कबीर परमेश्वर (कविर्देव) ने आगे बताया है कि परब्रह्म (अक्षर पुरुष) ने अपने कार्य में गफलत की क्योंकि यह मानसरोवर में सो गया तथा जब परमेश्वर (मैंनें अर्थात् कबीर साहेब ने) उस सरोवर में अण्डा छोड़ा तो अक्षर पुरुष (परब्रह्म) ने उसे क्रोध से देखा। इन दोनों अपराधों के कारण इसे भी सात संख ब्रह्मण्ड़ों सहित सतलोक से बाहर कर दिया। दूसरा कारण अक्षर पुरुष (परब्रह्म) अपने साथी ब्रह्म (क्षर पुरुष) की विदाई में व्याकुल होकर परमपिता कविर्देव (कबीर परमेश्वर) की याद भूलकर उसी को याद करने लगा तथा सोचा कि क्षर पुरुष (ब्रह्म) तो बहुत आनन्द मना रहा होगा, मैं पीछे रह गया तथा अन्य कुछ आत्माऐं जो परब्रह्म के साथ सात संख ब्रह्मण्डों में जन्म-मृत्यु का कर्मदण्ड भोग रही हैं, उन हंस आत्माओं की विदाई की याद में खो गई जो ब्रह्म (काल) के साथ इक्कीस ब्रह्मण्डों में फंसी हैं तथा पूर्ण परमात्मा, सुखदाई कविर्देव की याद भुला दी। परमेश्वर कविर् देव के बार-बार समझाने पर भी आस्था कम नहीं हुई। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) ने सोचा कि मैं भी अलग स्थान प्राप्त करूं तो अच्छा रहे। यह सोच कर राज्य प्राप्ति की इच्छा से सारनाम का जाप प्रारम्भ कर दिया। इसी प्रकार अन्य आत्माओं ने (जो परब्रह्म के सात संख ब्रह्मण्डों में फंसी हैं) सोचा कि वे जो ब्रह्म के साथ आत्माऐं गई हैं वे तो वहाँ मौज-मस्ती मनाऐंगे, हम पीछे रह गये। परब्रह्म के मन में यह धारणा बनी कि क्षर पुरुष अलग होकर बहुत सुखी होगा। यह विचार कर अन्तरात्मा से भिन्न स्थान प्राप्ति की ठान ली। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) ने हठ योग
नहीं किया, परन्तु केवल अलग राज्य प्राप्ति के लिए सहज ध्यान योग विशेष कसक के साथ करता रहा। अलग स्थान प्राप्त करने के लिए पागलों की तरह विचरने लगा, खाना-पीना भी त्याग दिया। अन्य कुछ आत्माऐं उसके वैराग्य पर आसक्त होकर उसे चाहने लगी। पूर्ण प्रभु के पूछने पर परब्रह्म ने अलग स्थान माँगा तथा कुछ हंसात्माओं के लिए भी याचना की। तब कविर्देव ने कहा कि जो आत्मा आपके साथ स्वेच्छा से जाना चाहें उन्हें भेज देता हूँ। पूर्ण प्रभु ने पूछा कि कौन हंस आत्मा परब्रह्म के साथ जाना चाहता है, सहमति व्यक्त करे। बहुत समय उपरान्त एक हंस ने स्वीकृति दी, फिर देखा-देखी उन सर्व आत्माओं ने भी सहमति व्यक्त कर दी। सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को स्त्री रूप बनाया, उसका नाम ईश्वरी माया (प्रकृति सुरति) रखा तथा अन्य आत्माओं को उस ईश्वरी माया में प्रवेश करके अचिन्त द्वारा अक्षर पुरुष (परब्रह्म) के पास भेजा। (पतिव्रता पद से गिरने की सजा पाई।) कई युगों तक दोनों सात संख ब्रह्मण्डों में रहे, परन्तु परब्रह्म ने दुव्र्यवहार नहीं किया। ईश्वरी माया की स्वेच्छा से अंगीकार किया तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्री इन्द्री (योनि) बनाई। ईश्वरी देवी की सहमति से संतान उत्पन्न की। इस लिए परब्रह्म के लोक (सात संख ब्रह्मण्डों) में प्राणियों को तप्तशिला का कष्ट नहीं है तथा वहाँ पशु-पक्षी भी ब्रह्म लोक के देवों से अच्छे चरित्र युक्त हैं। आयु भी बहुत लम्बी है, परन्तु जन्म - मृत्यु कर्माधार पर कर्मदण्ड तथा परिश्रम करके ही उदर पूर्ति होती है। स्वर्ग तथा नरक भी ऐसे ही बने हैं। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) को सात संख ब्रह्मण्ड उसके इच्छा रूपी भक्ति ध्यान अर्थात् सहज समाधि विधि से की उस की कमाई के प्रतिफल में प्रदान किये तथा सत्यलोक से भिन्न स्थान पर गोलाकार परिधि में बन्द करके सात संख ब्रह्मण्डों सहित अक्षर ब्रह्म व ईश्वरी माया को निष्कासित कर दिया।
पूर्ण ब्रह्म (सतपुरुष) असंख्य ब्रह्मण्डों जो सत्यलोक आदि में हैं तथा ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्मण्डों तथा परब्रह्म के सात संख ब्रह्मण्डों का भी प्रभु (मालिक) है अर्थात् परमेश्वर कविर्देव कुल का मालिक है।
श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी आदि के चार-चार भुजाएं तथा 16 कलाएं हैं तथा प्रकृति देवी (दुर्गा) की आठ भुजाएं हैं तथा 64 कलाएं हैं। ब्रह्म (क्षर पुरुष) की एक हजार भुजाएं हैं तथा एक हजार कलाएं है तथा इक्कीस ब्रह्मण्ड़ों का प्रभु है। परब्रह्म (अक्षर पुरुष) की दस हजार भुजाएं हैं तथा दस हजार कला हैं तथा सात संख ब्रह्मण्डों का प्रभु है। पूर्ण ब्रह्म (परम अक्षर पुरुष अर्थात् सतपुरुष) की असंख्य भुजाएं तथा असंख्य कलाएं हैं तथा ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्मण्ड व परब्रह्म के सात संख ब्रह्मण्डों सहित असंख्य ब्रह्मण्डों का प्रभु है। प्रत्येक प्रभु अपनी सर्व भुजाओं को समेट कर केवल दो भुजाएं भी रख सकते हैं तथा जब चाहें सर्व भुजाओं को भी प्रकट कर सकते हैं। पूर्ण परमात्मा परब्रह्म के प्रत्येक ब्रह्मण्ड में भी अलग स्थान बनाकर अन्य रूप में गुप्त रहता है। यूं समझो जैसे एक घूमने वाला कैमरा बाहर लगा देते हैं तथा अन्दर टी.वी. (टेलीविजन) रख देते हैं। टी.वी. पर बाहर का सर्व दृश्य नजर आता है तथा दूसरा टी.वी. बाहर रख कर अन्दर का कैमरा स्थाई करके रख दिया जाए, उसमें केवल अन्दर बैठे प्रबन्धक का चित्र दिखाई देता है। जिससे सर्व कर्मचारी सावधान रहते हैं।
इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा अपने सतलोक में बैठ कर सर्व को नियंत्रित किए हुए है तथा प्रत्येक ब्रह्मण्ड में भी सतगुरु कविर्देव विद्यमान रहते हैं जैसे सूर्य दूर होते हुए भी अपना प्रभाव अन्य लोकों में बनाए हुए है।
FAQs : "परब्रह्म और उसके सात संख ब्रह्मांडों के बारे में जानकारी"
Q.1 अक्षर पुरुष कौन है?
अक्षर पुरुष, जिसे परब्रह्म के नाम से भी जाना जाता है वह 7 शंख (चतुर्भुज) ब्रह्मांड का स्वामी है, जैसा कि पवित्र श्रीमद्भगवद गीता जी अध्याय 15 श्लोक 16 में भी वर्णित है। भगवान कबीर जी ने एक उल्टे लटके विश्व वृक्ष का उदाहरण देकर देवताओं के पदानुसार उनके सभी भाग बताए हैं। इसका वर्णन गीता जी अध्याय 15 श्लोक 1-3 में भी है।
अक्षर पुरुष एक पेड़ है, निरंजन वाकी डार |
तीनों देवा शाखां है, पात रूप संसार ||
Q.2 अक्षर पुरुष की उत्पत्ति कैसे हुई?
जब ब्रह्मांड की रचना करने के बाद सर्वशक्तिमान कबीर परमेश्वर जी ने सृष्टि में बाकी का काम अचिंत नामक अपने पुत्र को सौंपा, जिसे शब्द की शक्ति भी प्रदान की गई थी। तब अचिंत ने प्रकृति निर्माण की प्रक्रिया में अपनी सहायता के लिए अपनी शब्द शक्ति से अक्षर पुरुष की रचना की थी।
Q. 3 अक्षर पुरुष ने कबीर परमेश्वर जी से कितने ब्रह्माण्ड प्राप्त किए?
प्रकृति की रचना से ही काल-ब्रह्म को जाना जा सकता है, जिसने अपने अलग-अलग 21 ब्रह्मांडों को प्राप्त करने के लिए युगों तक तपस्या की थी। फिर काल-ब्रह्म के जाने के बाद अक्षर पुरुष को उसके बिना अकेलापन महसूस हुआ और वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर कबीर जी को भूल गया ,जो उसे सतलोक में सभी सुख सुविधाएं प्रदान कर रहे थे। उसके बाद अलग-अलग ब्रह्माण्ड प्राप्त करने की इच्छा से अक्षर पुरुष ने सारनाम का जाप किया तथा सर्वशक्तिमान कबीर परमेश्वर जी से अपने लिए ब्रह्माण्ड माँगे। इसके अतिरिक्त अक्षर पुरूष सात शंख ब्रह्माण्डों का स्वामी है, जिसका अर्थ है 700 चतुर्भुज ब्रह्माण्ड।
Q.4 क्या अक्षर पुरुष अमर है?
अक्षर पुरुष की आयु बहुत लम्बी होती है, फिर भी वह अमर नहीं है। अक्षर पुरुष का एक दिन 1000 युग के बराबर होता है और उसकी रात्रि भी उतने ही समय की होती है। इसके अलावा हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी अक्षर पुरुष की आयु 100 वर्ष बताई गई है, यहां एक काल-ब्रह्म की मृत्यु के साथ अक्षर पुरुष के जीवन का एक युग पूरा होता है.
Q.5 क्या अक्षर पुरुष विवाहित है और उसकी पत्नी कौन है?
सूक्ष्मवेद के अनुसार अक्षर पुरुष विवाहित है और उसकी पत्नी ईश्वरी माया है, जिसे प्रकृति सुरति भी कहा जाता है।
Q.6 ब्रह्म और परब्रह्म और पारब्रह्म में क्या अंतर है?
पवित्र श्रीमद्भगवद गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में तीन देवताओं का वर्णन किया गया है:
- क्षर पुरुष, जिसे ब्रह्म भी कहा जाता है, यह 21 ब्रह्मांडों का स्वामी है और नाशवान है।
- अक्षर पुरुष, जिसे परब्रह्म भी कहा जाता है, यह 7 संख ब्रह्माण्डों का स्वामी है और नाशवान भी है।
- परम अक्षर पुरुष, जिसे पारब्रह्म भी कहा जाता है, यह अनंत ब्रह्मांडों का मालिक है और अमर है।
Q.7 क्या अक्षर पुरुष के लोक में जाकर आत्मा अमर हो जायेगी?
जी नहीं, अक्षर पुरुष के लोक में भी जन्म और मृत्यु होती है, लेकिन वह प्रतिदिन 1 लाख मनुष्यों को नहीं खाता या उन्हें गर्म तवे पर नहीं भूनता। इसके बजाय, यह आत्माएं अपने कर्मों के आधार पर 84 लाख योनियों में फंसी हुई हैं।
Q.8 क्या पूर्ण मोक्ष प्राप्ति के लिए अक्षर पुरुष के मंत्र का जाप करना आवश्यक है?
पूर्ण मोक्ष प्राप्त करने और अमर निवास, सतलोक तक पहुँचने के लिए व्यक्ति को अक्षर पुरुष के 7 संख चतुर्भुज ब्रह्मांडों को पार करना ही होगा। इसके लिए पवित्र गीता जी अध्याय 17 श्लोक 23 में वर्णित अक्षर ब्रह्म के मंत्र का जाप करके अक्षर पुरूष को आध्यात्मिक धन का भुगतान करना होगा।
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Shikhar
ज़मीन पर और अंतरिक्ष में किए गए प्रयोगों और खोज ने हमारे सौरमंडल से परे हजारों ग्रहों के होने की पुष्टि की है। लेकिन अभी तक भी वैज्ञानिकों के पास पृथ्वी से परे भी जीवन होने का कोई सबूत नहीं है।
Satlok Ashram
पृथ्वी से परे भी जीवन है। पृथ्वी पर जहां हम सभी रहते हैं इसके अलावा 21 ब्रह्मांडों में एक और अलग ही दुनिया है। उस का क्षेत्रफल सात क्वाड्रिलियन ब्रह्मांड जितना है। इसके अलावा वहां पृथ्वी की तरह ही जीव-जंतु रहते हैं और तो और इससे भी परे अमरलोक में जीवन है जहां मोक्ष प्राप्त प्राणी जाते हैं।अधिक विवरण के लिए कृपया हमारी वेबसाइट पर जाएँ।