परमेश्वर कबीर साहेब जी ने बिजली खाँ पठान के राज्य को कैसे बचाया?
Published on Oct 6, 2024
बिजली खाँ पठान, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में गोरखपुर शहर से 25 किलोमीटर दूर मगहर शहर के नवाब थे। वहां आज परमात्मा कबीर जी के नाम पर संत कबीर नगर नाम से एक अलग जिला है। लगभग 600 साल पहले काशी, उत्तर प्रदेश में परमात्मा कबीर जी प्रकट हुए थे तथा बिजली खां पठान उनके समकालीन शासक थे। मगहर के नवाब बिजली खां पठान भगवान कबीर साहेब जी के अद्भुत ज्ञान और चमत्कारों से प्रेरित होकर उनके भक्त बन गए थे जिसकी कहानी कुछ इस प्रकार है।
बिजली खाँ पठान ने कबीर साहेब जी की शरण कैसे ली?
करीब 600 साल पहले मगहर में हिन्दू और मुसलमानों की आबादी बराबर संख्या में थी। एक बार मगहर में भयंकर सूखा पड़ा। मगहर के पास बहने वाली आमी नदी भी शिव जी के श्राप से सूख गई थी। उस संकट से छुटकारा पाने के लिए हिंदू और मुसलमान दोनों ने अपनी-अपनी साधनाएँ कीं, लेकिन सब व्यर्थ रही। अपनी जनता को संकट में देखकर नगर का राजा और अधिक परेशान हो गया। बिजली खां पठान ने भी हिंदू और मुस्लिम दोनों ही तरह के समाधान करवाए लेकिन इनसे कोई फायदा नहीं हुआ। ज्योतिषशास्त्रियों ने नवाब से कहा कि आपके यहां अगले 2 वर्षों तक वर्षा का कोई योग नहीं है, इस क्षेत्र में उतना पुण्य नहीं है कि वर्षा हो सके। तब मगहर में रहने वाले निवासियों के कुछ रिश्तेदारों ने भगवान कबीर जी के बारे में बताया कि - "वे स्वयं पूर्ण भगवान हैं। वे जो चाहे वह कर सकते हैं।''
उन निवासियों ने राजा से इस बारे में चर्चा की। राजा बिजली खां पठान ने, काशी नरेश वीर देव सिंह बघेल को पत्र भेजकर कहा कि पानी की कमी के कारण उन्हें भारी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। "हमने काशी के एक संत कबीर साहेब जी के बारे में सुना है, जो इस समस्या को समाप्त कर सकते हैं। कृपया उस संत को यहां मगहर भेज दें। यहां वर्षा नहीं हो रही है।"
वीर देव सिंह बघेल ने पहले ही भगवान कबीर साहेब जी से नाम दीक्षा ले ली थी। उन्होंने परमेश्वर कबीर जी के सत्संग सुने थे और वे परमेश्वर के विधान से भली-भांति परिचित थे। उन्होंने बिजली खां पठान को जवाब में लिखा, "आप कह रहे हैं कि आप पानी के बिना मर रहे हैं किंतु आप मगहर में परम संत को आदेश देकर बुला रहे हैं? आपको स्वयं यहां आना चाहिए और उनसे प्रार्थना करनी चाहिए कि वे आप पर दया करें। यदि मैं उन्हें आदेश देकर भेज भी दूं और फिर भी उन्होंने आप पर दया न की तो उनका वहां आना भी व्यर्थ हो जाएगा। वह सामर्थ्यवान संत हैं।"
बिजली खां पठान को वीर सिंह बघेल की बात समझ में आ गई। उन्होंने काशी में उनका पत्र देने गए सैनिकों से पूछा "क्या तुमने वहां किसी और से पूछा? वह संत कैसे हैं?" सैनिकों ने कहा, "हमने जिस किसी से भी पूछा, सभी ने कहा कि वह स्वयं सर्वोच्च भगवान हैं। वह जिस पर भी अपनी दया दिखाते हैं, उनकी सभी परेशानियां खत्म हो जाती हैं।" इसके बाद बिजली खां पठान अपने सैनिकों के साथ काशी की ओर प्रस्थान कर गये।
वहां पहुंच कर वीर देव सिंह बघेल और बिजली खां पठान दोनों परमेश्वर कबीर जी के दर्शन करने के लिए उनकी कुटिया में गये। वीर देव सिंह बघेल ने परमेश्वर कबीर जी के सामने दण्डवत प्रणाम किया। बिजली खां पठान ने परमेश्वर कबीर जी को अपनी समस्या बताई। बिजली खां पठान की समस्या सुनकर, परमेश्वर कबीर जी ने कहा, “तब तो तुम्हें साधु-संतों के पास जाने की ज़रूरत है। मैं तो सिर्फ एक ग़रीब व्यक्ति हूं और भगवान की भक्ति करता हूं।” बिजली खां पठान ने कहा “हमने कई अन्य संतों से समस्या को हल करवाने का प्रयास किया है। हिंदू और मुस्लिम दोनों धार्मिक साधकों द्वारा की जाने वाली पूजाएँ भी करवा कर देख लीं, लेकिन कुछ भी काम नहीं आया। अब हम आपकी शरण में हैं, कृपया आप हम पर दया करें।" भगवान कबीर जी ने ख़ुद को छिपाकर कहा, "ठीक है। मैं सिर्फ भगवान का भक्त हूं, मैं उनसे प्रार्थना कर सकता हूँ।"
बिजली खां पठान ने परमेश्वर कबीर जी को घोड़े पर बैठाया और मगहर की ओर चल पड़े। मगहर से लगभग 25 किमी दूर गोरखपुर में गोरखनाथ जी की बड़ी प्रसिद्धि थी। गोरखनाथ जी पितृ लोक (पूर्वजों के स्थान) में थे, वहां उनको बड़ी चिंता हुई कि उनके क्षेत्र में किसी और अन्य संत की प्रशंसा होगी। यह सोचकर गोरखनाथ जी ने साधु का रूप धारण कर लिया और भगवान कबीर जी के मार्ग में मगहर के पास एक छोटे से सूखे हुए तालाब पर बैठ गये। परमेश्वर कबीर जी ने गोरखनाथ जी को देखा। गोरखनाथ जी को यह भी पता था कि बिजली खां पठान तथा अन्य लोग भी उन्हें देख रहे हैं और वे सोचेंगे कि यदि वे (भगवान कबीर जी) कार्य नहीं कर पाएंगे तो वे उस साधु से पूछेंगे।
जब तक हम पूर्ण रूप से परमेश्वर कबीर जी के प्रति समर्पित नहीं हो जाते, तब तक वह हमारी सहायता नहीं कर सकते। इसी उद्देश्य से परमेश्वर कबीर जी ने कहा, "देखो बिजली खां! यह महात्मा यहां बैठे हैं। इनसे प्रार्थना करो। यह एक महान संत हैं। यह जो चाहे वो कर सकते हैं।”
बिजली खां घोड़े से उतरे और गोरखनाथ जी से अपनी समस्या का समाधान करने का अनुरोध किया। गोरखनाथ जी वहाँ मौजूद सूखी हुई झील के अंदर गये और अपना त्रिशूल जमीन में गाड़कर उसे बाहर निकाला। वहां से पानी बहने लगा और झील पूरी तरह पानी से भर जाने पर रुका। परमेश्वर कबीर जी ने कहा, "देखो बिजली खां! तुम इतनी दूर काशी से यहाँ पहुँचे! यह महापुरुष तुम्हारे इतने निकट बैठे थे! अब तुम्हारी समस्या हल हो गई या नहीं?"
बिजली खां ने गोरखनाथ जी से कहा- "नहीं, महात्मन्, हमारे जानवर भी इस पानी से एक समय के लिए तृप्त नहीं हो सकते। महात्मन् ! कृपया यहां बारिश करवा दीजिए। तभी हम तृप्त हो पाएंगे।" गोरखनाथ जी ने कहा, "इस क्षेत्र के लोगों में इतने पुण्य नहीं हैं। यहां किसी भी तरह से दो साल तक बारिश नहीं हो सकती। अगर आपको लगता है कि कोई और ऐसा कर सकता है तो किसी और से पूछ लो।"
गोरखनाथ जी किसी को (विशेषकर परमेश्वर कबीर जी को) अपने से अधिक शक्तिशाली नहीं मानते थे। परमेश्वर कबीर जी ने विनम्रतापूर्वक कहा- “अरे नहीं संत जी! हम तो बस आपसे विनती कर रहे थे।” गोरखनाथ जी ने कहा, "किसी और से पूछो कि क्या कोई यहां बारिश करा सकता है।"
परमेश्वर कबीर जी, गोरखनाथ जी से कुछ दूरी पर बैठ गये और बिजली खां से बोले, ''तुम सब घर जाओ। मैं यहां बैठा हूं और भगवान से प्रार्थना करूंगा।” पर वे सब कैसे जा सकते थे? हर कोई पानी के बिना मर रहा था। जिस महान आत्मा को वे सूखे से राहत दिलाने के लिए मगहर ले जाने वाले थे, वह भी वहीं बैठ गए।
परमेश्वर कबीर जी ने फिर कहा, ''बिजली खां, तुम सब घर जाओ नहीं तो भीग जाओगे।'' अब वे परमात्मा कबीर जी की बात मानकर मगहर की ओर प्रस्थान कर गये। वह मगहर पहुँच भी नहीं पाये थे कि भारी वर्षा होने लगी। सारे जलाशय भर गये। बारिश 2-3 घंटे में बंद हो गई। मगहर के लोग जानते थे कि बिजली खां पठान, किसी महापुरुष को लेने गया है। बारिश रुकने के बाद पूरा मगहर भगवान के दर्शन करने आया और उनके चरणों में गिर पड़ा। उधर गोरखनाथ जी तो वहां से निकल गये। तब परमेश्वर कबीर जी ने उनसे पूछा-
तुम कौन राम का जपते जापं। तातें कटे न तीनों तापम्।।
भावार्थ: आप किस भगवान की पूजा करते हैं जो आपको तीन ताप से भी नहीं बचा सकता? तब भगवान कबीर जी ने सभी को आध्यात्मिक ज्ञान सुनाया और उन्हें सच्ची साधना की विधि बताई। वहां उपस्थित लोगों में से बहुतों ने उनकी शरण ली। कबीर साहेब जी ने कहा-
क्या माँगू कुछ थिर ना रहाई। देखत नैन चला जग जाई।।
एक लख पूत सवा लख नाती। उस रावण कै दीवा न बाती ।।
अर्थ है कि भगवान से क्या माँगा जा सकता है? इस संसार में कुछ भी स्थाई नहीं है। जिनके पास कोई संतान नहीं है, वे संतान की मांग करते हैं। लेकिन इस अस्थाई संसार में ही रावण जैसे बलशाली के एक लाख पुत्र थे और सवा लाख नाती (रिश्तेदार) थे। वे भी नहीं रहे क्योंकि यह संसार नश्वर है।
परमेश्वर कबीर जी अपने भक्तों को अपनी भक्ति में दृढ़ रखने के लिए मगहर जाने लगे। वहाँ एक 60-65 वर्ष का निसंतान मुस्लिम जुलाहा था। वह बूढ़ा व्यक्ति परमेश्वर कबीर जी से बार-बार बच्चे की माँग कर रहा था। परमेश्वर कबीर जी ने कहा, "यदि तुम केवल यही माँगते हो तो ठीक है, तुम्हें संतान प्राप्त हो जाएगी।" दसवें महीने में उसे संतान की प्राप्ति हुई। आज वहां उस बूढ़े आदमी के वंशजों की एक पूरी बस्ती बसी हुई है जिसका नाम है "मोहल्ला कबीर करम" अर्थात कबीर जी की दया (करम यानी रहम) से बसाया गया एक मोहल्ला (कॉलोनी)।
सतगुरु रामपाल जी महाराज जी एक बार अपने कई भक्तों के साथ वहाँ गए। वहाँ उन्हें एक आदमी मिला जिसने बताया, “हमारा वंश कबीर जी की दया से चल रहा है। हमारे दादा जी का जन्म उनके आशीर्वाद से हुआ था।” परमेश्वर कबीर जी ने बूढ़े को बच्चा दिया था और वहाँ बहुत भारी बारिश करवाई थी। पूज्य संत गरीबदास जी कहते हैं-
मासा घाटे न तिल बढ़े, विधना लिखे जो लेख।
साचा सतगुरु मेट के, ऊपर मार दे मेख ।
सतगुरु जो चाहे सो करही, चौदह कोट दूत जम डरही ।
काशी करवत (काशी करौंत) क्या है?
काशी के ब्राह्मणों ने अफवाह फैला दी थी कि जो काशी में मरेगा वह स्वर्ग जाएगा और जो मगहर में मरेगा वह नरक जाएगा। उन्होंने भक्तों से मगहर में न मरने को कहा। धनी बनिया-सेठ परिवार अपने बूढ़े माता-पिता के आग्रह पर उनके अंतिम वर्षों में उन्हें काशी में रहने के लिए छोड़ने लगे। नकली ब्राह्मण गुरुओं ने उन अमीर लोगों से उनके बूढ़े मां-बाप को अपने घर में रखने और उनकी देखभाल में खर्च करने के लिए पैसे देने को कहा। ब्राह्मणों ने उनसे ज़रूरत से ज़्यादा पैसे मांगे। प्रत्येक ब्राह्मण के घर में देखभाल के लिए 5-6 बुजुर्ग रहने लगे थे।
पाठकों, वृद्धावस्था में व्यक्ति की यह स्थिति हो जाती है कि अकेले उठना-बैठना या स्पष्ट रूप से सोचना भी कठिन हो जाता है। नतीजा यह होता है कि वे लाचार होकर कहीं भी शौच कर देते हैं, थूक देते हैं। इससे वे नकली ब्राह्मण परेशान हो गए और इससे निजात पाने की युक्ति सोचने लगे।
ब्राह्मणों ने इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए एक योजना बनाई
ब्राह्मणों ने फिर से एक और अफवाह उड़ाई कि "भगवान गंगा घाट पर एक आरी (करौंत) भेजते हैं। जो कोई भी जल्दी स्वर्ग पहुंचना चाहता है वह हमें 50 मोहरों का शुल्क देकर अपना सिर कटवा सकता है।" इस तरह से उन ब्राह्मणों ने इंसानों के सिर काटने का कारोबार शुरू कर दिया। भोले-भाले भक्तों (बुजुर्गों) ने अपने बच्चों से पैसे माँगकर अपना सिर कटवाना भी स्वीकार कर लिया। जबकि, भगवान कबीर जी यह शिक्षा देते थे, "व्यक्ति को सही साधना करने की आवश्यकता है। फिर, जिसने भी सही साधना की है, वह कहीं भी मर सकता है। मरने के बाद वह उसी स्थान पर पहुंचेगा जिसके लिए वह पूजा कर रहा था।" लेकिन, हमने उनकी बात नहीं सुनी। हम उन झूठे ब्राह्मणों पर विश्वास करते थे।
परमेश्वर कबीर जी ने मगहर से सतलोक जाने का निर्णय लिया
अपनी पवित्र आत्माओं को अपने वचनों पर विश्वास दिलाने के लिए परमेश्वर कबीर जी ने मगहर से ही सतलोक जाने का निर्णय लिया। परमेश्वर कबीर जी ने सभी ब्राह्मणों, पुजारियों, मुल्लाओं, काज़ियों और ज्योतिषियों को भी आमंत्रित किया ताकि वे अपनी पुस्तकों आदि में जाँच करें और भोले-भाले भक्तों को सच्चाई बताएं कि परमेश्वर कबीर जी भौतिक शरीर छोड़ने के बाद कहाँ जाएंगे।
बिजली खाँ पठान और वीरदेव सिंह बघेल के बीच मुकाबला
परमेश्वर कबीर जी हज़ारों लोगों सहित तीन दिन पैदल चलकर मगहर पहुँचे। बिजली खाँ पठान को उनके आगमन का संदेश पहले ही दे दिया गया था और उन्होंने आवश्यक तैयारियां करवा दीं। बिजली खाँ पठान ने सोचा कि भगवान कबीर जी के निधन के बाद, उन्हें उनके शरीर का अंतिम संस्कार केवल इस्लाम धर्म के अनुसार करना चाहिए, भले ही इसके लिए उन्हें हिंदुओं से लड़ाई लड़नी पड़े। इसलिए उसने अपनी सेना भी तैयार कर ली थी। दूसरी ओर काशी नरेश वीरदेव सिंह बघेल का भी यही विचार था कि शव का अंतिम संस्कार हिंदू धर्म के रीति- रिवाज के अनुसार किया जाए। इसलिये वह भी अपनी सेना मगहर ले गया था।
बिजली खां पठान ने भगवान कबीर जी से स्नान करने का अनुरोध किया और उसने सभी दर्शकों के लिए पर्याप्त पीने के पानी की व्यवस्था करवाई थी, हालांकि वहां जल सभी के स्नान के लिए पर्याप्त नहीं था। परमेश्वर कबीर जी के पूछने पर राजा ने बताया कि मगहर के पास एक आमी नदी बहती थी जो शिव जी के श्राप के कारण सूख गई थी। संक्षेप में कहें तो परमेश्वर कबीर जी ने उस आमी नदी में जल प्रवाहित कर दिया और वर्षों से सूखी पड़ी आमी नदी लबालब भरकर बहने लगी। उन्होंने और सभी दर्शकों ने उस नदी में स्नान किया। सभी ने वह मीठा पानी पिया और परमेश्वर कबीर जी की जय-जयकार की। इसके बाद परमेश्वर कबीर जी उस स्थान पर गए जहाँ से उन्हें इस मृत्युलोक को छोड़ना था।
परमेश्वर कबीर जी का सशरीर सतलोक गमन
एक स्थान पर पहुंचकर कबीर साहेब खड़े हुए। परमेश्वर कबीर जी ने दो चादरें मांगी, एक नीचे बिछाने के लिए और दूसरी शरीर को ढकने के लिए। भक्तों ने श्रद्धा से फूलों की चादर बिछाई क्योंकि भगवान उस पर लेटने वाले थे। परमेश्वर कबीर जी उस चादर पर बैठ गए और बीर देव सिंह बघेल और बिजली खाँ पठान से पूछा कि वे अपनी सेनाएँ साथ क्यों लाए हैं। वे दोनों उनके प्रश्न का उत्तर न दे सके और सिर झुका लिया। अन्य हिंदुओं और मुसलमानों ने कहा कि वे उनके शरीर का अंतिम संस्कार अपने धर्म के अनुसार करेंगे, इसके लिए अगर उन्हें लड़ाई भी करनी पड़ी तो वे लड़ेंगे। परमेश्वर कबीर जी ने उन्हें फटकारा और कहा “क्या मैंने आपको 120 वर्षों में केवल यही सिखाया है? क्या आप अब भी हिंदू और मुसलमानों को अलग-अलग मानते हैं? खबरदार, यदि आपने युद्ध किया।
चादर के नीचे जो कुछ भी मिले, उसे आधे-आधे बाँट लेना, लेकिन मेरे बच्चों लड़ना मत।” हिन्दू और मुसलमान अब भी मन ही मन युद्ध करने का विचार ठाने खड़े थे और कबीर साहेब के देह छोड़ने का इंतज़ार कर रह थे। सर्वज्ञ परमेश्वर कबीर जी यह जानते थे। वे फूलों पर लेट गए और खुद को दूसरी चादर से ढक लिया। थोड़ी देर बाद ऊपर आसमान से परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि चादर उठाओ तुम्हें वहां शरीर नहीं मिलेगा। हे ब्राह्मणों! अपने-अपने बही-खाते जाँचो और भोले भक्त समाज को बताओ कि मैं कहाँ जा रहा हूँ - नर्क में या स्वर्ग से भी ऊपर और मेरे बच्चों, तुम्हें चादर के नीचे जो कुछ भी मिले उसे हिंदू और मुसलमानों में आधा-आधा बांट लो, और लड़ना मत।” सबने ऊपर देखा तो तेज रोशनी का एक पुंज ऊपर जाता दिखाई दिया।
उन्होंने चादर उठाई तो परमेश्वर कबीर जी के शरीर के आकार में सुगंधित फूलों का ढेर पाया। यह देखकर दोनों राजाओं ने एक-दूसरे को गले लगा लिया। सभी हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरे के गले लग लगकर फूट-फूटकर इस तरह रोने लगे मानो छोटे-छोटे बच्चों के माता-पिता मर गये हों। वे स्वयं को धिक्कार रहे थे कि वे पृथ्वी पर अपने अंतिम समय में भी भगवान को खुशी नहीं दे सके।
एक चादर हिंदुओं ने ली और दूसरी मुसलमानों ने
हिंदू और मुस्लिम दोनों ने सुगंधित फूलों को आधा-आधा बांट लिया। बिजली खां पठान ने मगहर में हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को 500-500 बीघे ज़मीन दी। हिंदुओं और मुसलमानों ने वहीं अपनी अपनी यादगार उन आधे आधे फुलों के साथ बनाई। बिजली खां पठान ने दोनों स्थानों पर स्मारक बनवाया। जहाँ एक ओर हिंदुओं के लिए मंदिर है और दूसरी ओर मुसलमानों के लिए एक मस्जिद। मंदिर और मस्जिद के बीच एक छोटा सा गेट है जहाँ आने जाने में किसी को कोई मनाही नहीं है, कोई भी किसी भी स्थान पर जाकर पूजा कर सकता है। इस प्रकार परमेश्वर कबीर जी ने हिंदू और मुसलमानों का बड़ा गृहयुद्ध टाल दिया। वीर देव सिंह बघेल कुछ फूल काशी भी ले गए और वहां कबीर चौरा एक स्मारक बनवाया। दोनों स्मारक वर्तमान में आज भी मौजूद हैं।