ब्रह्म भी कहा जाता है और वह 21 ब्रह्मांडों का मालिक है, जिसने सर्वशक्तिमान भगवान कबीर से तपस्या करके यह पद प्राप्त किया है। वह अपने स्वार्थी भरण-पोषण के लिए सभी जीवित प्राणियों को जन्म और मृत्यु के चक्र में फँसाता है। दूसरी ओर, सर्वशक्तिमान भगवान कबीर निर्माता, पालनकर्ता और परोपकारी मार्गदर्शक हैं ,जो आशीर्वाद देते हैं और आत्माओं को काल के जाल से बचने में मदद करते हैं, उन्हें अमरलोक सतलोक में ले जाते हैं।
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Virenda
हमने आपकी वेबसाइट से जाना कि वेदों में प्रमाण है पूर्ण परमात्मा कविर्देव हैं। बचपन में संत कबीर दास जी के बारे में पढ़ा था, क्या ये एक हैं या अलग, कृपया समझाएं?
Satlok Ashram
हाँ यह सही है, वेदों के अनुसार पूर्ण परमात्मा कविर्देव हैं। ये परमात्मा कविर्देव ही सतपुरुष, पार ब्रह्म या परम ब्रह्म के नाम से भी जाने जाते हैं। परमात्मा अपनी प्रिय आत्माओं को सत्य ज्ञान देने के लिए शिशु रूप में कमल के पुष्प पर प्रकट होते हैं। उस समय उनका नाम कबीर परमेश्वर होता है और सामान्य जन उन्हें कबीर दास पुकारते हैं। कबीर परमेश्वर अपने ज्ञान को काव्य के रूप में कहते है जो पाँचवे वेद या सूक्ष्म वेद के रूप में जाना जाता है।