पवित्र ग्रंथों के अनुसार वास्तविक आदिपुरुष कबीर साहेब, राम नहीं
Published on Jul 22, 2023
आदि यानी सबसे पहला, सर्वप्रथम, और पुरूष अर्थात परमात्मा। सबसे पहला स्वयंभू परमात्मा जिसने सर्व ब्रह्मांड रचे। अपने स्वरूप में अपने जैसे नर आकार मनुष्यों की रचना की। विश्व की आधी से अधिक आबादी भगवान विष्णु के अवतार श्री रामचन्द्र जी उर्फ दशरथ पुत्र राम को आदिपुरुष मानते हैं। लेकिन क्या वाकई में श्री राम उर्फ श्री विष्णुजी जी आदिपुरुष यानि सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता हैं? इस प्रश्न का प्रमाण सहित उत्तर जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख तथा जानिए अपने ही धर्मग्रंथों के अनुसार आदिपुरुष की पहचान व आदिपुरुष अर्थात सृष्टि रचनहार परमात्मा की वास्तविक जानकारी।
इस लेख में हम आपको आदिपुरुष से जुड़े निम्न बिंदु पर जानकारी देंगे
- आदिपुरुष का क्या अर्थ होता है?
- कौन है आदिपुरुष, क्या है उसकी पहचान?
- क्या आदिपुरुष जन्म-मृत्यु के दुष्चक्र में आता है या अविनाशी होता है?
- क्या श्री विष्णु जी के अवतार श्री रामचंद्र हैं आदिपुरुष?
- क्या श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु, श्री शिव जी या इनके पिता काल ब्रह्म हैं आदिपुरुष?
- धर्मग्रंथों के अनुसार, सर्व सृष्टा अर्थात आदिपुरुष परमात्मा कौन है, जिसकी प्रभुता सर्व ब्रह्मांडो पर है?
- सत्यपुरुष, परम अक्षर ब्रह्म, वासुदेव, सच्चिदानंद घन ब्रह्म किस परमेश्वर के उपमात्मक नाम हैं?
आदिपुरूष शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है?
आदिपुरूष दो शब्दों 'आदि' और 'पुरुष' से मिलकर बना है। आदिपुरुष मूल पुरुष को कहते हैं। सबसे पहला पुरुष, किसी वंश या साम्राज्य की पहली कड़ी को आदिपुरुष कहा जाता है, जिससे किसी वंश की शुरुआत होती है सभी जीवों, सृष्टि और ब्रह्माण्डों के रचनहार कबीर परमेश्वर ही आदिपुरुष हैं। कबीर जी से ही हम सभी मनुष्यों की उत्पत्ति हुई है।
कौन है आदिपुरुष?
आदिपुरुष का सीधा अर्थ है "पहला भगवान" अर्थात जिसने सर्व ब्रह्मांडों की सृष्टि की है, हमें बनाया है, जोकि अजर अमर अविनाशी है। इसी आदिपुरुष के विषय में पवित्र गीता अध्याय 2 श्लोक 17 में कहा गया है कि उस अविनाशी को मारने में कोई सक्षम नहीं है। इन्हीं आदिपुरुष अर्थात सबसे पहले परमेश्वर को श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 8 श्लोक 3, अध्याय 15 श्लोक 17, अध्याय 7 श्लोक 19 व अध्याय 17 श्लोक 23 में परम अक्षर ब्रह्म, उत्तम पुरुष, वासुदेव व सच्चिदानंद घन ब्रह्म के नाम से संबोधित किया गया है।
आदिपुरुष की क्या पहचान है?
हमारे धर्मग्रंथ जैसे: चारों वेद, श्रीमद्भागवत गीता, कुरान आदि में पूर्ण परमात्मा यानि आदिपुरुष की अनेकों पहचान बताई गई हैं। पवित्र ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 93 मंत्र 2 तथा मण्डल 10 सूक्त 4 मंत्र 3 में आदिपुरुष की पहचान के विषय में लिखा है कि आदिपुरुष स्वयं सशरीर प्रकट होता है, जब वह शिशु रूप में प्रकट होता है तो उसका जन्म माता के गर्भ से नहीं होता बल्कि वह स्वयं सशरीर प्रकट होता है और सशरीर अपने अमर लोक को चला जाता है। मुस्लिम धर्म की पवित्र पुस्तक कुरान शरीफ, सूरा अल इख़लास 112 आयत 1 - 4 में कहा गया है कि ना वह अल्लाह (परमात्मा) मां से जन्म लेता है और ना ही मरता है अर्थात अविनाशी है। वही कुल का मालिक अर्थात सर्व का सृजनहार है।
क्या ब्रह्मा, विष्णु (श्रीराम) व शिव जी यह तीनों भगवान आदिपुरुष हैं?
तीन लोक (स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक या मृत्युलोक व पाताल लोक) के स्वामी श्री विष्णु जी ने त्रेतायुग में अयोध्या के राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या के गर्भ से राम के रूप में जन्म लिया था और अंत समय में श्री रामचंद्र जी ने सरयू नदी में जल समाधि लेकर अपने प्राण अपनी स्वेच्छा से त्यागे थे। इसी तरह द्वापरयुग में श्री विष्णु जी, श्रीकृष्ण के रूप में माता देवकी के गर्भ से जन्मे थे और अंत में एक शिकारी द्वारा छोड़े गए विषाक्त तीर के लगने से उनकी मौत हुई थी। गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद्देवी भागवत के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 4-5 में श्री विष्णु जी अपनी माता दुर्गा की स्तुति करते हुए कहते हैं कि हे माता! आप शुद्ध स्वरूपा हो, मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर तो आपकी कृपा से विद्यमान हैं, हमारा तो अविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है, हम अविनाशी नहीं हैं। देवी पुराण के इस उल्लेख से ये स्पष्ट है कि ये तीनों देवता नाशवान हैं तथा गीता और वेदों के ज्ञान अनुसार यह तीनों देवता आदिपुरुष यानि सृष्टि रचनहार भगवान नहीं हैं।
क्या काल ब्रह्म है आदिपुरुष?
श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 11 श्लोक 32 व अध्याय 8 श्लोक 13 से स्पष्ट है कि गीता बोलने वाला प्रभु काल ब्रह्म है। उसने स्वयं गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5 और अध्याय 10 श्लोक 2 में अपनी स्थिति स्पष्ट की है कि मेरी उत्पत्ति यानि मेरा जन्म-मरण होता है, अर्जुन यह तू नहीं जानता मैं जानता हूँ अर्थात मैं भी नाशवान हूँ। गीता अध्याय 15 श्लोक 1- 4, अध्याय 4 श्लोक 34 में गीता ज्ञान दाता ब्रह्म कहता है कि तत्वदर्शी संत की तलाश करने के पश्चात् उस परमेश्वर के परम पद अर्थात् सतलोक को भली-भाँति खोजना चाहिए, जिसमें गये हुए साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते और जिस परम अक्षर ब्रह्म से सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की है, उस सनातन पूर्ण परमात्मा की ही मैं शरण में हूँ। इससे स्पष्ट है कि काल ब्रह्म से कोई अन्य भिन्न भगवान है जोकि आदिपुरुष है।
हिन्दू धर्म के अनुसार आदिपुरुष कौन है?
चारों वेदों, ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद में वर्णित प्रमाण देख कर जानिए की क्या आदिपुरुष परमात्मा कविर्देव यानि कबीर साहेब जी हैं? पढ़िये वेदों से प्रमाण :
- जिस परमेश्वर की सर्व प्राणियों को चाह है, वह कविर्देव अर्थात कबीर परमेश्वर पूर्ण विद्वान है। उसका शरीर बिना नाड़ी का है, वह वीर्य से बनी पांच तत्व की भौतिक काया रहित है। वह सर्व का मालिक सर्वोपरि सत्यलोक (अमरलोक) में विराजमान है। उस परमेश्वर का तेजपुंज का स्वयं प्रकाशित शरीर है। जो शब्द रूप अर्थात अविनाशी है। वही कविर्देव यानि कबीर साहेब है जो सर्व ब्रह्मण्डों की रचना करने वाला सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार स्वयं प्रकट होने वाला वास्तव में अविनाशी है। – पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8
- जो अचल अर्थात् अविनाशी जगत पिता भक्तों का वास्तविक साथी अर्थात् आत्मा का आधार सबसे बड़ा स्वामी, जगतगुरु तथा विनम्र पुजारी अर्थात् विधिवत् साधक को सुरक्षा के साथ सतलोक ले जाने वाला सर्व ब्रह्मण्डों को रचने वाला काल की तरह धोखा न देने वाले स्वभाव अर्थात् गुणों वाला ज्यों का त्यों वह कबीर परमेश्वर अर्थात् कविर्देव है। – अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र 7
- सर्व सृष्टी रचनहार कुल का मालिक कविर्देव अर्थात् कबीर परमात्मा है जोकि तेजोमय शरीर युक्त है। यही परमात्मा साधकों के लिए पूजा योग्य है। – ऋग्वेद मण्डल 1 सुक्त 1 मंत्र 5
- जो पूर्वोक्त परमात्मा कवियों की भूमिका करके अपना तत्वज्ञान प्रदान करता है वह कविर्देव है अर्थात् वह कबीर प्रभु है, जिसकी प्रभुता सर्व ब्रह्मण्डों के प्रभुओं पर है। वह सदा एक रस रहता है अर्थात् जन्मता व मरता नहीं है यानि अविनाशी, वह मनुष्य सदृश शरीर से सुशोभित है। – ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94 मंत्र 3
- सर्व सृष्टि रचनहार कविर्देव (कबीर साहेब) पूर्ण ईश्वरीय शक्तियुक्त पूर्णब्रह्म के समान मनोहर जो सब ओर से न मारा जाने वाला अर्थात् अविनाशी अपने उपासक भक्त के पाप कर्मों को नष्ट करके पवित्र करने वाला स्वयं कबीर ही है। – संख्या न. 920 सामवेद के उतार्चिक अध्याय न. 5 के खण्ड न. 4 का श्लोक न. 2
- संख्या न. 822 सामवेद उतार्चिक अध्याय 3 खण्ड न. 5 श्लोक न. 8, संख्या न. 968 सामवेद अध्याय न. 6 का खण्ड न. 2 का श्लोक न. 1 और ऋग्वेद मण्डल न. 9 सुक्त न. 20 श्लोक न. 1 में कहा गया है कि प्रथम अर्थात् पुरातन-सनातन अविनाशी परमेश्वर कविर्देव अर्थात कबीर साहेब हैं।
- पूर्ण सृष्टा अर्थात सर्व ब्रह्मांडों का रचनहार परमात्मा कविर्देव (कबीर साहेब) है। – संख्या नं. 1318 सामवेद उतार्चिक अध्याय नं. 10 खण्ड नं. 9 श्लोक नं. 9
मुस्लिम व ईसाई धर्म में अल्लाहु अकबर (आदिपुरुष) का प्रमाण सहित वर्णन
कुरान शरीफ (मजीद), सूरत फुरकानी 25 आयत 52-59 में लिखा है कि वह कबीर अल्लाह है जो कभी मरने वाला नहीं है अर्थात वह अविनाशी है। वह अपने उपासकों के सर्व पापों का नाशक है, उसने ही 6 दिन में सर्व सृष्टि की रचना की है। ऑर्थोडॉक्स जयूइश बाइबिल (OJB) - IYOV 36:5 में लिखा है कि परमात्मा कबीर है, वह किसी से भी नफरत नहीं करता है। वह कबीर है और अपने उद्देश्य में दृढ़ है।
सिख धर्म के अनुसार आदिपुरुष कौन है?
श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 721, राग तिलंग महला 1 की वाणी :
यक अर्ज गुफतम् पेश तो दर कून करतार।
हक्का कबीर करीम तू बेअब परवरदिगार।।
इस शब्द में गुरुनानक देव जी ने कहा है कि, हे! हक्का कबीर अर्थात सतकबीर आप (कून करतार) शब्द शक्ति से रचना करने वाले शब्द स्वरूपी प्रभु अर्थात् सर्व सृष्टि के रचनहार हो, आप ही बेएब निर्विकार (परवरदिगार) सर्व के पालन कर्ता दयालु प्रभु हो। साथ ही, पुस्तक "भाई बाले वाली जन्म साखी" के पृष्ठ 189 पर एक काजी रूकनदीन सूरा के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री नानक देव जी ने कहा है :
खालक आदम सिरजिआ आलम बड़ा कबीर।
काइम दाइम कुदरती सिर पीरां दे पीर।
सयदे (सजदे) करे खुदाई नूं आलम बड़ा कबीर।
अर्थात जिस परमात्मा ने आदम जी की उत्पति की वह सबसे बड़ा परमात्मा कबीर है। वही सर्व उपकार करने वाला है तथा सब गुरुओं में शिरोमणि गुरु है। उस सब से बड़े कबीर परमेश्वर को सिजदा करो अर्थात् प्रणाम करो, उसी की पूजा करो।
आदिपुरुष (सृष्टि उत्पत्तिकर्ता) का संतों की वाणियों में उल्लेख
परमेश्वर प्राप्त संतों जैसे सिख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक देव जी और दादू पंथी संत दादू जी, गरीबदास पंथी संत गरीबदास जी महाराज जी आदि ने अपनी वाणियों में यह बताया है कि आदिपुरुष, परमेश्वर कबीर जी हैं, इन्होंने ही सर्व ब्रह्मांडों की रचना की है। इनका जन्म मां से नहीं होता बल्कि यह स्वयं सशरीर आते हैं और सशरीर वापिस चले जाते हैं। संत गरीबदास जी ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह आदिपुरुष परमेश्वर कबीर वह है जिन्होंने सन् 1398-1518 यानि 120 वर्षों तक काशी बनारस में एक जुलाहे के रूप में लीला की थी, यही कबीर परमेश्वर मुझे (गरीबदास जी), नानक जी, दादू जी और अधम सुल्तान को मिले थे।
गरीब, अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सृजन हार।।
हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया।
जात जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मांड में, बंदी छोड़ कहाय।
सो तो एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।
- संत गरीबदास जी
जिन मोकूँ निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार।
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजन हार।।
- संत दादू जी
आदिपुरुष, कबीर परमेश्वर अपना परिचय स्वयं देते हैं
कबीर, हमहीं अलख अल्लाह हैं, मूल रूप करतार।
अनंत कोटि ब्रह्मांड का, मैं ही सृजनहार।।
हम ही अलख अल्लाह हैं, हमरा अमर शरीर।
अमर लोक से चलकर आए, काटन जम की जंजीर।।
कविः नाम जो बेदन में गावा, कबीरन् कुरान कह समझावा।
वाही नाम है सबन का सारा, आदि नाम वाही कबीर हमारा।।
आदिपुरुष, परमेश्वर कबीर जी अपनी महिमा स्वयं बताते हुए कहते हैं कि "मैं ही वह मूल परमात्मा (अल्लाहु अकबर) हूँ, मैंने ही सर्व ब्रह्मांडों को रचा है, मेरा अजर अमर अविनाशी शरीर है तथा मेरी ही महिमा वेदों में कवि: (कविर्देव) के रूप में है और कुरान में मुझे कबीरन्, कबीरु, अकबीरु, कबीरा, खबीरन आदि कहा गया है। मैं ही सबका मालिक यानि सर्व सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता कबीर हूँ।
कबीर साहेब द्वारा गोरखनाथ को अपना परिचय देना
जो बूझे सोई बावरा, क्या है उम्र हमारी।
असंख युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी।।
कोटि निरंजन हो गए, परलोक सिधारी।
हम तो सदा महबूब हैं, स्वयं ब्रह्मचारी।।
अरबों तो ब्रह्मा गए, उनन्चास कोटि कन्हैया।
सात कोटि शम्भू गए, मोर एक नहीं पलैया।।
कोटिक नारद हो गए, मुहम्मद से चारी।
देवतन की गिनती नहीं है, क्या सृष्टि विचारी।।
नहीं बुढ़ा नहीं बालक, नाहीं कोई भाट भिखारी।
कहैं कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी।।
कबीर परमेश्वर, श्री गोरखनाथ सिद्ध को अपनी आयु का विवरण देते हुए कहते हैं कि असंख युग प्रलय हो गई। करोड़ों ब्रह्म (काल), अरबों ब्रह्मा, 49 करोड़ श्रीकृष्ण (विष्णु), 7 करोड़ शिव भगवान, मृत्यु को प्राप्त होकर पुनर्जन्म प्राप्त कर चुके हैं। लेकिन तब का मैं वर्तमान में भी हूँ अर्थात् अमर हूँ।
ऊपर वर्णित सभी प्रमाणों से यह स्पष्ट होता है कि पूर्ण परमात्मा आदिपुरुष यानी सबसे पहले का स्वयंभू परमात्मा, सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता (सर्व सृष्टि रचनहार) कविर्देव अर्थात कबीर साहेब जी हैं, जिसने 626 वर्ष पहले काशी बनारस में 120 वर्ष तक रहकर जुलाहे की भूमिका निभाई। आदिपुरुष की और अधिक विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए आज ही अपने गूगल प्ले स्टोर से Sant Rampal Ji Maharaj App डाऊनलोड करें या आप Sant Rampal Ji Maharaj Youtube Channel देखें।
निष्कर्ष
सतयुग से मानव परमात्मा प्राप्ति के लिए भक्ति में लगा है लेकिन उसे मार्गदर्शन अर्थात सत्यज्ञान प्राप्त न होने के कारण वह तीनों देवताओं ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी तथा उनके अवतारों को ही आदिपुरुष अर्थात सर्व सृष्टि रचनहार पूर्ण परमात्मा मान बैठा जोकि उसकी भूल थीं। इसलिए भक्त समाज को अपने धर्म शास्त्रों के सत्यज्ञान को जानना बेहद जरूरी है तथा उसी आधार पर भक्ति करना चाहिए। उपरोक्त प्रमाणों से निम्नलिखित निष्कर्ष निकलता है :-
- आदिपुरुष परमात्मा कविर्देव अर्थात कबीर साहेब हैं, इन्होंने ही सर्व सृष्टि की रचना की है। इस परमात्मा की प्रभुता सब पर है। वह जन्मता मरता नहीं है बल्कि अविनाशी है।
- श्री विष्णु अवतार के अवतार श्री रामचन्द्र जी आदिपुरुष परमात्मा नहीं हैं बल्कि इनका जन्म मृत्यु होता है और न ही श्री ब्रह्मा, श्री शिव जी और काल ब्रह्म अविनाशी है।
- आदिपुरुष परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव है लेकिन भाषा भिन्नता के कारण उन्हें कबीरन, कबीर साहेब, बन्दीछोड़ कबीर, हक्का कबीर, सतकबीर आदि नामों से जाना जाता है।
- कबीर परमात्मा का जन्म माता के गर्भ से नहीं होता बल्कि वह स्वयं शरीर प्रकट होता है और स्वयं वापिस चला जाता है।
- आदिपुरुष परमात्मा कबीर जी के ही उपमात्मक नाम परम अक्षर ब्रह्म, वासुदेव, सच्चिदानंद घन ब्रह्म इत्यादि हैं।